जब किसी स्त्री या पुरुष को अपने वश में करना हो तो ये है सीधा तरीका
jab kisi stri ya purush ko apne vash me karna ho to ye hai saidha tarika
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारे आसपास कई प्रकार के लोग हैं। कुछ धन के लोभी हैं तो कुछ घमंडी भी हैं। कुछ मूर्ख हैं तो कुछ लोग बुद्धिमान भी हैं। इन लोगों को वश में करने के कुछ सबसे सरल तरीके हैं। जैसे किसी लालची व्यक्ति को धन देकर वश में किया जा सकता है। वहीं जो लोग घमंड में चूर होते हैं उन्हें हाथ जोड़कर या उन्हें उचित मान-सम्मान देकर वश में किया जाना चाहिएयदि किसी मूर्ख व्यक्ति को वश में करना हो तो वह व्यक्ति जैसा-जैसा बोलता हैं हमें ठीक वैसा ही करना चाहिए। झूठी प्रशंसा से मूर्ख व्यक्ति वश में हो जाता है। इसके अलावा यदि किसी
विद्वान और समझदार व्यक्ति को वश में करना है तो उसके सामने केवल सच ही बोलें। वह आपके वश में हो जाएगा
इस प्रकार जो व्यक्ति धन का लालची है उसे पैसा देकर, घमंडी या अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी बात मान कर और विद्वान व्यक्ति को सच से वश में किया जा सकता है।
.समझदार इंसान वही है जो हर परिस्थिति में सहज रहे और समस्याओं का निराकरण आसानी से निकाल लें। किसी भी प्रकार की विषम परिस्थिति को दूर करने की क्षमता जिस व्यक्ति में होती है वही समझदार होता है। जो व्यक्ति हालात और समय में छिपे संकेतों को समझ ले वहीं समझदार है।
शारीरिक बीमारियों का उपचार उचित दवाइयों से किया जा सकता है लेकिन मानसिक या वैचारिक बीमारियों का उपचार किसी दवाई से होना संभव नहीं है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने सबसे बुरी बीमारी बताई है लोभ। लोभ यानि लालच। जिस व्यक्ति के मन में लालच जाग जाता है वह निश्चित ही पतन की ओर दौडऩे लगता है। लालच एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज आसानी से नहीं हो पाता। इसी वजह से आचार्य ने इसे सबसे बड़ी बीमारी बताया है।
सभी माता-पिता को चाहिए कि वे पांच वर्ष की आयु तक अपने बच्चों के साथ प्रेम और दुलार करें। इसके जब पुत्र दस वर्ष का हो जाए तो और यदि वह गलत आदतों का शिकार हो रहा है तो उसे ताडऩा या दण्ड भी दिया जा सकता है। जिससे उसका भविष्य सुरक्षित रह सके। जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए तो उसके साथ मित्रों के जैसा व्यवहार आचार्य चाणक्य कहते हैं जिस जगह हमें आदर-सम्मान न मिलें, जिस स्थान पर पैसा कमाने का कोई साधन न हो, जहां हमारा कोई मित्र या रिश्तेदार न हो, जहां कोई ज्ञान न हो और जहां कोई गुण या अच्छे कार्य न हो, वैसे स्थानों को तुरंत छोड़ देना चाहिए। यही समझदार इंसान की पहचान है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं जिस स्थान पर कोई धनी हो वहां व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है। धनी व्यक्ति के आसपास रहने वाले लोगों को भी रोजगार प्राप्त होने की संभावनाएं रहती है। जिस स्थान पर कोई ज्ञानी, वेद जानने वाला व्यक्ति हो वहां रहने से धर्म लाभ प्राप्त होता है। हमारा ध्यान पाप की ओर नहीं बढ़ता है। जहां राजा या शासकीय व्यवस्था से संबंधित व्यक्ति रहता है वहां रहने से हमें सभी शासन की योजनाओं का लाभ प्राप्त होता है। जिस स्थान पर नदी बहती हो, जहां पानी प्रचुर मात्रा में वहां रहना से हमें समस्त प्राकृतिक वस्तुएं और लाभ प्राप्त होते हैं। अंत पांचवी बात है वैद्य का होना। जिस स्थान पर वैद्य हो वहां रहने से हमें बीमारियों से तुरंत मुक्ति मिल जाती है। अत: आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई ये पांच जहां हो वहां रहना ही लाभकारी रहता हैआचार्य चाणक्य के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आचरण पर ध्यान दिया जाए तो हम जान सकते हैं कि उसका परिवार कैसा है? उसका कुल सभ्य है या असभ्य। हमारी बोलने की शैली बता देती है कि हम किस देश या क्षेत्र में रहते हैं। हर क्षेत्र या शहर के लोगों का बोलने का अंदाज अलग-अलग होता है। किसी भी व्यक्ति का व्यवहार, हाव-भाव बता देता है कि उसका स्वभाव कैसा है? ठीक ऐसे ही किसी भी मनुष्य का शरीर देखकर मालुम किया जा सकता है कि वह कैसा और कितना भोजन खाता हैजिस देश या स्थान पर मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां हमेशा पर्याप्त मात्रा अन्न का भंडार रहता है, जिस घर में पति और पत्नी में झगड़े नहीं होते हैं वहां महालक्ष्मी सदैव निवास करती हैंजिस स्थान पर जल रहता है, हंस वही रहते हैं। हंस उस स्थान को तुरंत ही छोड़ देते हैं जहां पानी नहीं होता है। हमें हंसों के समान स्वभाव वाला नहीं होना चाहिएयदि दूसरे लोग किसी व्यक्ति की प्रशंसा करते हैं तो यह गुणहीन व्यक्ति को भी गुणी बना देती है। इसके विपरित यदि कोई व्यक्ति स्वयं अपने मुंह से खुद की तारिफ करता है तो देवराज इंद्र भी छोटे ही माने जाएंगेआचार्य चाणक्य के अनुसार जो वस्तुएं, सुविधाएं हमारे पास पहले से ही हैं उन्हें छोड़कर अनिश्चित सुविधाओं के पीछे भागने वाले इंसान को अंत में दुख का ही सामना करना पड़ता है। जबकि समझदारी इसी में है कि जो वस्तुएं या सुविधाएं हमारे पास हैं उन्हीं से संतोष प्राप्त करें। इसके विपरित जो सुविधाएं हमारे पास हैं वे भी नष्ट हो जाएंगीतैरना ही है तो आशा के समुद्र में तैरिए, निराशा के समुद्र में तैरने से क्या फायदा। आशा की समाप्ति ही जीवन की समाप्ति है। निराशा मृत्यु है।
परोपकार मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार में टंगी एक तस्वीर में भला क्या अंतर है।
जो व्यक्ति जीवन में सफल हैं, हम उन्हें देखें। उनके जीवन में सब कुछ व्यवस्थित ही नजर आएगा। वहां हर चीज आईने की तरह स्पष्ट होती है।
विपत्तियां आने पर भी सत्य और विवेक का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। क्योंकि यदि ये दोनों साथ हैं तो विपत्तियां खुद ही खत्म हो जाएंगी।
यदि आपको एक पल का भी अवकाश मिले, तो उसे सद्कर्म में लगाओ क्योंकि कालचक्र आप से भी अधिक क्रूर और उपद्रवी है।
इस जीवन को खोए हुए अवसरों की कहानी मत बनने दो। जहां अच्छा मौका दिखे,वहां तुरंत छलांग लगाओ। पीछे मुड़कर मत देखो।