Tuesday, 25 April 2017
मकान की नीव खुदने पर नीव मे क्या क्या डालना चाहिए
Saturday, 22 April 2017
पारद शिवलिंग क्या है पूजन से चमत्कारी लाभ -विधि शुद्ध पारद की पहचान
parad shivling kya hai pujan se chmtkari labh vidhi shudh parad ki pachan
पारद शिवलिंग क्या है पूजन से चमत्कारी लाभ -विधि शुद्ध पारद की पहचान
पूजन की विधि
सर्वप्रथम शिवलिंग को सफेद कपड़े पर आसन पर रखें।
स्वयं पूर्व-उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए।
अपने आसपास जल, गंगाजल, रोली, मोली, चावल, दूध और हल्दी, चन्दन रख लें।
सबसे पहले पारद शिवलिंग के दाहिनी तरफ दीपक जला कर रखो।
थोडा सा जल हाथ में लेकर तीन बार निम्न मन्त्र का उच्चारण करके पी लें।
प्रथम बार ॐ मुत्युभजाय नम:
दूसरी बार ॐ नीलकण्ठाय: नम:
तीसरी बार ॐ रूद्राय नम:
चौथी बार ॐशिवाय नम:
हाथ में फूल और चावल लेकर शिवजी का ध्यान करें और मन में ''ॐ नम: शिवाय`` का 5 बार स्मरण करें और चावल और फूल को शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ॐ नम: शिवाय का निरन्तर उच्चारण करते रहे।
फिर हाथ में चावल और पुष्प लेकर ''ॐ पार्वत्यै नम:`` मंत्र का उच्चारण कर माता पार्वती का ध्यान कर चावल पारा शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ॐ नम: शिवाय का निरन्तर उच्चारण करें।
फिर मोली को और इसके बाद बनेऊ को पारद शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके पश्चात हल्दी और चन्दन का तिलक लगा दे।
चावल अर्पण करे इसके बाद पुष्प चढ़ा दें।
मीठे का भोग लगा दे।
भांग, धतूरा और बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ा दें।
फिर अन्तिम में शिव की आरती करे और प्रसाद आदि ले लो।
जो व्यक्ति इस प्रकार से पारद शिवलिंग का पूजन करता है इसे शिव की कृपा से सुख समृद्धि आदि की प्राप्ति होती है।
स्वयं पूर्व-उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए।
अपने आसपास जल, गंगाजल, रोली, मोली, चावल, दूध और हल्दी, चन्दन रख लें।
सबसे पहले पारद शिवलिंग के दाहिनी तरफ दीपक जला कर रखो।
थोडा सा जल हाथ में लेकर तीन बार निम्न मन्त्र का उच्चारण करके पी लें।
प्रथम बार ॐ मुत्युभजाय नम:
दूसरी बार ॐ नीलकण्ठाय: नम:
तीसरी बार ॐ रूद्राय नम:
चौथी बार ॐशिवाय नम:
हाथ में फूल और चावल लेकर शिवजी का ध्यान करें और मन में ''ॐ नम: शिवाय`` का 5 बार स्मरण करें और चावल और फूल को शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ॐ नम: शिवाय का निरन्तर उच्चारण करते रहे।
फिर हाथ में चावल और पुष्प लेकर ''ॐ पार्वत्यै नम:`` मंत्र का उच्चारण कर माता पार्वती का ध्यान कर चावल पारा शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ॐ नम: शिवाय का निरन्तर उच्चारण करें।
फिर मोली को और इसके बाद बनेऊ को पारद शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके पश्चात हल्दी और चन्दन का तिलक लगा दे।
चावल अर्पण करे इसके बाद पुष्प चढ़ा दें।
मीठे का भोग लगा दे।
भांग, धतूरा और बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ा दें।
फिर अन्तिम में शिव की आरती करे और प्रसाद आदि ले लो।
जो व्यक्ति इस प्रकार से पारद शिवलिंग का पूजन करता है इसे शिव की कृपा से सुख समृद्धि आदि की प्राप्ति होती है।
पारद शिवलिंग के लाभ
इसे घर में स्थापित करने से भी कई लाभ हैं, जो इस प्रकार हैं
* पारद शिवलिंग सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों को काट देता है.
* पारद शिवलिंग जहां स्थापित होता है उसके १०० फ़ीट के दायरे में उसका प्रभाव होता है. इस प्रभाव से परिवार में शांति और स्वास्थ्य प्राप्ति होती है.
* पारद शिवलिंग शुद्ध होना चाहिये, हस्त निर्मित होना चाहिये, स्वर्ण ग्रास से युक्त होना चाहिये, उसपर फ़णयुक्त नाग होना चाहिये. कम से कम सवा किलो का होना चाहिये.
* य़दि बहुत प्रचण्ड तान्त्रिक प्रयोग या अकाल मृत्यु या वाहन दुर्घटना योग हो तो ऐसा शुद्ध पारद शिवलिंग उसे अपने ऊपर ले लेता है. ऐसी स्थिति में यह अपने आप टूट जाता है, और साधक की रक्षा करता है.
* पारद शिवलिंग की स्थापना करके साधना करने पर स्वतः साधक की रक्षा होती रहती है.विशेष रूप से महाविद्या और काली साधकों को इसे अवश्य स्थापित करना चाहिये.
* पारद शिवलिंग को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है।
* पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना गया है। इसलिए इसे घर में स्थापित कर प्रतिदिन पूजन करने से किसी भी प्रकार के तंत्र का असर घर में नहीं होता और न ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
* यदि किसी को पितृ दोष हो तो उसे प्रतिदिन पारद शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इससे पितृ दोष समाप्त हो जाता है।
* अगर घर का कोई सदस्य बीमार हो जाए तो उसे पारद शिवलिंग पर अभिषेक किया हुआ पानी पिलाने से वह ठीक होने लगता है।
* पारद शिवलिंग की साधना से विवाह बाधा भी दूर होती है।
* पारद शिवलिंग सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों को काट देता है.
* पारद शिवलिंग जहां स्थापित होता है उसके १०० फ़ीट के दायरे में उसका प्रभाव होता है. इस प्रभाव से परिवार में शांति और स्वास्थ्य प्राप्ति होती है.
* पारद शिवलिंग शुद्ध होना चाहिये, हस्त निर्मित होना चाहिये, स्वर्ण ग्रास से युक्त होना चाहिये, उसपर फ़णयुक्त नाग होना चाहिये. कम से कम सवा किलो का होना चाहिये.
* य़दि बहुत प्रचण्ड तान्त्रिक प्रयोग या अकाल मृत्यु या वाहन दुर्घटना योग हो तो ऐसा शुद्ध पारद शिवलिंग उसे अपने ऊपर ले लेता है. ऐसी स्थिति में यह अपने आप टूट जाता है, और साधक की रक्षा करता है.
* पारद शिवलिंग की स्थापना करके साधना करने पर स्वतः साधक की रक्षा होती रहती है.विशेष रूप से महाविद्या और काली साधकों को इसे अवश्य स्थापित करना चाहिये.
* पारद शिवलिंग को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है।
* पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना गया है। इसलिए इसे घर में स्थापित कर प्रतिदिन पूजन करने से किसी भी प्रकार के तंत्र का असर घर में नहीं होता और न ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
* यदि किसी को पितृ दोष हो तो उसे प्रतिदिन पारद शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इससे पितृ दोष समाप्त हो जाता है।
* अगर घर का कोई सदस्य बीमार हो जाए तो उसे पारद शिवलिंग पर अभिषेक किया हुआ पानी पिलाने से वह ठीक होने लगता है।
* पारद शिवलिंग की साधना से विवाह बाधा भी दूर होती है।
शुद्ध पारद शिवलिंग की पहचान
पारद शिवलिंग पारा अर्थात Mercury का बना होता है. आज कल बाजार में पारद शिवलिंग बने बनाए मिलते है. ये सर्वथा अशुद्ध एवं किन्ही विशेष परिस्थितियों में हानि कारक भी होते है. जैसे सुहागा एवं ज़स्ता के संयोग से बना शिवलिंग भी पारद शिवलिंग जैसा ही लगता है. इसी प्रकार एल्युमिनियम से बना शिवलिंग भी पारद शिवलिंग जैसा ही लगता है. किन्तु उपरोक्त दोनों ही शिवलिंग घर में या पूजा के लिए नहीं रखने चाहिए. इससे रक्त रोग, श्वास रोग एवं मानसिक विकृति उत्पन्न होती है. अतः ऐसे शिवलिंग या इन धातुओ से बने कोई भी देव प्रतिमा घर या पूजा के स्थान में नहीं रखने चाहिए.
पारद शिव लिंग का निर्माण क्रमशः तीन मुख्या धातुओ के रासायनिक संयोग से होता है. “अथर्वन महाभाष्य में लिखा है क़ि-“द्रत्यान्शु परिपाकेनलाब्धो यत त्रीतियाँशतः. पारदम तत्द्वाविन्शत कज्जलमभिमज्जयेत. उत्प्लावितम जरायोगम क्वाथाना दृष्टोचक्षुषः तदेव पारदम शिवलिंगम पूजार्थं प्रति गृह्यताम. अर्थात अपनी सामर्थ्य के अनुसार कम से कम कज्जल का बीस गुना पारद एवं मनिफेन (Magnesium) के चालीस गुना पारद, लिंग निर्माण के लिए परम आवश्यक है. इस प्रकार कम से कम सत्तर प्रतिशत पारा, पंद्रह प्रतिशत मणि फेन या मेगनीसियम तथा दस प्रतिशत कज्जल या कार्बन तथा पांच प्रतिशत अंगमेवा या पोटैसियम कार्बोनेट होना चाहिए.ऐसे पारद शिवलिंग को आप केवल बिना पूजा के अपने घर में रख सकते है. यदि आप चाहें तो इसकी पूजा कर सकते है. किन्तु यदि अभिषेक करना हो तो उसके बाद इस शिवलिंग को पूजा के बाद घर से बाहर कम से कम चालीस हाथ की दूरी पर होना चाहिए. अन्यथा इसके विकिरण का दुष्प्रभाव समूचे घर परिवार को प्रभावित करेगा. किन्तु यदि रोज ही नियमित रूप से अभिषेक करना हो तो इसे घर में स्थायी रूप से रखा जा सकता है. ऐसे व्यक्ति बहुत बड़े तपोनिष्ठ उद्भात्त विद्वान होते है. यह साधारण जन के लिए संभव नहीं है. अतः यदि घर में रखना हो तो उसका अभिषेक न करे.
पारद शिवलिंग यदि कोई अति विश्वसनीय व्यक्ति बनाने वाला हो तो उससे आदेश या विनय करके बनवाया जा सकता है. वैसे भी इसका परीक्षण किया जा सकता है. यदि इस शिवलिंग को अमोनियम हाईड्राक्साइड से स्पर्श कराया जाय तो कोई दुर्गन्ध नहीं निकलेगा. किन्तु पोटैसियम क्लोरेट से स्पर्श कराया जाय तो बदबू निकलने लगेगी. यही नहीं पारद शिव लिंग को कभी भी सोने से स्पर्श न करायें नहीं तो यह सोने को खा जाता है.
यद्यपि पारद शिवलिंग एवं इसके साथ रखे जाने वाले दक्षिणा मूर्ती शंख की बहुत ही उच्च महत्ता बतायी गयी है. विविध धर्म ग्रंथो में इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है. किन्तु यदि इसके निर्माण की विश्वसनीयता पर तनिक भी संदेह हो तो इसका परित्याग ही सर्वथा अच्छा है. अतः सामान्य रूप से बाज़ार में मिलाने वाले पारद शिवलिंग के नाम पर कोई शिवलिंग तब तक न खरीदें जब तक आप उसकी शुद्धता पर आश्वस्त न हो जाएँ.
पारद शिव लिंग का निर्माण क्रमशः तीन मुख्या धातुओ के रासायनिक संयोग से होता है. “अथर्वन महाभाष्य में लिखा है क़ि-“द्रत्यान्शु परिपाकेनलाब्धो यत त्रीतियाँशतः. पारदम तत्द्वाविन्शत कज्जलमभिमज्जयेत. उत्प्लावितम जरायोगम क्वाथाना दृष्टोचक्षुषः तदेव पारदम शिवलिंगम पूजार्थं प्रति गृह्यताम. अर्थात अपनी सामर्थ्य के अनुसार कम से कम कज्जल का बीस गुना पारद एवं मनिफेन (Magnesium) के चालीस गुना पारद, लिंग निर्माण के लिए परम आवश्यक है. इस प्रकार कम से कम सत्तर प्रतिशत पारा, पंद्रह प्रतिशत मणि फेन या मेगनीसियम तथा दस प्रतिशत कज्जल या कार्बन तथा पांच प्रतिशत अंगमेवा या पोटैसियम कार्बोनेट होना चाहिए.ऐसे पारद शिवलिंग को आप केवल बिना पूजा के अपने घर में रख सकते है. यदि आप चाहें तो इसकी पूजा कर सकते है. किन्तु यदि अभिषेक करना हो तो उसके बाद इस शिवलिंग को पूजा के बाद घर से बाहर कम से कम चालीस हाथ की दूरी पर होना चाहिए. अन्यथा इसके विकिरण का दुष्प्रभाव समूचे घर परिवार को प्रभावित करेगा. किन्तु यदि रोज ही नियमित रूप से अभिषेक करना हो तो इसे घर में स्थायी रूप से रखा जा सकता है. ऐसे व्यक्ति बहुत बड़े तपोनिष्ठ उद्भात्त विद्वान होते है. यह साधारण जन के लिए संभव नहीं है. अतः यदि घर में रखना हो तो उसका अभिषेक न करे.
पारद शिवलिंग यदि कोई अति विश्वसनीय व्यक्ति बनाने वाला हो तो उससे आदेश या विनय करके बनवाया जा सकता है. वैसे भी इसका परीक्षण किया जा सकता है. यदि इस शिवलिंग को अमोनियम हाईड्राक्साइड से स्पर्श कराया जाय तो कोई दुर्गन्ध नहीं निकलेगा. किन्तु पोटैसियम क्लोरेट से स्पर्श कराया जाय तो बदबू निकलने लगेगी. यही नहीं पारद शिव लिंग को कभी भी सोने से स्पर्श न करायें नहीं तो यह सोने को खा जाता है.
यद्यपि पारद शिवलिंग एवं इसके साथ रखे जाने वाले दक्षिणा मूर्ती शंख की बहुत ही उच्च महत्ता बतायी गयी है. विविध धर्म ग्रंथो में इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है. किन्तु यदि इसके निर्माण की विश्वसनीयता पर तनिक भी संदेह हो तो इसका परित्याग ही सर्वथा अच्छा है. अतः सामान्य रूप से बाज़ार में मिलाने वाले पारद शिवलिंग के नाम पर कोई शिवलिंग तब तक न खरीदें जब तक आप उसकी शुद्धता पर आश्वस्त न हो जाएँ.
अब मैं पार्थिव पारद शिवलिंग के निर्माण के तत्वों एवं उसकी प्रक्रिया के बारे में बताना चाहूँगी|
- अबरताल- इसका अंग्रेजी या वैज्ञानिक नाम आर्सेनिक है. यह एक प्रकार का विष भी है. किन्तु पारे के मिश्रण से यह एक बहुत ही शक्तिशाली विषघ्न भी बन जाता है. पारे के साथ यह बहुत ही आसानी से घुल मिल जाता है. तथा बहुत ही शीघ्र पारा ठोस रूप धारण कर लेता है. कहा भी गया है कि “ पार्थिव पारदो लिंगम श्नोश्रेयमभिशंसितम“. अर्थात अबरताल के संयोग से बना शिवलिंग सर्वपाप ह़र होता है. किन्तु आर्सेनिक को प्राकृतिक अवस्था में ही होना चाहिए. अन्यथा शोधित आर्सेनिक लवणीकृत (आक्सी डेनटीफायिड) हो जाता है. जो हानिकारक होता है. यदि आर्सेनिक का कणीय अयन 122 : 2200 का हो तों ऐसे आर्सेनिक का पारे के साथ संयोग सर्वोत्तम माना जाता है. ऐसे शिवलिंग का वजन तीन छटाक से किसी भी हालत में ज्यादा नहीं होना चाहिए.
- मृगालक- इसे अंग्रेजी या विज्ञान क़ी भाषा में फास्फोरस कहते है. फास्फोरस एक अति शीघ्र ज्वलन शील पदार्थ होता है. किन्तु प्राकृतिक अवस्था में यह सुषुप्त होता है. पारद के साथ यह थोड़ी कठिनाई से मिलता है. इसीलिए इसमें हाडकेशर या जिल्कोनाईट मिला दिया जाता है. मृगालक के साथ पारद शिवलिंग बनाना थोड़ा कठिन होता है. क्योकि इसे पिघलाने में विस्फोट का भय ज्यादा होता है. शास्त्रों में इसे त्रिताप ह़र कहा गया है.& “विनश्यते त्रयो तापा मृग लिंगम परिपासते” पारद शिवलिंग के लिये मृगालक का कणीय अयन 988 : 453 होना चाहिए. इस शिवलिंग का वजन किसी भी अवस्था में एक पाँव से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
- अपन्हुत- इसका दूसरा नाम तूतफेन भी है. इसका अंग्रेजी नाम क्युप्रिकमेटासाईड भी है. यह पारद शिवलिंग का सबसे उत्कृष्ट स्वरुप है. भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि हे पार्वती ! अपन्हुत पारद मुझे उसी तरह प्रिय है जैसे चातक को स्वाति बूँद. जिस घर में इस लिंग क़ी पूजा होगी वहां कलिकाल अपना कोई भी प्रभाव नहीं ड़ाल सकता है. “अपन्हुतो लिंगम देवी ! यत्रैव पर्युपासते. कलिभावं क्षयोजाते नित्य वृद्धिकरम भवेत्” पारद शिवलिंग निर्माण में अपन्हुत का कणीय अयन 2400 : 3600 का होना चाहिए. इसके वजन का कोई प्रमाण नहीं है. पौराणिक कथन के अनुसार लंका में रावण ने पांच सहस्र प्रस्थ वजन का शिवलिंग विश्वकर्मा से बनवाया था. एक प्रस्थ में पांच किलो होता है. यही कारण है कि लंका एक अभेद्य दुर्ग बन गया था.
- जिरायत- इसका एक नाम पहाडी सुहागा भी है. अंग्रेजी में इसे ट्राईडेनियम कहते है. यह बहुत ही आसानी से बन जाता है. कारण यह है कि यह बहुत हलके ताप पर भी पारा में मिल जाता है. इसे अक्सर लोग घरो में शौकिया तौर पर रखते है. इसका न तों कोई लाभ है और न ही कोई हानि. यह बहुत ही चमकीला होता है. किन्तु पानी के संयोग होने से यह शिवलिंग यह एक बदबूदार गंध उत्पन्न करता है. अतः इसे पूजा करने के लिये नहीं रखा जाता है. इसे शीशे के मर्तबान में रखना चाहिए. खुले में इसे नहीं रखना चाहिए. ज्यादा आर्द्र स्थान पर इसे नहीं रखना चाहिए. यह एक अति तीव्र हींग शोधक पदार्थ भी है.
- वज्रदंती- पुराणों में कहा गया है कि जब इन्द्र भगवान राक्षसो से पराजित होकर स्वर्ग से निकाल दिये गये तों उनकी पत्नी शची ने माता कालिका से इस विपदा के निवारण का उपाय पूछा. माता कालिका ने कहा कि हे इन्द्रानी यदि तुम पृथ्वी पर किसी भी तीर्थ क्षत्र में वज्रदंती पारद शिवलिंग क़ी स्थापना कर दो तों राक्षस बिना किसी युद्ध के स्वयं ही भय भीत होकर स्वर्ग छोड़ कर पाताल में भाग जायेगें. तब इन्द्रानी ने भगवान त्वष्टा से विनय कर के वज्रदंती के पारद शिवलिंग का निर्माण कराया था. तथा उसे प्रभास क्षेत्र में स्थापित किया था. जिसके प्रभाव से राक्षस स्वर्ग छोड़ कर पलायित हो गये थे. यह अभ्रक या Ore का अशुद्ध रूप है यह शिवलिंग बहुत कठिनाई से बनता है. वर्त्तमान समय में यह शिवलिंग बनवाना बहुत ही महँगा है. कारण यह है कि वज्रदंती आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अति प्रतिबंधित या सुरक्षित धातु हो गयी है. सरकार क़ी अनुमति से ही इसे खरीदा जाता है. इसका कणीय अयन 23 :12 का होना चाहिए. इसका वजन घर के प्रयोग के लिये दो छटाक से ज्यादा नहीं होना चाहिए. बाहर स्थापना के लिये इसके वजन का कोई प्रमाण नहीं है.
- कज्जल- यह एक प्रकार का ठोस कालिख होता है. इसे नौसादर एवं एवं तूतिया जलाकर बनाते है. इसे अंग्रेजी में जिंककार्बेट कहते है. इस शिवलिंग का प्रयोग तांत्रिक काम के लिये ज्यादा करते है. यह एक अति प्रचलित पारद शिवलिंग का रूप है. इसके निर्माण में कम से कम 70 हिस्सा पारा एवं 30 हिस्सा काज़ल होना चाहिए. काज़ल बहुत ही आसानी से पारा में मिल जाता है. यह बना बनाया बाजार में जहां तहाँ मिल जाता है. किन्तु उसमें पारा बहुत ही कम होता है. प्रायः देखने में आया है कि ऐसे शिवलिंग में पारा मात्र 10 प्रतिशत ही होता है. इसमें कज्जल का कणीय अयन 190 ; 30 का होना चाहिए. इसका वजन तीन छटाक से ज्यादा नहीं होना चाहिए. महाराजा बलि ने भगवान विष्णु क़ी आज्ञा से पाताल में एक करोड़ कज्जल पारद शिवलिंग का निर्माण कराया था. राजा मुचुकुन्द ने अपने गुरु आचार्य अभिन्नदोह के आदेश से अनार्यगत या यायावर प्रदेश में अपनी ऊंचाई का कज्जल शिवलिंग बनवाया था. जो आज भी कावा या बगदाद में है. जहां मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग अपना सबसे पवित्र तीर्थ यात्रा “हज’ पूरी करते है.
इसके अलावा पुराणों में अन्य अनेक प्रकार के शिवलिंगों का वर्णन प्राप्त होता है. जैसे सोना. मानिक, हाथी दांत, अष्टधातु, चांदी, हीरा तथा अन्य अमूल्य पत्थर के शिवलिंग भी पुण्यप्रदायक होते है॰
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Thursday, 20 April 2017
हाथ की रेखाए बताएंगीसरकारी नोकरी का योग है या नहीं
हाथ की रेखाए बताएंगीसरकारी नोकरी का योग है या नहीं
Hath ki rekhaon se jaane government job hai ya nahi
कुंडली और हमारे हाथों की रेखाओं को पढ़कर यह जाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति के जीवन में सरकारी योग है या नहीं.
हथेली में सूर्य पर्वत का उभरा होना Surya parvat ka ubhara hona
समुद्रशास्त्र के अनुसार जिन लोगो की हथेली में सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है और सूर्य पर्वत पर एक सीधी रेखा बिना किसी रूकावट या कट के आ रही हो. तब इस स्थिति में ऐसे लोगो का सूर्य बहुत अधिक मजबूत होता है और सरकारी जॉब पाने के योग बहुत अधिक बढ़ जाते है. सूर्य को सरकार का कारक ग्रह माना गया है जो सरकारी धनलाभ करता है.
गुरु पर्वत से सूर्य पर्वत की ओर किसी रेखा का आना Guru parvat se surya parvat par kisi rekha ka ana
गुरु पर्वत हाथ की तर्जनी ऊँगली की जड़ में होता है गुरु को ऐसा ग्रह माना गया है जो सरकारी क्षेत्र में बहुत अधिक लाभ करता है यदि किसी जातक की हथेली में गुरु पर्वत पर सूर्य पर्वत से चलकर कोई रेखा आ रही हो तो यह इस बात की ओर इशारा करता है कि आप सरकारी क्षेत्र में किसी उच्च पद को प्राप्त कर सकते है. ऐसे लोग समाज में बहुत अधिक मान-सम्मान पाते है.
गुरु पर्वत पर सीधी रेखाओं का होना Guru parvat par sidhi rekhaon ka hona
समुद्रशास्त्र में बताया गया है कि जिस तरह से गुरु पर्वत के उभरे होने पर सरकारी धन लाभ या सरकारी नौकरी प्राप्त होती है ठीक उसी तरह गुरु पर्वत पर उभार के साथ-साथ बहुत सी सीधी रेखाओं का होना भी सरकारी नौकरी मिलने की ओर इशारा करता है.
भाग्य रेखा से कोई शाखा का गुरु पर्वत पर जाना Bhagya rekha se nikalkar kisi shakha ka guru parvat par jana
यदि किसी जातक की हथेली में भाग्य रेखा से कोई शाखा निकल कर गुरु पर्वत पर जाए तो ऐसे जातकों को सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त होने की संभावना बहुत अधिक होती है उनके जीवन में सरकारी जॉब के योग बहुत तेज होते है.
Wednesday, 19 April 2017
मनोज तिवारी की कुंडली का विश्लेषण भोजपुरीफिल्मो के सुपरस्टार
मनोज तिवारी की कुंडली का विश्लेषण भोजपुरीफिल्मो के सुपरस्टार अभिनेता, राजनेता, गायक, निर्देशक


मनोज तिवारी का जन्म मेष लग्न मे हुया एव मेष राशि है जिसका स्वामी मंगल है लग्न मे शनि और चंद्र पंचम मे केतू लाभ मे राहू नवम मे दशम मे सूर्य अष्टम मे गुरु मंगल है
कलाकार योग त्रितयेश बुध शुक्र का योग अभिनेता, गायक, निर्देशक के के रूप सफलता देता है शुक्र सूर्य चंद्र की दशाओ ने सफलता मे चार चंद लगा दिये एव चंद्र शनि जो चंद्र 4 भाव का स्वामी होकर दशमभाव के स्वामीके साथ मे रहने से करम सिद्धि योग बनाता है जो जीवन मे सभी क्षत्रों मे सफलता देता है दशम मे सूर्य भी विद्या बुद्धि से सफलतादेता है मुखका स्वामी शुक्र एव 2भाव पर गुरु मंगल की द्रष्टि गायन एव बोलने मे चतुर बनती है एव जनता से लोक हित से जुड़े कार्यो से भी विशेष सफलता देता हैलाभ का राहू एव शनि राजनीति में रुचि देते है
अष्टक वर्ग मे गुरु की पोजीशन राज पद सत्ता सुख और वैभव प्रदान करती है
कुंडली मे और भी अनेक योग बने है लेकिन सभी का वरन करना सम्म्भ नहीं है
यदि आप भी अपनी जन्म कुंडली दिखवाना चाहते है तो call ---mo.+917697961597call kre
Manoj Tiwari Horoscope


मनोज तिवारी का जन्म मेष लग्न मे हुया एव मेष राशि है जिसका स्वामी मंगल है लग्न मे शनि और चंद्र पंचम मे केतू लाभ मे राहू नवम मे दशम मे सूर्य अष्टम मे गुरु मंगल है
कलाकार योग त्रितयेश बुध शुक्र का योग अभिनेता, गायक, निर्देशक के के रूप सफलता देता है शुक्र सूर्य चंद्र की दशाओ ने सफलता मे चार चंद लगा दिये एव चंद्र शनि जो चंद्र 4 भाव का स्वामी होकर दशमभाव के स्वामीके साथ मे रहने से करम सिद्धि योग बनाता है जो जीवन मे सभी क्षत्रों मे सफलता देता है दशम मे सूर्य भी विद्या बुद्धि से सफलतादेता है मुखका स्वामी शुक्र एव 2भाव पर गुरु मंगल की द्रष्टि गायन एव बोलने मे चतुर बनती है एव जनता से लोक हित से जुड़े कार्यो से भी विशेष सफलता देता हैलाभ का राहू एव शनि राजनीति में रुचि देते है
अष्टक वर्ग मे गुरु की पोजीशन राज पद सत्ता सुख और वैभव प्रदान करती है
कुंडली मे और भी अनेक योग बने है लेकिन सभी का वरन करना सम्म्भ नहीं है
यदि आप भी अपनी जन्म कुंडली दिखवाना चाहते है तो call ---mo.+917697961597call kre
Saturday, 15 April 2017
जन्म कुण्डली में किस भाव से क्या देखे -----
जन्म कुण्डली में किस भाव से क्या देखे -----
janam kundli me kis bhav se kya dekhe
ज्योतिष-शास्त्र में किसी भी कुंडली पर विचार करने के लिए यह जानकारी परम आवश्यक है कि कुंडली के किस भाव से क्या-क्या विचार किया जाता है। बिना इसकी जानकारी के किसी भी कुंडली का फल नहीं कहा जा सकता है।प्रत्येक कुंडली में बारह भाव होते हैं।इसके प्रत्येक भाव से क्या-क्या विचार किया जाता है, नीचे लिखा गया है:-
प्रथम भाव यानि लग्न से शरीर, रूप, वर्ण, चेहरा, स्वास्थ,आयु का प्रमाण, शरीर की दुर्बलता एवं पुष्टता, आकृति, चिन्ह, आरोग्यता, शरीर-लक्षण, अवस्था-गुण, विवेकशीलता, स्वभाव, मस्तिष्क,स्मरण-शक्ति, योग्यता, मान-सम्मान, प्रसिद्धि, क्लेश आदि का विचार किया जाता है।
द्वितीय भाव यानि धन भाव से धन-दौलत, पारिवारिक सम्बन्ध, कुटुम्ब-सुख, आर्थिक-दशा, द्रव्य, सोना-चाँदी, रत्नादि का क्रय-विक्रय, कुल, मित्र, आँख, कान, नाक, मुख, स्वर, सौंदर्य, संगीत-प्रेम, सुखोपभोग, वाकशक्ति, स्वतंत्रता, सच्चाई आदि का विचार किया जाता है।
तृतीय भाव यानि सहज-पराक्रम भाव से सहोदर भाई-बहन, पराक्रम, दास-कर्म, साला, बहनोई, साहस, शौर्य, धैर्य, योगाभ्यास, गला-कन्धा, बाँह, कंठ,पत्र-व्यवहार आदि का विचार किया जाता है।
चतुर्थ भाव यानि माता-सुख भाव से माता, जमीन, मकान, सम्पति, बाग-बगीचा, दया, उदारता, सास, सुख के साधन, सवारी-सुख, उद्यम, खेती, धन,छाती, दमा-खाँसी, श्वसन-रोग, फेंफड़ा आदि का विचार किया जाता है।
पंचम भाव यानि विद्या-संतान भाव से बुद्धि, विद्या, पढ़ाई, काव्य, कला, मन्त्र-यंत्र, नीति-न्याय, विनय, व्यवस्था, देव-भक्ति, नम्रता, शिष्टाचार, गुरु-शिष्य का सम्बन्ध, पुत्र, पुत्री, गर्भ-स्थिति, संतान, पीठ, मेरुदंड, हृदय, आदि का विचार किया जाता है।
षष्टम भाव यानि शत्रु भाव से रोग, चिंता, पीड़ा, शत्रु, व्रण, शंका, चोर-भय, क्रूर-कर्म, बंधन-भय, पाप, अन्याय, लड़ाई-झगड़ा, दुःख, जहरीले एवं हिंसक जानवर से खतरा, अग्नि-भय, नुकसान, दुश्मनी, आँत, नाभि, पाचन-क्रिया, यकृत-रोग, मामा-मामी, मौसी आदि का विचार किया जाता है।
सप्तम भाव यानि पत्नी भाव से विवाह, पति-पत्नी का सम्बन्ध, काम-चिंता, मैथुन, प्रेमिका, तलाक, दाम्पत्य-जीवन, झगड़ा, प्रेम, रोजगार, व्यापार,अहंकार, कमर, गर्भाशय, किडनी-रोग, आपरेशन, पेशाब-रोग, पित्ताशय आदि का विचार किया जाता है।
अष्टम भाव यानि मृत्यु भाव से आयु, मृत्यु, जीवन, मृत्यु के कारण, व्याधि, मानसिक-चिंता, मन की व्यथा, पुरातत्व, दुर्घटना, लंबी-बीमारी, निराशा, अपमान, विषम-मार्ग, गुप्त-धन, बाधा-कष्ट, लिंग-योनि या अंडकोष संबंधी रोग, गुप्तांग-रोग, मल-मूत्र संबंधी परेशानी आदि का विचार किया जाता है।
नवम भाव यानि भाग्य भाव से धर्म, भाग्य, उन्नति, मानसिक-वृति, तीर्थ-यात्रा, दान-पुण्य, तप, धार्मिक-विचार, आध्यात्मिक-शक्ति, भविष्य-वाणी, ईश्वरीय-सहायता, कूल्हा-जाँघ आदि का विचार किया जाता है।
दशम भाव यानि कर्म भाव से राज्य, मान, प्रतिष्ठा, प्रभुता, व्यापार, अधिकार,नेतृत्व, ऐश्वर्य-भोग, कीर्ति-लाभ, बड़े लोगों से मैत्री, उच्च पद की प्राप्ति, शासन संबंधी कार्य, सरकारी- कार्य, प्रसिद्धि, उपलब्धि, पिता, पिता से सम्बन्ध, पैतृक-सम्पति,ससुर, घुटना, घुटना के इर्द-गिर्द का अंग आदि का विचार किया जाता है।
एकादश भाव यानि आय भाव से समस्त लाभ, लाभ के उपाय, आमदनी में परेशानी, सम्पति प्राप्ति या नष्ट होना, पुरस्कार मिलना, अपयश होना, घुटने के नीचे की हड्डी और मांस सम्बंधित अंग जैसे छावा-पिंडली आदि का विचार किया जाता है।
द्वादश भाव यानि व्यय भाव से हानि, दंड, व्यय, व्यसन, सरकारी जुर्माना, मुक़दमा, सजा, जेल, बदनामी, शत्रुता, विदेश-यात्रा, चोर-भय, लांछन, नेत्र, पैर की फिल्ली की जोड़ से पैर की उंगलियों तक का भाग, पैर का तलवा आदि का विचार किया जाता है।
प्रथम भाव यानि लग्न से शरीर, रूप, वर्ण, चेहरा, स्वास्थ,आयु का प्रमाण, शरीर की दुर्बलता एवं पुष्टता, आकृति, चिन्ह, आरोग्यता, शरीर-लक्षण, अवस्था-गुण, विवेकशीलता, स्वभाव, मस्तिष्क,स्मरण-शक्ति, योग्यता, मान-सम्मान, प्रसिद्धि, क्लेश आदि का विचार किया जाता है।
द्वितीय भाव यानि धन भाव से धन-दौलत, पारिवारिक सम्बन्ध, कुटुम्ब-सुख, आर्थिक-दशा, द्रव्य, सोना-चाँदी, रत्नादि का क्रय-विक्रय, कुल, मित्र, आँख, कान, नाक, मुख, स्वर, सौंदर्य, संगीत-प्रेम, सुखोपभोग, वाकशक्ति, स्वतंत्रता, सच्चाई आदि का विचार किया जाता है।
तृतीय भाव यानि सहज-पराक्रम भाव से सहोदर भाई-बहन, पराक्रम, दास-कर्म, साला, बहनोई, साहस, शौर्य, धैर्य, योगाभ्यास, गला-कन्धा, बाँह, कंठ,पत्र-व्यवहार आदि का विचार किया जाता है।
चतुर्थ भाव यानि माता-सुख भाव से माता, जमीन, मकान, सम्पति, बाग-बगीचा, दया, उदारता, सास, सुख के साधन, सवारी-सुख, उद्यम, खेती, धन,छाती, दमा-खाँसी, श्वसन-रोग, फेंफड़ा आदि का विचार किया जाता है।
पंचम भाव यानि विद्या-संतान भाव से बुद्धि, विद्या, पढ़ाई, काव्य, कला, मन्त्र-यंत्र, नीति-न्याय, विनय, व्यवस्था, देव-भक्ति, नम्रता, शिष्टाचार, गुरु-शिष्य का सम्बन्ध, पुत्र, पुत्री, गर्भ-स्थिति, संतान, पीठ, मेरुदंड, हृदय, आदि का विचार किया जाता है।
षष्टम भाव यानि शत्रु भाव से रोग, चिंता, पीड़ा, शत्रु, व्रण, शंका, चोर-भय, क्रूर-कर्म, बंधन-भय, पाप, अन्याय, लड़ाई-झगड़ा, दुःख, जहरीले एवं हिंसक जानवर से खतरा, अग्नि-भय, नुकसान, दुश्मनी, आँत, नाभि, पाचन-क्रिया, यकृत-रोग, मामा-मामी, मौसी आदि का विचार किया जाता है।
सप्तम भाव यानि पत्नी भाव से विवाह, पति-पत्नी का सम्बन्ध, काम-चिंता, मैथुन, प्रेमिका, तलाक, दाम्पत्य-जीवन, झगड़ा, प्रेम, रोजगार, व्यापार,अहंकार, कमर, गर्भाशय, किडनी-रोग, आपरेशन, पेशाब-रोग, पित्ताशय आदि का विचार किया जाता है।
अष्टम भाव यानि मृत्यु भाव से आयु, मृत्यु, जीवन, मृत्यु के कारण, व्याधि, मानसिक-चिंता, मन की व्यथा, पुरातत्व, दुर्घटना, लंबी-बीमारी, निराशा, अपमान, विषम-मार्ग, गुप्त-धन, बाधा-कष्ट, लिंग-योनि या अंडकोष संबंधी रोग, गुप्तांग-रोग, मल-मूत्र संबंधी परेशानी आदि का विचार किया जाता है।
नवम भाव यानि भाग्य भाव से धर्म, भाग्य, उन्नति, मानसिक-वृति, तीर्थ-यात्रा, दान-पुण्य, तप, धार्मिक-विचार, आध्यात्मिक-शक्ति, भविष्य-वाणी, ईश्वरीय-सहायता, कूल्हा-जाँघ आदि का विचार किया जाता है।
दशम भाव यानि कर्म भाव से राज्य, मान, प्रतिष्ठा, प्रभुता, व्यापार, अधिकार,नेतृत्व, ऐश्वर्य-भोग, कीर्ति-लाभ, बड़े लोगों से मैत्री, उच्च पद की प्राप्ति, शासन संबंधी कार्य, सरकारी- कार्य, प्रसिद्धि, उपलब्धि, पिता, पिता से सम्बन्ध, पैतृक-सम्पति,ससुर, घुटना, घुटना के इर्द-गिर्द का अंग आदि का विचार किया जाता है।
एकादश भाव यानि आय भाव से समस्त लाभ, लाभ के उपाय, आमदनी में परेशानी, सम्पति प्राप्ति या नष्ट होना, पुरस्कार मिलना, अपयश होना, घुटने के नीचे की हड्डी और मांस सम्बंधित अंग जैसे छावा-पिंडली आदि का विचार किया जाता है।
द्वादश भाव यानि व्यय भाव से हानि, दंड, व्यय, व्यसन, सरकारी जुर्माना, मुक़दमा, सजा, जेल, बदनामी, शत्रुता, विदेश-यात्रा, चोर-भय, लांछन, नेत्र, पैर की फिल्ली की जोड़ से पैर की उंगलियों तक का भाग, पैर का तलवा आदि का विचार किया जाता है।
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Friday, 14 April 2017
ताली बजाएं और बीमारियों को दूर भगाएं
ताली बजाएं और बीमारियों को दूर भगाएं
tali bajaye rog bhagaye
1. ताली बजाने से ना सिर्फ रोगों के आक्रमण से
रक्षा होती है बल्कि कई रोगों का इलाज भी हो जाता है। हाथों से नियमित रूप से ताली
बजाकर कई रोग दूर किये जा सकते हैं।
2. हर दिन नियमित रूप से 1 या 2 मिनट ताली बजाई
जाए तो फिर किसी प्रकार के व्यायाम या आसनों की जरुरत नहीं रहती। लगातार ताली
बजाने से मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि होती है जिससे शरीर रोगों
के आक्रमण से बचने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
3. एक्युप्रेशर चिकित्सा- विज्ञान की दृष्टि से
देखा जाए तो हाथ की हथेलियों में शरीर के सभी आंतरिक उत्सर्जन संस्थानों के बिन्दू
होते हैं और ताली बजाने से जब इन बिन्दुओं पर बार-बार दबाव पड़ता है तो सभी आंतरिक
संस्थान ऊर्जा पाकर अपना काम सुचारू रूप से करते हैं। इससे शरीर स्वस्थ और निरोग
बनता है।4. ताली बजाने से बॉडी में रक्त संचार यानी ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार हमारे बाएं हाथ की हथेली में लंग, लीवर, गॉल ब्लैडर, किडनी, छोटी और बड़ी आंत और दाएं हाथ की हथेली
में साइनस के दबाव बिंदु होते हैं। जब हम ताली बजाते हैं तो इन सभी अंगों में रक्त
दौड़ने लगता है।
5. ताली बजाना, आपकी इम्युनिटी को बढ़ाता है क्योंकि यह आपके शरीर में सफेद रक्त
कोशिकाओं को मजबूत करता है। ये किसी भी बीमारी से आपके शरीर की रक्षा करते हैं।
उंगलियों के ऊपरी हिस्सों में - शंख, चक्र से जाने फल
उंगलियों के ऊपरी हिस्सों
में - शंख, चक्र से जाने फल
हस्तरेखा में उंगलियों पर बने निशान का अलग-अलग
महत्व होता है। उंगलियों के ऊपरी भागों में कई तरह के निशान होते हैं जैसे- शंख,
चक्र
आदि। लेकिन अगर उंगलियों के ऊपरी हिस्सों में चक्र का निशान हो तो इसका क्या मतलब
होता है, जानें-
1. यदि किसी जातक की अंगुलियों में एक चक्र का
निशान हो तो, वह मनुष्य चालाक तथा अवसर को भुनाने वाले होता
है।
2. अगर किसी इंसान की उंगलियों में दो चक्र हों तो
ऐसे शख्स की समाज में तारीफ होती है। ऐसे लोगों को जीवन में सभी तरह के सुख के
साधन मिलते हैं। साथ ही ऐसे लोग खूबसूरत भी होते हैं।
3. जिन लोगों के सभी उंगलियों में चक्र का निशान
होता है, ऐसे लोग बहुत इमोशनल होते हैं और अपनी भावनाओं को कंट्रोल कर सकते
हैं।4. तो वहीं, जिन
लोगों की 3 उंगलियों में चक्र का निशान हो वो लोग अपना अधिकतर समय भोग-विलास में
व्यतीत करते हैं। इनका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं रह पाता।
Saturday, 1 April 2017
न्म कुण्डली से जाने फिल्मी दुनिया मे सफल होने के योग
जन्म कुण्डली से जाने फिल्मी दुनिया मे सफल होने के योगfilmi duniya me jnm kundli se jane saphl hone ke yog
कला जगत में सफलता दिलाने वाले ग्रह
अभिनय, गायन एवं संगीत में सफलता दिलाने वाले योग
वृष लग्न अथवा तुला लग्न की कुण्डली शुक्र एवं बुध की युति दशम अथवा पंचम में भाव में हो तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में ख्याति प्राप्त कर सकता है. पंचम भाव जिसे मनोरंजन भाव कहते हैं उस पर लग्नेश की दृष्टि हो साथ ही शुक्र या गुरू भी उसे देखते हों तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में अपना कैरियर बना सकता है. शुक्र, बुध एवं लग्नेश जिस व्यक्ति की कुण्डली में केन्द्र भाव में बैठे हों उन्हें कला जगत में कामयाबी मिलने की अच्छी संभावना रहती है. तृतीय भाव का स्वामी शुक्र के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति को कलाकर बना सकता है.
वृष लग्न अथवा तुला लग्न की कुण्डली शुक्र एवं बुध की युति दशम अथवा पंचम में भाव में हो तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में ख्याति प्राप्त कर सकता है. पंचम भाव जिसे मनोरंजन भाव कहते हैं उस पर लग्नेश की दृष्टि हो साथ ही शुक्र या गुरू भी उसे देखते हों तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में अपना कैरियर बना सकता है. शुक्र, बुध एवं लग्नेश जिस व्यक्ति की कुण्डली में केन्द्र भाव में बैठे हों उन्हें कला जगत में कामयाबी मिलने की अच्छी संभावना रहती है. तृतीय भाव का स्वामी शुक्र के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति को कलाकर बना सकता है.
वृष लग्न अथवा तुला लग्न की कुण्डली शुक्र एवं बुध की युति दशम अथवा पंचम में भाव में हो तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में ख्याति प्राप्त कर सकता है. पंचम भाव जिसे मनोरंजन भाव कहते हैं उस पर लग्नेश की दृष्टि हो साथ ही शुक्र या गुरू भी उसे देखते हों तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में अपना कैरियर बना सकता है. शुक्र, बुध एवं लग्नेश जिस व्यक्ति की कुण्डली में केन्द्र भाव में बैठे हों उन्हें कला जगत में कामयाबी मिलने की अच्छी संभावना रहती है. तृतीय भाव का स्वामी शुक्र के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति को कलाकर बना सकता है.
कला जगत में नाम, शोहरत एवं पैसा है, इस कारण से लोगों कला जगत में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश करते हैं. परंतु, सच यह है कि किसे किस क्षेत्र में सफलता मिलेगी वह ईश्वर पहले से तय करके धरती पर भेजता है. कला जगत में भी कई काम हैं जैसे अभिनय, गायन, नृत्य, लेखन आदि. कौन व्यक्ति अभिनेता बन सकता है कौन गीतकार तथा कौन गायक यह उस व्यक्ति की कुण्डली से ज्ञात किया जा सकता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में जो योग मजबूत होगा कला के उस क्षेत्र में व्यक्ति के सफल होने की उतनी ही अधिक संभावना रहेगी.
कला जगत में सफलता के लिए भाव एवं भावेश की स्थिति
अभिनय तथा गायन में वाणी प्रमुख होता है. वाणी का भाव दूसरा भाव होता है. पांचवां भाव मनोरंजन स्थान होता है. इन दोनों भावों के साथ ही साथ दशम भाव जो आजीविका का भाव माना जाता है इन सभी से यह आंकलन किया जाता है कि कोई व्यक्ति कलाकार बनेगा या नहीं अथा कला के किस क्षेत्र में उसे अधिक सफलता मिलेगी. लग्न तथा लग्नेश भी इस विषय में काफी प्रमुख माने जाते हैं
अभिनय, गायन एवं संगीत में सफलता दिलाने वाले योग
कुण्डली में मालव्य योग, शश योग, गजकेशरी योग, सरस्वती योग हों तो व्यक्ति के अंदर कलात्मक गुण मौजूद होता है. अपनी रूचि के अनुरूप वह जिस क्षेत्र में अपनी योग्यता को निखारता है उसमें सफलता मिलने की पूरी संभावना रहती है. चन्द्रमा पंचम, दशम अथवा एकादश भाव में स्वराशि में बैठा हो तथा शुक्र शुक्र दूसरे घर में स्थित हो या चन्द्र के साथ इन भावों में युति बनाये तो कलाकार बनने के लिए व्यक्ति को प्रेरणा मिलता है. शुक्र चन्द्र की इस स्थिति में व्यक्ति अभिनय या गीत, संगीत में नाम रोंशन कर पाता है. गुरू चन्द्र एक दूसरे को षष्टम अष्टम दृष्ट से देखता है साथ ही गुरू यदि आय भाव का स्वामी हो तो व्यक्ति कला जगत से आय प्राप्त करता है.
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