Wednesday, 27 April 2016

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ shree Ram raksha strotr||

श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
॥ अथ ध्यानम्‌ ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥
॥ इति ध्यानम्‌ ॥ 
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥ 
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥ 
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥
आदिष्टवान्‌ यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥
संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधायुतं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ 
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ 
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥
लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

jivan ki sabhi samsyao ka samadhan ramayanji me --jane kai se

जीवन की सभी समस्याओं का समाधान रामायण जी में----- जाने कैसे 

jivan ki sabhi samsyao ka samadhan ramayanji me --jane kai se 


Image result for रामरामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट से भी मुक्त हो जाता है।
इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करें। प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देंगे।
1. रक्षा के लिए
मामभिरक्षय रघुकुल नायक |
धृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
2. विपत्ति दूर करने के लिए
राजिव  नयन  धरे धनु  सायक |
भक्त विपति भंजन सुखदायक ||
3. सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहिं कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
4. सब काम बनाने के लिए
वन्दउँ  बाल  रूप सोइ  रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जेहि नामू ||
5. वश मे करने के लिए
सुमिरि पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे रामू ||
6. संकट से बचने के लिए
दीन दयालु विरिदु संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
7. विघ्न विनाश के लिए
सकल विघ्न व्यापहिं नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेही ||
8. रोग विनाश के लिए
राम कृपा नाशहि सब रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
9. ज्वार ताप दूर करने के लिए
दैहिक दैविक भौतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
10. दुःख नाश के लिए
राम भक्ति मणि उर बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
11. खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12. अनुराग बढाने के लिए
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढ़ै अनुग्रह तोरे ||
13. घर मे सुख लाने के लिए
जै सकाम नर सुनहि जे गावहिं |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14. सुधार करने के लिए
मोहि सुधारहिं सो सब भाँती |
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती ||
15. विद्या पाने के लिए
गुरू गृह गए पढ़न रघुराई |
अलप काल विद्या सब आई ||
16. सरस्वती निवास के लिए
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17. निर्मल बुद्धि के लिए
ताके युग पद कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18. मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19. प्रेम बढाने के लिए
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20. प्रीति बढाने के लिए
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||
21. सुख प्रप्ति के लिए
अनुजन संयुत भोजन करहीं |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
22. भाई का प्रेम पाने के लिए
सेवहिं सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||
23. बैर दूर करने के लिए
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||
24. मेल कराने के लिए
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25. शत्रु नाश के लिए
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26. रोजगार पाने के लिए
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||
27. इच्छा पूरी करने के लिए
राम सदा सेवक रुचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28. पाप विनाश के लिए
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए
अल्प मृत्यु नहिं कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरुज शरीरा ||
30. दरिद्रता दूर के लिए
नहि दरिद्र कोउ दुःखी न दीना |
नहि कोउ अबुध न लक्षण हीना ||
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32. शोक दूर करने के लिए
नयन बन्त रघुपतिहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33. क्षमा माँगने के लिए
अनुचित बहुत कहहुँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोउ भ्राता।।

जीवन  की सभी समस्याओं  विद्या विवाह संतान नोकरी व्यापर का न चलाना धन का आभव कालसर्प दोष के सरल समाधान शनि की साढ़े साती के सरल उपाय आदि का सरल निदान  ज्योतिष के द्वारा पायें | 
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Friday, 22 April 2016

chanakya niti --narak basi ke lakshnn

                                           chanakya niti --narak basi ke lakdhnn ---: नरकवासी के लक्षण :---

"अत्यन्तकोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ।
नीचप्रसंगः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः---7.17)
अर्थः---जो व्यक्ति नरक में रहता हो, उसके कुछ विशेष लक्षण होते हैंः--
(1.) अत्यन्त क्रोधी स्वभाव,
(2.) कठोर वाणी,
(3.) दरिद्रता (गरीबी),
(4.) कुत्ते की तरह अपने लोगों से वैर रखना,
(5.) नीच लोगों की संगति करना,
(6.) कुलहीनों की सेवा करना ।
इन छः लक्षणों से युक्त व्यक्ति को देखकर समझ लेना कि यह नरक (पतित, बिगडे हुए गृहस्थाश्रम) में निवास करता हैं ।

Monday, 18 April 2016

प्रतिदिन स्मरण शुभ मंत्र। जो दे यश कीर्ति धन

prti din smran mantr 

                                                प्रतिदिन स्मरण शुभ  मंत्र- जो दे यश कीर्ति धन 

  प्रात: कर-दर्शनम्
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
         पृथ्वी क्षमा प्रार्थना
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

Tuesday, 12 April 2016

||अथ देव्याः कवचम् || ||devy kavch||

                                                              ||अथ देव्याः कवचम् ||
                                                                       ||devy kavch||

ॐ अस्य श्री चण्डी कवचस्य । ब्रह्मा ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । चामुण्डादेवता अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् । दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम् ।। श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।। 
                                                ॐ नमश्चण्डिकायै 
******मार्कण्डेय उवाच *****
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ।। १।। 
*********ब्रह्मोवाच*********
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।। देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ।। २।। 
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। ३।। 
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।। ४।। 
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। ५।। 
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।। विषमे दुर्गमे चैव भयात्तार्म शरणं गताः ।। ६।। 
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे ।। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ।। ७।। 
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते ।। ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ।। ८।। 
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।। ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुड़ासना ।। ९।। 
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना ।। लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरि प्रिया ।। १०।। 
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।। ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ।। ११।। 
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोग समन्विताः ।। नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नो पशोभिताः ।। १२।। 
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।। शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।। १३।। 
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शाङ्गर्मायुधमुत्तमम् ।। १४।। 
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।। धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।। १५।। 
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।। महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ।। १६।। 
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवद्धिर्नि ।। प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।। १७।। 
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋर्त्यां खड्गधारिणी ।। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ।। १८।। 
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी ।। ऊध्वर्म ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा ।। १९।। 
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।। जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।। २०।। 
अजिता वाम पाश्वेर् तु दक्षिणे चापराजिता ।। शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूध्निर् व्यवस्थिता ।। २१।। 
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी ।। त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ।। २२।। 
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोद्वार्रवासिनी ।। कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शाङ्करी ।। २३।। 
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका ।। अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ।। २४।। 
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।। घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ।। २५।। 
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला ।। ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।। २६।। 
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी ।। स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ।। २७।। 
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।। नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौरक्षेत्कुलेश्वरी ।। २८।। 
स्तनौरक्षेन्महादेवी मनःशोकविनाशिनी ।। हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।। २९।। 
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।। पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ।। ३०।। 
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी ।। जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।। ३१।। 
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।। पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।। ३२।। 
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोध्वर्केशिनी ।। रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ।। ३३।। 
रक्त मज्जा वसा मांसा न्यस्थिमेदांसि पार्वती ।। अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ।। ३४।। 
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा ।। ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु ।। ३५।। 
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।। अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।। ३६।। 
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।। वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ।। ३७।। 
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।। सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ।। ३८।। 
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।। यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ।। ३९।। 
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।। पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ।। ४०।। 
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा ।। राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ।। ४१।। 
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।। तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।। ४२।। 
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।। कवचेना वृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ।। ४३।। 
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः ।। यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ।। ४४।। 
निर्भयो जायते मत्यर्म: संग्रामेष्वपराजितः ।।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ।। ४५।। 
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।। यः
पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ।। ४६।। 
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः ।। जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ।। ४७।। 
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।। स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।। ४८।। 
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।। भूचराः खेचराश्चैवजलजाश्चोपदेशिकाः ।। ४९।। 
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।। अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ।। ५०।। 
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।। ब्रह्मराक्षसवेतालाः कुष्माण्डा भैरवादयः ।। ५१।। 
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ।। मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।। ५२।। 
यशसा वद्धर्ते सोऽपि कीर्ति मण्डितभूतले ।। जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।। ५३।। 
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।। तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्र पौत्रिकी ।। ५४।। 
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।। प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामाया प्रसादतः ।। ५५।। 
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ।। ॐ ।। 
                                       ||
श्री जगदम्बार्पण मस्तु ||

Monday, 11 April 2016

पितृदोष की शांति हेतु सरल उपाय pitr dosh shanti ke sarl upay


                                         पितृदोष की शांति हेतु सरल उपाय

pitr dosh shanti ke sarl upay 


*घर में कभी-कभी गीता पाठ करवाते रहना चाहिए।
*प्रत्येक अमावस्या को ब्राहमण भोजन अवश्य करवायें।
*ब्राहमण भोजन में पूर्वजों की मनपसंद खाने की वस्तुएं अवश्य बनायी जाए।
*ब्राहमण भोजन में खीर अवश्य बनाए।
*योग्य एवं पवित्र ब्राहमण को श्राद्ध में चांदी के पात्र में भोजन करवायें।
*स्वर्ण दक्षिणा सहित दान करने से अति उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
**पित्रृदोष की शांति करने पर सभी परेशानीयां अपने-आप समाप्त होने लगती है। मानव सफल, सुखी एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

Sunday, 10 April 2016

नवग्रह पीड़ा शांति के लिए यंत्र एव मन्त्र

नवग्रह पीड़ा  शांति के लिए  यंत्र एव मन्त्र 

navgrh pida shanti hetu 

ज्योतिष में   नवग्रह शांति के लिए आति  सरल मन्त्र है जिसका जाप करने   नवग्रह की पीड़ा से शांति होती है लेकिन यह यंत्र शुभ मुहूर्त में अभिमंत्रित होना चाहिए तो शीघ्र  शुभ फल प्रदान करता है इस यंत्र की पूजा  एवं मन्त्र  जप से किसी भी ग्रह की शांति हो जाती है।एक मंत्र ऐसा भी है जिसके माध्यम से सभी ग्रहों की एक साथ पूजा की जा सकती है। यह मंत्र नौ ग्रहों की पूजा के लिए उपयुक्त है। यदि इस मंत्र का प्रतिदिन जप किया जाए तो सभी ग्रहों का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
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मंत्र
ऊँ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी भानु: राशि भूमि सुतो बुध च।
गुरू च शुक्र: शनि राहु केतव: सर्वेग्रहा: शान्ति करा: भवन्तु।।

पूजित यंत्र उपलब्ध है |

Friday, 1 April 2016

jnmkundli nirmnn जन्मकुंडली निर्माण --जो दे जीवन को दिशा

                                 jnmkundli nirmnn
  जन्मकुंडली निर्माण --जो दे जीवन को दिशा 

जन्मकुंडली जातक के जन्म समय  तारीख और  स्थान के आधार पर बनाई जाती है 
जन्म कुंडली के लाभ --1 बच्चों के बालारिस्ट जन सकते है और कष्ट से बचा सकते है |
2  जातक की शिक्षा  के बारे में जानकारी एव सफलता के योग ,किस विषय में आधिक सफलता होगी |
3   जातक की नोकरी  व्यवसाय किस क्षेत्र   आधिक सफलता प्राप्त होगी | का विवरण होता है |
4   जातक का    विवाह  किस दिशा में विवाह  समय  एव मंगलीक है या नहीं का का विवरण होता है |
5 जातक की कुंडली संतान योग | का विवरण होता है |
6 कुंडली में बने शुभ अशुभ योग  का विवरण होता है |
7  कुंडली में रोग विचार  कष्ट के समय का ज्ञान  निदान | का विवरण होता है |
8  कुंडली में साढ़े साती  का समय आदि की कब साढ़े साती चलती है  का विवरण होता है |
9  आपके लकी रत्न का  का विवरण होता है |
10 और ऐसी अनेक जानकारी जो आपके जीवन को सही मार्गदर्शन दे सफलताओं की ओर ले जावे |
 आप जन्मकुंडली का हस्त लिखित फल प्राप्त करे एवं सभी समस्यायों का निदान प्राप्त करे सम्पर्क करे 
      +917697961597 |

सरल वस्तु टिप्स saral vastu tips

सरल वस्तु टिप्स
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धन व कार्य वर्धक यंत्र dhan va karya vardhak yantr

 धन व कार्य वर्धक यंत्र

dhan va karya vardhak yantr


जन्मकुंडली केअनुसार धन एवम कार्यो में सिद्धि देने वाला है |जीवन में 

कोई  न कोई परेशानी  कष्ट धन की हानि कार्यो बाधा परिश्रम करने पर

 भी मन की अभिलाषाओं की पूर्ति नहीं  होती है | तब ------

 धन व कार्य वर्धक यंत्र धारण करने से जीवन में सफलताओं एव धन 

बढने के मार्ग खुलने लगते है |यह धनवर्धक यंत्र जन्मकुंडली के आधार

 पर ही धारण किया जाता है जो धन व  कार्यो को बढाता है यह शुभमुहूर्त 

में निर्मित किये जाते है |