Thursday, 25 July 2013

maha bharat katha


maha bharat  katha


अर्जुन ने जीता स्वयंवर लेकिन द्रोपदी बनी पांच भाइयों की पत्नी, जानिए 








महाभारत में द्रोपदी के पांच पति थे, यह बात तो लगभग हर व्यक्ति जानता है लेकिन ऐसा क्यों हुआ यह बहुत कम लोग जानते हैं। यदि आप भी ये बात नहीं जानते हैं तो यहां बताया जा रहा है कि द्रोपदी किस प्रकार पांच पाण्डव की महाभारत में द्रोपदी के पांच पति थे, यह बात तो लगभग हर व्यक्ति जानता है लेकिन ऐसा क्यों हुआ यह बहुत कम लोग जानते हैं। यदि आप भी ये बात नहीं जानते हैं तो यहां बताया जा रहा है कि द्रोपदी किस प्रकार पांच पाण्डव की पत्नी बनीं।पत्नी बनीं। राजा द्रुपद ने एक विशेष धनुष बनवाया। इसके साथ आकाश में एक ऐसा यंत्र चक्र लगवाया जो लगातार गोल-गोल घूम रहा था। इसी चक्र में लक्ष्य निर्धारित किया गया जिसे धनुष से तीर चलाकर भेदना था। इस कठिन लक्ष्य को भेदने वाले से द्रोपदी का विवाह किया जाना तय हुआ था।
स्वयंवर की सभा कई राजा उपस्थित हुए लेकिन कोई भी इस शर्त को पूरा नहीं कर सका। तब अंत में पाण्डव पुत्र अर्जुन आए और उन्होंने लक्ष्य को भेद दिया। इसके बाद द्रोपदी का विवाह अर्जुन के साथ संपन्न हुआ। पांचों पाण्डव द्रोपदी सहित अपनी माता के समक्ष पहुंचे। घर पहुंचकर पाण्डवों ने कहा कि माता हम भिक्षा ले आए हैं। पाण्डवों की माता कुंती ने पीछे देखे बिना ही कह दिया कि जो भी भिक्षा लाए हो पांचों भाई आपस में बांट लो और उसका उपभोग करो।
इसके बाद जब कुंती को यह मालूम हुआ कि पाण्डव द्रोपदी को लेकर आए तो उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ कि एक स्त्री को पांचों भाइयों में बांटने का आदेश दे दिया। पांचों पाण्डव माता की आज्ञा का अनादर नहीं कर सकते थे अत: तभी से द्रोपदी पांचों पाण्डव की पत्नी हो गईं।

nokri me prmoshan ke upay



नौकरी में प्रमोशन चाहिए तो 7 प्रकार के अनाज का ये उपाय करें




nokri me  prmoshan ke upay







सात प्रकार के अनाज जैसे गेहूं, चावल, बाजरा, ज्वार, चने, मक्का, काली उड़द थोड़ा-थोड़ा एक साथ एकत्र करें। इसके बाद इस अनाज को प्रतिदिन सुबह-सुबह पक्षियों को खिलाएं। पक्षियों को खिलाने के लिए आप अपने घर की छत पर या किसी पार्क में यह अनाज फैला सकते हैं। जिससे पक्षी अनाज के दाने चुग लेंगे।
शास्त्रों के अनुसार पक्षियों को अनाज खिलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। पिछले समय में या जन्म में किए गए पाप कर्मों का प्रभाव समाप्त होता है और पुण्य में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ आपके जीवन की कई प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। आपकी नौकरी में आ रही बाधाएं भी कम हो जाएंगी और मेहनत और कार्य-कौशल के आधार पर आपको प्रमोशन और इंक्रीमेंट अवश्य मिलेगा।
 इस प्रकार यह उपाय प्रतिदिन या समय-समय पर करते रहना चाहिए। पक्षियों को अनाज खिलाने से आपकी कुंडली के दोष और घर के वास्तु दोष शांत हो जाएंगे। इसके साथ ही पक्षियों के चहचहाहट से घर के आसपास का वातावरण भी पॉजिटिव हो जा ता है |

गरुड़ पुराण में मत्यु प्रकार





                                                 गरुड़ पुराण  में मत्यु   प्रकार 



किसकी मौत कैसे होगी? इन 3 बातों से फौरन चल जाता है













हिन्दू धर्मग्रंथ गरुड़ पुराण में जीवन में किए अच्छे-बुरे कामों के मुताबिक मृत्यु के वक्त कैसे हालात बनते हैं? के बारे में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं बताया है। जानिए किस काम से कैसी मौत मिलती है?
 
- जो लोग सत्य बोलते हैं, ईश्वर में आस्था और विश्वास रखते हैं, विश्वासघाती नहीं होते, उनकी मृत्यु सुखद होती है। जो लोग दूसरों को आसक्ति, मोह का उपदेश देते हैं, अविद्या या अज्ञानता, द्वेष या स्वार्थ, लोभ की भावना फैलाते हैं, वे मृत्यु के समय बहुत ही कष्ट उठाते हैं। झूठ बोलने वाला, झूठी गवाही देने वाला, भरोसा तोडऩे वाला, शास्त्र व वेदों की बुराई करने वालों की दुर्गति सबसे ज्यादा होती है। उनकी बेहोशी में मृत्यु हो जाती है। 
यही नहीं ऐसे लोगों को लेने के लिए भयानक रूप और गंध वाले यमदूत आते हैं, जिसे देखकर जीव कांपने लगता है। तब वह माता-पिता व पुत्र को याद कर रोता है।
ऐसी हालात में वह चाहकर भी मुंह से साफ नहीं बोल पाता। उसकी आंखे घूमने लगती है। मुंह का पानी सूख जाता है, सांस बढ़ जाती है और अंत में कष्ट से दु:खी होकर प्राण त्याग देता है। मृत्यु को प्राप्त होते ही उसका शरीर सभी के लिए न छूने लायक और घृणा करने वाला बन जाता है।

जो लोग दूसरों को आसक्ति, मोह का उपदेश देते हैं, अविद्या या अज्ञानता, द्वेष या स्वार्थ, लोभ की भावना फैलाते हैं, वे मृत्यु के समय बहुत ही कष्ट उठाते हैं। 















जो लोग दूसरों को आसक्ति, मोह का उपदेश देते हैं, अविद्या या अज्ञानता, द्वेष या स्वार्थ, लोभ की भावना फैलाते हैं, वे मृत्यु के समय बहुत ही कष्ट उठाते हैं। 

Tuesday, 23 July 2013

teji mandi


sona chandi vastr me teji 23-7-2013
daatu teji khand gur me mandi 24-7-2013
til tel me teji 25-7-2013

Thursday, 11 July 2013

रुद्राष्टक



                                                                 रुद्राष्टक














Wednesday, 10 July 2013

teji mandi







बैंक डिटेल्स

Payee name - Mukta dixit
bank - union bank of india , DHANVANTARI NAGAR jabalpur
a/c no - 669302010002001
ifsc code- UBIN0566934
MICR Code- 482026014

फीस
कुंडली देखने के लिए = 500 /- for outside india 20$
कुंडली निर्माण संपूर्ण फल सहित - 700 /-
तेजी - मंदी शेयर मार्किट 1000 /- per week
कुंडली मिलान मंगल विचार सहित - 500 /-




                                                                      teji mandi

email  --.>muktajyotishs@gmail.com


तेजी  मंदी व्यापार  भविष्य में स्वागत है जाने  10  से 17   जुलाई 2013  का व्यापारिक  रुझान  ---->

सोना चाँदी  सुत  में तेजी  ता.10   ,चना  खंड  में मंदी ता.11  ,धातु  में मंदी  12,     तिलतिलहन  में  तेजी 13 ,

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कुंडली निर्माण संपूर्ण फल सहित - 700 /-
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कुंडली मिलान मंगल विचार सहित - 500 /-

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Tuesday, 9 July 2013

tail aor aapka bhvishy


                                                   tail  aor aapka bhvishy


                                                        तिल  ओर आप
                                                             का भविष्य 



यदि चेहरे पर दाहिने भाग में लाल या काले रंग का तिल हो, तो व्यक्ति
यशस्वी, धनवान तथा सुखी होता हैं।
यदि नीचे के होठ पर तिल का चिन्हहो, तो ऐसा व्यक्ति निर्धन होता हैं
तथा जीवन भर गरीबी में दिन व्यतीतकरता हैं।
होठ और तिल के बिच जितनि दूरी हो प्रभाव उतना कम होता जाता हैं।

यदि ऊपर के होंठ पर तिल का चिन्ह हो, तो ऐसा व्यक्ति अत्यधिक
विलासी और काम पिपासु लेकिन धनवान होता हैं।

यदि बायें कान के ऊपरी सिरे पर तिल का चिन्ह हो, तो व्यक्ति दीर्घायु होता हैं
लेकिन उसका शरीर थोडा कमजोर होता हैं।

यदि नासिका के मध्य भाग में तिल हो, तो व्यक्ति अधिक यात्रा करने वाला
भ्रमण प्रिय एवं दुष्ट स्वभाव का होता हैं।

यदि दाहिनी कनपटी पर तिल हो, तो व्यक्ति प्रेमी, समृद्ध तथा सुखपूर्ण अपना
जीवन व्यतीत करने वाला होता हैं।

यदि बायें गाल पर तिल का चिन्ह हो, तो गृहस्थ जीवन सुखमय रहता हैं
लेकिन जीवन में धन का अभाव रहता हैं।

यदि ठोड़ी पर तिल हो, तो वहव्यक्ति थोडा स्वार्थी एवं अपने काम में ही लगा
रहने वाला होता हैं।
यदि दाहिने कान के पास तिल हो, तो व्यक्ति साहसी होते हैं।
यदि दाहिनी और भौंह के पास में तिल हो, तो व्यक्ति कि आंखें कमजोर होती हैं।

यदि दाहिने गाल पर तिल का चिन्ह हो, तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान तथा जीवन
के हर क्षेत्र में उन्नति करने वाला होता है।

यदि गर्दन पर तिल हो, तो व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं और अपने प्रयत्नों से धन
संचय करने वाला होता हैं।

यदि दाहिनी आंख के नीचले हिस्से पर तिल का चिन्ह हो, तो वे समृद्ध तथा
सुखी होते हैं।
यदि नासिका के बाएं भाग पर तिल हो, तो व्यक्ति अधिक प्रयत्न करने के बाद
सफलता प्राप्त होती है।
यदि बाएं आंख की भौंहों के पास में तिल हो, तो व्यक्ति एकान्त प्रिय एवं सामान्य
जीवन निर्वाह करने वाला होता है।
यदि दोनों भौंहों के बीच के हिस्से में तिल का चिन्ह हो, तो व्यक्ति दीर्घायु
धार्मिक एवं उदार हृदय के स्वामी होते हैं।
ललाट पर तिल - ललाट के मध्य भाग में तिल निर्मल प्रेम की निशानी
है। ललाट के दाहिने तरफ का तिल किसी विषय विशेष में निपुणता, किंतु बायीं
तरफ का तिल फिजूलखर्ची का प्रतीक होता है। ललाट या माथे के तिल के संबंध
में एक मत यह भी है कि दायीं ओर का तिल धन वृद्धिकारक और बायीं तरफ का तिल
घोर निराशापूर्ण जीवन का सूचक होता है।
भौंहों पर तिल - यदि दोनों भौहों पर तिल हो तो जातक अकसर यात्रा
करता रहता है। दाहिनी पर तिल सुखमय और बायीं पर तिल दुखमय दांपत्य जीवन का
संकेत देता है।
आंख की पुतली पर तिल - दायीं पुतली पर तिल हो तो व्यक्ति के
विचार उच्च होते हैं। बायीं पुतली पर तिल वालों के विचार कुत्सित होते हैं।
पुतली पर तिल वाले लोग सामान्यत: भावुक होते हैं।
पलकों पर तिल - आंख की पलकों पर तिल हो तो जातक संवेदनशील होता
है। दायीं पलक पर तिल वाले बायीं वालों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं।
आंख पर तिल - दायीं आंख पर तिल स्त्री से मेल होने का एवं बायीं
आंख पर तिल स्त्री से अनबन होने का आभास देता है।
कान पर तिल - कान पर तिल व्यक्ति के अल्पायु होने का संकेत देता है।
नाक पर तिल - नाक पर तिल हो तो व्यक्ति प्रतिभासंपन्न और सुखी होता है।
महिलाओं की नाक पर तिल उनके सौभाग्यशाली होने का सूचक है।
होंठ पर तिल - होंठ पर तिल वाले व्यक्ति बहुत प्रेमी हृदय होते हैं।
यदि तिल होंठ के नीचे हो तो गरीबी छाई रहती है।
मुंह पर तिल - मुखमंडल के आसपास का तिल स्त्री तथा पुरुष दोनों
के सुखी संपन्न एवं सज्जन होने के सूचक होते हैं। मुंह पर तिल व्यक्ति को
भाग्य का धनी बनाता है। उसका जीवनसाथी सज्जन होता है।
गाल पर तिल - गाल पर लाल तिल शुभ फल देता है। बाएं गाल पर कृष्ण
वर्ण तिल व्यक्ति को निर्धन, किंतु दाएं गाल पर धनी बनाता है।
जबड़े पर तिल - जबड़े पर तिल हो तो स्वास्थ्य की अनुकूलता और
प्रतिकूलता निरंतर बनी रहती है।
ठोड़ी पर तिल - जिस स्त्री की ठोड़ी पर तिल होता है, उसमें
मिलनसारिता की कमी होती है।
कंधों पर तिल - दाएं कंधे पर तिल का होना दृढ़ता तथा बाएं कंधे
पर तिल का होना तुनकमिजाजी का सूचक होता है।
दाहिनी भुजा पर तिल - ऐसे तिल वाला जातक प्रतिष्ठित व बुद्धिमान
होता है। लोग उसका आदर करते हैं।
बायीं भुजा पर तिल - बायीं भुजा पर तिल हो तो व्यक्ति झगड़ालू
होता है। उसका सर्वत्र निरादर होता है। उसकी बुद्धि कुत्सित होती है।
कोहनी पर तिल - कोहनी पर तिल का पाया जाना विद्वता का सूचक है।
हाथों पर तिल -
जिसके हाथों पर तिल होते हैं वह चालाक होता है। गुरु क्षेत्र में तिल हो
तो सन्मार्गी होता है। दायीं हथेली पर तिल हो तो बलवान और दायीं हथेली के
पृष्ठ भाग में हो तो धनवान होता है। बायीं हथेली पर तिल हो तो जातक खर्चीला
तथा बायीं हथेली के पृष्ठ भाग पर तिल हो तो कंजूस होता है।
अंगूठे पर तिल - अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कार्यकुशल, व्यवहार
कुशल तथा न्यायप्रिय होता है।
तर्जनी पर तिल - जिसकी तर्जनी पर तिल हो, वह विद्यावान, गुणवान
और धनवान किंतु शत्रुओं से पीड़ित होता है।
मध्यमा पर तिल - मध्यमा पर तिल उत्तम फलदायी होता है। व्यक्ति
सुखी होता है। उसका जीवन शांतिपूर्ण होता है।
अनामिका पर तिल - जिसकी अनामिका पर तिल हो तो वह ज्ञानी, यशस्वी,
धनी और पराक्रमी होता है।
कनिष्ठा पर तिल - कनिष्ठा पर तिल हो तो वह व्यक्ति संपत्तिवान
होता है, किंतु उसका जीवन दुखमय होता है।
गले पर तिल - गले पर तिल वाला जातक आरामतलब होता है। गले पर
सामने की ओर तिल हो तो जातक के घर मित्रों का जमावड़ा लगा रहता है। मित्र
सच्चे होते हैं। गले के पृष्ठ भाग पर तिल होने पर जातक कर्मठ होता है।
छाती पर तिल - छाती पर दाहिनी ओर तिल का होना शुभ होता है। ऐसी
स्त्री पूर्ण अनुरागिनी होती है। पुरुष भाग्यशाली होते हैं। शिथिलता छाई
रहती है। छाती पर बायीं ओर तिल रहने से भार्या पक्ष की ओर से असहयोग की
संभावना बनी रहती है। छाती के मध्य का तिल सुखी जीवन दर्शाता है। यदि किसी
स्त्री के हृदय पर तिल हो तो वह सौभाग्यवती होती है।
कमर पर तिल - यदि किसी व्यक्ति की कमर पर तिल होता है तो उस
व्यक्ति की जिंदगी सदा परेशानियों से घिरी रहती है।
पीठ पर तिल - पीठ पर तिल हो तो जातक भौतिकवादी, महत्वाकांक्षी
एवं रोमांटिक हो सकता है। वह भ्रमणशील भी हो सकता है। ऐसे लोग धनोपार्जन भी
खूब करते हैं और खर्च भी खुलकर करते हैं। वायु तत्व के होने के कारण ये धन
संचय नहीं कर पाते।
पेट पर तिल - पेट पर तिल हो तो व्यक्ति चटोरा होता है। ऐसा
व्यक्ति भोजन का शौकीन व मिष्ठान्न प्रेमी होता है। उसे दूसरों को खिलाने
की इच्छा कम रहती है।
घुटनों पर तिल - दाहिने घुटने पर तिल होने से गृहस्थ जीवन सुखमय
और बायें पर होने से दांपत्य जीवन दुखमय होता है।
पैरों पर तिल - पैरों पर तिल हो तो जीवन में भटकाव रहता है। ऐसा
व्यक्ति यात्राओं का शौकीन होता है। दाएं पैर पर तिल हो तो यात्राएं
सोद्देश्य और बाएं पर हो तो निरुद्देश्य होती हैं।



Saturday, 6 July 2013

चाणक्य की तर्क शक्ति







एक दिन चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और उत्साह से कहने लगा, 'आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना है?' 



चाणक्य अपनी तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे

उन्होंने अपने परिचित से कहा, 'आपकी बात मैं सुनूं, इसके पहले मैं चाहूंगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें।' 

उस परिचित ने पूछा - 'यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?' 

चाणक्य ने समझाया- 'आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएं, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो कहें, उसे थोड़ा परख लें, थोड़ा छान लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं। 

इसकी पहली कसौटी है सत्य।
इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, वह सत्य है। आप खुद उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?' 

'नहीं,' - वह आदमी बोला, 'वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।' 

'ठीक है,' - चाणक्य ने कहा, 'आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य। 

दूसरी कसौटी है -'अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?' 
'नहीं,' - उस व्यक्ति ने कहा। 

इस पर चाणक्य बोले,' जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है, न ही अच्छा। चलिए, तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं।' 

तीसरी कसौटी है - उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?' 

'नहीं, ऐसा तो नहीं है।' सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी।' 

आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी, फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?' 

क्या करे जब साढ़ेसाती या ढैया चले





       क्या करे जब साढ़ेसाती  या ढैया  चले 





                           
अशुभ  स्वप्न दिखे  सर्प दिखे घरगिरे  स्वप्न में दिखे व्यापार  में हानी हो धन बर्बाद हो  रोग से कष्ट नोकरी छुटजाय  परिवार  में कलह हो  आदि होने पर निम्न उपाय करे |सम्पर्क करे --- 7697961597












सरल उपाय :- 

* शनिवार का व्रत करें।

* रोटी में तेल लगाकर कुत्ते या कौए को खिलाएं।

* नीलम अथवा जामुनिया मध्यमा अंगुली में पहनें।

* सांप को दूध पिलाएं। 

* लोहे का छल्ला जिसका मुंह खुला हो मध्यमा अंगुली में पहनें।

* नित्य प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ पर काले तिल व कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए।

* यदि पीपल वृक्ष के नीचे शिवलिंग हो तो अति उत्तम होता है।

* सुंदरकांड का पाठ सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।

* संध्या के समय जातक अपने घर में गूगल की धूप देवें।

* चींटियों को गोरज मुहूर्त में तिल डालना।

चाणक्य नी ति


                 चाणक्य नी ति                   



आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपविद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इ तिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए।

इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया।

वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं। चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ अंश -

1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

7. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।

8. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।

9. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।

10. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।

11. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।

12. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।

13. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें अपने अधिकाधिक समय का वे‍दादि शास्त्रों के अध्ययन में तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।

14. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।

15. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

17. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

18. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

19. चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।

चाणक्य नी ति


                 चाणक्य नी ति                   



आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपविद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इ तिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए।

इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया।

वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं। चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ अंश -

1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

7. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।

8. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।

9. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।

10. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।

11. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।

12. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।

13. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें अपने अधिकाधिक समय का वे‍दादि शास्त्रों के अध्ययन में तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।

14. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।

15. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

17. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

18. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

19. चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।