Saturday, 31 May 2014

चाणक्य ने बताया है कौन से काम करने पर अचानक हो सकती है मौत

चाणक्य ने बताया है कौन से काम करने पर अचानक हो सकती है मौत


आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
आत्पद्वेषाद् भवेन्मृत्यु: परद्वेषाद् धनक्षय:।
राजद्वेषाद् भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषाद कुलक्षय:।।
इस श्लोक में आचार्य ने बताया है कि व्यक्ति को हमेशा ऐसे कामों से बचना चाहिए, जिनसे मृत्यु का संकट खड़ा हो सकता है।
 
चाणक्य के अनुसार हमें कभी भी किसी राजा या शासन-प्रशासन से बैर नहीं करना चाहिए। जो लोग शासन से विरोध करते हैं, उनके प्राण संकट में आ सकते हैं। जिस पल किसी राजा का विरोध किया जाता है, उसी पल व्यक्ति के जीवन पर संकट आ जाता है। आज के समय में किसी बड़े अधिकारी या बड़े व्यक्ति से दुश्मनी होना निश्चित ही परेशानियों का कारण बन सकता है। जब तक हम मजबूत स्थिति में न हो, इन लोगों से बैर नहीं लेना चाहिए। सही समय की प्रतीक्षा करना चाहिए।
 यदि कोई व्यक्ति खुद की आत्मा से द्वेष करता है, उसका अनादर करता है, स्वयं के शरीर का ध्यान नहीं रखता, खान-पान में असावधानी रखता है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु कभी भी हो सकती है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य स्वयं ही अपना सबसे बड़ा मित्र है और स्वयं ही अपना सबसे बड़ा शत्रु भी हो सकता है। अत: व्यक्ति यदि स्वयं से शत्रुता करेगा तो उसका नाश होना निश्चित है।
आचार्य कहते हैं कि किसी बलवान व्यक्ति से शत्रुता करने पर हमारे धन का नाश होता है और साथ ही जान का जोखिम बना रहता है। बलवान व्यक्ति अपने से कमजोर व्यक्ति को बहुत आसानी से और समय मिलते ही समाप्त कर सकता है।
यहां दी गई चाणक्य नीति के अनुसार स्वयं की आत्मा से द्वेष करने पर व्यक्ति की मृत्यु जल्दी हो सकती है। बलवान व्यक्ति से शत्रुता और द्वेष करने पर धन का नाश होता है और जान का जोखिम उठाना पड़ सकता है। किसी राजा से द्वेष करने पर व्यक्ति का सर्वनाश हो जाता है। किसी ब्राह्मण या विद्वान व्यक्ति से द्वेष करने पर कुल का ही क्षय हो जाता है।
तैरना ही है तो आशा के समुद्र में तैरिए, निराशा के समुद्र में तैरने से क्या फायदा। आशा की समाप्ति ही जीवन की समाप्ति है। निराशा मृत्यु है।
 
- परोपकार मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार में टंगी एक तस्वीर में भला क्या अंतर है।
 
- जो व्यक्ति जीवन में सफल हैं, हम उन्हें देखें। उनके जीवन में सब कुछ व्यवस्थित ही नजर आएगा। वहां हर चीज आईने की तरह स्पष्ट होती है।
विपत्तियां आने पर भी सत्य और विवेक का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। क्योंकि यदि ये दोनों साथ हैं तो विपत्तियां खुद ही खत्म हो जाएंगी।
 
- यदि आपको एक पल का भी अवकाश  मिले, तो उसे सद्कर्म में लगाओ क्योंकि कालचक्र आप से भी अधिक क्रूर और उपद्रवी है।
 
- इस जीवन को खोए हुए अवसरों की कहानी मत बनने दो। जहां अच्छा मौका दिखे,वहां तुरंत छलांग लगाओ। पीछे मुड़कर मत देखो।

Wednesday, 14 May 2014

ganeshji ko durva chdhne seghr mebdhti hai shanti.dhan laxmi

ganeshji ko durva chdhne seghr mebdhti hai shanti.dhan laxmi

गणेशजी को दूर्वा  चढ़ाने से घर में बढती है  शांति ,धन लक्ष्मी  मन्त्र है -->ॐ गं गणपतये नम:


प्रथम पूज्य श्रीगणेश को विशेष रूप से दूर्वा अर्पित की जाती है। दूर्वा एक प्रकार की घास है। ऐसा माना जाता है कि गजानंद को यह घास चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और घर में रिद्धि-सिद्ध का वास होता है। गणेशजी को दूर्वा सभी लोग अर्पित करते हैं,   दूर्वा अर्पित क्यों की जाती है। दूर्वा अर्पित करने से  गणेशजी को शांति मिलती है और धन लक्ष्मी की वृद्धि होती है   इस संबंध में एक कथा बहुप्रचलित है।
 
कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। इस दैत्य के कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राही-त्राही मची हुई थी। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का नाश करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल श्रीगणेश ही कर सकते हैं।
 
शिवजी ने कहा कि अनलासुर का अंत करने के लिए उसे निगलना पड़ेगा और ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। गणेशजी का पेट काफी बड़ा है, अत: वे अनलासुर को आसानी से निगल सकते हैं। यह सुनकर सभी देवी-देवता भगवान गणेश के पास पहुंच गए। श्रीगणेश की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर गणेशजी अनलासुर को समाप्त करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद श्रीगणेश और अनलासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ, अंत में गणेशजी ने असुर को पकड़कर निगल लिया और इसप्रकार अनलासुर के आतंक का अंत हुआ।
 
जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई। एवम दूर्वा चढने से लक्ष्मी की उत्तपत्ति होती है धन बढ़ता है शस्त्रों में वर्णन है विधान के अनुसार पूजन करने से मानव आपनी इच्छापूर्ति भी कर सकता है | 










Thursday, 1 May 2014

                                          भविष्यविचार
                                   {1-5-2014 से 31 -5-2014 } 
                                                            
                                                              
इस मास में सूर्य शनि राहु में षङषटक योग बना रहे है तथा मंगल सेदिृदृदश योग है पाकिस्तान में आंतरिकअशांति का वातावरणबनेगा | विरोधी पक्ष में विरोध की भावना जाग्रत होगी  |भारतीयराजनेता चिंताग्रस्तहोगी श्रम जीवी वर्ग में असंतोषका वातावरणबनेगाआंतकी घटनाये बढ़ेगी कही पर धन जन की हानी |यां न रेल सडक दुर्घटनो औ का ग्राफबढ़ेगा जयेष्ठाप्रतिपदा को गुरुवार रहने से वर्षा अच्छी एवम उत्तम पैदा वार हो |  


by --muktajyotishs@gmail.com      mo.+917697961597