Saturday, 26 April 2014

jane chanakya niti kis avastha me koon sai chij kar sakti hai barbad

jane chanakya niti  kis avastha me koon sai chij kar sakti hai barbad

जाने चाणक्य नीति -->किस अवस्था में कौन सी चीज कर सकती है बर्बाद



चाणक्य ने बताया है किस अवस्था में कौन सी चीज कर सकती है बर्बाद
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
अनभ्यासे विषं शास्त्रम्- आचार्य इस श्लोक में कहते हैं कि अनभ्यासे विषं शास्त्रम् यानी किसी भी व्यक्ति के लिए अभ्यास के बिना शास्त्रों का ज्ञान विष के समान है। शास्त्रों के ज्ञान का निरंतर अभ्यास किया जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बिना अभ्यास किए स्वयं को शास्त्रों का ज्ञाता बताता है तो भविष्य में उसे पूरे समाज के सामने अपमान का सामना करना पड़ सकता है। ज्ञानी व्यक्ति के अपमान किसी विष के समान ही है। इसीलिए कहा जाता है कि अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।
इस श्लोक में आचार्य ने यह भी बताया है कि किसी वृद्ध पुरुष के लिए नवयौवना (जवान स्त्री) विष के समान है।
अजीर्णे भोजनं विषम्
चाणक्य ने बताया है कि अजीर्णे भोजनं विषम् यानी यदि व्यक्ति का पेट खराब हो तो उस अवस्था में भोजन विष के समान होता है। पेट स्वस्थ हो, तब तो स्वादिष्ट भोजन देखकर मन तुरंत ही ललचा जाता है, लेकिन पेट खराब होने की स्थिति में छप्पन भोग भी विष की तरह प्रतीत होते हैं। ऐसी स्थिति में उचित उपचार किए बिना स्वादिष्ट भोजन से भी दूर रहना ही श्रेष्ठ रहता है।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी
इस श्लोक में चाणक्य ने आगे बताया है कि दरिद्रस्य विषं गोष्ठी यानी किसी गरीब व्यक्ति के कोई सभा या समारोह विष के समान होता है। किसी भी प्रकार की सभा हो, आमतौर वहां सभी लोग अच्छे वस्त्र धारण किए रहते हैं। अच्छे और धनी लोगों के बीच यदि कोई गरीब व्यक्ति चले जाएगा तो उसे अपमान का अहसास होता है। इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि किसी स्वाभिमानी गरीब व्यक्ति के लिए सभा में जाना ही विषपान करने जैसा है।
वृद्धस्य तरुणी विषम्
इस श्लोक के अंत में चाणक्य कहते हैं कि वृद्धस्य तरुणी विषम् यानी किसी वृद्ध पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है। यदि कोई वृद्ध या शारीरिक रूप से कमजोर पुरुष किसी सुंदर और जवान स्त्री से विवाह करता है तो वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाएगा। अधिकांश परिस्थितियों में वैवाहिक जीवन तभी अच्छा रह सकता है, जब पति-पत्नी, दोनों एक-दूसरे को शारीरिक रूप से भी संतुष्ट करते हैं।
यदि कोई वृद्ध पुरुष नवयौवना को संतुष्ट नहीं कर पाता है तो उसकी पत्नी पथ भ्रष्ट हो सकती है। पत्नी के पथ भ्रष्ट होने पर पति को समाज में अपमान का सामना करना पड़ता है। ऐसी अवस्था में किसी भी वृद्ध और कमजोर पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है।

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