Wednesday, 28 August 2013

shri krishan janmasthmi


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 28-8-2013


shri krishan  janmasthmi


आज 28अगस्त  को 

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी  पूजा विधि ---व्रत का संकल्प प्रात:करे यह व्रत मोक्ष देने वाले एवम मनोकामना पूरी करने वाला है |

भगवान का पाट  पूजा घर लगावे  साजवे व पाट के नीचे  6 चित्र भगवान  भाई के वनावे  एवम उनकी पूजन कर फिर --
इसके बाद पंचामृत व गंगा जल से माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की (यथाशक्ति) मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें।  भगवान श्रीकृष्ण को नए वस्त्र अर्पित करें। पालने को सजाएं। इसके बाद सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम उच्चारण करें। अंत में माता देवकी को अघ्र्य दें। भगवान श्रीकृष्ण को पुष्पांजलि अर्पित करें। चन्द्रमा को शंख में जल, फल, कुश, फूल, गंध डालकर अघ्र्य दें एवं पूजन करें। 


रात्रि में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पालने को झूला करें। पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाएं। आरती करें और रात्रि में शेष समय स्तोत्र, भागवद्गीता का पाठ करें। दूसरे दिन पुन: स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें। 
 















Monday, 19 August 2013

shree ganesh sankt nashak strot

                                                shree  ganesh  sankt  nashak strot


















shiv ko prsann krne ke sarl upay




                                       शिव  को प्रसन्न  करने के  सरल उपाय 

शिव भोले  नाथ  है  आप किसी एक उपाय  को  अपनी  सुविधा प्रयोग  करते  रहे  कुछ  समय  बाद  आपको उसका फल  मिलने लगे लगेगा|



 दुर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।  धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है। 




 दुर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।  धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है। 




शमी पत्रों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। बेला के फूल सेपूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त पत्नी मिलती है। 

  



 चन्द्र ग्रह  की शांति  के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं। सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।
 भगवान शिव पर ईख (गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई जाए तो सभी आनन्दों की प्राप्ति होती है। शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति 
 मधु(शहद) की धारा शिव पर चढ़ाने से धन सम्वन्धी  बाधा दूर होती है 
 लाल व सफेद आंकड़े के फूल से शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है 
 धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है। 


Tuesday, 13 August 2013

jyotish me jane kundli se aapne smpurn jivn ka phladesh

ज्योतिष  में जाने  कुंडली  से  आपने सम्पूर्ण  जीवन का फलादेश

1. लग्न विचार ------आपका  स्वभाव  रंग  कद जीवन  सम्बन्धित जानकारी ,शुभ अशुभ ग्रह  का फल |\


2.  धन कुटुम्ब  ------सम्पत्ति,वाणी ,विद्या  

3.पराक्रम -----नोकरी भाई बहन  यात्रा शक्ति  वीरता |

4.भवन ------ वाहन भवन   माता  सुख जनता  से लाभ |

5.विद्या ----विद्या  बुद्द्धि सन्तान  प्रेम विवाह  मन्त्र  यंत्र लाटरी शास्त्र ज्ञान |

6 रोग ----ऋण रोग  शुत्रु मुकदमा   जल  भय आदि |

7 दाम्पत्य एवम  व्यापार -------विवाह  दिशा ,  दुरी  ,  समय     विलम्व  के  कारण  सझे दरी दाम्पत्य सुख |

8 आयु  ----- रोग    गुप्त   ज्ञान  सोभाग्य  धन   वसीयत  क्लेश   कष्ट  आदि |

9 भाग्य  धर्म ------यात्रा  भाग्य   भक्ति   धर्मिक  कार्य आदि 

10 कर्म  ----पद   नोकरी    व्यापार    व्   पद  का  लाभ  हानी     कार्यो  में  बाधा   क्यों  |

11 आय   -----लाभ  आय  अचनाक  लाभ   हानी  के  सयोग   आदी |

12 खर्च  ----सभी  प्रकार   का  व्यय   गुप्त  शत्रु    कष्ट  आदि    



                       जन्म कुंडली  से सभी  विषय   के  बारे  में   विस्तरित   जानकारी  प्राप्त  कर  सकते है  

जन्म  समय  ,,  जन्म   तारीख   ,,   जन्म  स्थान  ,,   का  विवरण   जन्म  कुंडली  निमार्ण  में  लगता  है  |

जन्म कुंडली  निर्मण  की  फ़ीस  21 00 रु रहती  है  |

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श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ का रहस्य



 श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ  का  रहस्य








13 अगस्त 2013 को श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी है। इसी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी साक्षात् रूप में तुलसीदासजी को दर्शन देते थे।
यहां जानिए तुलसीदास और हनुमानजी से जुड़ी खास बातें, जो अधिकतर लोग जानते नहीं हैं...
गोस्वामी तुलसीदास ने बहुचर्चित और प्रसिद्ध श्रीरामचरितमानस की रचना की। श्रीरामचरितमानस की रचना सैकड़ों वर्ष पहले की गई थी और आज भी यह सबसे अधिक बिकने वाला ग्रंथ है। वेद व्यास द्वारा रचित रामायण का सरल रूप श्रीरामचरित मानस है। यह ग्रंथ सरल होने  के कारण ही आज भी सबसे अधिक प्रसिद्ध है। हनुमान चालीसा की रचना भी तुलसीदासजी ने ही की है।
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले से कुछ दूरी पर राजापुर नाम का एक गांव है। इसी गांव में संवत् 1554 के आसपास गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था। तुलसीदास के पिता आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास का जन्म श्रावण मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन हुआ था।
ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास जन्म के समय पूरे बारह माह तक माता के गर्भ में रहने की वजह से काफी तंदुरुस्त थे और उनके मुख में दांत भी दिखायी दे रहे थे।
सामान्यत: जन्म के बाद सभी शिशु रोया करते हैं किन्तु इस शिशु ने जो पहला शब्द बोला वह राम था। इसी वजह से तुलसीदास का प्रारंभिक नाम रामबोला पडा | 
माता हुलसी तुलसीदास को जन्म देने के बाद दूसरे दिन ही मृत्यु को प्राप्त हो गईं। तब पिता आत्माराम ने नवजात शिशु रामबोला को एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गये। जब रामबोला साढ़े पांच वर्ष का हुआ तो वह दासी भी जीवित न रही। अब रामबोला किसी अनाथ बच्चे की तरह गली-गली भटकने को विवश हो गया।
इसी प्रकार भटकते हुए एक दिन नरहरि बाबा से रामबोला भेंट हुई। नरहरि बाबा उस समय प्रसिद्ध संत थे। उन्होंने रामबोला का नया नाम तुलसीराम रखा।  इसके बाद वे तुलसीराम को अयोध्या, उत्तर प्रदेश ले आए और वहां उनका यज्ञोपवीत-संस्कार कराया।
तुलसीराम ने संस्कार के समय बिना सिखाए ही गायत्री-मन्त्र का स्पष्ठ उच्चारण किया, जिसे देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पांच संस्कार करके बालक को राम-मन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराया।
तुलसीराम की बुद्धि बहुत तेज थी। वह एक ही बार में गुरु-मुख से जो भी सुन लेता, उसे वह तुरंत याद हो जाता। वहां से कुछ समय बाद गुरु-शिष्य दोनों शूकरक्षेत्र (सोरों) पहुंचे। वहां नरहरि बाबा ने तुलसीराम को रामकथा सुनाई किन्तु बालक रामकथा ठीक से समझ न सका।
तुलसीराम का विवाह रत्नावली नाम की बहुत सुंदर कन्या से हुआ था। विवाह के समय तुलसीराम की आयु लगभग 29 वर्ष थी। विवाह के तुरंत बाद तुलसीराम बिना गौना किए काशी चले आए और अध्ययन में जुट गए। इसी प्रकार एक दिन उन्हें अपनी पत्नी रत्नावली की याद आई और वे उससे मिलने के लिए व्याकुल हो गए। तब वे अपने गुरुजी से आज्ञा लेकर पत्नी रत्नावली से मिलने जा पहुंचे।
रत्नावली मायके में थीं और जब तुलसीराम उनके घर पहुंचे तब यमुना नदी में भयंकर बाढ़ थी और वे नदी में तैर कर रत्नावली के घर पहुंचे थे। उस समय भयंकर अंधेरा था। जब तुलसीराम पत्नी के शयनकक्ष में पहुंचे तब रत्नावली उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो गई। लोक-लज्जा की चिंता से उन्होंने तुलसीराम को वापस लौटने को कहा।
जब तुलसीराम वापस लौटने के लिए तैयार न हुए तब रत्नावली ने उन्हें एक दोहा सुनाया, वह दोहा इस प्रकार है...
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति!
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत?
यह दोहा सुनते ही तुलसीराम उसी समय रत्नावली को पिता के घर छोड़कर वापस अपने गांव राजापुर लौट आए। जब वे राजापुर में अपने घर पहुंचे तब उन्हें पता चला कि उनके पिता भी नहीं रहे। तब किसी उन्होंने पिता का अंतिम संस्कार किया और उसी गांव में लोगों को श्रीराम कथा सुनाने लगे।
समय इसी प्रकार गुजरने लगा। कुछ समय राजापुर में रहने के बाद वे पुन: काशी लौट आए और वहां राम-कथा सुनाने लगे। इसी दौरान तुलसीराम को  एक दिन मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी से मिलकर तुलसीराम ने उनसे श्रीराम के दर्शन कराने की प्रार्थना की। तब हनुमानजी ने कहा उन्हें कहा कि चित्रकूट में रघुनाथजी दर्शन होंगें। इसके बाद तुलसीदासजी चित्रकूट की ओर चल पड़े।
चित्रकूट पहुंच कर उन्होंने रामघाट पर अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले ही थे कि उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदास उन्हें देखकर आकर्षित तो हुए, परन्तु उन्हें पहचान न सके कि वे ही श्रीराम और लक्ष्मण हैं।
इसके बाद हनुमानजी ने आकर बताया जब तुलसीदास को पश्चाताप हुआ। तब हनुमानजी ने उन्हें सांत्वना दी और 
इसके बाद अगले दिन सुबह-सुबह पुन: श्रीराम प्रकट हुए। इस बार वे एक बालक रूप में तुलसीदास के समक्ष आए थे। श्रीराम ने बालक रूप में तुलसीदास से कहा कि उन्हें चंदन चाहिए। यह सब हनुमानजी देख रहे थे और उन्होंने सोचा कि तुलसीदास इस बार भी श्रीराम को पहचान नहीं पा रहे हैं। तब बजरंगबली ने एक दोहा कहा कि
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
यह दोहा सुनकर तुलसीदास श्रीरामजी की अद्भुत दर्शन किए। श्रीराम के दर्शन की वजह से तुलसीदासजी सुध-बुध खो बैठे थे। तब भगवान राम ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर स्वयं के मस्तक पर  तथा तुलसीदासजी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये | 
संवत् 1628 में तुलसीदास हनुमानजी की आज्ञा लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े। रास्ते में उस समय प्रयाग में माघ का मेला लगा हुआ था। तुलसीदास कुछ दिन के लिए वहीं रुक गए।
मेले में एक दिन तुलसीदास को किसी वटवृक्ष के नीचे भारद्वाज और याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए। वहां वही कथा हो रही थी, जो उन्होंने सूकरक्षेत्र में अपने गुरु से सुनी थी।
मेला समाप्त होते ही तुलसीदास प्रयाग से पुन: काशी आ गए और वहां एक ब्राह्मण के घर निवास किया। वहीं रहते हुए उनके अन्दर कवित्व शक्ति जागृत हुई। अब वे संस्कृत में पद्य-रचना करने लगे। तुलसीदास दिन में वे जितने पद्य रचते, रात्रि में वे सब भूल जाते। यह घटना रोज हो रही थी। तब एक दिन भगवान शंकर ने तुलसीदास जी को सपने आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। 
नींद से जागने पर तुलसीदास ने देखा कि उसी समय भगवान शिव और पार्वती उनके सामने प्रकट हुए। प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा- तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिन्दी में काव्य-रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान होगी।
जब संवत् 1631 का प्रारम्भ हुआ। दैवयोग से उस वर्ष रामनवमी के दिन वैसा ही योग आया जैसा त्रेतायुग में राम-जन्म के दिन था। उस दिन प्रात:काल तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की।
दो वर्ष, सात महीने और छब्बीस दिन में इस अद्भुत ग्रन्थ की रचना हुई। संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हुए।

Friday, 2 August 2013

vivah ke upay विवा ह के उपाय

          

                                                        विवा ह   के उपाय    

यदि आपकी   कुंडली विवाह  में बाधा  योग है तो   कुंडली  के अनुसार उपाय करने से शीघ्र   विवाह होता  है

कुछ सरल प्रयोग आप कर सकते है   |


1.  कन्या के   लिया गुरु  बलवान होना चाहिये  ,,हल्दी को जल डाल  कर स्नान  करे |


२.गुरु वार  का 41  व्रत  करे|

3.  पीले     व  स्त्र  धारण करे बड़ो  का कहना  माने|

    4 .        पीली वस्तु औ  का दान करे  |

5 .  गाय  को  गुरु वार को   रोटी     में  गुड व् चान की  दालरख   कर खिलावे |

6..  केले  का  पूजन  करे   व   गुरु  के   108   नामो  का  जप करे |

7 श्रवण  मास  में   पीली   सामग्री  से   शिव   पूजन  करे   |

वर    की  कुंडली   शुक्र    उत्तम हो  ना   चाहिए   शुक्र   बल  ही न  होने  पर  विवाह  विलम्ब  से होता  है|

1.कन्याओं  (21)  को   खीर  खिलावे  |

2     श्वेत  वस्त्र  धारण   करे   |

3 .शुक्र  वार  को  छुहारे   (7)  सिरहाने  रखे   व  शनिवार  नदी  में  बहादे |

4 शुक्रवार  का  व्रत  करे    मीठा  खावे   दुर्गा  जी  का  पूजन  करे  |


अधिक  जानकारी   के लिए   सम्पर्क  करे     muktajyotishs@gmail.com    mo.  +917697961597