Thursday, 9 December 2021

Angarak Yog. क्या अंगारक योग होता है विनाश का सूचक मंगल केतु दिसंबर क...

#share market astrology #commodity marketदिसंबर 2021

 #share market astrology #commodity marketदिसंबर 2021

तारीख 1 गेहूं कपास उड़द मूंग चना में तेजी सोना मैं तेजी
तारीख 2 धातु सरसों कपास मूंगफली में मंदी
तारीख 3 धातु तिल तेल में मंदी
तारीख 4 बाजार सामान्य रहे
तारीख 5 बाजार सामान्य रहे
तारीख 6 सोना चांदी तिल तेल सरसों सूत में मंदी
तारीख 7 सोना चांदी तांबा पीतल सूत में तेजी
तारीख 8 बाजार में मंदी रहे
तारीख 9 धातु और वस्तुओं में तेजी
तारीख 10 तेल धातुओं में तेजी
तारीख 11 बाजार सामान्य रहे
ता 12 बाजार सामान्य रहे
तारीख 13 बाजार में मंदी
तारीख 14 सोना चांदी में घट बढ़ चले
तारीख 15 बाजार में घट बढ़ चले
तारीख 16 बाजार में तेजी रहे
तारीख 17 गेहूं चना उड़द तिलहन तिल मूंगफली में तेजी
तारीख 18 बाजार सामान्य रहे
तारीख 19 बाजार सामान्य रहे
तारीख 20 अनाज धातुओं में तेजी
तारीख 21 गेहूं जो उड़द चना में मंदी
तारीख 22 बाजार में घट बढ़
तारीख 23 धातुओं में मंदी बाद में सामान्य तेजी
तारीख 24 सोना चांदी धातु अनाज में तेजी
तारीख 25 बाजार सामान्य रहे
तारीख 26 बाजार सामान्य
तारीख 27 धातुओं में मंदी तिल तेल मूंगफली में तेजी
तारीख 28 धातुओं उड़द गेहूं चना सोना चांदी में तेजी
तारीख 29 तेलों में तेजी
तारीख 30 सरसों तिल तेल में मंदी धातुओं में घटबढ़
तारीख 31 धातुओं में मंदी
नोट- व्यापारी वर्ग मार्केट का रुख देखकर ही कार्य करें यह गणना ज्योतिष के आधार पर की गई है
विशेष --2022 सन की #Gold#silver #Crude oil#Nifty#Bank Nifty ki Monthly ,weekly Report ke liye call kre MO. +91-7697961597
नोट हमारे कार्यालय से दैनिक प्रतिदिन की टाइम सहित तेजी मंदी दी जाती है इसमें सोना चांदी ताबा क्रूड आयल शेयर बाजार कमोडिटी कि आप प्रतिदिन की रिपोर्ट हमारे कार्यालय के नंबर पर संपर्क करके प्राप्त कर सकते हैं
मुक्ता ज्योतिष समाधान केंद्र
मोबाइल नंबर –769796 1597 , 98261 28985

Friday, 5 November 2021

share market astrology नवंबर 2021ज्योतिष और तेजी मंदी

 share market astrology नवंबर 2021ज्योतिष और तेजी मंदी

तारीख 1 गेहूं और चना कपास सोना चांदी मंदी किराना में तेजी
तारीख 2 बाजार में तेजी रहे
तारीख 3 सरसों मूंगफली कपास चना में मंदी
तारीख 4 सोना चांदी सूत सरसों वस्त्र में मंदी
तारीख 5 सरसों तिलहन तेल में मंदी धातुओं में घटबढ़
तारीख 6 बाजार सामान्य रहे
तारीख 7 बाजार सामान्य रहे
तारीख 8 तेल के सरसों सूत में मंदी
तारीख 9 सोना पीतल गेहूं गुड़ में तेजी
तारीख 10 चांदी तांबा पीतल मे तेजी
तारीख 11 धातुओं में तेजी और शक्कर में मंदी गुड़ शक्कर में मंदी
तारीख 12 सोना तांबा शक्कर में मंदी
तारीख 13 बाजार सामान्य रहे
तारीख 14 बाजार सामान्य रहे
तारीख 15 बाजार में मंदी रहे
तारीख 16 बाजार में घट बढ़ चले
तारीख 17 बाजार तेजी
तारीख 18 धातुओं में मंदी अनाजों में तेजी
तारीख 19 बाजार मैं घट बढ़ चले
तारीख 20 बाजार सामान्य रहे
तारीख 21 बाजार सामान्य रहे
तारीख 22 सोना चांदी लोहा ताबा में तेजी
तारीख 23 गेहूं चना उड़द मूंग धातुओं में मंदी
तारीख 24 मूंगफली तेल सफेद वस्तुओं में तेजी
तारीख 25 बाजार में तेजी के बाद मंदी
तारीख 26 पहले मंदी बाद में तेजी
तारीख 27 बाजार सामान्य रहे
तारीख 28 बाजार सामान्य रहे
तारीख 29 किराना में तेजी धातुओं में मंदी
तारीख 30 सोना चांदी ताबा में मंदी तेल तेल तेल में तेजी
नोट- व्यापारी वर्ग मार्केट का रुख देखकर ही कार्य करें यह गणना ज्योतिष के आधार पर की गई है
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Tuesday, 2 November 2021

नरक चतुर्दशी या रूप चौदस आज 2021

 नरक चतुर्दशी या रूप चौदस आज  क्या करे

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इस बार नरक चतुर्दशी का पावन पर्व 3 नवंबर 2021, गुरुवार को है। नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी, नरक चौदस और काली चौदस भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है और नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है।  नरक चतुर्दशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि विधान से श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है तथा शाम के समय यमराज की पूजा करने से नरक की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। वहीं इस दिन मां काली की पूजा का भी विधान है। कहा जाता है कि इस दिन मां काली की पूजा अर्चना करने से शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है।
नरक चतुर्दशी का पावन पर्व धनतेरस के अगले दिन यानी छोटी दीपावली को मनाया जाता है। इस बार नरक चतुर्दशी 3 नवंबर 2021, बुधवार को है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार नरक चतुर्दशी का पावन पर्व 3 नवंबर 2021, बुधवार को है। इस दिन यम देव की पूजा अर्चना करने से नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है।

नरक चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त 
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नरक चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त 3 नंबर 2021 को सुबह 09:02 से चतुर्दशी तिथि आरंभ होकर 4 नंबर 2021 प्रात: 06:03 पर समाप्त होगी। 

पूजा का शुभ समय:-

अमृत काल– 01:55 से 03:22 तक।
ब्रह्म मुहूर्त– 05:02 से 05:50 तक।
विजय मुहूर्त - दोपहर 01:33 से 02:17 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:05 से 05:29 तक।
निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:16 से 12:07 तक।

शुभ चौघड़िया
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लाभ : 06:38 am से 08:00 amतक।
अमृत : 08:00 am से 09:21am तक।
शुभ : 10:43 am से 12:04 am तक।
लाभ : 04:08 pm से 05:30 pm तक।
शुभ : 07:09 pm से 08:47 pm तक।
अमृत : 08:47 pm से 10:26 pm तक।
लाभ : 03:22 am से 05:00 am तक।

नरक चतुर्दशी या काली चौदस की पूजा विधि
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सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन 6 देवी देवताओं यमराज, श्री कृष्ण, काली माता, भगवान शिव, हनुमान जी और वामन की पूजा का विधान है। ऐसे में घर के ईशान कोण में इन सभी देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित कर विधि विधान से पूजा अर्चना करें। सभी देवी देवताओं के सामने धूप दीप जलाएं, कुमकुम का तिलक लगाएं और मंत्रो का जाप करें। बता दें इस दिन यमदेव की पूजा अर्चना करने अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है और सभी पापों का नाश होता है। तथा घर में सकारात्मकता का वास होता है। ऐसे में शाम के समय यमदेव की पूजा करें और चौखट के दोनों ओर दीप जलाकर रखें।

नरक चतुर्दशी की कथा
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प्राचीन समय में रन्तिदेव नामक एक राजा था। वह हमेशा धर्म – कर्म के काम में लगा रहता था। जब उनका अंतिम समय आया तब उन्हें लेने के लिए यमराज के दूत आये और उन्होंने कहा कि राजन अब आपका नरक में जाने का समय आ गया हैं। नरक में जाने की बात सुनकर राजा हैरान रह गये और उन्होंने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया। मैंने हमेशा अपना जीवन अच्छे कार्यों को करने में व्यतीत किया तो आप मुझे नरक में क्यों ले जा रहे हो। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि एक बार राजन तुम्हारे महल के द्वार पर एक ब्राह्मण आया था जो भूखा ही तुम्हारे द्वार से लौट गया। इस कारण ही तुम्हें नरक में जाना पड़ रहा है। 

राजा ने यमराज से अपनी गलती को सुधारने के लिए एक वर्ष का अतिरिक्त समय देने की प्रार्थना की। यमराज ने राजा के द्वारा किये गये नम्र निवेदन को स्वीकार कर लिया और उन्हें एक वर्ष का समय दे दिया। यमदूतों से मुक्ति पाने के बाद राजा ऋषियों के पास गए और उन्हें पूर्ण वृतांत विस्तार से सुनाया। यह सब सुनकर ऋषियों ने राजा को एक उपाय बताया। जिसके अनुसार ही उसने कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखा और ब्राह्मणों को भोजन कराया जिसके बाद उसे नरक जाने से मुक्ति मिल गई। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति के लिए भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

नरक चतुर्दशी के इन टोटकों से होगा लाभ
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नरक चतुर्दशी के दिन लाल चंदन, गुलाब के फूल व रोली के पैकेट की पूजा करें बाद में उन्हें एक लाल कपड़ें में बांधकर तिजोरी में रख दे। इस उपाय को करने से धन की प्राप्ति होती है और धन घर में रुकता भी है।
इस दिन स्नान से पहले तिल के तेल से मालिश करें। कार्तिक के महीने में जो लोग तेल का इस्तेमाल नहीं करते है वह भी इस दिन तेल लगा सकते हैं। ऐसी मान्यता है की इस दिन तेल में लक्ष्मी जी का और जल में गंगा जी का वास होता हैं।
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। स्नान के बाद यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करना चाहिए।
नरक चतुर्दशी के दिन स्नान करने के पश्चात पति-पत्नी दोनों को विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में दर्शन करने चाहिए। इससे व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते है और रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है। सनत कुमार संहिता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित दीप दान करने से पितरों को भी स्वर्ग का मार्ग दीखता है और उनको नरक से मुक्ति मिलती है।
नरक चतुर्दशी के दिन भगवान वामन ओर राजा बलि का स्मरण करना चाहिए ऐसा करने से लक्ष्मी जी स्थायी रूप से आपके घर में निवास करती हैं। वामन पुराण की कथा के अनुसार जब राजा बलि के यज्ञ को भंग करके वामन भगवान ने तीन पग में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नाप लिया था तब राजा बलि के द्वारा मांगे वर के अनुसार जो मनुष्य इस पर्व पर दीप दान करेगा उसके यहाँ स्थिर लक्ष्मी का वास होगा।

नरक चतुर्दशी का महत्व
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नरक चौदस का पावन पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चौदस को मनाया जाता है। इसे नरक मुक्ति का त्योहार भी माना जाता है। इस दिन यमराज की पूजा अर्चना करने से नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और सभी पापों का नाश होता है। नरक चौदस के दिन तिल के तेल से मालिश करने से त्वचा पर निखार आता है।

Tuesday, 19 October 2021

Karwa Chauth 2021: करवा चौथ 2021 में कब पड़ेगा, सुहाग‍िनों के पर्व की तारीख और पूजा का शुभ समय

Karwa Chauth 2021: करवा चौथ 2021 में कब पड़ेगा, नोट करें सुहाग‍िनों के पर्व की तारीख और पूजा का शुभ समय

Karwa Chauth 2021 Date: सनातन धर्म में करवा चौथ का पर्व विशेष माना जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं।


  • सूर्योदय से पहले उठकर महिलाएं करती हैं सास द्वारा भेजी गई सरगी ग्रहण, चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को दिया जाता है अर्घ्य।
  •  करवा चौथ व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां सूर्योदय से पहले स्नानादि करके अपने सास द्वारा भेजी गई सरगी ग्रहण करती हैं फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रहकर चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण करती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ व्रत और पूजा की जाती है, शाम को पूजा करने के बाद महिलाएं साथ बैठकर व्रत कथा का पाठ भी करती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है और इसे ही करवा चौथ कहा गया है। सिर्फ इतना ही नहीं करवा चौथ को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक का अर्थ घड़ा होता है जिससे चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।
  • करवा चौथ 2021 की डेट : - 24 अक्टूबर 2021

    करवा चौथ 2021 क‍िस द‍िन है : रव‍िवार 

    चतुर्थी तिथि प्रारंभ: - 24 अक्टूबर 2021 सुबह (03:01)

    चतुर्थी तिथि समापन: - 25 अक्टूबर 2001 के सुबह (05:43)

     करवा चौथ 2021 पूजा का समय 
    24 अक्टूबर 2021 को शाम 05:43 से लेकर 06:59 तक

     करवा चौथ 2021 पर कब होगा चंद्रोदय

    24 अक्टूबर 2021 यानी करवा चौथ पर चांद रात को 08:07 पर उदय होगा।

Nifty BankNifty view on 20 Oct share market astrology by muktajyotishs

Wednesday, 25 August 2021

सर्वतोभद्र चक्र से गोचर एव शेयरमार्केट की भविष्य वाणी के लिए कैसे प्रयोग करे sarvtobhadra-chakra

 

सर्वतोभद्र चक्र से गोचर एव शेयरमार्केट की भविष्य वाणी के लिए कैसे प्रयोग करे  

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सर्वतोभद्र चक्र क्या है? इसे जन्मांक एवं गोचर के फलादेश के लिए कैसे प्रयोग में लाया जाता है? मेदिनीय ज्योतिष मंे इसका क्या और कैसे उपयोग किया जाता है? सर्वतोभद्र चक्र क्या है? सर्वतोभद्र चक्र नक्षत्र आधारित फलादेश की एक विकसित तकनीक है। यह कुंडली विश्लेषण तथा दशा फलकथन में बहुत सहायक होता है। इसकी सहायता से जन्मकुंडली और उसकी नक्षत्र आधारित शुभ अशुभ विशेषताओं की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त यह गोचर फलादेश में भी सहायता करता है। इसे सर्वतोभद्र चक्र इसलिए कहते हैं क्योंकि यह चारों ओर से एक समान होता है।

इसीलिए जो मकान चारों ओर से एक सा हो और उसके चारों ओर पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण में मध्य में मुख्य द्वार हो उसे सर्वतोभद्र आकार का मकान कहते हैं। यह शतरंज की विसात की तरह होता है। इसमें 81 कोष्ठक होते हैं। इसमें अंकित 33 अक्षरों, 16 स्वरों, 15 तिथियों, 7 वारों, 28 नक्षत्रों और 12 राशियों को सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु की गति के फलस्वरूप वेध आने के कारण उन अक्षरादि के नाम वाले जातकों की अवनति अथवा उन्नति होती है। सर्वतोभद्र चक्र कैसे बनाते हैं?: इस चक्र को बनाने के लिए 10 खड़ी और 10 आड़ी रेखाएं खींची जाती हैं। इस चक्र में 33 अक्षर, 16 स्वर, 15 तिथियां, 7 वार, 28 नक्षत्र और 12 राशियां इस प्रकार अंकित होती हैं।

1. अश्विन्यादि 27 नक्षत्रों के नामाक्षरों की जो सूची पंचांगों में दी गई है उसमें कृत्तिका नक्षत्र से प्रारंभ करने से निम्नलिखित अक्षर आते हैं। अ, ब, क, घ, ड़, छ, ह, ड, म, ट, प, ष, ण, ठ, र, त, न, य, भ, ध, फ, ठ, ज, ख, ग, स, द, थ, भ, ´, च, ल इनमें से रेखांकित शब्दों को एक साथ रखें तो अ ब क ह ड म ट प र त न य भ ज ख ग स द च ल ये अक्षर बनते हैं। इन्हीं 20 अक्षरों को सर्वंतोभद्र चक्र में अंदर रखा गया है।

2. ईशानादि चारों कोण दिशाओं में 16 स्वर सोलह कोष्ठकों में सीधे क्रम से एक-एक करके चार चक्करों में लिखे जाते हैं जैसे ईशान कोण में अ,उ,लृ, ओ, अग्नि कोण में ऊ,लृ,औ, ये, नैर्ऋत्य कोण में इ,ऋ,ए, अं और वायव्य कोण में ई, ऋ, ऐ, अः स्वर अंकित किए जाते हैं।

3. इसी प्रकार चारों दिशाओं में 28 नक्षत्र अंकित किए जाते हैं, जैसे पूर्व में कृत्तिका आदि सात नक्षत्र, दक्षिण में मघा आदि सात नक्षत्र, पश्चिम में अनुराधा आदि सात नक्षत्र एवं उत्तर में धनिष्ठा आदि 7 नक्षत्र अंकित किए जाते हैं।

4. इसी प्रकार पूर्व में अ, व, क, ह, ड पांच अक्षर, दक्षिण में म,ट,प,र,त ये पांच अक्षर, पश्चिम में न,य,भ,ज, ख पांच अक्षर एवं उत्तर में ग,स,द,च,ल पांच अक्षर अंकित किए जाते हैं।

5. इसी प्रकार पूर्व में अ,व,क,ह,ड पांच अक्षर अंकित किए जाते हैं।

6. इसी प्रकार मेषादि बारह राशियों को चारों दिशाओं में अंकित करते हैं, जैसे पूर्व में वृष, मिथुन, कर्क, दक्षिण में सिंह, कन्या, तुला,पश्चिम में वृश्चिक, धनु, मकर और उत्तर में कुंभ, मीन, मेष राशियां अंकित की जाती हैं।

7. शेष पांच कोष्ठकों में नंदादि पांच प्रकार की तिथियां अंकित की जाती हैं, जैसे पूर्व में नंदा, दक्षिण में भद्रा, पश्चिम में जया, उत्तर में रिक्ता और मध्य में पूर्णा को लिखा जाता है।

8. अंततः रवि व मंगल वार को नंदा के साथ, सोम व बुध वार को भद्रा के साथ, गुरु को जया के साथ, शुक्र को रिक्ता के साथ एवं शनि वार को पूर्णा के साथ उसी कोष्ठक में अंकित में करते हैं। वेध-प्रकार-सर्वतोभद्र चक्र: वेध तीन प्रकार के कहे गए हैं।

1.दक्षिण वेध: वक्र गति वाले ग्रहों की दक्षिण दृष्टि होती है अतः इनका दक्षिण वेध कहा गया है।

2. वाम वेध: मार्गी ग्रहों की वाम दृष्टि होती है इसलिए इनका वाम वेध कहा गया है। मध्यम गति से तीव्र गति वाले ग्रहों का भी वाम वेध होता है।

3.सम्मुख वेध: समगति से भ्रमण करने वाले ग्रहों की सम्मुख दृष्टि होने से इनका सम्मुख वेध कहा गया है।

उपर्युक्त नियमानुसार राहु और केतु की सदैव वक्र गति होने के कारण इनका दक्षिण वेध होता है। इसी प्रकार सूर्य और चंद्रमा सर्वदा मार्गी रहते हैं। अतः इनका केवल वाम वेध होता है। भौमादि शेष ग्रहों के गति-वैभिन्य के कारण उनके दक्षिण, वाम और सम्मुख तीनों प्रकार के वेध होते हैं। ये अपने स्थान से कभी दाहिनी ओर, कभी बायीं ओर और कभी सम्मुख दिशा में वेध करते हैं। उदाहरण: ।। अथ अश्विनी नक्षत्र स्थित ग्रह।।

1. दक्षिण दृष्टि से ज्येष्ठा नक्षत्र, धनु और मीन राशियों तथा च.अ.य. अक्षरों को वेधता है।

2. वाम दृष्टि से रोहिणी नक्षत्र और उ अक्षर को वेधता है।

3. सम्मुख से पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र को वेधता है। ।। अथ भरणी नक्षत्र स्थित ग्रह।।

1. दाहिनी दृष्टि से अनुराधा नक्षत्र, मेष और वृश्चिक राशियों तथा ल और न अक्षरों को वेधता है।

2. वाम दृष्टि से कृत्तिका को वेधता है।

3. सम्मुख से मघा नक्षत्र को वेधता है। ।। अथ कृत्तिका नक्षत्र स्थित ग्रह।।

1. दाहिनी दृष्टि से भरणी नक्षत्र को वेधता है।

2. वाम दृष्टि से विशाखा नक्षत्र, अ. और त. अक्षरों तथा वृषभ और तुला राशियों को।

3. सम्मुख दृष्टि से श्रवण नक्षत्र को वेधता है। इसी प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों की वेध दिशा देखी जाती हैं। सर्वतोभद्र चक्र से फलित कैसे करते हैं?: सर्वतोभद्र चक्र से फलित करने के लिए निम्नलिखित विधि है। - इस चक्र को लकड़ी पर बना लें। - अक्षरादि अर्थात अक्षर, स्वर, तिथि, नक्षत्र और राशियां पांच हैं।

अतः इनकी पांच गोटियां बना लें या शतरंज की गोटियों को पहचान के अनुसार रंग लें। इसी प्रकार नवग्रह की नौ गोटियां उनके रंगानुसार रंग लें जैसे सूर्य को नारंगी, चंद्र को श्वेत, मंगल को लाल, बुध को हरा, गुरु को पीला, शुक्र को पीतश्वेत, शनि को काला, राहु को आसमानी और केतु को बैंगनी रंग लें। - मनुष्य, पशु, पक्षी, देश, ग्राम आदि में से जिसका भी शुभाशुभ विचार करना हो या जिस किसी वस्तु की तेजी-मंदी जाननी हो उसका जन्म नाम ज्ञात हो तो वह लें और यदि नहीं ज्ञात हो तो प्रसिद्ध नाम लेकर उस अक्षर का जो नक्षत्र हो वह नक्षत्र तथा जो राशि हो वह राशि और अकारादि पांच स्वरों में से जो अक्षर हो वह स्वर तथा वर्ण, तिथि चक्र में नंदादि पांच तिथियों में से उस अक्षर की जो तिथि हो वह तिथि सर्वतोभद्र चक्र में जहां अंकित हो वहां अक्षरादि की पांच गोटियां रख दें। - अब वेध विचारने के लिए सूर्यादि नौ ग्रहों को पंचांग में देखकर कि वे जिस नक्षत्र में हों वहां उन ग्रहों की गोटियां रख देने पर वेध देखने में आसानी होगी। मनुष्यादि में जिस अक्षरादि को शुभ ग्रह का वेध होगा उसे शुभफल और जिस अक्षरादि को अशुभ ग्रह का वेध होगा उसको अशुभ फल होगा।

सर्वतोभद्र में शुभ ग्रहों का वेध होने पर मंदी तथा अशुभ ग्रहों का वेध होने पर तेजी होती है। यह फल देश एवं राजकीय परिस्थितियों के अनुसार कम एवं अधिक होता है। उदाहरणतः एक दो नक्षत्र का प्रमाण नीचे। अश्विनी नक्षत्र पर शुभ ग्रहों के वेध से चावल सहित सभी धान्य, तृण, सभी प्रकार के वस्त्र, घी, खच्चर, ऊंट आदि सस्ते और अशुभ ग्रहों के वेध से महंगे होते हैं। भरणी और अशुभ ग्रहों का वेध होने पर गेहूं, चावल, जौ, चना, ज्वार आदि धान्य, जीरा, काली मिर्च, सौंठ, पिप्पल, गर्म मसाले और किराने की सब वस्तुएं महंगी और शुभ ग्रह का वेध होने पर सस्ती होती हैं। - जिस नक्षत्र पर ग्रह रखा हो उस नक्षत्र स्थान से तीन ओर वेध होता है। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह कभी वक्री, कभी शीघ्रगामी और कभी मध्यचारी होते हैं। इन पांच ग्रहों में से जो वक्री होगा उसका वेध दाहिनी ओर, जो शीघ्रगामी होगा उसका बायीं ओर और जो मध्यचारी होगा उसका वेध सामने की ओर होगा।

यह ध्यान रखें कि राहु तथा केतु सदैव के वक्री और सूर्य तथा चंद्र के सदैव शीघ्रगामी होने से इन चार ग्रहों का वेध सदैव तीनों ओर को एकसमान होता है। - पापी ग्रह का वेध पाप वेध और शुभ ग्रह का वेध शुभ वेध कहलाता है पाप वेध का फल नेष्ट और शुभ वेध का फल शुभ फल होता है। वेध कारक पापी ग्रह यदि वक्री हो तो अत्यंत अनिष्टकारी होता है। उसी प्रकार वेध कारक शुभ ग्रह यदि वक्री हो तो अत्यंत अनिष्ठकारी होता हो तो अत्यधिक शुभ होता है। सौम्य और क्रूर ग्रह यदि शीघ्रगामी हांे तो जिसके साथ स्थित हों उसके स्वभावानुसार फल देते हैं। अर्थात - जब क्रूर ग्रह वक्री होते हैं तो महाक्रूर फल दिखाते हैं। - जब शुभ ग्रह वक्री होते हैं तो राज्य प्राप्ति सदृश्य अत्यंत शुभ फल करते हैं। - जब शुभ ग्रह वक्री होते हैं तो अत्यंत शुभ फल देते हैं। - यदि पापी ग्रह वक्री हों तो जातक (जिसकी जन्म कुंडली का विचार करना हो) को अनेक कष्टों में डालते हैं और वह व्यर्थ में मारा-मारा फिरता है। परिश्रम करता है पर सफलता हाथ नहीं आती।

अब किसी व्यक्ति का शुभाशुभ सर्वतोभद्र से विचार करना हो तो उसके नाम का (प्रसिद्ध नाम का) प्रथम अक्षर, स्वर, जन्मनक्षत्र, जन्मतिथि तथा जन्म राशि एक कागज पर नोट करें। वर्ण स्वर मालूम करने की विधि इस प्रकार है: वर्ण स्वरचक्र क घ ड ध भ व इनका वर्ण स्वर ‘‘अ’’ ख ज ढ न म श इनका वर्ण स्वर ‘‘इ’’ ग झ त प य ष इनका वर्ण स्वर ‘‘उ’’ घ ट थ फ र स इनका वर्ण स्वर ‘‘ए’’ च ठ द ब ल ह इनका वर्ण स्वर ‘‘ओ’’ यद्यपि ;पद्ध ब और व, ;पपद्ध श और स ;पपपद्ध ष और ख इनका वर्ण स्वर ऊपर के चक्र में अलग अलग है लेकिन दोनों में से (जैसे ब और व) के एक का वर्ण स्वर विद्ध हो तो दूसरे का भी समझना चाहिए। ‘क’ से ‘ह’ तक 33 व्यंजन होते हैं। यहां चक्र में व्यंजन सिर्फ 30 ही दिए गए हैं।

ड़, ´, ण नहीं दिए गए है क्योंकि इन अक्षरों से प्रायः कोई नाम शुरू नहीं होता है। यदि ड़, ´, ण, इनका वर्ण स्वर ज्ञात करना हो तो ड़ का ‘उ’ ´ का ‘इ’ तथा ण का ‘अ’ वर्ण स्वर होता है। वेध फल: ऊपर जन्म नक्षत्र, जन्मराशि, जन्मतिथि, नाम के प्रथम अक्षर और नाम के प्रथम अक्षर के वर्ण स्वर में यदि - एक का क्रूर वेध हो तो उद्वेग (चिंता परेशानी)। - दो का क्रूर वेध हो तो भय। - तीन का क्रूर वेध हो तो हानि (घाटा नुकसान)। - चार का क्रूर वेध हो तो रोग (बीमारी)। - पांचों का क्रूर वेध हो तो मृत्यु। - यदि जन्म राशि शनि, मंगल, राहु, केतु, और सूर्य पांचों का क्रूर वेध हो तो मृत्यु। - यदि जन्म राशि शनि, मंगल, राहु, केतु, सूर्य इन पांचों से वेध में आए तो भी मृत्यु या मृत्यु सदृश कष्ट होता है। जिस प्रकार पापी ग्रहों के वेध से ऊपर कष्ट फल बताया गया है उसी प्रकार शुभ ग्रहों के वेध से शुभ फल होता है।

जन्म नक्षत्र, जन्म राशि आदि का शुभ ग्रह (वृहस्पति आदि) से जितना अधिक वेध होगा उतना ही अधिक शुभ फल होगा। पापी ग्रह और शुभ ग्रह दोनों वेध करते हांे तो तारतम्य करके फल कहना चाहिए। पापी ग्रह का वेध: साधारणतः जन्म नक्षत्र का वेध होने से भ्रम (इधर-उधर भटकना या मन में ऊल जलूल विचार आना), नामाक्षर के वेध से हानि, स्वर वेध होने से हानि, तिथि वेध होने से भय और जन्म राशि के वेध होने से महाविघ्न और पांचों का एक साथ वेध हो तो जातक की मृत्यु होती है। अब युद्ध के समय (अर्थात जिस आदमी का शुभाशुभ विचार कर रहे हैं वह लड़ाई के मैदान में शत्रु से लड़ रहा हो तो एक जन्म नाम, नक्षत्र आदि) के वेध से भय, दो के वेध से धनक्षय (यदि मुकदमा लड़ रहा हो), तीन के वेध से भंग (हाथ-पैर टूटना), चार के वेध से मृत्यु। - सूर्य वेध से राज्य-भय, पशु-भय, पितृ विरोध, ताप, शिरोशूल, मान हानि, कार्यहानि। - क्षीण चंद्र नक्षत्रादि का वेध करे तो संपूर्ण दिन कार्य नाशक होता है। - मंगल नक्षत्र, एवं वर्णादि को विद्ध करे तो अग्नि-भय, शस्त्र-भय, भूमिनाश, कार्य की हानि, क्रोधाधिक्य, धन-क्षय, द्वन्द्व, रक्त विकार आदि अशुभ करे। - क्रूर ग्रहों से युक्त बुध वेधकारक होने पर रोग-शोक का संकेत, विद्या एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में अवरोध और असफलता, व्यापार में घाटा, धन का अपव्यय जैसे दुष्परिणाम देता है।

शुभयुत बुध के वेध करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। जैसे शुभागमन, शुभ-सूचना, हर्ष, व्यापार लाभ, विद्या एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में मनोवांछित सफलता की प्राप्ति इत्यादि शुभ फल। - गुरु का वेध कल्याणकारी होता है। वेदों, पुराणों, उपनिषदों का पठन-पाठन, चिंतन-मनन, धर्म-कर्म, भक्ति भावना की अभिवृद्धि, तीर्थ, भ्रमण, विद्यालय, सौभाग्य, गौरव, गुरुत्व कार्य से लाभ, सुख संपन्नता के शुभ फल। - शुक्र का वेध सर्वोत्तम फल प्रदायक होता है। मनोरंजन के साधनों की वृद्धि, स्त्री-रति, नवीन वस्त्राभूषणों की प्राप्ति, सर्व कार्य सफलता जैसे उत्तम फल। - शनि के वेध से स्थान भय, स्वजन विरोध, आधि-व्याधि, क्लेश, शोक संदेश, बंधन, वातज रोग वृद्धि, यात्रा में हानि, चोराग्नि भय, कार्य की हानि, अविवेक। - राहु के वेध से मिरगी, मूच्र्छावस्था, कार्यों में अड़ंगे आना, बाधाएं, सर्प भय, भीषण डरावने स्वप्न, बने बनाए कार्यों का अचानक टूट जाना आदि बुरे फल। - केतु के वेध से अपकीर्ति, शरीर पीड़ा, स्त्री विरोध, चर्म रोग, एवं राज्य भय - यदि वेध के समय ग्रह वक्री हो तो दोगुना फल देता है।

पापी ग्रह हो तो दोगुना कष्ट, शुभ ग्रह हो तो दोगुना लाभ या प्रसन्नता। - यदि वेध के समय ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो तीनगुना फल। - सामान्य स्थिति में हो तो सामान्य फल। - नीच राशि में हो तो आधा फल। मुहूर्त के समय वेध के प्रकार और फल: - जिन तिथियों, राशियों, नवांशों या नक्षत्रों का पापी ग्रह से वेध हो रहा हो उन्हें शुभ कार्य प्रारंभ के समय नहीं लेना चाहिए। - ऐसे समय जो बीमार पड़ता है वह जल्दी अच्छा नहीं होता। विवाह करता है तो दाम्पत्य सुख नहीं मिलता। यात्रा करता है तो यात्रा सफल नहीं होती। - यदि जन्म का वार विद्ध हो (देखिए सर्वतोभद्र चक्र में तिथियों के कोष्ठों में सू.चं. मं. आदि लिखे हंै- उनसे उन ग्रहों के वार समझना चाहिए) तो उस वार को मन को खुशी नहीं होती, पीड़ा होती है। अस्त दिशा और फल: - वृष, मिथुन, कर्क पूर्व की राशियां हंै।

जब इन तीनों राशियों में से किसी में सूर्य हो तब पूर्व दिशा को अस्त समझना चाहिए। ईशान कोण में स्वर हो- अर्थात अ,उ,लृ,ओ-तो इसे भी अस्त समझें। - दक्षिण की ओर सिंह, कन्या, और तुला राशियां हों और यदि इनमें से किसी भी राशि में सूर्य हो तो दक्षिण दिशा को अस्त समझना चाहिए। आ,ऊ,लृ और औ स्वर हैं, इन्हें अस्त मानें। - पश्चिम दिशा की ओर वृश्चिक, धनु, मकर राशियां हैं। जब इनमें से किसी में सूर्य हो तो इस दिशा को तथा नैर्ऋत्य कोण के स्वर इ,ऋ,ए,अं, को अस्त कहा जाता है। - उत्तर दिशा में कुंभ, मीन, मेष राशियां हैं। ये राशियां तथा वायव्य कोण के चार स्वर ई, ऋ,ऐ, और अः उस समय अस्त माने जाते हैं जब कुंभ, मीन और मेष राशियों में से किसी में सूर्य हो। - जो राशिश्यां अस्त हांे उनकी दिशा की तिथियां, नक्षत्र, स्वर, वर्ण, सब अस्त समझे जाएंगे। - यदि किसी का नामाक्षर, स्वर, जन्मनक्षत्र, जन्मराशि, तिथि सब अस्त हांे तो नक्षत्र के अस्त होने से रोग, वर्षा, नामाक्षर के अस्त होने से हानि, स्वर के अस्त होने से शोक, राशि के अस्त होने से विघ्न, और तिथि के अस्त होने से भय होता है। - अस्त दिशा की ओर यात्रा नहीं करनी चाहिए। उस दिशा में मकान का दरवाजा न बनवाएं। - जब नामाक्षर अस्त हो तो कार्य में प्रायः सफलता नहीं मिलती है। - जन्म नक्षत्र उदित हो जाए अर्थात् ‘अस्त’ दोष न रहे तो पुष्टि, वर्ण नामाक्षर उदित हो तो लाभ, स्वर उदित हो तो सुख, जन्म राशि उदित हो तो जय, जन्म तिथि उदित हो तो तेज और पांचों उदित हांे तो नवीन पद की प्राप्ति। 6. सूर्यादिग्रह वेधानुसार फल इस प्रकार करते हैं।

सूर्य के वेध से मन को ताप, राज्यभय, शीतज्वर, सिर में पीड़ा, परदेश गमन, हानि, चैपायों से भय, माता-पिता से विरोध, धनहानि व पशुओं का नाश होता है। मंगल के वेध से धन हानि, बुद्धि का नाश, कार्य हानि, मन में पीड़ा, स्त्री-पुत्रादि से विवाद, स्वजनों से वियोग, उदर विकार आदि होते हंै एवं रक्त विकार होने की संभावना होती है। शनि के वेध से रोग से पीड़ा, नौकर व मित्रों से विवाद या कष्ट, बंधन, स्थान हानि, यात्रा में कष्ट, शरीर का क्षय आदि होते हंै। राहु के वेध से हृदय में पीड़ा या रोग, मूच्र्छा, घात, बाधा, नीच जाति के कारण अपयश और व्यर्थ का विवाद आदि और केतु के वेध से धनहानि, विघ्न, स्त्री को कष्ट, राज्यभय, शारीरिक कष्ट, इच्छा की अपूर्ति आदि होते हैं। वेध विचार में विशेष सावधानी: वेध विचार करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जब वेध समाप्त होता है तो कष्ट आदि से मुक्ति मिलती है। शुभ ग्रहों के वेध से सदैव शुभता मिलती है और यह तब तक रहती है जब तक उसका वेध रहता है।

शुभ ग्रह के वेध होने पर यदि पापी, अस्त या निर्बल ग्रह की युति हो तो भी अशुभ फल मिलता है। फल का अनुमान ग्रहों की प्रकृति के अनुसार लगा लिया जाता है। अस्तादि का विचार भी कर लेना चाहिए। इससे फलित में और अधिक सत्यता आ जाती है। अस्तादि के लिए अधोलिखित नियमों का पालन करना चाहिए। सूर्य जिस दिशा की राशियों पर होता है वे राशियां तीन महीने के लिए अस्त हो जाती हैं और शेष राशियां नौ महीने तक उदित रहती हैं। जो राशियां अस्त होती हैं उनके नक्षत्र, स्वर, वर्ण, राशि, तिथि और दिशाएं भी अस्त होती हैं। यह अस्त अवधि तीन माह तक होती है। नक्षत्र अस्त हो तो रोग, वर्ण अस्त हो तो हानि, स्वर अस्त हो तो शोक, राशि अस्त हो तो विघ्न, तिथि अस्त हो तो भय और यदि पांचों अस्त हों तो निश्चय ही घोर कष्ट या मृत्यु तुल्य कष्ट होता है या मृत्यु तक हो जाती है। सर्वतोभद्र चक्र से रोग विचार: रोग विचार में भी इस चक्र का प्रयोग कर सकते हैं। रोग के समय क्रूर ग्रह का वेध वक्र गति से हो तो रोगी की मृत्यु होती है और शीघ्र गति से वेध हो तो रोग बना रहता है।

रोग काल में सूर्य से वेध हो तो पीड़ा, मंगल से वेध हो तो श्वासकासादि से विशेष कष्ट, राहु या केतु से वेध हो तो ऊपरी हवाओं से कष्ट या मिरगी, पागलपन या अर्धविक्षिप्तता या लाइलाज रोग जैसे कैंसर आदि होते हैं। यदि नाम के नक्षत्र का वेध हो तो नेत्रविकार, मन में क्लेश, मतिभ्रष्ट या मतिभ्रम या उद्वेग होता है। क्रूर ग्रह का वेध नाम के स्वर को हो तो मुख में रोग, दांत में पीड़ा और कान में विकार होता है। यदि यह वेध नाम की तिथि को हो तो त्वचा रोग, उदर विकार, सिर में पीड़ा, पैरों में सूजन और जोड़ों में अत्यंत पीड़ा होती है। यदि क्रूर ग्रह का वेध नाम की राशि को हो तो जल से भय, कफ विकार, नाड़ी में विकार या मंदाग्नि होती है। सर्वतोभद्र चक्र और मेदिनीय ज्योतिष: मेदिनीय ज्योतिष में भी इसका प्रयोग किया जाता है। जिस दिशा में ग्रह का वेध हो उस दिशा के अनुसार देश का विचार करना चाहिए। इसके लिए देश के मानचित्र और संसार का विचार करना हो तो उसका मानचित्र देखें कि वे क्षेत्र जिनको वेध है किस दिशा में पड़ते हैं।

यदि शुभ ग्रह का वेध है तो उस क्षेत्र में सुख और उन्नति और अशुभ ग्रह का वेध है तो दुर्भिक्ष, अकाल, प्राकृतिक प्रकोपवश जन धन हानि आदि हो सकते हैं। इसमें स्थान विशेष के नामाक्षर के वेध को भी ध्यान में रखना चाहिए। ग्रह, नक्षत्र व राशि के वेधानुसार समन्वययुक्त फलादेश करने पर फल सटीक बैठता है। यह वेध जिस अवधि में होता है उसी के अनुसार वह फल घटित होता है। सर्वतोभद्र चक्र से मुहूर्त विचार: जब नामाक्षर अस्त हो तो उस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। वेध वाली तिथियां, राशियां, अंश (नवांश राशि), नक्षत्र शुभ कार्यों में त्याज्य हंै। क्रूर ग्रह का वेध राशि पर हो तो स्थान नाश, नक्षत्र पर हो तो हानि, नवांश पर हो तो कष्ट या मृत्यु होती है। इन तीनों का वेध हो तो बचने की कोई संभावना नहीं रहती है। तिथि पर वेध हो तो कार्य हानि होती है। चंद्र विचार: जन्म के समय जिस नक्षत्र में चंद्रमा हो वह जन्म नक्षत्र कहलाता है।

जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र ‘कर्म’ सोलहवां नक्षत्र सांघातिक, अठारहवां ‘सामुदायिक’, उन्नीसवां नक्षत्र ‘आधान’, तेईसवां विनाशी, छव्वीसवां ‘जाति’, सत्ताईसवां देश और अट्ठाईसवां नक्षत्र ‘अभिषेक’ कहलाता है। यदि जन्म, कर्म, आधान और विनाश नक्षत्रों में पापी ग्रह का गोचर हो तो कष्ट, कलह, दुख शोक आदि होते हैं। सामुदायिक नक्षत्र में पापी ग्रह हो तो कोई अनिष्ट होता है। ‘जाति’ नक्षत्र का वेध हो तो कुटुंब कष्ट, ‘अभिषेक’ नक्षत्र का पापी ग्रह से वेध हो तो कष्ट (जेल आदि) ‘देश’ नक्षत्र में पापी ग्रह हो तो देश निष्कासन आदि अनिष्टकारी फल होते हैं। यदि शुभ ग्रहों से वेध हो तो शुभ फल होता है। निष्कर्ष: वेध कारक पापी ग्रह दुखदायी होते हैं। शुभ ग्रह वेध कारक होने से शुभफल करते हैं।

अतः गोचर में सर्वतोभद्र में जो वेध द्वारा शुभ या अशुभ फल बताए गए हंै उनका भी विचार कर लेना चाहिए। यदि कोई ग्रह गोचर में अशुभ हो या किसी अनिष्टप्रद ग्रह की दशा अंतर्दशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने वाले व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि सुकर्मों के द्वारा उसके अशुभ फल से बचाव करना चाहिए।

Sunday, 11 July 2021

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Commodity Market July 2021 share market astrology

 Commodity Market July 2021 share market astrology

jyotishs aur teji mandi

जुलाई 2021

तारीख 1सोना चांदी मे  मंदी

 तारीख 2 कपास बिनौला में मंदी

तारीख 3 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 4 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 5 चना अलसी तिल तेल में तेजी

 तारीख 6 धातुओं में घट बढ़

तारीख 7  सोना चांदी में घट बढ़ के बाद तेजी

 तारीख 8 बाजार में मंदी

 तारीख 9 गुड़ और धातुओं में तेजी

तारीख 10 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 11 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 12 बाजार में अचानक उथल-पुथल चले

 तारीख 13 सोना चांदी में घट बढ़ के बाद तेजी

 तारीख 14 बाजार में अच्छी तेजी रहे

 तारीख 15 वस्तुओं में तेजी रहे

 तारीख 16 तिलहन  तेल मूंगफली सोयाबीन में तेजी

 तारीख 17 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 18  बाजार सामान्य रहे

 तारीख 19  सरसों तेल में मंदी

तारीख 20 बाजार में मंदी रहे

तारीख 21 धातुओं में मंदी अनाजों में तेजी

 तारीख 22 बाजार में अचानक मंदी बने

 तारीख 23 धातुओं गुड़ में मंदी तेल में तेजी

तारीख 24 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 25 बाजार सामान्य रहे

 तारीख 26 बाजार में घट बढ़ चले

 तारीख 27 बाजार में गड़बड़ के बाद मंदी

 तारीख 28 गेहूं उड़द मूंग चना में मंदी धातुओं में घट बढ़

 तारीख 29 धातुओं में मंदी

 तारीख 30 बाजार में मंदी

 तारीख 31 बाजार सामान्य रहे


नोट- व्यापारी वर्ग मार्केट का रुख देखकर ही कार्य करें यह गणना ज्योतिष के आधार पर की गई है

 नोट हमारे कार्यालय से दैनिक प्रतिदिन की टाइम सहित तेजी मंदी दी जाती है इसमें सोना चांदी ताबा क्रूड आयल शेयर बाजार कमोडिटी कि आप प्रतिदिन की रिपोर्ट हमारे कार्यालय के नंबर पर संपर्क करके प्राप्त कर सकते हैं

मोबाइल नंबर 769796 1597  ,   


Friday, 7 May 2021

Share Market Astrology Prediction 10 To 14 May 2021 by muktajyotishs

अंक ज्योतिष से जाने अपनी लकी कंपनी और शेयर के नाम

अंक ज्योतिष से जाने अपनी लकी कंपनी और शेयर के नाम 

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  ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नेत्र कहा गया है। फलित ज्योतिष को इन नेत्रों की ज्योति कहा जा सकता है। जिस प्रकार नेत्रों की वाणी नहीं होती, परन्तु उन्हें मूक भी नहीं कहा जा सकता। नेत्र कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कहते है।

भविष्य में जीवन की घटनाओं का मार्गदर्शन फलित ज्योतिष के माध्यम से किया जा सकता है। यह एक अद्भुत और चमत्कारिक परिणाम देने वाली विद्या है। इसी विद्या की तरह अंक ज्योतिष भी अपने आप में एक विशेष स्थान रखती है

अंक ज्योतिष अपने नाम के अनुरुप फल देती है। इसमें अंकों के आधार पर व्यक्ति की जीवन का फलादेश और मार्गदर्शन करती है। अंक ज्योतिष ने अनेकों वर्षों से, लाखों व्यक्तियों के जीवन को सुखमय किया है।

इसके सहयोग और मार्गदर्शन से जाने कितने लोग सफलता और उन्नति प्राप्त कर जीवन में आगे बढ़ चुके है। इसके सिद्धांतों का पालन कर व्यक्ति अपने नाम, अपने व्यावसायिक स्थल, प्रतिष्ठान, फोन नं, घर का नंबर और वाहन नंबर प्रयोग कर मनोनूकुल फल प्राप्त कर सकता है।

इसी प्रकार यह भी देखने में आता है कि व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए नौकरी करता है, व्यापार भी करता है और शेयर बाजार में धन निवेश कर जोखिम लेकर शीघ्र धन कमाने का प्रयास भी करता है। भाग्य को आजमाना व्यक्ति कभी नहीं छोड़ सकता, इसी श्रेणी में शेयर बाजार में निवेश आता है।

इस तरह के प्रयास व्यक्ति की कुंडली में स्थिति ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशा और योग से प्रभावित होते है। ग्रहों का प्रभाव अनुकूल हो तो व्यक्ति को सफलता अर्जित होती है और इसके विपरीत होने पर परिणाम भी प्रतिकूल ही प्राप्त होते है।

अंक ज्योतिष का प्रयोग करते हुए व्यक्ति निवेश करें तो उसके परिणाम उसके लिए अनुकूल अधिक और प्रतिकूल कम रहें। अंक ज्योतिष का प्रयोग कर शेयर बाजार निवेश में लाभ प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। 

अंक शास्त्र पूर्ण रुप से मूलांक, भाग्यांक और नामांक पर कार्य करता है। इसलिए इस विद्या में इन तीनों का अत्यधिक महत्व है। अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक को ध्यान में रखते हुए यदि कोई व्यक्ति शेयर बाजार में निवेश करता है तो उसे अद्भुत सफलता मिल सकती है। आगे बढ़ने से पूर्व हम इन तीनों तथ्यों को समझने का प्रयास करते हैं –

मूलांक, भाग्यांक और नामांक गणना विधि

मूलांक कैसे निकालें

व्यक्ति की जन्म तिथि ही मूलांक का अंक होती है। यह सर्वविदित है कि किसी भी व्यक्ति का जन्म 1 से लेकर 31 तारीख के मध्य ही हो सकता है। मूलांक निकालते समय माह और वर्ष को इस गणना में शामिल नहीं किया जाता है। इसलिए जन्म तिथि 1 से 31 के मध्य ही हो सकती है।

मानिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म 25 तारीख को हुआ है तो उसका मूलांक 2+5=7 हुआ। अंक ज्योतिष में अंक केवल 1 से 9 के प्रारुप में ही प्रयोग किये जाते है। दो अंकों की संख्याओं को एक अंक (1 से 9 के रुप में परिवर्तित कर लिया जाता है)।

इसे एक और उदाहरण से समझते है। मानिए किसी वय्क्ति का जन्म 13-12-1950 को होता है तो 13 उसका मूलांक हुआ। परन्तु हम जानते है कि मूलांक 1 से 9 के मध्य की संख्या ही हो सकती है अत: इस संख्या को आपस में जोड़ना होगा। 1+ ३ = 4 हुआ। इस प्रकार शुद्ध मूलांक 4 है।

भाग्यांक कैसे निकालें

भाग्यांक की गणना करते समय जन्मतिथि, माह और वर्ष संख्या का योग किया जाता है। जैसे – जन्म तिथि 13-12-1950 है तो इसका योग = 1+3+1+2+1+9+5+0=22 = 2+2
= 4 इसका भाग्यांक हुआ।

नामांक कैसे निकाले

नामांक से अभिप्राय: अर्थात नाम के वर्णॊं के अंकों का योग होता है। नामांक गणना करने की एक से अधिक विधियां प्रचलित है। जिसमें मुख्य रुप से तीन विधियों का वर्णन हम यहां करने जा रहे है।

ये तीन विधियां इस प्रकार हैं-

प्रथम विधि – कीरो पद्वति द्वितीय पद्वति पाईथागोरस पदवति और तृतीय पद्वति सेफेरियल है। आईये इन तीनों पद्वतियों को समझने का प्रयास करते हैं-

कीरो पद्वति अंग्रेजी वर्ण माला के एल्फाबेट्स पर आधारित है। इस विधि में ए से लेकर जेड तक के एल्फाबेट्स को अंक निश्चित किए गए है। अंक और अंग्रेजी वर्णमाला वर्ण निम्न है।
A =1, B=2, C=3, D=4, E-5, F=8, G=3, H=5, I=1, J=1, K=2, L=3, M= 4), N=5, O=7, P=8, Q=1, R =2, S=3, T=4, U=6, V=6, W=6, X=5, Y=1, Z=7

 इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपने नाम, व्यापारिक संस्थान, घर का नंबर और फोन नंबर का नामांक निकालते है तब भी सभी विषयों के लिए एक ही विधि का प्रयोग करना चाहिए। नाम के लिए अलग और व्यापारिक संस्थान के लिए अलग विधि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कीरो पद्वति से किसी व्यक्ति का नामांक इस प्रकार निकाला जा सकता है।

अंक ज्योतिष -शेयर बाजार निवेश 

शेयर बाजार में निवेश करते समय अंक ज्योतिष का प्रयोग करने के लिए सबसे पहले जातक का नामांक निकाला जाएगा। तथा जिस कंपनी में जातक निवेश करना चाहता है उस कम्पनी के नाम का नामांक निकाला जाएगा। 

तालिका-1
अंक स्वामी ग्रह मित्रांक समांक शत्रु अंक
1 सूर्य 4,8 2,3,7,9 5,6
2 चंद्र 7,9 1,3,4,6 5,8
3 गुरु गुरु 1,2,5,7 4,8
4 राहु 1,8 2,6,7,9 3,5
5 बुध 3,9 1,6,7,8 1,9
6 शुक्र 3,9 2,4,5,7 1,8
7 केतु 2,6 3,4,5,8 1,9
8 शनि 1,4 2,5,7,9 3,6
9 मंगल 3,6 2,4,5,8 1,7

उपरोक्त तालिका का प्रयोग करते हुए स्वयं के मूलांक, भाग्यांक और नामांक और कम्पनी (जिसमें निवेश करना चाहते हैं) का नामांक – सभी की आपसी में मित्रता होना लाभ देगा और इसके विपरीत होने पर नुकसान के संकेत मिलते है।

इन अंकों में यदि एक में मित्रता और अन्य में शत्रुता हो तो तब भी परिणाम विपरीत ही अधिक आयेंगे। नामांक और मूलांक की मित्रता कम्पनी के नामांक से मित्रवत होने पर लाभ मध्यम और तीनों अंकों की कम्पनी के नामांक से मित्रता अत्यधिक शुभ और लाभप्रद निवेश की सूचक होती है।
उत्पादों के अनुसार भी ग्रहों को अंक निर्धारित किए गये है, इसकी तालिका निम्न है –

तालिका-2
अंक 1 2 3 4 5 6 7 8 9
ग्रह सूर्य चंद्र गुरु राहु बुध शुक्र केतु शनि मंगल

प्रथम तालिका से मित्रता संबंध आने पर द्वितीय तालिका का प्रयोग करना चाहिए। इसमें भी अनुकूलता होने पर ही निवेश करना चाहिए। शत्रु अंकों में निवेश करने से बचना ही समझदारी होगी।
इस प्रकार हम देखते है कि यदि व्यक्ति अंक ज्योतिष का प्रयोग करते हुए बुद्धिमानी से शेयर बाजार में निवेश करता है तो निश्चित रुप से उत्तम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
अपनी लकी कंपनी और शेयर के नाम के लिए -
call kre -+91-7697961597

share market astrology prediction Nifty /Bank Nifty 10 May 2021| Tomorr...