कारकांश कुंडली से भी जाने आजीविका --- {सरकारी नोकरी या व्यापार जाने } astrology---- kaarkanshkundli sebhi jane aajivika --sarkari nokri ya vyapar
कारकांश कुंडली से आजीविका का ज्ञान कारकांश लग्न जानने से पूर्व
हमें जैमिनी के आत्मकारक का
ज्ञान होना चाहिये। जन्म कुंडली में जो गृह सर्वाधिक
अंक लिये हो (राहु केतु को छोड़कर) वह
आत्मकारक कहलाता है। यह आत्मकारक ग्रह नवमांश कुंडली में जिस राशि में होता है जन्म कुंडली
में वही राशि
कारकांश लग्न कहलाती है। नवमांश कुंडली में इसे स्वांश कहा जाता है। विभिन्न ग्रहों
की
कारकांश लग्न पर दृष्टि, स्थित, युति
का आजीविका के क्षेत्र में ज्ञान प्राप्त करने के लिए अति
महत्वपूर्ण है। महर्षि
जैमिनी ने कारकांश लग्न में स्थित ग्रहों तथा लग्न पर अन्य ग्रहों की दृष्टि
होने
पर आजीविका के ज्ञान संबंधी निम्नलिखित तथ्य बतलाये हैं। अतः जातक सरकारी नौकरी
करेगा या व्यवसाय इसके संकेत भी कारकांश लग्न से मिलते हैं। महर्षि जैमिनी द्वारा
दिये गये यह
तथ्य निम्नलिखित है। 1. सूर्यः
शासन, सत्ता, सरकारी नौकरी और उच्च स्तरीय व्यवसाय प्रदान
करता है। (अ) कारकांश लग्न में
यदि सूर्य हो तो जातक समाज सेवा तथा राजनीति में सक्रिय
होता है। (ब) कारकांश
कुंडली में यदि आत्मकारक पर सूर्य तथा शुक्र का प्रभाव हो तो जातक राजा
का नौकर
(सरकारी नौकरी) होता है या सत्ताधारी लोगों के अधीन कार्य करता है। (स) कारकांश
लग्न से दशम भाव पर यदि गुरु की दृष्टि हो तथा वहां सूर्य स्थित हो तो जातक को
पशुओं के
व्यापार से लाभ होता है। (द) कारकांश लग्न से पांचवे भाव में यदि सूर्य
हो तो जातक संगीतज्ञ या
दार्शनिक होता है। (य) यदि कारकांश लग्न में सूर्य और राहु
हो और सूर्य अन्य वर्गों में शुभ स्थिति
में हो तो जातक विष का विशेषज्ञ होता है। 2. चंद्रमा: (अ) यदि कारकांश लग्न में पूर्ण चंद्र य शुक्र
हो या पूर्ण चंद्रमा
शुक्र से युत या दृष्ट हो तो जातक विद्या बुद्धि से धन कमाता है अर्थात् अध्यापक
वकील, पंडित, उपदेशक इत्यादि होता है। (ब) यदि कारकांश लग्न में चंद्र व गुरु कि युति हो या
ये
दोनों कारकांश लग्न से पांचवे भाव में स्थित हो तो जातक पुस्तकों का प्रकाशक
होता है। (स) यदि
कारकांश लग्न मंे अकेला चंद्रमा हो तो जातक संगीतज्ञ होता है।
(द) यदि कारकांश लग्न में
उपस्थित चंद्रमा पर बुध की दृष्टि हो तो जातक डाॅक्टर
बनता है। 3. मंगल: (अ) कारकांश लग्न में
मंगल स्थित हो तो जातक रसायनों का निर्माण करने
वाला, परमाणु संयत्रों में कार्य करने वाला,
इंजन
ड्राईवर तथा अग्नि आधारित कार्य करने वाला होता है। (ब) यदि कारकांश लग्न में मंगल
हो
तो व्यक्ति धातु कर्म से जीवन यापन करता है। (स) यदि कारकांश में स्थित मंगल पर
यदि गुरु व
शुक्र का शुभ प्रभाव हो तो जातक न्यायाधीश होता है। (द) कारकांश लग्न
से पंचम भाव में मंगल
स्थित हो और उस पर शनि का प्रभाव हो तो जातक मैकेनिक का
कार्य करने वाला हो सकता है।
(4) बुध:
(अ) कारकांश लग्न में बुध हो तो मनुष्य व्यापारी, कपड़ा
बनाने वाला, शिल्पी और व्यवहार
कुशल (जनसंपर्क अधिकारी) होता है।
(ब) यदि कारकांश लग्न से पंचम भाव में बुध हो तो जातक
वेदों का विद्वान होता है। 5. गुरु (अ) कारकांश लग्न में गुरु हो तो जातक दार्शनिक, धार्मिक संस्था
का प्रधान, वेदों
का ज्ञाता तथा कर्मकांड जानने वाला हो सकता है। (ब) कारकांश लग्न से पांचवे
भाव
में यदि गुरु हो तो जातक वेदों और उपनिषेदों का जानकार और विद्वान होता है। 6. शुक्र: (अ)
कारकांश लग्न में शुक्र राजकीय अधिकारों की प्राप्ति कराता है। यदि
यह शुभ प्रभाव में हो तो। (ब)
कारकांश लग्न से पंचम भाव में शुक्र हो तो जातक को
कविता करने में रूचि होती है। 7. शनि:
(अ)
कारकांश लग्न में शनि हो तो जातक पैतृक व्यवसाय करता है। (ब) कारकांश लग्न के
शनि पर
मंगल का प्रभाव हो तो जातक एक बिल्डर हो सकता है। (स) यदि शनि कारकांश लग्न
से चतुर् या
पंचम भाव में अकेला हो तो जातक निशानेबाजी से धन प्राप्त करता है। 8. राहु: (अ) यदि कारकांश
लग्न में राहु हो तो जातक युद्ध में प्रयुक्त होने वाले
सामान बनाने वाला विष चिकित्सा का विशेषज्ञ
तथा यंत्र विशेषज्ञ होता है। (ब) यदि
स्वांश में राहु आत्मकारक के साथ हो तो जातक चोरी, डकैती
से अपनी आजीविका चलाता है। (स) कारकांश लग्न से पंचम में राहु हो तो जातक एक अच्छा
मैकेनिक होता है। 9. केतु: (अ) कारकांश लग्न या उससे पंचम स्थान में अकेला
केतु हो तो मनुष्य
गणितज्ञ, ज्योतिष कंप्यूटर विशेषज्ञ होता है। (ब) कारकांश लग्न में स्थित केतु पर अशुभ प्रभाव
हो तो जातक चोर बनता है। (स) कारकांश लग्न से चतुर्थ स्थान पर केतु स्थित हो तो
जातक घड़ी
साज होता है। ग्रहों की युति तथा दृष्टि प्रभाव को भी शामिल करते हुए कारकांश कुंडली से भी
आजीविका का विचार करते हुए ही व्यवसाय के या नोकरी की सही दिशा प्राप्त कर सकते है |