Thursday, 22 September 2016

कैसा हो बेडरूम का वास्तु जो शुभ हो

कैसा  हो बेडरूम का वास्तु जो  शुभ हो
kaisa ho bed rum ka vastu jo shubh ho 



Image result for बेडरूमसोते समय आपका सिर या तो पश्चिम या फिर दक्षिण दिशा में रखें। ऐसे में सुबह उठने का साथ ही आपका चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होगा जिसे शुभ माना जाता है। उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा कही जाती है, इसलिए स्वास्थ्य के साथ-साथ आपकी सम्पत्ति में भी यह बढ़ोतरी लाता है।
अपना बेड दक्षिण-पश्चिम दिशा में अथवा पश्चिम दिशा में रखें। यह सुख-सम्पत्ति में वृद्धि लाता है।
स्टूडेंट के लिए सिराहने की दिशा हमेशा पश्चिम में होनी चाहिए, इससे अध्ययन के मार्ग में आनेवाली बाधाओं का हनन स्वयं ही होता रहता है।
बेडरूम में ड्रेसिंग टेबल घर की खिड़की के ठीक सामने रखना सही नहीं माना जाता। बेडरूम के अन्दर आधे चांद के आकार का फर्नीचर वर्जित है। इससे फैमिली के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं परेशान करती रहती हैं।
आपके बेडरूम का दक्षिण-पश्चिम या फिर पश्चिम कोना खाली नहीं रहे इस बात का ध्यान रखें।
जिधर आपका सिराहना हो उधर घड़ी या कोई हिसात्मक तस्वीरें न लगाएं। कोई अच्छी तस्वीर या घड़ी लगानी भी हो तो इसे सामने वाली दीवार पर ही लगाएं, वरना हमेशा आपको एक अलग तरह का प्रेशर महसूस होता रहेगा, जो आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।
आपके बेडरूम के बाहरी दीवारों पर किसी तरह की दरार या टूट-फूट न मौजूद हो, इससे जीवन में उथल-पुछल मचा रहता है हमेशा।

Wednesday, 21 September 2016

शेयर बाजार और ज्योतिष कैसे बनते है लाभ -हानि के योग

शेयर बाजार और ज्योतिष कैसे बनते है लाभ -हानि के योग 

shaeyar bajar jyotish

ज्योतिष शास्त्र में  ग्रहों की स्थिति पर विचार करके शेयर में निवेश  करें तो शेयर में नुकसान होने की संभावना नहीं रहती है अत: निवेश से पूर्व ग्रह स्थिति का विचार अवश्य कर ना चाहिए|
प्रश्न कुण्डली के अनुसार जब शेयर में लाभ के संदर्भ में प्रश्न पूछते हैं तब प्रश्न कुण्डली में पंचम भाव एवं द्वितीय भाव से विचार करते हैं कि आपको लाभ मिलेगा अथवा नहीं.
द्वितीय भाव शेयर के विषय में विचार किया जाता है, जबकि पंचमभाव से विचार करने का कारण यह है कि शेयर से मिलने वाले लाभ को अचानक मिलने वाले लाभ की श्रेणी में रखा गया है.                                                               जब आपकी कुण्डली में द्वितीय भाव/द्वितीयेश कापंचम भाव/पंचमेश के साथ युति या दृष्टि से किसी भी प्रकार शुभ सम्बन्ध स्थापित होता है तोआपको शेयर मार्केट से धन लाभ होता है. शेयर में विशेष लाभ के लिए बृहस्पति का मजबूत   होना आवश्यक माना गया है क्योंकि द्वितीय एवं पंचम दोनों भावों का कारक बृहस्पति होता है.
प्रश्न कुण्डली के अनुसार आपको शेयर से लाभ प्राप्त होगा या नहीं इस संदर्भ में लग्न/लग्नेश से विचार किया जाता है. लग्न/लग्नेश के मजबूत होने से आपको शेयर में किये गये निवेश सेलाभ मिलता है. द्वितीय भाव/द्वितीयेश तथा पंचम भाव/पंचमेश शुभ स्थिति में होंइसके बावजूद लग्न/लग्नेश कमजोर स्थिति में हों तो शेयर बाज़ार में लाभ की स्थिति रहने पर भी आप लाभ कापूर्ण उपभोग नहीं कर पाते हैं.
शेयर में नुकसान किन स्थितियों में होता है यदि   द्वितीय भाव/द्वितीयेश तथा पंचम भाव/पंचमेश यदि कमजोर स्थितिमें हों तो शेयर में निवेश करने सेलाभ नहीं मिलता है. उपरोक्त भाव एवं ग्रहों के पाप पीड़ित अवस्था में होने अर्थात मंगल,शनि एवं राहु/केतु केद्वारा युति या दृष्टि से पीड़ित होने से शेयर मेंलाभ के संदर्भ में उपरोक्त ग्रह बाधा डालते हैं. उपरोक्त पापी ग्रह प्रश्न लग्न के लिए योग कारक हों तो फिर बाधाकी जगह इनसे सहायता मिलती है शेयर में लाभ के संदर्भ में कारकेश अर्थात बृहस्पति की स्थिति का विश्लेषण करें तो पता चलता है कियदि कारकेश कमजोर स्थिति में हों तो अपेक्षित लाभ मिलने की संभावना नहीं रहती है. शेयर बाज़ार से लाभ के लिए भाव/भावेश  के साथ-साथ कारकेश का बलवान होना भीआवश्यक है.
इन सभी तथ्यों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तथ्य है चन्द्रमा की दृष्टि. प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा की दृष्टिका बहुत महत्व  है. चन्द्रमा की दृष्टि से ज्ञात होता हैकि आपको शेयर में किस वक्त लाभ मिलने वाला है.


गणपती विशेषक जाने



गणपती  विशेषक  जाने
ganapati visheshk 

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गणपती क्यों बिठाते हैं ?*
हम सभी हर साल गणपती की स्थापना करते हैं, साधारण भाषा में गणपती को बैठाते हैं।
लेकिन क्यों ???
किसी को मालूम है क्या ??
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है।
लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था।
अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपती जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।
गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था।
अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की।
मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा।
महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला।
अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।
वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया।
इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए।
तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी।
इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।।

*पार्थिव श्रीगणेश पूजन*           (1) *श्री गणेश* मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         (2) *हेरम्ब* गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे।                                          (3) *वाक्पति* भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा *चित्र* बनाकर।  पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे। (4) *उच्चिष्ठ गणेश*लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री।  सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। (5) *कलहप्रिय* नमक की डली या।    नमक  के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे। (6) *गोबरगणेश* गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती हे(गोबर केवल गौ माता का ही हो)                             (7) *श्वेतार्क श्री गणेश* सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे।                        (8)  *शत्रुंजय* कडूए। निम् की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।।                               (9) *हरिद्रा गणेश*  हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।।       (10) *सन्तान गणेश* मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हे (11) *धान्यगणेश* सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हे            (12) *महागणेश* लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हे |
गणपति बप्पा मोरिया श्री गणेश का रूप बहोत ही मोहक है। श्री गणेश की सूंड बताती है कि प्रत्येक वस्तु की अनुभूति लो, अनुभूति पर ही विश्र्वास करो। संवेदनशील बनो, संवेदनाओ से विश्र्वको जानो। उसका बडा मस्तक बताता है - सदैव शांतचित्त रहो, सभी  परिस्थितियों में से मनुष्य शांति से निकल सकता है। अपनी मन की शांति बनाए रखो। श्री गणेश की आँखे बारीक हैं। यानी मनुष्य को अपनी दृष्टि सदैव पैनी रखनी चाहीए।सदैव सूक्ष्म दृष्टि ही मनुष्य को सत्य का दर्शन करी सकता है। सूक्ष्म दृष्टि से ही आभामंडल को जाना जा सकता है। श्री गणेश के बडे बडे कान बताते हैं - मनुष्य को अधिक सुनने की आदत डालनी चाहीए।। सदैव अच्छा अधिक से अधिक सुनो। श्री गणेश का बडा पेट उदारता का प्रतिक है, समाधान का प्रतिक है। समाधान मनुष्य का पेट बडा होता है, क्योंकी वह तृप्त होता है। श्री गणेश का बडा शरिर शक्तियों का प्रतिक है। मनुष्य को सदैव शक्तिशाली होवा चाहिए।
दुसरा महत्वपूर्ण बात है - उनके शरिर की संरचना चैतन्य का निर्माण करती है। वास्तवमें यह आकार चैतन्य ग्रहण करने के लिए ही हुआ है। यह आकार पृथ्वी के चैतन्य को ग्रहण करता है।
श्री गणेश पवित्रता के देवता हैं। बिना पवित्रता के कोई साधना पूर्ण नहीं हो सकती है। पवित्रता से मेरा आशय केवल शरिर की पवित्रता से नहीं है, पवित्रता से मेरा आशय चित्त की पवित्रता से है।
एक कहानी के माध्यम से इसे समझाया गया है। पार्वतीजी नहा रही थी और श्री गणेश बाहर पहरा दे रहे थे। वास्तवमें हमारे शरीर की ऐसी ही संरचना है।
हमारे शरिर में मूलाधार चक्र पर श्री गणेश का स्थान है और उसके पास ही कुंडलिनी माँ का स्थान है। कुंडलिनीमाँस्वरूप पार्वती पास ही रहती है। उस कुंडलिनी शक्तिको जगाने के लिए प्रथम श्री गणेश के पास जाना होता है। वे प्रथम देख़ते हैं कि उनकी माँ तक पहुंचनेवाला अधिकारी व्यक्ति है या नहीं। वह जगाने वाला व्यक्ति अधिकारी होना चाहीए, अन्यथा मूलाधार चक्र के ऊपर ही मनुष्य पहुँच नहीं सकता है। मूलाधार चक्र का प्रभाव विसर्जन संस्थान पर होता है। मैल का विसर्जन... फिर वह मैल शरिर का हो या चित्त का हो, मनुष्य मैलरहित, पवित्र होना चाहीए। चित्तशुध्धि महत्वपूर्ण है।

"प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली"

"प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली"

prachin svasthya dohavali 

पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!!
धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!
दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!!
ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!
कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!!
प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!!
ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!!
भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!!
प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस!
सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!!
प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार!            
   तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!!
भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार!
डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !!
घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!!
अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!
पानी पीजै बैठकर,  कभी न आवें पास!!
रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!
सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!!
सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!
भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुरेश!!
देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल!
अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल^^
दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ!
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!!
सत्तर रोगों कोे करे, चूना हमसे दूर!
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!!
भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ!
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!!
अलसी, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल!
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल!
पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान!
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!!
अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग!
आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!!
फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर!
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!!
चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति!
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!!
रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय!
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!!
भोजन करके खाइए, सौंफ,  गुड, अजवान!
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!!
लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान!
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान!
चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे !
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे !!
सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस!
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!!
सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान!
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!!
हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!
अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!
तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग।

Friday, 9 September 2016

परीक्षा में सफलता  के  सरल उपाय 

pariksha me saphlta ke srl upay 



Image result for ganesh rudrakshaपरीक्षा में सफलता  के  अभिमंत्रित  गणेश रुद्राक्ष धारण करें। बुधवार को गणेश जी के मंदिर में जाकर दर्शन करें सिंदूर दूर्वा  और मूंग के लड्डुओं का भोग लगाकर सफलता की प्रार्थना करें।
ध्यान कि मुद्रा 15 मिनिट अवश्य बनावे |

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यदि अधिक बाधा आवे तो आपनी जन्मपत्रिका देखावे परमर्स ले |+917697961597

पुराण कि जानकारी

                        पुराण कि जानकारी 

1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. वायु पुराण -- (शिव पुराण)
5. भागवत पुराण -- (देवीभागवत पुराण )
6. नारद पुराण
7. मार्कण्डेय पुराण
8. अग्नि पुराण
9. भविष्य पुराण
10. ब्रह्म वैवर्त पुराण
11. लिङ्ग पुराण
12. वाराह पुराण
13. स्कन्द पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण
( *उपपुराण* )
1. गणेश पुराण
2. श्री नरसिंह पुराण
3. कल्कि पुराण
4. एकाम्र पुराण
5. कपिल पुराण
6. दत्त पुराण
7. श्रीविष्णुधर्मौत्तर पुराण
8. मुद्गगल पुराण
9. सनत्कुमार पुराण
10. शिवधर्म पुराण
11. आचार्य पुराण
12. मानव पुराण
13. उश्ना पुराण
14. वरुण पुराण
15. कालिका पुराण
16. महेश्वर पुराण
17. साम्ब पुराण
18. सौर पुराण
19. पराशर पुराण
20. मरीच पुराण
21. भार्गव पुराण
( *अन्यपुराण तथा ग्रन्थ* )
1. हरिवंश पुराण
2. सौरपुराण
3. महाभारत
4. श्रीरामचरितमानस
5. रामायण
6. श्रीमद्भगवद्गीता
7. गर्ग संहिता
8. योगवासिष्ठ
9. प्रज्ञा पुराण
( *पुराणों कि श्लोक संख्या* )....
1. ब्रह्मपुराण में श्लोकों की संख्या १४००० और २४६ अद्धयाय है|
2. पद्मपुराण में श्लोकों की संख्या ५५००० हैं।
3. विष्णुपुराण में श्लोकों की संख्या तेइस हजार हैं।
4. शिवपुराण में श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हैं।
5. श्रीमद्भावतपुराण में श्लोकों की संख्या अठारह हजार हैं।
6. नारदपुराण में श्लोकों की संख्या पच्चीस हजार हैं।
7. मार्कण्डेयपुराण में श्लोकों की संख्या नौ हजार हैं।
8. अग्निपुराण में श्लोकों की संख्या पन्द्रह हजार हैं।
9. भविष्यपुराण में श्लोकों की संख्या चौदह हजार पाँच सौ हैं।
10. ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्लोकों की संख्या अठारह हजार हैं।
11. लिंगपुराण में श्लोकों की संख्या ग्यारह हजार हैं।
12. वाराहपुराण में श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हैं।
13. स्कन्धपुराण में श्लोकों की संख्या इक्यासी हजार एक सौ हैं।
14. वामनपुराण में श्लोकों की संख्या दस हजार हैं।
15. कूर्मपुराण में श्लोकों की संख्या सत्रह हजार हैं।
16. मत्सयपुराण में श्लोकों की संख्या चौदह हजार हैं।
17. गरुड़पुराण में श्लोकों की संख्या उन्नीस हजार हैं।
18. ब्रह्माण्डपुराण में श्लोकों की संख्या बारह हजार हैं।

Tuesday, 6 September 2016

चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई थी


 महान राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई थी


यदि दुनिया में कोई महान राजनीतिज्ञ कभी हुआ था तो वे थे आचार्य चाणक्य, यही कहती है सारी दुनिया और यही मानते हैं सभी लोग। चाहे प्राचीन काल हो या आज का युग, आज भी लोग एक महान राजनीतिज्ञ बनने के लिए आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए उसूलों पर चलना चाहते हैं।
यह दुनिया उनसे एक सफल इंसान और बुद्धिमान व्यक्तित्व पाने की चाहत रखती है और कई लोग ऐसा करने में सफल भी हो जाते हैं। यदि आप नहीं जानते तो बता दें कि आचार्य चाणक्य मौर्यकाल के महान व्यक्ति थे।
यदि आज दुनिया मौर्य काल को याद करती है या फिर वह काल यदि ऐतिहासिक किताबों का हिस्सा बन पाया है तो वह केवल आचार्य चाणक्य की वजह से ही संभव हुआ है।
Image result for chANAKYAइतिहास की बात करें, तो कुछ जगहों पर कौटिल्य के नाम से विख्यात आचार्य चाणक्य ने ही नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। चन्द्रगुप्त मौर्य को सीख प्रदान की, एक महान राजा बनने के उपदेश दिए और मौर्य समाज के झंडे को स्वतंत्र हवा में लहरा सकने की सक्षमता प्रदान की।
आचार्य चाणक्य के जीवन से जुड़ी कई बातें हम जानते हैं। उनका जन्म, उनके द्वारा अपने जीवन में किए गए महान कार्य जैसे कि अर्थशास्त्र जैसे महान ग्रंथ का लेखन करना, जिसमें उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं को हिम्मत से पार कर सकने का ज्ञान प्रदान किया है। आचार्य चाणक्य से जुड़ी कई कहानियां हमने सुनी हैं लेकिन आज भी लोग इस बात से अनजान हैं कि आखिरकार आचार्य चाणक्य की मौत कैसे हुई?
यह कोई सामान्य मौत थी या बनी बनाई साजिश? क्योंकि जाहिर है कि जिस स्तर पर आचार्य चाणक्य मौजूद थे, वहीं उनके कई दुश्मन भी मौजूद थे। उनकी मृत्यु को लेकर इतिहास के पन्नों में एक नहीं अनेक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन कौन सी सच है यह कोई नहीं जानता। परंतु आज हम इसी राज से पर्दा उठाने की कोशिश करने जा रहे हैं।
आचार्य चाणक्य की मौत को लेकर इतिहास के पन्नों में से दो कहानियां खोजी गई हैं, लेकिन कौन सी सही है इस सार तक कोई नहीं पहुंच पाया है। महान शोधकर्ता भी आज तक यह जान नहीं पाए कि आखिर आचार्य चाणक्य के साथ क्या हुआ था? उनकी मृत्यु का कारण क्या वे स्वयं थे या कोई और?
जो दो कहानियां प्रचलित हैं उनमें से पहली कहानी के अनुसार शायद आचार्य चाणक्य ने तब तक अन्न और जल का त्याग किया था जब तक मृत्यु नहीं आई। परंतु दूसरे कहानी के अनुसार वे किसी दुश्मन के षड्यंत्र का शिकार हुए थे, जिसकी वजह से उनकी मौत हुई।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार एक आम से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को आचार्य चाणक्य की सह ने सम्राट बनाया। मौर्य वंश का राजा बनाया, एक बड़ा साम्राज्य उसके हाथों में सौंपा और उसका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखवा दिया।
आचार्य चाणक्य की सीख से चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश को एक नया रूप दिया, इस वंश को दुनिया के शक्तिशाली वंश के रूप में प्रकट किया और खुद को एक महान राजा की छवि प्रदान की। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजा बिंदुसार ने भी पिता चंद्रगुप्त मौर्य की तरह आचार्य के सिखाए कदमों पर चलना सीखा। चंद्रगुप्त मौर्य की तरह ही आचार्य ने बिंदुसार को भी एक सफल राजा होने का पाठ पढ़ाया।

सब कुछ सही चल रहा था, आचार्य के अनुशासन तले राजा बिंदुसार अपनी प्रजा को पूर्ण रूप से सुखी रखने में सफल थे लेकिन दूसरी ओर कोई था जिसे आचार्य की राजा के प्रति इतनी करीबी पसंद नहीं थी। वह था सुबंधु, राजा बिंदुसार का मंत्री जो कुछ भी करके आचार्य चाणक्य को राजा से दूर कर देना चाहता था।
इसके लिए उसने कई षड्यंत्र रचे, उसे राजा को आचार्य चाणक्य के विरुद्ध करने के विभिन्न प्रयास किए जिसमें से एक था राजा के मन में यह गलतफ़हमी उत्पन्न कराना कि उनकी माता की मृत्यु का कारण कोई और नहीं वरन् स्वयं आचार्य चाणक्य ही हैं। ऐसा करने में सुबंधु कुछ मायनों में सफल भी हुए, धीरे-धीरे राजा और आचार्य में दूरियां बनने लगीं।
यह दूरियां इतनी बढ़ गईं कि आचार्य सम्राट बिंदुसार को कुछ भी समझा सकने में असमर्थ थे। अंतत: उन्होंने महल छोड़कर जाने का फैसला कर लिया और एक दिन वे चुपचाप महल से निकल गए। उनके जाने के बाद जिस दाई ने राजा बिंदुसार की माता जी का ख्याल रखा था उन्होंने उनकी मृत्यु का राज सबको बताया।
उस दाई के अनुसार जब सम्राट चंद्रगुप्त को आचार्य एक अच्छे राजा होने की तालीम दे रहे थे तब वे सम्राट के खाने में रोज़ाना थोड़ा थोड़ा विष मिलाते थे ताकि वे विष को ग्रहण करने के आदी हो जाएं और यदि कभी शत्रु उन्हें विष का सेवन कराकर मारने की कोशिश भी कर तो उसका राजा पर कोई असर ना हो
लेकिन एक दिन विष मिलाया हुआ खाना राजा की पत्नी ने ग्रहण कर लिया जो उस समय गर्भवती थीं। विष से पूरित खाना खाते ही उनकी तबियत बिगड़ने लगी, जब आचार्य को इस बात का पता चला तो उन्होंने तुरंत रानी के गर्भ को काटकर उसमें से शिशु को बाहर निकाला और राजा के वंश की रक्षा की। यह शिशु आगे चलकर राजा बिंदुसार के रूप में विख्यात हुए।
आचार्य चाणक्य ने ऐसा करके मौर्य साम्राज्य के वंश को खत्म होने से बचाया था लेकिन बाद में किसी ने यह गलत अफवाह फैला दी कि रानी की मृत्यु आचार्य की वजह से हुई। अंतत: जब राजा बिंदुसार को दाई से यह सत्य पता चला तो उन्होंने आचार्य के सिर पर लगा दाग हटाने के लिए उन्हें महल में वापस लौटने को कहा लेकिन आचार्य ने इनकार कर दिया।
उन्होंने ताउम्र उपवास करने की ठान ली और अंत में प्राण त्याग दिए। परंतु एक दूसरी कहानी के अनुसार राजा के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा जलाने की कोशिश की थी, जिसमें वे सफल भी हुए।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आचार्य चाणक्य ने खुद प्राण त्यागे थे या फिर वे किसी षड़यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक साफ नहीं हो पाया है। क्योंकि विभिन्न शोधकर्ता हर बार भिन्न-भिन्न परिणामों के साथ सामने आते हैं जो अंत में यह सवाल खड़ा कर देते हैं कि आखिर चाणक्य के साथ हुआ क्या था?
आचार्य चाणक्य के कारण भारतीय इतिहास एक तिजोरी के रूप में सामने आया है। जिसमें चाणक्य नीतियों से भरा खजाना है।