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Wednesday, 12 February 2014

चाणक्य नीति




स्त्री करती है ये काम तो होती है बदनाम, पुरुष करे तो होता है नाम




चाणक्य  नीति



स्त्री करती है ये काम तो होती है बदनाम, पुरुष करे तो होता है नाम



आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
भ्रमन्सम्पूज्यते राजा भ्रमन्सम्पूज्यते द्विज:।
भ्रमन्संपूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनाश्यति।।
इस श्लोक में आचार्य कहते हैं कि यदि कोई राजा अपने राज्य में भ्रमण करता है तो उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है। राजा भ्रमण करके ही प्रजा के दुख और दर्द को जान सकता है। प्रजा के दुख जानने के बाद जो राजा उनका निवारण करता है, वह पूजनीय हो जाता है।
यदि कोई स्त्री हमेशा भ्रमण करती रहती है तो उसे समाज में सम्मान की प्राप्ति नहीं होती है। चाणक्य ने लगातार भ्रमण करने वाली स्त्री के विषय में बताया है कि ऐसी स्त्रियां धर्म से विचलित हो जाती हैं।
जो ब्राह्मण, ज्ञानी या योगी पुरुष इधर-उधर भ्रमण करते हुए शास्त्रों का ज्ञान बांटता है, उसे समाज में मान-सम्मान मिलता है। एक स्थान पर रुका हुआ ब्राह्मण या ज्ञानी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता है। किसी भी ज्ञानी के लिए जरूरी है कि वह अपना ज्ञान लोगों में बांटे, तभी उसका जीवन सार्थक हो सकता है। यदि कोई स्त्री ज्ञानी हो तो वह भ्रमण करके अपने ज्ञान का प्रसार कर सकती है। इसमें कोई दोष नहीं है।
स्त्रियों के संबंध में आचार्य ने बताया है कि लगातार इधर-उधर व्यर्थ ही, किसी अच्छे उद्देश्य के बिना घुमने वाली स्त्री के कारण उसके परिवार को भी समाज में नीचा देखना पड़ता है। समाज ऐसी स्त्रियों को सम्मान नहीं देता है। अत: महिलाओं को इस संबंध में विशेष ध्यान रखना चाहिए।
गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थिता:।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काक: गरुडायते।।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति अपने गुणों से ही महान बन सकता है। जिस व्यक्ति में कोई गुण नहीं है, वह कभी महान नहीं हो सकता है। सिर्फ किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से व्यक्ति पूजनीय और सम्मानीय नहीं सकता है।
यदि कोई कौआ किसी ऊंचे भवन पर बैठ जाए तो वह गरुड़ नहीं बन सकता है। ठीक इसी प्रकार मूर्ख और गुणहीन व्यक्ति महान नहीं हो सकता है।





अतिक्लेशेन ये अर्था धर्मस्याऽतिक्रमेण तु।
शत्रूणां प्रणिपातेन ते ह्यर्था न भवन्तु मे।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने धन के संबंध में महत्वपूर्ण नीति बताई है। वे कहते हैं कि यदि किसी धन को प्राप्त करने में असहनीय तकलीफ उठानी पड़े, धर्म का मार्ग छोड़नी पड़े, शत्रुओं के सामने नीचा देखना पड़े तो ऐसा धन व्यर्थ है। इस प्रकार के धन का मोह नहीं करना चाहिए।
दूसरों से गाली सुनकर भी स्वयं उन्हें गाली न दें। क्षमा करने वालों का रोका हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है और उसके पुण्य को भी ले लेता है।
रूखी वाणी और कठोर स्वभाव वाला जो व्यक्ति दूसरों के मर्म पर चोट करता है और कष्ट देता है, ऐसे मनुष्य को समझना चाहिए कि वह मृत्यु समान जीवन को ढो रहा है
जैसे कपड़ों को जिस रंग में रंगा जाए वे उसी रंग के हो जाते हैं, वैसे ही सज्जन पुरुष भी चोर या तपस्वी में से जिनकी सेवा करते हैं, उन पर उन्हीं का रंग चढ़ जाता है।
मनुष्य जिन विषयों से मन को हटाता जाता है, उन विषयों से उसकी मुक्ति होती जाती है। इस तरह यदि वह इन सब विषयों की ओर से निवृत हो जाए
तो उसे कभी दुख नहीं होगा

जो स्वयं न किसी से जीता जाता है और न किसी को जीतने की इच्छा करता है, न किसी के साथ बैर करता है और न कष्ट देता है, वह हर्ष व शोक से परे हो जाता है।
जो अपनी उन्नति चाहता है, वह उत्तम पुरुषों की सेवा करे। समय आने पर मध्यम पुरुषों की भी सेवा करे, लेकिन कभी भी अधम पुरुषों की सेवा न करे।








































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