Monday, 24 March 2014

sankat pareshaniyo se mukti ke liye {saral upay }

 संकट परेशानियों से मुक्ति  के लिये {सरल उपाय }
sankat pareshaniyo se mukti ke liye {saral upay }

हनुमानजी की कृपा से होना चाहते हैं जल्दी मालामाल तो करें ये काम
परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए ये हैं रामायण कि  चौपाइयां---->जो आपको हर संकट परेशानियों से मुक्त करेगी । 
यदि आप राम दरवार कि पूजन एवं हनुमान जी का ध्यान कर रोज इन चौपाइयों का {कोई एक } तुलसी कि माला से जप करे तो  आपको हर संकट परेशानियों से मुक्त करेगी ।
1. राजिव नयन धरैधनु सायक।
भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।।
2. जौं प्रभु दीनदयाल कहावा।
आरतिहरन बेद जसु गावा।।
जपहि नामु जन आरत भारी।
मिंटहि कुसंकट होहि सुखारी।।
दीनदयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी।।
3. सकल विघ्न व्यापहि नहिं तेही।
राम सुकृपा बिलोकहिं जेही।।
असमय होने वाली मृत्यु के भय को टालने के लिए चौपाई...
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित प्रान केहि बात।।

chanakya niti kise sunder stri se dur rahana chahiya


चाणक्य नीति:   कि से   सुंदर स्त्री से दूर रहना चाहिए


                                chanakya  niti    ----------->                                                                                                                                                                                            kise  sunder stri  se dur rahana chahiya                                    


चाणक्य नीति: पुरुष कमजोर या बूढ़ा हो तो उसे सुंदर स्त्री से दूर रहना चाहिए

चाणक्य कहते हैं कि...
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
इस श्लोक में आचार्य कहते हैं कि किसी वृद्ध पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है।अनभ्यासे विषं शास्त्रम्
आचार्य इस श्लोक में कहते हैं कि अनभ्यासे विषं शास्त्रम् यानी किसी भी व्यक्ति के लिए अभ्यास के बिना शास्त्रों का ज्ञान विष के समान है। शास्त्रों के ज्ञान का निरंतर अभ्यास किया जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बिना अभ्यास किए स्वयं को शास्त्रों का ज्ञाता बताता है तो भविष्य में उसे पूरे समाज के सामने अपमान का सामना करना पड़ सकता है। ज्ञानी व्यक्ति के अपमान किसी विष के समान ही है। इसीलिए कहा जाता है कि अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।अजीर्णे भोजनं विषम्
चाणक्य ने बताया है कि अजीर्णे भोजनं विषम् यानी यदि व्यक्ति का पेट खराब हो तो उस अवस्था में भोजन विष के समान होता है। पेट स्वस्थ हो, तब तो स्वादिष्ट भोजन देखकर मन तुरंत ही ललचा जाता है, लेकिन पेट खराब होने की स्थिति में छप्पन भोग भी विष की तरह प्रतीत होते हैं। ऐसी स्थिति में उचित उपचार किए बिना स्वादिष्ट भोजन से भी दूर रहना ही श्रेष्ठ रहता है।दरिद्रस्य विषं गोष्ठी
इस श्लोक में चाणक्य ने आगे बताया है कि दरिद्रस्य विषं गोष्ठी यानी किसी गरीब व्यक्ति के कोई सभा या समारोह विष के समान होता है। किसी भी प्रकार की सभा हो, आमतौर वहां सभी लोग अच्छे वस्त्र धारण किए रहते हैं। अच्छे और धनी लोगों के बीच यदि कोई गरीब व्यक्ति चले जाएगा तो उसे अपमान का अहसास होता है। इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि किसी स्वाभिमानी गरीब व्यक्ति के लिए सभा में जाना ही विषपान करने जैसा है।वृद्धस्य तरुणी विषम्
इस श्लोक के अंत में चाणक्य कहते हैं कि वृद्धस्य तरुणी विषम् यानी किसी वृद्ध पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है। यदि कोई वृद्ध या शारीरिक रूप से कमजोर पुरुष किसी सुंदर और जवान स्त्री से विवाह करता है तो वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाएगा। अधिकांश परिस्थितियों में वैवाहिक जीवन तभी अच्छा रह सकता है, जब पति-पत्नी, दोनों एक-दूसरे को शारीरिक रूप से भी संतुष्ट करते हैं।
यदि कोई वृद्ध पुरुष नवयौवना को संतुष्ट नहीं कर पाता है तो उसकी पत्नी पथ भ्रष्ट हो सकती है। पत्नी के पथ भ्रष्ट होने पर पति को समाज में अपमान का सामना करना पड़ता है। ऐसी अवस्था में किसी भी वृद्ध और कमजोर पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है।

story jivan ki rah

विश्व में श्रेष्ठ और महान{जीवन की राह  एक कहानी}



एक बार मगध के सम्राट बिम्बिसार संत सत्यकेतु के आश्रम में पहुंचे और दण्डवत होकर निवेदन किया कि भगवन इस विश्व में श्रेष्ठ और महान व्यक्ति कौन है?
सत्यकेतु ने सामने खेत में काम कर रही एक अधिक उम्र की वृद्धा की ओर संकेत करते हुए कहा- 'उधर देखिए, उस वृद्धा के शरीर में शक्ति नहीं है, लेकिन कुदाली चला रही है। जानते हो क्यों?
तब सम्राट ने पूछा- क्यों? सत्यकेतु ने समझाया 100 वर्ष की अशक्त वृद्धा कुंआ अपने लिए नहीं खोद रही है। आप अपने लिए जीते हैं। मैं दूसरों के लिए जीता हूं। लेकिन यह वृद्धा मानव जाति के लिए जीना चाहती है।
कुंआ खोदकर यह आते-जाते राहगीरों को पानी पिलाएगी। इसमें शक्ति नहीं है और ना ही इसे कुएं की आवश्यकता है। फिर भी लोक कल्याण की भावना इसमें कितनी है आैर यह भविष्य की सोच रखने वाली है। इसलिए कहता हूं कि वह विश्व की महानतम प्राणी है।

Saturday, 15 March 2014

holi pujan vidhi




होली की पूजन  करने    से     होती है मनोकामना पूरी





होली कल: जानिए पूजन की सरल विधि व शुभ मुहूर्त
हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन शाम को होली का पूजन किया जाता है और रात को होलिका दहन होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार होली का पूजन विधि-विधान से करने पर अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है व घर में सुख-शांति के साथ धन-धान्य की भी कमी नहीं होती। होली का पूजन करने के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है जो इस प्रकार है-
 
आवश्यक सामग्री- रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (भरभोलिए) आदि।
 
 होली की पूजनविधि इस प्रकार है-
एक थाली में पूजन की सारी सामग्री लें और साथ में एक पानी से भरा लोटा भी लें। इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखें मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे प्लवंग नाम संवत्सरे संवत् 2070 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि रविवासरे ----------गौत्र(अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना----------(अपने नाम का उच्चारण करें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।
 
गणेश-अंबिका पूजन
सर्वप्रथम हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें-
गजाननं भूतगणादिसेवितं 
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं 
नमामि विघ्नेश्वरपादपमजम्।।
ऊँ गं गणपतये नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

अब भगवान गणपति को एक पुष्प पर रोली एवं अक्षत लगाकर समर्पित कर दें।
ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।।
मां अंबिका का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल एवं फूल चढ़ाएं।
ऊँ नृसिंहाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।
ऊँ प्रह्लादाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

प्रह्लाद का स्मरण करते हुए नमस्कार करें और पंचोपचार हेतु गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।
अब नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए होली के सामने दोनो हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाएं की पूर्ति के लिए निवेदन करें-
असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:।।

अब गंध, चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले(भरभोलिए) होली के डांडे के समीप छोड़ें। कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें।
 इसलिए चढ़ाते हैं होली पर पूजन सामग्री
 
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन शाम के समय हिंदू महिलाएं होली का पूजन करती हैं तथा विभिन्न पूजन सामग्री होली को अर्पित करती हैं, जैसे- उंबी, गोबर से बने बड़बोलिए, नारियल व नाड़ा आदि। यह परंपरा सदियों पुरानी है। परंपरागत रूप से होली पर चढ़ाई जाने वाली सामग्री के पीछे भी कुछ भाव छिपे हैं, जो इस प्रकार हैं- 
 
उंबी - यह नए धान्य का प्रतीक है। इस समय गेहूं की फसल कटती है। ईश्वर को धन्यवाद देने के उद्देश्य से होली में उंबी समर्पित की जाती है। इसलिए अग्नि को भोग लगाते हैं और प्रसाद के रूप में अन्न उपयोग में लेते हैं। 
 
गोबर के बड़बोलिया की माला- अग्नि और इंद्र वसंत की पूर्णिमा के देवता माने गए हैं। ये अग्नि को गहने पहनाने के प्रतीक रूप में चढ़ाए जाते हैं। इन्हें १० दिन पहले बालिकाएं बनाती हैं। 

नारियल व नाड़ा- नारियल को धर्म ग्रंथों में श्रीफल माना गया है। फल के रूप में इसका अर्पण करते हैं। इसे चढ़ाकर वापस लाते हैं और प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। 
वहीं नाड़े को वस्त्र का प्रतीक माना गया है। होलिका को श्रंगारित करने का भाव इसमें निहित है।
 
ये हैं होली पूजन के शुभ मुहूर्त
 
शाम 06:44 से रात 09:09 तक (गोधूलि बेला)
शाम 06:45  से रात 08:15 तक (शुभ) 
रात 08:15 से 9:46 तक (अमृत)

Monday, 10 March 2014

सूर्य उपासना की सरल विधि जो दे धन ,यश, सम्मान व ख्याति

सूर्य उपासना की सरल विधि जो  दे  धन ,यश, सम्मान व ख्याति



भविष्यपुराण के मुताबिक हर रोज, खासकर सूर्य भक्ति के विशेष दिन रविवार या सप्तमी तिथि पर श्रद्धा व आस्था से सूर्य पूजा के शुभ प्रभाव से सूर्य भक्त कई शक्तियों व गुणों का स्वामी बन जाता है। इससे सांसारिक जीवन में बेजोड़ सफलता व प्रतिष्ठा मिलती है। जानिए सूर्य पूजा से कैसी-कैसी शक्तियां प्राप्त होती हैं -
 सूर्य की पहली किरण दिन की शुरुआत में ही सफलता की प्रेरणा देती है, इसलिए धार्मिक दृष्टि से सूर्य उपासना भी निरोगी जीवन के साथ यश, सम्मान व ख्याति देने वाली मानी गई है।
 
यही वजह है कि रविवार के अलावा हर सुबह ही सूर्य उपासना के लिए शास्त्रों में उगते सूरज के सामने विशेष मंत्र का स्मरण मात्र भी बेजोड़ सफलता के साथ पद व प्रतिष्ठा देने वाला माना गया है-
 
- सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक जल पात्र यथासंभव तांबे के कलश में पवित्र जल लें। जल में अष्टगंध, लाल फूल व अक्षत डालकर "ॐ सूर्याय नम:" इस सरल मंत्र से उदय होते सूर्य को अर्घ्य दें
 रविवार, सप्तमी या हर माह की संक्राति पर स्नान के बाद सूर्यदेव की प्रतिमा की गंध, फूल, नैवैद्य लगाकर धूप व दीप से पंचोपचार पूजा करें।
 बाद में गाय माता को गुड़ और रोटी खिलावे ऐसा करने  अशुभ सूर्य शुभ फल देने लगता है  अति सरल प्रयोग है   ज्योतिषशास्त्र    में सूर्य   उपासना  सफल  एवम  निरोगी जीवन के साथ यश, सम्मान व ख्याति देने वाली मानी गई है।

Thursday, 6 March 2014

व्यापार भविष्य मास फल6-3-2014



व्यापार भविष्य मास फल6-3-2014

                                                                                                                                ता.12 को सोना -चाँदी आदि
  

का  भाव सम|ता.14 को गेहू बिनोला कपास के भाव गिर जाते है |25 

को    रुई में तेजी सोना कपास में सामन्य तेजी|                                                       




                                                देनिक तेजी मंदी



 के लिये सम्पर्क करे |मो. +917697961597

Wednesday, 5 March 2014

chanakya niti

                              आचार्य चाणक्य 

                                                     जब किसी पुरुष के साथ हों ये तीन बातें तो समझ लें उसकी किस्मत है खराब







आचार्य चाणक्य ने पुरुषों के लिए तीन ऐसी स्थितियां बताई हैं, जब वाकई में यही आभास होता है कि व्यक्ति की किस्मत खराब है।
आचार्य कहते हैं कि...
वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्ते गतं धनम्।
भोजनं च पराधीनं त्रय: पुंसां विडम्बना:।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि किसी पुरुष की पत्नी जवानी में मर जाए तो वह दूसरा विवाह कर सकता है, लेकिन बुढ़ापे में पत्नी का मरना बड़े दुर्भाग्य की बात है।
किसी भी व्यक्ति के लिए बुढ़ापे में पत्नी का साथ सबसे ज्यादा जरूरी होता है। यदि बुढ़ापे में पत्नी मरती है तो फिर से विवाह हो पाना मुश्किल होता है। ऐसे में पत्नी के बिना वृद्ध पुरुष ठीक से जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। इसी वजह से बुढ़ापे में पत्नी का मरना, किसी भी पुरुष के लिए दुर्भाग्य की बात होती है। यह नीति स्त्रियों पर भी ठीक इसी तरह लागू होती है। जीवन साथी के बिना वृद्धावस्था गुजारने बहुत मुश्किल होता है
आचार्य चाणक्य ने दूसरी बात बताई है कि यदि कोई पुरुष किसी अन्य व्यक्ति पर आश्रित होता है, किसी दूसरे व्यक्ति का दिया हुआ खाना खाता है, पराए लोगों के अधीन रहता है तो ऐसे पुरुष का जीवन नर्क के समान है। पुरुष को हमेशा कर्मशील रहना चाहिए।
जो पुरुष दूसरों पर आश्रित रहते हैं, वे कभी भी अपनी आजादी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उन्हें हर काम के लिए अपने अन्नदाता और पालक से सहयोग लेना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों से बचना ही पुरुष के लिए श्रेष्ठ रहता है, अन्यथा यही आभास होगा कि व्यक्ति की किस्मत खराब है                                                                                    :
तीसरी बातयदि किसी व्यक्ति का सारा धन उसके दुश्मनों के हाथ में चले जाए तो वह बर्बाद हो जाता है। स्वयं की मेहनत से कमाया हुआ धन, दुश्मनों के हाथ लगने से व्यक्ति को दोहरे संकट का सामना करना पड़ सकता है। व्यक्ति के दुश्मन उसी के धन का उपयोग उसके विरुद्ध करेंगे। ऐसी परिस्थिति में वह दुश्मनों से पराजित होगा और धन के अभाव में खुद की जीविका भी ठीक से नहीं चला पाएगा