Wednesday, 13 July 2016

घाघ व भड्डरी की ‘‘कृषि व मौसम संबंधी कहावतें"


घाघ व भड्डरी की ‘‘कृषि व मौसम संबंधी कहावतें"ghaghva bhddri ki krshi va mousam samvandi kahavte 

Image result for krishi mausam      चैते वर्षा आई और सावन सूखा जाई।
एक बूंद जो चैत में परे सहसबूंद सावन की हरै।
घाघ! कहते हैं यदि चैत के महीने में वर्षा होगी तो सावन के महीने में कम वर्षा होगी। यदि एक बूंद भी वर्षा की पड़ती है, तो वह सावन की हजार बूंदों को समाप्त कर देती है।
माघ के ऊमष जेठ के जाड़, पहिला वर्षा भरिगे ताल।
कहैंघाघ हम होई बियोगी, कुआ खोदि के धोईहैं धोबी।।
घाघ! कहते हैं-यदि माघ के महिने में जाड़े के बजाय गर्मी पड़े और जेठ में गर्मी के जगह जाड़ा पड़े व पहली वर्षा से तालाब भर जाये तो समझ लेना चाहिए कि इस वर्ष इतना सूखा पड़ेगा कि धोबियों को भी कपड़े धोने के लिए जल कुएं से खींचना पड़ेगा।
मंगल रथ आगे चलै, पीछे चले जो सूर।
मन्द वृष्टि तब जानिये, पडती सगले धूर।।
इस कहावत में घाघ! ज्योतिष के अनुसार ग्रह-गोचर देखकर, वर्षा की भविष्यवाणी कैसे करे बताते हैं, यदि ग्रह-गौचर में मंगल आगे और सूर्य पीछे हो निश्चित ही सूखा पड़ता है।
आगे रवि पीछे चले, मंगल जो आषाड़।
तौ बरसे अनमोल हो, पृथ्वी आनन्द बाढ़।
जिस वर्ष गौचर में सूर्य के पीछे मंगल रहते हैं उस साल वर्षा खूब होती है और पृथ्वी पर आनन्द होता है।
माघ में जो बादर लाल घिरै, सांची मानो पाथर परै।
भड्डरी! कहते हैं कि यदि माघ के महीने में लाल रंग के बादल दिखाई दे तो निश्चय ही ओले पडते हैं।
जेठ चले पुरवाई, सावन सूखा जाई।
भड्डरी! कहते हैं, यदि जेठ के महिने में पुरवा हवा चले तो सावन के महिने में सूखा पड़ेगा, ऐसा मानना चाहिए।
रात दिन घम छाहीं, घाघ कहै अब बरखा नाही।
पूनों पड़वा गाजै, दिना बहत्तर बाजै।।
कवि घाघ! कहते हैं कि रात दिन धूल छाई रहे तो वर्षा नहीं होगी, यदि जेठ के महिने में पूनो और परवा का बादल गर्जे तो समझ लो कि दो माह तक वर्षा नहीं होगी।
सवन शुक्ला सप्तमी, उगत न दीखै भान।
तब तक वर्षा होइगी, जो लगि देवउठान।।
घाघ! कहते हैं कि यदि सावन सुदी की सप्तमी को सूर्य बादल से ढका रहे तो देवउठान तक वर्षा होती है।
माघ पूस जो दखिना चले, तो सावन में लक्षन भले।
घाघ! कहते हैं कि यदि माघ तथा पूस के महिने में दक्षिण दिशा की हवा चले तो सावन में अच्छी वर्षा होती है।
दिन में गर्मी रात को ओस, कहै घाघ वर्षा सौ कोष।
घाघ! कहते है यदि दिन में गर्मी और रात को ओस पड़े तो वर्षा की कोई आशा नहीं है।
करिया बादल डरवावे, भुवरा बादल पानी लावे।
घाघ! कहते हैं काला बादल केवल वर्षा का भय दिखाता है, जबकि भूरा बादल अच्छी वर्षा करता है।
पूरब के बादल पछियां जाय, पतली छांडि के मोटी पकाव।
पछुवा बादर पूरब को जावे, मोटी छांडि के पतली खावे।।
घाघ! कहते हैं कि यदि बादल पूरब से पश्चिम की ओर जाये जो वर्षा अच्छी होती है, अन्न खूब पैदा होता है, यदि पश्चिम से पूरब की ओर हवा चले तो वर्षा कम होती है।
शुक्रवार की बादरी रही शनीचर छाय।
ऐसा बोले भड्डरी बिन बरसे ना जाय।।
भड्डरी! कहते हैं कि यदि शुक्रवार के दिन होने वाले बादल शनिवार तक छाये रहें तो वर्षा अवश्य होती है।
सावन केरे प्रथम दिन उगत न दिखे भान।
चार महिना पानी बरसें जानों इसे प्रमान।
घाघ! कहते हैं कि सावन प्रतिपदा को यदि सूरज उगता न दिखायी पड़े तो चार मास तक खूब वर्षा होती है।
माघ मास की बादरी, और क्वार का घाम।
ये दोनों जो कोई सहै, करै पराया काम।।
घाघ! कहते हैं कि वही व्यक्ति नौकरी कर सकता है जो माघ के महिने की बदली तथा क्वार के महिने का घाम सहन कर सकता हो।
भोर समें डर डम्बरा रात उजेरी होय।
दुपहरिया सूरज तपै दुरभिक्ष तेऊ जोय।।
घाघ! कहते हैं यदि प्रातःकाल बादल घिरे, दोपहर को सूरज तपे और रात में आकाश स्वच्छ रहे तो निश्चय दुर्भिक्ष जानो।
मटका में पानी गर्म चिडि़या न्हावे धूर।
चिउंटी अन्डा लै चलै तौ बरषा भरपूर।
भड्डरी! वर्षा आने का एक संकेत और बताते हैं जो देहात में खूब प्रचलित हैं, यदि घड़े का पानी गर्म रहे, चिडि़या धूल में स्नान करें और चींटी अण्डा लेकर निकले तो खूब वर्षा होती है।
उतरे जेठ जो बोले दादुर, कहैं भडडरी बरसै बादर।
भडड्री्! कहते हैं, यदि जेठ मास के समाप्त होते ही मेढ़क बोले, तो वर्षा होती है।
सब चिन्ता को छांडि कै, करि प्रभु में विश्वास।
वाकै थापै, सब थपै, बिन थापे हो नाश।।
अन्त में घाघ! कहते हैं सब चिन्ताओं को छोड़कर भगवान में विश्वास करना चाहिए। उसमें निष्ठा करने से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, बिना उसके सर्वनाश होता है।

Monday, 11 July 2016

रोग निवारक सूर्याष्टकम्


rog nivarak suryastkam

 रोग निवारक सूर्याष्टकम्

।। सूर्याष्टकम् ।। 

Image result for sunआदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोस्तुते ॥१॥
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेत पद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥२॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥३॥
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥४॥
बृह्मितं तेजःपुञ्जञ्च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥५॥
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥६॥
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज: प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥७॥
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥८॥
ह्रदय रोग हड्डी के रोग  नेत्र रोग में सूर्य यंत्र को अभिमंत्रित कर 

  सूर्याष्टकम् का पाठ करने से लाभ होता है सूर्य कमजोर हो तो भी सूर्याष्टकम् का पाठ करने से लाभ होता है

Friday, 8 July 2016

मंगल चण्डिका विवाह यंत्र से शीघ्र विवाह

Image result for mangal chandika mantra

मंगल चण्डिका स्तोत्रम् --मंगल चण्डिका विवाह यंत्र से  शीघ्र विवाह

 Mangala Chandika Stotram

॥शंकर उवाच॥

रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके । हारिके विपदां राशेर्हर्ष-मंगल-कारिके ॥
हर्ष-मंगल-दक्षे च हर्ष-मंगल-चण्डिके । शुभे मंगल-दक्षे च शुभ-मंगल-चण्डिके ॥
मंगले मंगलार्हे च सर्व-मंगल-मंगले । सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये ॥
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट-दैवते । पूज्ये मंगल-भूपस्य मनुवंशस्य संततम् ॥
मंगलाधिष्ठातृदेवि मंगलानां च मंगले । संसार-मंगलाधारे मोक्ष-मंगल-दायिनी ॥ 
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् । प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे ॥
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगलचण्डिकाम्
। प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः ॥
देव्याश्च मंगल-स्तोत्रं यं श्रृणोति समाहितः । तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमंगलम् ॥
प्रथमे पूजिता देवी शंभुना सर्वमंगला । द्वितीये पूजिता देवी मंगलेन ग्रहेण च ॥
तृतीये पूजिता भद्रा मंगलेन नृपेण च । चतुर्थे मंगले वारे सुन्दरीभिश्च पूजिता ॥
पञ्चमे मंगलाकाङ्क्षैर्नरैर्मंलचण्डिका ॥ 
पूजिता प्रतिविश्वेषु विश्वेशै: प्रतिमा सदा । तत: सर्वत्र संपूज्या सा बभूव सुरेश्वरी ॥
देवादिभिश्च मुनिभिर्मनुभिर्मानवैर्मुने । देव्याश्च मंगलस्तोत्रं य: शृणोति समाहित: ॥
तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत्तदमंगलम् । वर्धन्ते तत्पुत्रपौत्रा मंगलं च दिने दिने ॥
(ब्रह-वैवर्त्त-पुराण । प्रकृतिखण्ड । ४४ । २९-४१)

 मंगल चण्डिका विवाह यंत्र को मंगल चण्डिका स्तोत्र से  पूजा करने पर होता है शीघ्र विवाह यदि आप विवाह नहीं होरहा मंगल बाधा है तो आप पूजित अभिमंत्रित  मंगल चण्डिका विवाह यंत्र हमारे कार्यालाय से प्राप्त कर सकते है 
+917697961597

Monday, 4 July 2016

vyapar bhvish july 2016


व्यापार भविष्य --देनिक तेजी मंदी जुलाई  20 16 

vyapar bhvish july 2016 


सोना चाँदी की तेजी मंदी के लिए संपर्क करे -+917697961597


Saturday, 2 July 2016

क्या कहते हैं सात फेरों के सात वचन

क्या कहते हैं सात फेरों के सात वचन

saat phro ke saat vachan

Image result for saat phere images
वैदिक संस्कृति के अनुसार जातक के जन्म से लेकर मरणोपरांत तक सोलह संस्कारों का निबाह किया जाता है। इन्हीं संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है विवाह संस्कार। । विवाह के बिना मनुष्य अधूरा माना जाता है। हिंदूओं में विवाह के दौरान आप अक्सर देखते हैं कि वर वधु अग्नि के चारों और चक्कर लगाकर फेरे लेते हैं। सात फेरे हर फेरे के साथ ब्राह्मण मंत्रोच्चारण करता है और वर वधु से एक वचन लेता है।वर-वधू द्वारा लिये जाने वाले सात वचन कौनसे हैं  सात फेरों सात वचन

सात फेरों के सात वचनों के बगैर हिंदुओं में विवाह को मान्यता नहीं मिलती। ना ही कोई विवाह इसके बगैर संपूर्ण होता है। विवाह के बाद ही कन्या वर के बांयी और यानि वाम अंग में बैठती है इसके लिये कन्या वर से सात वचन लेती है जो इस प्रकार हैं:-

पहला वचन
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

यह पहला वचन  जो कन्या वर से मांगती है। इसमें वह कहती है कि यदि आप कभी किसी तीर्थयात्रा पर जाएं तो मुझे भी अपने साथ लेकर चलेंगें, व्रत-उपवास या फिर अन्य धार्मिक कार्य करें तो उसमें मेरी भी सहभागिता हो और जिस प्रकार आज आप मुझे अपने वाम अंग बैठा रहे हैं उस दिन भी आपके वाम अंग मुझे स्थान मिले। यदि यह आपको स्वीकार है तो मैं आपेक बांयी और आने को तैयार हूं। कुल मिलाकर इसका अर्थ यही है कि किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य में पति के साथ पत्नि का होना भी जरुरी है।

दूसरा वचन
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम ।।

कन्या वर से अपने दूसरे वचन में कहती है कि जैसे आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी तरह मेरे माता-पिता भी आपके माता-पिता होंगें अर्थात अपने माता-पिता की तरह ही आप मेरे माता-पिता का सम्मान करेंगें और मेरे परिवार की मर्यादानुसार धर्मानुष्ठान कर ईश्वर को मानते रहें तो मैं आपके वामांग आने को तैयार हूं। 
तीसरा वचन
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्या:
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं।।

हर व्यक्ति के जीवन में शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढावस्था और वृद्धावस्था आदि पड़ाव आते हैं विवाह की उचित उम्र युवावस्था की होती है कन्या भी अपनी तीसरी शर्त यानि तीसरे वचन में इसका खयाल रखते हुए वर से कहती है कि यदि आप युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था यानि जीवन भर मेरा ध्यान रखेंगें, मेरा पालन करते रहेंगें यदि आपको यह मंजूर है तो मैं आपके वामांग आना स्वीकार करती हूं।


चौथा वचन
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं।।

जब तक जातक का विवाह नहीं होता वह घर-परिवार की चिंताओं से मुक्त माना जाता है भले ही उसके कंधों पर पूरे परिवार का भार आ चुका हो लेकिन विवाह से पहले उसे इन जिम्मेदारियों से आजाद ही माना जाता है। अपने चौथे वचन में कन्या इसी का अहसास दिलाती है कि विवाहोपरांत आप जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते और भविष्य में परिवार की सभी जरुरतों को पूरा करने का दायित्व आप पर रहेगा। यदि आप इसके लिये सक्षम हैं तो मैं आपके वामांग आने के लिये तैयार हूं। 
पांचवां वचन
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या।।

 पांचवे वचन में कन्या वर से मांग करती है किसी भी प्रकार के कार्य, लेन-देन आदि में खर्च करते समय मुझसे सलाह-मशविरा जरुर करेंगें। यदि मंजूर है तो मैं भी आपके बांयी और आने को तैयार हूं। 
छठा वचन
न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम ।।

यह वचन भी कन्या के सम्मान और उसकी प्रतिष्ठा को रेखांकित करता है कन्या वर से कहती है यदि वह अपनी सहेलियों, स्त्रियों, परिवार या आस पास अन्य कोई मौजूद हो तो सबके सामने उसका कभी भी अपमान नहीं करेंगें और दुर्व्यसनों (बुरी आदतें जैसे कि शराब, जुआ इत्यादि) से दूर रहेंगें। यदि मेरी यह शर्त आपको मंजूर है तो मैं आपके बांयी और आने को तैयार हूं। 

सातवां वचन
परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या।।

यह कन्या का अंतिम वचन है जिसे वह वर से मांगती है इसमें वह कहती है कि दूसरी स्त्रियों को आप माता समान समझेंगें अर्थात पति-पत्नि के रुप में हमारा जो प्रेम संबंध विकसित हुआ है इसमें किसी और को भागीदार नहीं बनाएंगें। यदि आपको मेरा यह वचन स्वीकार है तो ही मैं आपके वामांग आ सकती हूं।

ये सात वचन देती है कन्या

कुछ वचनों में समानता है तो कुछ में भिन्नता लेकिन लड़के की ओर से भी सात ही वचन वधु से भी मांगे जाते हैं।
1.     पहला वचन देते हुए कन्या कहती है कि तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्यों में मैं आपके वामांग रहूंगी।
2.     दूसरा वचन देती है कि आपके परिवार के बच्चे से लेकर बड़े बुजूर्गों तक सभी परिजनों की देखभाल करूंगी और जो भी जैसा भी मिलेगा उससे संतुष्ट रहूंगी।
3.     तीसरे वचन में कन्या कहती है मैं प्रतिदिन आपकी आज्ञा का पालन करूंगी और समय पर आपको आपके पसंदीदा व्यजन तैयार करके आपको दिया करुंगी।
4.     मैं स्वच्छता पूर्वक अर्थात स्नानादि कर सभी श्रृंगारों धारण कर मन, वचन और कर्म से शरीर की क्रिया द्वारा क्रीडा में आपका साथ दूंगी। यह कन्या वर को चौथा वचन देती है।
5.     अपने पांचवे वचन में वह वर से कहती है कि मैं आपके दुख में धीरज और सुख में प्रसन्नता के साथ रहूंगी और तमाम सुख- दु:ख में आपकी साथी बनूंगी और कभी भी पर पुरुष की ओर गमन नहीं करुंगी।
6.     छठा वचन देते हुए कन्या कहती है कि मैं सास-ससुर की सेवा, सगे संबंधियों और अतिथियों का सत्कार और अन्य सभी काम सुख पूर्वक करूंगी। जहां आप रहेंगे मैं आपके साथ रहूंगी और कभी भी आपके साथ किसी प्रकार का धोखा नहीं करुंगी अर्थात आपके विश्वास को नहीं तोड़ूंगी।
7.     सातवें वचन में कन्या कहती है कि धर्म, अर्थ और काम संबंधी मामलों में मैं आपकी इच्छा का पालन करुंगी। अग्नि, ब्राह्मण और माता-पिता सहित समस्त संबधियों की मौजूदगी में मैं आपको अपना स्वामी मानते हुए अपना तन आपको अपर्ण कर रही हूं।