Sunday, 30 June 2013

पू र्वाभास






                            पूर्वाभास






किसी घटना का घटित होने से पहले किसी न किसी रूप में पता चल जाना ही पूर्वाभास कहलाता है I यह उन लोगों को अधिक होता है जिनकी जन्मकुंडली में लग्न पर शनि गुरु और राहू की कृपा हो I शनि को हम घटना का कारण मानकर चलें तो राहू वह समय है जब घटना घटती है और गुरु वह ज्ञान है जो पूर्वाभास के रूप में हो जाता है I
पूर्वाभास स्वप्न से, चिंतन से, किसी जानवर की विशिष्ट हरकत से, पक्षियों के माध्यम से या फिर स्वयं के अनुमान से होता रहता है I यदि हम पूर्वाभास को पहचान लेते है तो भी घटना को किसी तरह से टाल नहीं सकते अपितु सावधान रह सकते है I
धन लाभ या धन हानि
पानी का गिरना आने वाले धन की सूचना देता है I

मृत्यु के संकेत
कुत्ते या बिल्ली का रोना बुरी खबर का संकेत है I कोई व्यक्ति सोते समय ऐसे लगे जैसे कि मृत व्यक्ति पड़ा है तो यह उस व्यक्ति के लिए आने वाली मृत्यु का संकेत है I पानी में अपना चेहरा दिखना बंद हो जाए तो मृत्यु निकट है ऐसा समझना चाहिए I घड़ी बार बार खराब होने लगे तो बुरी खबर मिलने वाली है ऐसा समझें I
स्वप्न द्वारा पूर्वाभास
बुरे स्वप्न रोज आने लगें तो यह संकेत है कि आप किसी पाप ग्रह की दशा से गुजर रहे हैं, तुरंत उपचार करें I
स्वप्न में अपनी मृत्यु दिखना मान सम्मान और रोग से मुक्ति का संकेत है I
स्वप्न में आग दिखाई दे तो सावधान, हानि होने का संकेत है I
स्वप्न में अपने आप को ऊंचाई पर चढ़ते देखना संकेत है भावी तरक्की, कारोबार में वृद्धि, नौकरी में प्रोमोशन या फिर आप कोई बड़ी वस्तु खरीदने वाले है I
अधिक नींद आने लगे, सुखद स्वप्न आने लगें या ऐसा लगे कि आप किसी बहुत ऊंची जगह पर बैठे या खड़े है तो समझना चाहिए कि आप पर जिम्मेदारियां आने वाली है, किसी शुभ जगह बड़ा खर्च होने वाला है I
स्वप्न में फल का दिखना संकेत है संतान प्राप्ति का I
स्वप्न में किसी जानवर का आप पर हमला संकेत देता है कि सावधान, कोई व्यक्ति परेशानी में डाल सकता है I
पानी का स्वप्न में दिखना संकेत है निकट भविष्य में आपके Bank Balence में वृद्धि होने वाली है I आकाश में अपने आपको देखना या वायुयान यात्रा अनायास बहुत अधिक धन की प्राप्ति होने का संकेत देता है I
स्वप्न में हरियाली दिखना संकेत है कर्ज के उतरने का या समृद्धि का I
स्वप्न में अपने आप को रोते देखने से प्रसन्नता मिलती है I
तरक्की और मान सम्मान में वृद्धि होती है जब आप स्वप्न में सीढियां चढ़ते है I सीढियां उतरना संकेत होता है कि आपको संघर्ष करना पड़ेगा I
स्वयंको  खाड़ीफसल  के बीचदेखना  धन लाभ निर्मल  आकश  उन्नति  का सूचक झंडा  विजय  का प्रीतक होता  है |
बूढ़े लोगो को देखनाशुभ  होता है | 



Friday, 28 June 2013

चाणक्य नीति

lal kitabe aor pachava bhav {santan house}

lal kitabe aor  pachava bhav {santan house}


लाल किताब  ओर पंचम भाव {संतान भाव }





लाल किताब  ओर पंचम भाव {संतान भाव }


ज्योतिषशास्त्री इसी भाव से संतान कैसी होगी, एवं माता पिता से उनका 



किस प्रकार का सम्बन्ध होगा इसका आंकलन करते हैंकुण्डली का पांचवा घर    
संतान भाव के रूप में विशेष रूप से जाना जाता है|
पांचवें घर में सूर्य (Sun in Fifth House)
लाल किताब के नियमानुसार पांचवें घर में सूर्य का नेक प्रभाव होने से संतान जब गर्भ में आती है तभी से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होना शुरू हो जाता है. इनकी संतान जन्म से ही भाग्यवान होती है. यह अपने बच्चों पर जितना खर्च करते हैं उन्हें उतना ही शुभ परिणाम प्राप्त होता है. इस भाव में सूर्य अगर मदा (Weak sun in Lal kitab gives unhappiness from children) होता है तो माता पिता को बच्चों से सुख नहीं मिल पाता है. वैचारिक मतभेद के कारण बच्चे माता पिता के साथ नहीं रह पाते हैं.

पांचवें घर में चन्द्रमा (Moon in fifth house)
चन्द्रमा पंचवें घर में संतान का पूर्ण सुख देता है. संतान की शिक्षा अच्छी होती है. व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य के प्रति जागरूक होता है. व्यक्ति जितना उदार और जनसेवी होता है बच्चों का भविष्य उतना ही उत्तम होता है. इस भाव का चन्द्रमा अगर मंदा हो तो संतान के विषय मे मंदा फल देता है (Weak Moon in fifth house causes problems from children). लाल किताब का उपाय है कि बरसात का जल बोतल में भरकर घर में रखने से चन्द्र संतान के विषय में अशुभ फल नहीं देता है.

पांचवें घर में मंगल (Mars in the fifth house of Lal kitab kundali)
लाल किताब के अनुसार मंगल अगर खाना संख्या पांच में है तो संतान मंगल के समान पराक्रमी और साहसी होगी (Mars in fifth house gives a child as brave as Mars) संतान के जन्म के साथ व्यक्ति का पराक्रम और प्रभाव बढ़ता है. शत्रु का भय इन्हें नहीं सताता है. इस खाने में मंगल अगर मंदा है तो व्यक्ति को अपनी चारपायी या पलंग के सभी पायों में तांबे की कील ठोकनी चाहिए. इस उपाय से संतान सम्बन्धी मंगल का दोष दूर होता है.

पांचवें घर में बुध (Mercury in fifth house)
बुध का पांचवें घर में होना इस बात का संकेत है कि संतान बुद्धिमान और गुणी होगी (Mercury in the fifth house of lal kitab kundali gives an intelligent child). संतान की शिक्षा अच्छी होगी. अगर व्यक्ति चांदी धारण करता है तो यह संतान के लिए लाभप्रद होता है. संतान के हित में पंचम भाव में बुध वाले व्यक्ति को अकारण विवादों में नहीं उलझना चाहिए अन्यथा संतान से मतभेद होता है.

पांचवें घर में गुरू (Jupiter in the fifth house)
पंचम भाव में गुरू शुभ होने से संतान के सम्बन्ध में शुभ परिणाम प्राप्त होता है. संतान के जन्म के पश्चात व्यक्ति का भाग्य बली होता है और दिनानुदिन कामयाबी मिलती (A person gains success after birth of child if Jupiter is in fifth house) है. संतान बुद्धिमान और नेक होती है. अगर गुरू मंदा हो तो संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त नहीं होता है. मंदे गुरू वाले व्यक्ति को गुरू का उपाय करना चाहिए.

पांचवें घर में शुक्र (Venus is in fifth house of Lal kitab kundali)
पांचवें घर में शुक्र का प्रभाव शुभ होने से संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त होता है. इनके घर संतान का जन्म होते ही धन का आगमन तेजी से होता है (Person gains money when a child is born and Venus is in the fifth house). व्यक्ति अगर सद्चरित्र होता है तो उसकी संतान पसिद्ध होती है. अगर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और चरित्र का ध्यान नहीं रखता है तो संतान के जन्म के पश्चात कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना होता है. शुक्र अगर इस भाव में मंदा हो तो दूध से स्नान करना चाहिए।

पांचवें घर में शनि (Saturn in the fifth house)
शनि पांचवें घर में होने से संतान सुख प्राप्त होता है. शनि के प्रभाव से संतान जीवन में अपनी मेहनत और लगन से उन्नति करती है (Saturn in fifth house of lal kitab gives success with own efforts). इनकी संतान स्वयं काफी धन सम्पत्ति अर्जित करती है. अगर शनि इस खाने में मंदा होता है तो कन्या संतान की ओर से व्यक्ति को परेशानी होती है. इस भाव में शनि की शुभता के लिए व्यक्ति को मंदिर में बादाम चढ़ाने चाहिए और उसमें से 5-7 बादाम वापस घर में लाकर रखने चाहिए.

पांचवें घर में राहु (Rahu in the fifth house)
खाना नम्बर पांच में राहु होने से संतान सुख विलम्ब से प्राप्त होता है. अगर रहु शुभ स्थिति में हो तो पुत्र सुख की संभावना प्रबल रहती है. मंदा राहु पुत्र संतान को कष्ट देता है. लाल किताब के अनुसार मंदा राहु होने पर व्यक्ति को संतान के जन्म के समय उत्सव नहीं मनाना चाहिए. अगर संतान सुख में बाधा आ रही हो तो व्यक्ति को अपनी पत्नी से दुबारा शादी करनी चाहिए.

पांचवें घर में केतु (Ketu in the fifth house)
केतु भी राहु के समान अशुभ ग्रह है लेकिन पंचम भाव में इसकी उपस्थिति शुभ हो तो संतान के जन्म के साथ ही व्यक्ति को आकस्मिक लाभ मिलना शुरू हो जाता है. यदि केतु इस खाने में मंदा हो तो व्यक्ति को मसूर की दाल का दान करना चाहिए. इस उपाय से संतान के विषय में केतु का 
  मंदा प्रभाव कम होता है   यदि आपकी कुंडली में संतान सम्वन्धी बाधा है तो आप कुंडली परीक्षणकरा कर उचित लाभ प्राप्त कर सकते है |सम्पर्क muktajyotishs@gmail.com                        mo.7697961597

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Thursday, 27 June 2013

kundli aor 12 bhav vichar


kundli aor 12 bhav vichar
आपकी कुंडली  ओर १२ भाव विचार 



जन्म पत्रिका के अलग-अलग भावों से हमें अलग-अलग जानकारी 


मिलती है, इसे हम निम्न प्रकार जानेंगे-


                        
प्रथम भाव से हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, 


चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-


दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध 


में जानकारी मिलती है। इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की 


परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है।

द्वितीय भाव से हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी विचार, धन की 


बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण 


शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, 


मृत्यु का कारण एवं राष्ट्रीय विचार में राजस्व, जनसाधारण की 


आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में जाना 


जा सकता है। इस भाव से कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है।

तृतीय भाव से भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, 


संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्ष स्थल, फेफड़े, भुजाएँ, 


बंधु-बांधव। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र 


व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता 


है।


चतुर्थ भाव में माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, 


वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, 


कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती, राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु 


शिक्षण संस्थाएँ, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की 


प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता 


के बीच पहचान- यह सब देखा जाता है। 

पंचम भाव में विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, 



प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, 


मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय भी जानी जाती है क्योंकि 


यहाँ से कोई भी ग्रह सप्तम दृष्टि से आय भाव को देखता है।

षष्ठ भाव इस भाव से शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-



चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, 


नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, 


आक्रमण, जल-थल सैन्य के बारे में जाना जा सकता है।

सप्तम भाव स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, 



क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग, 


राष्ट्रीय नैतिकता, वैदेशिक संबंध, युद्ध का विचार भी किया जाता है। 


इसे मारक भाव भी कहते हैं।

अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, 



उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, 


दुर्घटना, सजा, लांछन आदि इस भाव से विचार किया जाता है।



नवम भाव से धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, 



आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, 


सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का 


निर्माण कराना, योजना, विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य 


जाने जाते हैं।

दशम भाव से पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-



सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, 


आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में जाना जाता है। इस भाव से 


पदोन्नति, उत्तरदायित्व, स्थायित्व, उच्च पद, राजनीतिक संबंध, 


जाँघें एवं शासकीय सम्मान आदि के बारे में जाना जाता है।

एकादश भाव से मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय 



में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, 


वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि जाना 


जाता है।

द्वादश भाव से व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, 



असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, 


अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं 


आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है 
                                                    

rahu kal

                                                                     rahu kal

                                   राहु काल





राहु काल प्रतिदिन एक निश्चित समय में होता है यह रात्रि में मान्य नहीं है  जब इसका समय चल रहा हो उस समय कोई भी कार्य प्रारंभ करना अच्छा नहीं होता |शुभ कार्यो  अवश्य विचार करे |यदि हम राहु कल में जो कार्य करते है वह उल्टा हो जाता है  यदि आप किसी कार्य लिये जा रहहै तो किसीदुसरे   कार्य में लग जया गे |




सोमवार                               ०७.३० से ०९.०० तक
मंगलवार                             १५.००  से १६.४० तक
बुधवार                                १२.००  से १३.३० तक
गुरुवार                                १३.३०  से १५.०० तक
शुक्रवार                                १०.३० से १२.०० तक
शनिवार                               ०९.०० से १०.३०  तक
रविवार                                १६.३० से १८.००  तक
इन समयों में प्रतिदिन किसी नए कार्य को न करें ||   समय का विचार अवश्य करे |

Monday, 24 June 2013

jyotish jane

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grh yuti aor aapki kundli

grh yuti aor aapki kundli


ग्रह  युति  ओर आपकी कुंडली 



युति हो तो जातक को क्या रोग होने की संभावना रहती है इसे बताते हैं-

गुरु-राहु की युति हो तो दमा, तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
गुरु-बुध की युति हो तो भी दमा या श्वास या तपेदिक रोग से कष्ट होगा।
राहु-केतु की युति हो जोकि लालकिताब की वर्षकुण्डली में हो सकती है तो बवासीर रोग से कष्ट होगा।
चन्द्र-राहु की युति हो तो पागलपन या निमोनिया रोग से कष्ट होगा।
सूर्य-शुक्र की युति हो तो भी दमा या तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
मंगल-शनि की युति हो तो रक्त विकार, कोढ़ या जिस्म का फट जाना आदि रोग से कष्ट होगा अथवा दुर्घटना से चोट-चपेट लगने के कारण कष्‍ट होता है।
शुक्र-राहु की युति हो तो जातक नामर्द या नपुंसक होता है।
शुक्र-केतु की युति हो तो स्वप्न दोष, पेशाब संबंधी रोग होते हैं।
गुरु-मंगल या चन्द्र-मंगल की युति हो तो पीलिया रोग से कष्ट होता है।
चन्द्र-बुध या चन्द्र-मंगल की युति हो तो ग्रन्थि रोग से कष्ट होगा।
मंगल-राहु या केतु-मंगल की युति हो तो शरीर में टयूमर या कैंसर से कष्ट होगा।
गुरु-शुक्र की युति हो या ये आपस में दृष्टि संबंध बनाएं तो डॉयबिटीज के रोग से कष्ट होता है।
ये रोग प्रायः युति कारक ग्रहों की दशार्न्तदशा के साथ-साथ गोचर में भी अशुभ हों तो ग्रह युति का फल मिलता है! इन योगों को आप अपनी कुंडली में देखकर विचार सकते हैं। ऐसा करके आप होने वाले रोगों का पूर्वाभास करके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सजग रह सकते हैं या दूजों की कुण्‍डली में देखकर उन्‍हें सजग कर सकते हैं।
 लेकिन रोग विचार  के लिये  कुंडली के  सभी पहलूओं  एवम् ग्रह  योगो व् उनकी सम्पूर्ण युति  शुभ 
अवम अशुभ  आदि का विचार करके  रोगों का अनुमान लगाना चाहिए|

श्रीमद्भागवत माहात्म्य






श्रीमद्भागवत माहात्म्य
अध्याय एक : श्री नारद भक्ति संवाद


एक बार नैमिषराण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषियों ने व्यास के शिष्य सूत से पूछा—‘‘इस कलियुग में मनुष्य अज्ञान में डूबकर सुख-शान्ति से वंचित हो गया है। अतः इसके कल्याण के लिए भगवान कोई उत्तम कथा सुनाएँ।’’ सूत बोले -‘‘हे ऋषियों ! कलियुग में जीवों के उद्धार के लिए श्रीमद्भागवत ही एकमात्र उपाय है। इसे ध्यान से सुनो। इसी से राजा परीक्षित को मोक्ष मिला। अनेक जन्मों के पुण्य से ही इस कथा को सुनने का सौभाग्य मिलता है। एक बार शुकदेव राजा परीक्षित को यह कथा सुनाना चाहते थे, तभी अमृतकलश लेकर देवता उनके पास आए और प्रणाम करने के बाद बोले-‘‘आप इस अमृत को ले लीजिए तथा हमें भागवत की कथा का अमृत पिलाएं।’’ शुकदेव बोले-‘‘देवताओं ! भागवत कथा का अमृत इस अमृत से श्रेष्ठ है। भागवत का अमृत समस्त दुःखों को नष्ट कर देता है। राजा परीक्षित की प्यास इसी अमृत से बुझेगी।’’ शुकदेव ने देवताओं को कथा नहीं सुनाई। इस कथा से परीक्षित को मोक्ष मिला देख ब्रह्माजी को आश्चर्य हुआ उन्होंने तराजू के एक पलड़े में श्रीमद्भागवत तथा दूसरे में दान, तप व्रत आदि रखे। भागवत वाला पलड़ा भारी था। इससे वहाँ उपस्थित सभी ऋषियों को आश्चर्य हुआ।’’

सूत आगे बोले- ‘‘एक बार ब्रह्मा के पुत्र सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार बदरिकाश्रम पहुँचे। वहाँ उन्होंने नारद को भागवत की कथा सुनाई।’’ शौनक बोले-‘‘नारद तो दो घड़ी से अधिक कहीं ठहरते ही नहीं तब उन्होंने सात दिन तक यह कथा कैसे सुनी ?’’ सूत बोले-‘‘चारों ऋषियों के बदरिकाश्रम पहुँचने पर नारद ने उन्हें प्रणाम किया। नारद को दुखी देख उन्होंने इसका कारण पूछा। नारद बोले-मैं पृथ्वी पर सभी तीर्थों में घूमा। सभी जगह अज्ञान और अधर्म का बोलबाला है। घरों में स्त्री ही की आज्ञा चलती है। ससुर-साले ही परामर्श देते हैं। लोभ से लोग अपनी कन्याओं को बेच देते हैं। ब्राह्मण-क्षत्रिय सभी अपने कर्मों से ही हीन हो गए हैं। अंततः मैं वृन्दावन पहुँचा वहां मैंने एक विचित्र बात देखी। यमुना तट पर एक युवती बैठी रो रही थी। उसके पास, दो युवक वृद्ध अचेत पड़े कराह रहे थे चारों ओर से अनेक स्त्रियाँ उस युवती को समझा रही थीं। मुझे देखकर वह युवती बोली-‘‘महाराज ! आपके दर्शन बड़े सौभाग्य से होते हैं। आप मेरा दुख दूर करें।’’ मैंने उस स्त्री से पूछा-‘‘तुम कौन हो ? ये दो वृद्ध तथा स्त्रियाँ कौन हैं ? तुम्हें क्या दुख है ? मुझे विस्तार से बताओ।’’

वह स्त्री बोली- ‘‘मैं भक्ति हूं, ये दो वृद्ध मेरे पुत्र हैं ज्ञान और वैराग्य हैं। स्त्रियाँ गंगा आदि नदियाँ हैं। मेरा जन्म द्रविड़ देश में हुआ। कर्णाटक में युवती हुई गुजरात में वृद्धा बनी। इस वृन्दावन में आने पर मैं फिर युवती हो गयी। परन्तु मेरे ये दोनों पुत्र कलियुग के प्रभाव से युवा न हो पाए। मैं दूसरे स्थान पर जाना चाहती हूँ मेरे दुख का कारण यही है कि मैं तो युवती हो गयी हूँ किंतु मेरे पुत्र वृद्ध ही रह गए हैं और अचेत पड़े हैं।’’

नारद बोले-‘‘दुःखी मत होओ। मैं अपनी ज्ञान दृष्टि से इसके कारण का पता लगाता हूँ। भगवान अवश्य तेरा कल्याण करेंगे।’’ फिर ध्यान से इसका कारण जानकर वह बताने लगे-‘‘सावधान होकर सुनो। कलियुग के प्रभाव से तप सदाचार आदि छिप गये हैं। पाप आदि बढ़ गये हैं। महात्मा दुखी हैं और दुष्ट  सुख भोग रहे हैं। यही कारण है तुम्हारे पुत्र दुखी हैं। इस वृन्दावन में कृष्ण भक्ति-सदा नाचती है। इसलिए तुम युवती हो यहाँ वैराग्य को चाहने वाला कोई नहीं है इसलिए तुम्हारे पुत्र युवा न हो सके।’’

यह सुनकर भक्ति बोली-‘‘महामुनि ! राजा  परीक्षित ने दुष्ट कलियुग को कैसे स्थापित किया ? अच्छाइयाँ कहाँ चली गयीं ? इस अधर्म को भगवान कैसे सहन करेंगे ?’’ नारद बोले-‘‘भगवान कृष्ण के अपने धाम को चले जाने पर कलियुग प्रारम्भ हो गया। राजा परीक्षित धनुष लेकर उसे मारने चल पड़े। वह परीक्षित के चरणों में गिर पड़ा। राजा को उस पर दया आ गयी। कलियुग की एक अच्छाई भी है। अन्य युगों में जो चीज कठोर तप किए भी प्राप्त नहीं होती थी, वह कलियुग में केवल भगवान के कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाती है।’’

नारद के शब्दों को सुनकर भक्ति बोली-‘‘सज्जनों की संगति सौभाग्य से ही होती है। आपने भक्ति को लोकों में फैलाया है। मैं आपको नमस्कार करती हूँ।’’

अध्याय दो : सुप्त ज्ञान-वैराग्य का सचेत होना


नारद बोले-‘‘देवी ! शोक न करो। भगवान कृष्ण का स्मरण करो, इसी से तुम्हारा दुःख मिटेगा। भगवान ने द्रौपदी की लाज रखी। अनेक दुष्ट राक्षसों का संहार किया। ग्राह से गज की रक्षा की। तुम पर उनकी विशेष कृपा है। जहाँ तुम रहती हो, वहाँ प्रेत, पिशाच आदि का भय नहीं रहता। इस कलियुग में भक्ति से ही जीवों का उद्धार होता है। भगवान तुमसे बड़े प्रसन्न होते हैं।’’ तब भक्ति बोली-‘‘भगवन्, मेरा अज्ञान तो नष्ट हो गया है। मेरे इन दोनों पुत्रों-ज्ञान-वैराग्य के मोह को भी दूर कीजिए।’’ भक्ति की प्रार्थना सुनकर नारद ने अपना हाथ ज्ञान-वैराग्य पर फेरा, किंतु उन्हें चेतना नहीं आयी। फिर वह उनके कानों में कहने लगे-‘‘उठो, जागो’’ परंतु इसका भी कोई प्रभाव नहीं हुआ। वेद आदि का पाठ करने पर भी वे सचेत नहीं हुए। अतः नारद भगवान का ध्यान करने लगे। तब आकाशवाणी हुई—‘‘नारद ! सत्कर्म करो, तभी ये सचेत होंगे।’’ नारद सोच में पड़ गए कि कौन-सा सत्कर्म करना चाहिए क्योंकि आकाशवाणी ने भी स्पष्ट बात नहीं बताई थी। वह अनेक तीर्थों में गए। उन्होंने अनेक महात्माओं से पूछा कि सत्कर्म क्या है ? किंतु कोई भी इसका संतोषजनक उत्तर न दे सका। अंत में वे बदरिकाआश्रम गए वहां सनक आदि चारों भाइयों से भी पूछा और कहा कि ‘‘ज्ञान एवं वैराग्य की वृद्धावस्था कैसे दूर होगी।’’

तब सनत्कुमार बोले-‘‘हे देवर्षि ! आप चिंता न करें। इसका उपाय अत्यंत सरल है। भक्ति का प्रचार-प्रसार करना आप जैसे श्रेष्ठ हरिभक्तों का स्वाभाविक कार्य है। आकाशवाणी ने आप से सत्कर्म करने को कहा है। ध्यान से सुनिए। द्रव्य यज्ञ, ज्ञान यज्ञ, तप यज्ञ, योग यज्ञ, स्वाध्याय आदि से बैकुण्ठ लोक मिलता है। महान ज्ञानियों ने कहा है कि सत्कर्म अर्थात् श्रीमद्भागवत को सुनने से ज्ञान और वैराग्य पुनः युवा हो जाते हैं। भक्ति नृत्य करने लगती है। इससे कलियुग के सभी प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।’’ नारद बोले-‘‘मैंने ज्ञान एवं वैराग्य को वेद आदि सुनाए, किंतु वे सचेत न हुए। तब वे भागवत-कथा से कैसे सचेत होंगे ?’’ सनत्कुमार बोले-‘‘वेद आदि से ही भागवत-कथा उपजी है। यह उत्तम फल देती है।’’ एवं वैराग्य को सुख देने वाली कथा सुनकर परम आनंद में डूब गये।

अध्याय तीनः भक्ति की कष्ट से मुक्ति


नारद बोले -‘‘मुनियों ! शुकदेव के मुख से निकली इस कथा को मैं अवश्य पूरा करूँगा। इससे ज्ञान, भक्ति, वैराग्य आदि की स्थापना होगी। कृपया बताएं, यह कथा कहां की जाए ? इसे कौन कहे ? तथा यह कितने दिन की होती है ?’’ सनत्कुमार ने कहा--‘‘हरिद्वार के समीप गंगा के तट पर आनंदवन नामक परम पवित्र रमणीय स्थान है। वहां ऋषि मुनि एकत्र होते हैं। वहीं यह कथा करें। यह सात दिन तक होगी। हम भी आपके साथ वहाँ चलेंगे।’’ उन चारों के साथ नारद आनंदवन पहुँचे। यह समाचार स्वर्ग तथा ब्रह्मलोक में भी पहुंच गया। हजारों भक्त तथा सभी पुराण, शास्त्र, नदियाँ, सरोवर, दिशाएँ, पर्वत, देवता, गन्धर्व, किन्नर, यक्ष, नाग आदि वहाँ आकर अपने-अपने आसनों पर बैठ गये। सनक, चारों ऋषियों ने भागवत का ध्यान किया और नारद से दीक्षा लेकर कथा कहने के लिए आसन पर विराजमान हो गये। चारों ओर से ‘जय-जय’ शब्द होने लगा। खील और फूलों की वर्षा होने लगी। विमानों पर बैठकर देवगण आकाश से कल्पवृक्ष से फूल बरसाने लगे। सभी सनत्कुमार से कथा सुनने के लिए उत्सुक थे। सनत्कुमार श्रीमद्भागवत का माहात्म्य बताते हुए कहने लगे-यह कथा भगवान का ही रूप है इसे सदा पढ़ना या सुनना चाहिए। इसे अठारह हजार श्लोक और बारह स्कंध हैं। इसे शुकदेव ने परिक्षित को सुनाया था। मनुष्य जब तक इसे नहीं सुनता, उसकी मुक्ति नहीं होती।

हजार अश्वमेध तथा सौ बाजपेय यज्ञ श्रीमद्भागवत के सोलहवें भाग के बराबर नहीं है। इसका एक आधा श्लोक भी निरन्तर पढ़ते रहने से पपरमपद मिलता है। जो अपने जीवन में एक बार भी इस कथा को नहीं सुनता, उसका जीवन व्यर्थ है। ऐसे मनुष्य को घोर नरक में जाना पड़ता है। कलियुग में मनुष्य संयमी नहीं होता तथा उसकी आयु भी कम होती है। इसीलिए श्री शुकदेव ने इसकी कथा एक सप्ताह की रखी है। इससे जप, तप, योग आदि सभी का फल मिल जाता है। भगवान कृष्ण के बैकुंड लोक जाते समय उद्धव बोले—‘‘भगवान ! आप अपने धाम को जा रहे हैं। अब कलियुग आने वाला है। पृथ्वी पर अधर्म फैल जाएगा। तब पृथ्वी किसकी शरण में जाएगी ?’’ कृष्ण ने कहा—‘‘मेरा तेज भागवत में स्थित है। यह मेरा ही स्वरूप है। इसके दर्शन, अध्ययन या सुनने से सभी पाप दूर हो जाते हैं। कलियुग में यही कथा, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देगी।’’ इतना कहकर भगवान अपने लोक में चले गए।

सूत बोले—भगवान के मुँह से यह सुनकर उद्धव को बड़ी प्रसन्नता हुई। इसके बाद भगवान का जय-जयकार होने लगा। लोगों ने देखा कि भक्ति अपने पुत्रों ज्ञान-वैराग्य के साथ वहाँ पहुँची। उसके दोनों पुत्र फिर युवा हो गए थे। वह नृत्य करने लगी। सनत्कुमार ने कहा—‘‘ज्ञान-वैराग्य इस कथा के प्रभाव से युवक हो गए हैं। इस कथा से सभी दुख दूर हो जाते हैं। कलियुग का कोई भी प्रभाव दुःखी नहीं करता।’’   

Friday, 21 June 2013

(Lal Kitab Remedies for Saturn in each house



(Lal Kitab Remedies for Saturn in each house






 शनि का प्रत्येक भाव के लिए उपाय





लाल किताब में शनि का प्रत्येक भाव के लिए उपाय 
























कु ण्डली में शनि जिस भाव में है उस भाव के अनुसार हमें किस प्रकार का उपाय करना चाहिए, यहां लाल किताब 


से जान सकेगे|


लाल किताब में शनि का प्रत्येक भाव के लिए उपाय

आपकी कुण्डली में शनि प्रथम भाव में स्थित हों तो आपको इस प्रकार के उपाय करने चाहिए।
1) जमीन पर तेल गिराएं.
2) 48 वर्ष की आयु तक मकान न बनाएं.

वर्ष की आयु तक मकान न बनाएं.
3) रूके हुये पानी में काला सुरमा दबाएं.
4) बन्दर पालें.
5) मांगने वाले को लोहे की अगींठी, तवा, चिमटा इत्यादि दान में दें.
6) वट बृक्ष की पेड़ की जड़ में दूध डालकर उसकी गीली मिट्टी का तिलक माथे पर लगाएं.

द्वितीय भाव में स्थित शनि के उपाय 
1) भूरे रंग की भेंस पालें.
2) साँप को दूध पिलाएं.
3) मन्दिर में उड़द काली मिर्च, काले चने व चन्दन की लकडी दान में दें.
4) प्रतिदिन मन्दिर में दर्शन करें.

तृतीय भाव में स्थित शनि के उपाय
1) अलग-अलग रंग के (सफेद, लाल, काला, ) तीन कुत्ते पालें.

2) मकान की दहलीज में लोहे की कील लगाएं.

चतुर्थ भाव में स्थित शनी के उपाय 

1) साँप को दूध पिलाएं.
2) मछ्ली को चावल, दाना आदी डालें
3) डा़क्टरी का कार्य करें और इलाज के तौर खुश्क दवा दें.
4) रात को दूध न पिये.
5) श्रमिक वर्ग से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें.
6) भैस पालें.
7) दवाईयों व्यापार करें.

पंचम भाव में स्थित शनी के उपाय 

1) 48 वर्ष आयु से पहले मकान न वनाएं.
2) मन्दिर में बादाम चढाए़ व उनमें से आधे वाप़स लाकर घरमें रखें.
3) पुत्र के जन्म दिन पर मिठाई न बाटें.
4) कुत्ता पालें.
5) काले सुरमें को बहते जल में प्रवाहित करें.

छटे भाव में स्थित शनि के उपाय 
1) भूरे व काले रंग का कुत्ता पालें.
2) सरसो का तेल मिट्टी या शीशी के बर्तन में बन्द करके तालाब के पानी के अन्दर दबाएं.
3) साँप को दूध पिलाएं.
4) रात के समय किया गया काम लाभदायक होगा.

सप्तम भाव में स्थित शनि के उपाय 
1) 22 वर्ष की आयु से पहले विवाह न करें.
2) देशी खाण्ड मिटटी के बर्तन में भरकर श्मशान में दवाएं.
3) पत्नी के बालों में सोना लगाएं.
4) किसी भी रिश्तेदार से साझें में कार्य न करें.
5) पत्नी की सलाह से काम करें.

अष्टम भाव में स्थित शनि के उपाय 
1) शराब, अण्डे, मांस से परहेज करें.
2) मकान न खरीदें.
3) भारी मशीनरी का व्यबसाय न करें.
4) लोहे की अंगीठी, तवा, चिमटा आदि दान करें.
5) भुमि पर नगें पाँव ना चलें.
6) आठ किलो साबुत उड़त चलते पानी में प्रवाहित करें.

नवम भाव में स्थित शनि के उपाय 

1) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.
2) चलते पानी में चावल प्रवाहित करें.
3) पिता, दादा के साथ रहें.
4) बूढे ब्राह्मण को बृहस्पति की वस्तुएँ दान करें .
5) छत पर इंधन (चूल्हा) न जलाएँ.
6) सोना, चांदी व कपडे़ का व्यबसाय लाभ देगा.

द्शम भाव में स्थित शनि के उपाय 

1) रात को दूध ना पिये.
2) सिर ढक कर रखें .
3) दस अन्धों को भोजन करायें.
4) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.5) मन्दिर में दर्शन हेतु जाते रहें.

एकादश भाव में स्थित शनि के उपाय 

1) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.
2) 48 वर्ष आयु के पश्चात मकान बनाऎं.
3) जमीन पर तेल गिराऎं.
4) मकान में दक्षिण दिशा की ओर दरवाजा ना रखें.
5) शुभ काम करने से पहले मिट्टी का घडा़ पानी से भरकर रखें.

द्वादश भाव में स्थित शनि के उपाय 

1) झूठ बोलने से बचे.
2) मकान की पिछली दीवार में रोशनदान ना बनाएं.
3) शराब, अण्डा, मांस से परहेज करें.
4) धर्म, कर्म करते रहें.

लाल किताब के अनुसार शनि के उपरोक्त उपाय करने से तुरन्त लाभ मिलता हैं.
ध्यान रखें:
1) एक समय में केवल एक ही उपाय करें.
2) उपाय कम से कम 40 दिन या 43 दिनो तक करें.
3) उपाय में नागा ना करें यदि किसी कारणवश नागा हो तो उपाय फिर से प्रारम्भ करें.
4) उपाय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक करें.
5) उपाय खून का रिश्तेदार ( भाई, पिता, पुत्र इत्यादि) भी कर सकता