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Monday, 23 October 2017

छठ महापर्व,विधि और नियम मंगलवार से शुरू होगा 27 को देंगे सूर्य को अर्घ्य

छठ महापर्व,विधि और नियम मंगलवार से शुरू होगा  27 को देंगे सूर्य को अर्घ्य

मंगलवार से शुरू होगा छठ महापर्व, 27 को देंगे सूर्य को अर्घ्यइस बार छठ पर्व का प्रारंभ 24 अक्टूबर, मंगलवार को नहाय-खाए के साथ होगा। 25 अक्टूबर को खरना, 26 अक्टूबर को संध्याकालीन अर्घ्य व 27 अक्टूबर को प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद ही ये व्रत पूर्ण होगा। खरना में व्रती (व्रत करने वाले) प्रसाद ग्रहण करते हैं तथा उसके बाद अगले दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने और फिर प्रात:कालीन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूजा करने के बाद ही प्रसाद के साथ व्रत खोलते हैं।
छठ व्रत दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है। यह व्रत साल में दो बार मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र मास और फिर कार्तिक मास में। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को बड़े पैमाने पर यह पर्व मनाया जाता है।
सूर्यदेव की बहन हैं छठ देवी
अथर्ववेद में छठ व्रत के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। छठ व्रत को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी माना गया है। इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि सीता, कुंती व द्रौपदी आदि ने भी यह व्रत किया था। छठ पर्व में व्रती आसपास के नदी-तालाब में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।
जहां नदी या कोई पोखर यानी तालाब नहीं है, वहां लोग अपने घर के आगे ही साफ-सफाई करके एक गड्ढ़ा बनाते हैं और उसमें साफ जल भरते हैं, फिर व्रती उसमें खड़ा होकर सूर्य देव की अराधना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, छठ देवी सूर्य की बहन है। जीवन के लिए जल और सूर्य की किरणों की महत्ता को देखते हुए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है।
इस व्रत को महिला या पुरुष कोई भी कर सकता है। यह व्रत काफी कठोर माना जाता है। इसमें व्रती को खरना के दिन भगवान का प्रसाद ग्रहण करके फिर अगले दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रात:कालीन सूर्य को अर्घ्य देकर घर पर पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करना पड़ता है।
ठेकुआ का है खास महत्व
छठ व्रत में केला, ईंख, मूली, नारियल, सुथनी, अखरोट, बादाम, खजूर (ठेकुआ) का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि से इस व्रत का आरंभ होता है। व्रती नहा-धोकर अरबा चावल, लौकी और चने की दाल बिना लहसुन-प्याज के ग्रहण करते हैं और फिर अगले दिन व्रती बिना अन्न-जल ग्रहण के रहते हैं और शाम को खरना का प्रसाद बनता है। प्रसाद में गुड़ की खीर, ठेकुआ और कसार तैयार किया जाता है।
जिनके घर में छठ व्रत नहीं होता है, उन्हें भी इस अवसर पर प्रसाद दिया जाता है। इसके अगले दिन व्रती नदी-तालाब में साफ जल में खड़े होकर अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। फिर शाम को पांच या सात ईंख (गन्ना) के बीच में नए कपड़े (ज्यादातर पीला) चंदवा से बांधकर उसके नीचे कोसी सजाया जाता है और इसके नीचे दीप जलाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिलता है और हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस अवसर पर घर के सभी सदस्य छठ घाट पर साफ-सफाई करते हैं और नए वस्त्र पहनते हैं। बच्चों की खुशियां तो देखते ही बनती हैं।

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