Tuesday, 20 November 2018

बेड रूम का गलत वस्तु ---वैवाहिक जीवन में परेशानियां उत्पन्न करसकता है

बेड रूम का गलत  वस्तु ---वैवाहिक जीवन में परेशानियां उत्पन्न करसकता है 

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जबनींद अच्छी आती है, तो अगले दिन की शुरुआत अच्छी होती है। हर काम में मन लगा रहता है। जो लोग गहरी नींद में सोते हैं, उठने के बाद उनकी ऊर्जा उतनी ही अधिक होती हैजिन लोगों की नींद पूरी नहीं होती है या रात को बार-बार नींद टूटती है, उन्हें अगले दिन ऊर्जा में कमी लगती है। नींद का आपके बिस्तर से गहरा संबंध होता है। 
वास्तु में इससे जुड़े कुछ टिप्स-----

बेड को यदि गलत दिशा में रखा जाए, तो यह घर में वास्तुदोष भी उत्पन्न कर सकता है। साथ ही इस पर सोने वाले व्यक्ति को ठीक से नींद भी नहीं आती है, जिससे मानसिक तनाव होता है। वैवाहिक जीवन में परेशानियां व बीमारियां भी इसकी वजह से हो सकती हैं।
बेड का सिरहाना पूर्व या दक्षिण की ओर होना चाहिए। जबकि गेस्ट रूम में बेड का सिरहाना पश्चिम की ओर हो सकता है। अगर बेड लकड़ी का है तो और भी अच्छा है। धातु का बेड नकारात्मक ताकतें पैदा करता है। प्यार बढ़ाने के लिए एक कपल को सिंगल मेटरेस पर सोना चाहिए और दो अलग-अलग मेटरेस को आपस में जोड़ना नहीं चाहिए।
बेड के ठीक सामने ऐसा शीशा नहीं होना चाहिए। यह पति-पत्नी के रिश्तों पर बुरा असर डालता है। यदि पलंग के सामने ऐसा कांच हो, जिसमें प्रतिबिंब दिखाई देता हो, तो उस पर कपड़ा डालकर सोना चाहिए।
यदि आपके पलंग के ठीक ऊपर छत का बीम है, तो पलंग को वहां से शिफ्ट कर लेना चाहिए। बीम के नीचे सोने पर आपके मस्तिष्क पर भार पड़ता है। नींद ठीक से नहीं आती है और तनाव बढ़ता है, थकान दूर नहीं होती है।
कमरे के दरवाजे के ठीक सामने पलंग नहीं रखना चाहिए। यदि दरवाजे के सामने पलंग लगा है, तो इससे वास्तुदोष उत्पन्न होते हैं। इससे आर्थिक समस्या, मानसिक तनाव, बीमारी आदि समस्या बनी रहती हैं। यदि पलंग का स्थान बदल पाना संभव न हो, तो दरवाजे पर पर्दा डालकर रखें।

Sunday, 18 November 2018

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र karj mukti hetu

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र karj mukti hetu 

 यदि आपके ऊपर ऋण वा कर्ज का बोझ अधिक बढ़ गया है और आप उस कर्ज को चाह कर भी नहीं उतार पा रहे है तब यदि आप ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का नियमित पाठ करते है तो निश्चित ही धीरे धीरे आपका ऋण उतर जाएगा। जैसा की आप जानते है मंगल का सम्बन्ध हनुमानजी से है और हनुमानजी सर्वबाधामुक्ति प्रदाता है यह श्लोक भी हनुमान जी की ही आराधना  के रूप में प्रतिष्ठित है।

कैसे आरम्भ करे ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ

इस पाठ को प्रारम्भ करने के लिए सर्वप्रथम आपको किसी शुभ तिथि का चयन भारतीय पञ्चाङ्गानुसार कर लेना चाहिए। यह पाठ मंगलवार को ही शुरू करना चाहिए अन्य दिन को नही। इस पाठ को करने से पूर्व लाल वस्त्र बिछाकर मंगल यन्त्र व महावीर हनुमान जी को स्थापित करना चाहिए , सिंदूर व चमेली के तेल का चोला अर्पित कर अपने बाये हाथ की तरफ देशी घी का दीप व दाहिने हाथ की तरफ तिल के तेल का दीप स्थापित करना चाहिए।  इसके बाद हनुमान जी को गुड़, चने व बेसन का भोग लगाना चाहिए।
मंगल देव (मंगल यन्त्र को प्राण प्रतिष्ठित कर) व हनुमान जी के सामने ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ, लाल वस्त्र धारण कर के हीआरम्भ करना चाहिए। यह पाठ अपनी श्रद्धा अनुसार 1, 3, 5, 9 , अथवा 11 पाठ 43 दिन तक नित्य करना चाहिए | इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से निश्चित ही कर्ज, ऋण व आर्थिक बाधा से मुक्ति मिलती है |

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र 

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6॥
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ 8 ||
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9॥
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11॥
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12॥
|| इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||

        ऋणमोचक मंगलयंत्र

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Tuesday, 13 November 2018

घर में तुलसी जी का विवाह की विधि और तुलसी विवाह की कथा एसे करे विवाह -------


घर में तुलसी जी का विवाह की विधि और तुलसी विवाह की  कथा  एसे करे विवाह -------


Related imageकार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी को पूरे चार महीने तक सोने के बाद जब भगवान विष्णु जागते हैं तो सबसे पहले तुलसी से विवाह करते हैं. भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं और केवल तुलसी दल अर्पित करके श्रीहरि को प्रसन्न किया जा सकता है. जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है.
राक्षस कन्या वृंदा को दिए एक आशीर्वाद के अनुसार, भगवान विष्णु ने वृंदा से विवाह करने के लिए शालिग्राम के अवतार में जन्म लिया. प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम के अवतार में तुलसी से विवाह किया था. इसीलिए हर साल प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी पूजा की जाती है. आगे जानिए, वृंदा नाम की राक्षस कन्या कैसे बनी तुलसी और कैसे हुआ विष्णु के साथ तुलसी का विवाह...
हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार, वृंदा नाम की एक कन्या थी. वृंदा का विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया गया. वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ एक पतिव्रता स्त्री थी जिसके कारण उसका पति जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया.
यहां तक कि देवों के देव महादेव भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे. भगवान शिव समेत देवताओं ने जलंधर का नाश करने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थनी की. भगवान विष्णु ने जलंधर का भेष धारण किया और पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता नष्ट कर दी.
जब वृंदा की पवित्रता खत्म हो गई तो जालंधर की ताकत खत्म हो गई और भगवान शिव ने जालंधर को मार दिया. वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वह क्रुद्ध हो गई और उन्हें भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने (शालिग्राम पत्थर) श्राप दे दिया.
वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे. राम के अवतार में भगवान सीता माता से अलग होते हैं.
भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवता में हाकाकार मच गया, फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तब वृंदा ने जगत कल्याण के लिये अपना श्राप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई.
फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा. इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा. कार्तिक महीने में तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है.
जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है. देवोत्थान एकादशी पर केवल तुलसी विवाह ही नहीं होता है. इस व्रत के शुभ प्रभाव से शादी में आ रही सारी रुकावटें दूर होने लगती हैं और शुभ विवाह का योग जल्दी ही बन जाता है.

तुलसी जी का विवाह---

* शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं। 
* तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें। 
 * तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं। 
* तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।  
* गमले में सालिग्राम जी रखें। 
* सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है। 
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* तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।  
* गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
* अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। 
* देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं। 
* कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी) 
* प्रसाद चढ़ाएं। 
* 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
*  प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें। 
* प्रसाद वितरण अवश्य करें।
* पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा। >
 इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।