Tuesday, 31 July 2018
नागकेसर के चमत्कारिक उपाय
नागकेसर के चमत्कारिक उपाय
nagkeshar ke chamatkari upay
शिव प्रिय, मेंहदी के पौधे के समान लगने वाले सहज, सुलभ, सस्ता, पवित्र व प्रभावशाली पौधा तांत्रिक साधना में अति महत्वपूर्ण होता है। नागकेसर के सूखे फूल औषध, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं। इनके रंग से प्रायः रेशम रँगा जाता है। श्री लंका में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है। तमिलनाडु में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं। इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं। नागकेशर के अनेक प्रयोग इस प्रकार है
नागकेसर के चमत्कारिक उपाय-- समृद्धि कारक-पीले कपड़े में नाग केशर, हल्दी, सुपारी, ताॅबे का एक सिक्का व चावल लेकर फिर धूप-दीप से पूजन करके शिव के सम्मुख रखकर यदि गल्ले या दुकान में रखेगें तो समृद्धि आयेगी। ओज वृद्धि-नागकेशर, चमेली के पुष्प, अगर, तगर, कुमकुम व घी का लेप बनाकर मस्तक पर लगाने से व्यक्ति तेजवान बनता है।
व्यक्तित्व की तरफ आकर्षित होना है तो आकर्षण करने हेतु-रविपुष्य योग में या किसी शुभ तिथि में नागकेशर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुमकुम, गाय का घी इन्हें घोटकर तिलक करने से लोग आपके व्यक्तित्व की तरफ आकर्षित होंगे।
धन प्राप्ति जिस पूर्णिमा को सोमवार हो, उस दिन नागकेशर के फूल लेकर शिवलिंग पर पाॅच बेलपत्र के साथ चढ़ायें व चढ़ाने से पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, दही, घी, शक्कर, गंगाजल, से धोकर पवित्र कर लें। बेलपत्र व नागकेशर की संख्या बराबर होनी चाहिए। ये नित्य प्रति अगली पूर्णिमा तक चढ़ाते रहें। अंतिम दिन चढ़ाये गये फूल व बेलपत्र में से एक पुष्प अपने साथ लाकर घर, दुकान या आॅफिस में लाकर रखें। ऐसा करने से धीमे-धीमे धन की स्थिति मजबूत होने लगती है।
खूनी बवासीर-नागकेसर के चूर्ण मिश्री या मखक्कन के साथ मिलाकर खाने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
वास्तु दोष-भवन के वास्तुदोष को दूर करने के लिए नागकेसर की लकड़ी से हवन करने से वास्तुदोष का शमन होता है।
Sunday, 29 July 2018
रुद्राभिषेक करने की विशेष तिथियां
रुद्राभिषेक करने की विशेष तिथियां
rudrabhoshek ki tithiye
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।
रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है।
संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है ।
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भगवान शिव का श्रवण मास मे मनोकामना पूर्ति हेतु किस वस्तु से करे रुद्राभिषेक
भगवान शिव का श्रवण मास मे मनोकामना पूर्ति हेतु किस वस्तु से करे रुद्राभिषेक
shrvan mas me kis vastu se kre avishek
हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है।
साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं।
किसी खास मनोरथ कीपूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है।
*रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं-*
• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों एवं बाधा दोष एवं ऐसी बीमारी जो पकड़ में नही आ रही हो को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।एवं बाधा शान्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।
• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्रा रुद्राभिषेक करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।
• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है। एवं उसका मारण होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है। लक्ष्मी प्रप्ति होती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है।
परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है।
विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत सेभी अभिषेक किया जाता है।
तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत हीउत्तम फल देता है।
किन्तु यदि पारद के शिवलिंग काअभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है।
रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है। पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है
रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।
भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
Tuesday, 24 July 2018
Monday, 23 July 2018
Monday, 16 July 2018
शनि देव की स्तुति येसे करे
शनि देव की स्तुति येसे करे
shani dev ki stuti yese kre shani dev hote hai prssann
शनिदेव की कृपा किसी भी इंसान को पल में रंक से राजा बना देती है। वहीं शनिदेव की रुष्टता पल में राजपाठ छिन भी सकती है। कुंडली में शनि देव का अशुभ प्रभाव होने से धन और स्वास्थय संबंधी मामलों में तकलीफें उठानी पड़ती हैं। शनि स्तुति का पाठ शनि ग्रह की पीड़ा के असर को कम करता है। जितनी अधिक श्रद्धा से उपाय किए जाए उतनी ही शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं।
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च।
नमः कालाग्रिरूपाय कृतान्ताय च वै नमः।।
नमो निर्मासदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदष्ट्रं नमोस्तुते।।
नमस्ते कोटरक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमरू।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेस्तु भास्करेअभयदाय।।
अधोदृष्टे नमस्तेस्तु संवर्तक नमोस्तुते।
नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोस्तुते।।
ज्ञान चक्षुर्नमस्तेस्तु कश्पात्मजसूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरिस तत्क्षणात्।।
पीपल की पूजा से कामनाओं की पूर्ति होती है लेकिन पूजाकब करे कब न करे
पीपल की पूजा से कामनाओं की पूर्ति होती है लेकिन पूजाकब करे कब न करे
pipal ki puja se hoti haikamano ki purti lekin kb kre kb na kre puja
श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि च्अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:ज् यानी मैं वृक्षों में पीपल हूं। पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी व अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। भारतीय जन जीवन में वनस्पतियों और वृक्षों में भी देवत्व की अवधारणा की गई है और यही कारण है कि धार्मिक दृष्टि से पीपल को देवता मान कर पूजन किया जाता है।
पीपल के पेड़ में जल चढ़ाने व पूजन और परिक्रमा करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। अमावस्या और शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हुए हनुमान चालीसा का पाठ करने से पेरशानियां दूर होती हैं। रोज सुबह नियम से पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर जप, तप और प्रभु नाम का सिमरण करने से जीव को शारीरिक व मानसिक लाभ प्राप्त होता है। पीपल के पेड़ के नीचे वैसे तो रोजाना सरसों के तेल का दीपक जलाना अच्छा काम है। यदि किसी कारणवश ऐसा संभव न हो तो शनिवार की रात को पीपल के नीचें दीपक जरूर जलाएं, क्योंकि इससे घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है, कारोबार में सफलता मिलती है, रुके हुए काम बनने लगते हैं।वहीं शत्रुओं का नाश भी होता है। यह सुख संपत्ति, धन-धान्य, ऐश्वर्य, संतान सुख व सौभाग्य प्रदान करने वाला है। इसकी पूजा करने से ग्रह पीड़ा, पितरदोष, काल सर्प योग, विष योग व अन्य ग्रहों से पैदा होने वाले दोषों का निवारण हो जाता है।
Tuesday, 10 July 2018
श्रावण सोमवार की प्रमुख तारीखें
श्रावण सोमवार की प्रमुख तारीखें
इस बार सावन का महीना 28 जुलाई से आरम्भ होने जा रहा है जो 26 अगस्त रक्षाबंधन के दिन समाप्त होगा। सावन के सोमवार में व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। इस बार सावन में 4 सोमवार पड़ेंगे श्रावण सोमवार की प्रमुख तारीखें।
सावन का पहला सोमवार 30 जुलाई को होगा।
सोमवार 6 अगस्त 2018 को सावन का दूसरा सोमवार पड़ेगा।
11 अगस्त 2018: हरियाली अमावस्या
13 अगस्त 2018 को श्रावण का तीसरा सोमवार हरियाली तीज और होगा।
सावन का आखिरी सोमवार 20 अगस्त के दिन पड़ेगा।
श्रावण मास 2018 बहुत खास है महिलयों के लिए
श्रावण मास 2018 बहुत खास है महिलयों के लिए
Sawan Somwar Vrat dates in year 2018
इस साल श्रावण महीने की शुरुआत 27 जुलाई से हो रही है। लेकिन इसे उदया तिथि यानी 28 जुलाई से मानी जाएगी। 26 अगस्त को श्रावण मास का आखिरी दिन होगा। इस साल का सावन का महीना बहुत खास रहने वाला है श्रावण मास में इस बार सावन का महीना पूरे 30 दिनों तक चलेगा। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है। सावन 30 दिनों का होने के पीछे अधिकमास पड़ने के कारण हुआ है। 28 जुलाई को सावन का पहला दिन होगा जो कि 26 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन समाप्त होगा।
सावन का पहला सोमवार 30 जुलाई को पड़ेगा। इस सावन माह में 4 सोमवार पड़ने के कारण विशेष संयोग बन रहा है। बहुत से लोग सावन या श्रावण के महीने में आने वालेपहले सोमवार से ही 16 सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं। विवाहित महिलायें यदि इसी महीने में सोमवार व्रत रखती हैं तो उन्हें भगवान शिव सौभाग्य का वरदान देते हैं। कई लोग इस माह के पहले सोमवार से सोलह सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं। सावन महीने की खास बात यह है कि इस महीने में मंगलवार का व्रत देवी पार्वती के लिए किया जाता है, जिसे मंगला गौरी व्रत के नाम से भी लोग जानते हैं। इस चार सोमवार को भगवान शिव की विशेष आराधना की जायेगी। ऐसी मान्यता है कि सावन में सोमवार को व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धिआती है।
शिव भक्तों में सावन या श्रावण महीने का खास महत्व है। इस महीने में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।सावन के महीने में सोमवार को व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने वाले जातक को मनवांछित जीवनसाथी प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। विवाहित महिलाएं यदि श्रावन महीने का सोमवार व्रत रखती हैं तो उन्हें भगवान शंकर सौभाग्य का वरदान देते हैं। चंद्र पीड़ा की शांति के लिए शिव जी पर दूध अर्पित करे |
शिव भक्तों में सावन या श्रावण महीने का खास महत्व है। इस महीने में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।सावन के महीने में सोमवार को व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने वाले जातक को मनवांछित जीवनसाथी प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। विवाहित महिलाएं यदि श्रावन महीने का सोमवार व्रत रखती हैं तो उन्हें भगवान शंकर सौभाग्य का वरदान देते हैं। चंद्र पीड़ा की शांति के लिए शिव जी पर दूध अर्पित करे |
Saturday, 7 July 2018
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