Saturday, 15 March 2014

holi pujan vidhi




होली की पूजन  करने    से     होती है मनोकामना पूरी





होली कल: जानिए पूजन की सरल विधि व शुभ मुहूर्त
हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन शाम को होली का पूजन किया जाता है और रात को होलिका दहन होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार होली का पूजन विधि-विधान से करने पर अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है व घर में सुख-शांति के साथ धन-धान्य की भी कमी नहीं होती। होली का पूजन करने के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है जो इस प्रकार है-
 
आवश्यक सामग्री- रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (भरभोलिए) आदि।
 
 होली की पूजनविधि इस प्रकार है-
एक थाली में पूजन की सारी सामग्री लें और साथ में एक पानी से भरा लोटा भी लें। इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखें मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे प्लवंग नाम संवत्सरे संवत् 2070 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि रविवासरे ----------गौत्र(अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना----------(अपने नाम का उच्चारण करें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।
 
गणेश-अंबिका पूजन
सर्वप्रथम हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें-
गजाननं भूतगणादिसेवितं 
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं 
नमामि विघ्नेश्वरपादपमजम्।।
ऊँ गं गणपतये नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

अब भगवान गणपति को एक पुष्प पर रोली एवं अक्षत लगाकर समर्पित कर दें।
ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।।
मां अंबिका का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल एवं फूल चढ़ाएं।
ऊँ नृसिंहाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।
ऊँ प्रह्लादाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

प्रह्लाद का स्मरण करते हुए नमस्कार करें और पंचोपचार हेतु गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।
अब नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए होली के सामने दोनो हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाएं की पूर्ति के लिए निवेदन करें-
असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:।।

अब गंध, चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले(भरभोलिए) होली के डांडे के समीप छोड़ें। कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें।
 इसलिए चढ़ाते हैं होली पर पूजन सामग्री
 
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन शाम के समय हिंदू महिलाएं होली का पूजन करती हैं तथा विभिन्न पूजन सामग्री होली को अर्पित करती हैं, जैसे- उंबी, गोबर से बने बड़बोलिए, नारियल व नाड़ा आदि। यह परंपरा सदियों पुरानी है। परंपरागत रूप से होली पर चढ़ाई जाने वाली सामग्री के पीछे भी कुछ भाव छिपे हैं, जो इस प्रकार हैं- 
 
उंबी - यह नए धान्य का प्रतीक है। इस समय गेहूं की फसल कटती है। ईश्वर को धन्यवाद देने के उद्देश्य से होली में उंबी समर्पित की जाती है। इसलिए अग्नि को भोग लगाते हैं और प्रसाद के रूप में अन्न उपयोग में लेते हैं। 
 
गोबर के बड़बोलिया की माला- अग्नि और इंद्र वसंत की पूर्णिमा के देवता माने गए हैं। ये अग्नि को गहने पहनाने के प्रतीक रूप में चढ़ाए जाते हैं। इन्हें १० दिन पहले बालिकाएं बनाती हैं। 

नारियल व नाड़ा- नारियल को धर्म ग्रंथों में श्रीफल माना गया है। फल के रूप में इसका अर्पण करते हैं। इसे चढ़ाकर वापस लाते हैं और प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। 
वहीं नाड़े को वस्त्र का प्रतीक माना गया है। होलिका को श्रंगारित करने का भाव इसमें निहित है।
 
ये हैं होली पूजन के शुभ मुहूर्त
 
शाम 06:44 से रात 09:09 तक (गोधूलि बेला)
शाम 06:45  से रात 08:15 तक (शुभ) 
रात 08:15 से 9:46 तक (अमृत)

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