Sunday, 25 January 2015

एक कहानी --सच्चे प्रेम की


एक कहानी --सच्चे प्रेम की 

महाभारत में राजा नल और दयमंती की कहानी कुछ इस तरह है। नल निषध राज्य का राजा था। वहीं विदर्भ राज भीमक की बेटी थी दयमंती। जो लोग इन दोनों राज्यों की यात्रा करते वे नल के सामने दयमंती के रूप और गुणों की प्रशंसा करते और दयमंती के सामने राजा नल की वीरता और सुंदरता का वर्णन करते। दोनों ही एक-दूसरे को बिना देखे, बिना मिले ही प्रेम करने लगे। एक दिन राजा नल को दयमंती का पत्र मिला। दयमंती ने उन्हें अपने स्वयंवर में आने का निमंत्रण दिया। यह भी संदेश दिया कि वो नल को ही वरेंगी।
सारे देवता भी दयमंती के रूप सौंदर्य से प्रभावित थे। जब नल विदर्भ राज्य के लिए जा रहे थे तो सारे देवताओं ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। देवताओं ने नल को तरह-तरह के प्रलोभन दिए और स्वयंवर में ना जाने का अनुरोध किया ताकि वे दयमंती से विवाह कर सकें। नल नहीं माने। सारे देवताओं ने एक उपाय किया, सभी नल का रूप बनाकर विदर्भ पहुंच गए। स्वयंवर में नल जैसे कई चेहरे दिखने लगे। दयमंती ने भी हैरान थी। असली नल को कैसे पहचाने। वो वरमाला लेकर आगे बढ़ी, उसने सिर्फ स्वयंवर में आए सभी नलों की आंखों में झांकना शुरू किया।
 
असली नल की आंखों में अपने लिए प्रेम के भाव पहचान लिए। देवताओं ने नल का रूप तो बना लिया था लेकिन दयमंती के लिए जैसा प्रेम नल की आंखों में था वैसा भाव किसी के पास नहीं था। दयमंती ने असली नल को वरमाला पहना दी। सारे देवताओं ने भी उनके इस प्रेम की प्रशंसा की।
 

Thursday, 22 January 2015

ghr se bahar niklte samay krna chiye ye 4 kam

घर से बाहर निकलते समय करना चाहिए ये 4 काम

ghr se bahar niklte samay krna chiye ye 4 kam 

घर के मंदिर में विराजित भगवान का दर्शन करें

घर के मंदिर में विराजित देवी-देवताओं के दर्शन प्रतिदिन करना चाहिए। घर से निकलने से पहले एक बार इनके दर्शन करके सफलता की प्रार्थना करनी चाहिए। घर के देवी-देवता की कृपा से नि:संदेह व्यक्ति का दिन शुभ हो जाता है। भगवान की कृपा बनी रहती है |

माता-पिता एवं बुजुर्गों का आशीर्वाद लें

प्रतिदिन घर से निकलने से पहले माता-पिता का आशीर्वाद लेना चाहिए। जिन लोगों से उनके माता-पिता प्रसन्न रहते हैं, उनसे सभी देवी-देवता भी प्रसन्न रहते हैं।  अत: घर से निकलने से पूर्व माता-पिता और बुजुर्गों के पैर छूएं और आशीर्वाद लेना चाहिए।

रोज सुबह दही खाकर घर से निकलें

 घर से निकलने से पहले दही खाने से नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं और कार्य के प्रति सकारात्मक सोच बनती है।

 पहले सीधा पैर घर से बाहर रखें

किसी भी कार्य का प्रारंभ सीधे हाथ और सीधे पैर को आगे बढ़ाकर किया जाए तो सफलता मिलने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं। 

gupt navratri kab aati hai janye

गुप्त नवरात्रि--साल में कब-कब आती है  जानिए


gupt navratri kab aati hai janye 

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। 

Monday, 19 January 2015

सुंदरकांड: व्यक्ति निर्भय हो और उसका मन भीतर से शांत हो जाने कैसे --


सुंदरकांड: व्यक्ति निर्भय हो और उसका मन भीतर से शांत हो जाने कैसे --


Image result for हनुमानसुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का पांचवां अध्याय है। यह श्रीरामचरितमानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला भाग हैं,  सफलता के सारे सूत्र सुंदरकांड में समाए हुए हैं। सुंदरकांड में हनुमानजी ने बताया है कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए, सफलता के साथ क्या किया जाए और सफलता के बाद क्या किया जाए?  जिससे मनुष्य जीवन की हर समस्या का सामना कर सकता है।व्यक्ति निर्भय हो और उसका मन भीतर से शांत हो तो ऐसे लोग परमात्मा को सरलता से पा सकते हैं। परमात्मा को पाने का यह अर्थ न समझा जाए कि वे व्यक्ति के रूप में साक्षात मिल जाएंगे। परमात्मा को पाने का मामला अनुभूति से जुड़ा है। दुनिया में कई तरह के भय हैं। 


धन, प्रतिष्ठा, रिश्ते, सम्मान और अपना शरीर, इन सबके नुकसान का भय मनुष्य को सताता है। आदमी इन्हीं के भय में उलझ जाता है और भूल जाता है कि सबसे बड़ा भय है मृत्यु का भय। जिसने मृत्यु के भय को ठीक से समझ लिया, वह इन भय के टापुओं से मुक्ति पा लेगा। सुंदरकांड में रावण के दरबार में रावण हनुमानजी को मारने का फैसला ले चुका था।

जब राणण को इस काम के लिए रोका गया तो उसने पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया। सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।। यह सुनते ही रावण हंसकर बोला - अच्छा, तो बंदर को अंग-भंग करके भेज दिया जाए। जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउं मैं तिन्ह कै प्रभुताई। 
जिनकी इसने बहुत बढ़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता तो देखूं। यहां रावण और हनुमानजी भय और निर्भयता की स्थिति में खड़े हुए हैं। रावण बार-बार इसीलिए हंसता है, क्योंकि वह अपने भय को छुपाना चाहता है।

उसने कहा - मैं इस वानर के मालिक की ताकत देखना चाहता हूं। श्रीराम की सामर्थ्य देखने के पीछे उसे अपनी मृत्यु दिख रही थी, जबकि हनुमानजी मृत्यु के भय से मुक्त थे।

रावण का चित्त अशांत था, जबकि हनुमानजी शांतचित्त से बोल भी रहे थे और आगे की योजना भी बना रहे थे। हमें जीवन में जब भी कोई विशेष कृत्य करना हो, निर्भयता और शांतचित्तता की स्थिति बनाए रखनी चाहिए।

Friday, 16 January 2015

स्वस्थ रहने के अति सरल 14 नियम

स्वस्थ रहने के अति  सरल 14  नियम 


svasth rahane ke ati saral 14 niyma


1 . सुबह जल्दी उठो  रोज टहलो। संभव हो तो शाम को भी थोड़ाटहलो। 
2 . टहलते समय नाक से लम्बी- लम्बी सांसें लो  जो पेट तक जाये |
3 .  दौड़ना, साइकिल चलाना, घुड़सवारी, तैरना या कोई भी खेलकूद, व्यायाम के अच्छे उपाय हैं। 
4 . प्रातः टहलने के बाद भूख अच्छी लगती है। इस समय पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें। अंकुरित अन्न, भीगी मूंगफलीआंवला या इससे बना कोई पदार्थ, संतरा या मौसम्मी का रस अच्छे नाश्ता का अंग होते हैं। 
5 . भोजन सादा करो एवं उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करो, शांत, प्रसन्न और निश्चिन्तता पूर्वक करो और उसे अच्छी तरह चबाचबा कर खाओ। खाते समय न बात करो और न हंसो। एकाग्र चित्त होकर भोजन करना चाहिए। 
6 . भूख से कम खाओ अथवा आधा पेट खाओ, चौथाई पानी के लिए एवं चौथाई पेट हवा के लिए खाली छोड़ो। 
7 . भोजन में रोज अंकुरित अन्न अवश्य शामिल करो। अंकुरित अन्न में पौष्टिकता एवं खनिज लवण गुणात्मक मात्रा में बढ़ जाते हैं।
8 . मौसम की ताजा हरी सब्जी और ताजे फल खूब खाओ। 
9 . आटा चोकर समेत खाओ, सम्भव हो तो हाथ का पिसा हुआ खाओ। जौ, गेहूं, चना, सोयाबीन कामिस्सी रोटी का आटा सुपाच्य एवं पौष्टिक होता है। 
10  भोजन के साथ पानी कम से कम पीओ। दोपहर के भोजन के घंटे भर बाद पानी पियें ।

11 . प्रातः उठते ही खूब पानी पीओ। दोपहर भोजन के थोड़ी देर बाद छाछ और रात को सोने के पहले  दूध अमृत समान है। 
12 . दिन में कम से कम 6  लीटर पानी अवश्य पीओ। 
13 . धूम्रपान, मादक पेय- पदार्थ (जरदागुटखासॉफ्ट ड्रिंक जैसे कोकाकोला, पेप्सी इत्यादि एवं शराब आदि )) सर्वथा छोड़ दो। 
14 . चाय- कॉफी आदि के स्थान पर सादा ठंडा या गुनगुना पानी, नींबू पानी, छाछ, गाजर, पालक चुकन्दर, लौकी, टमाटर इत्यादि सब्जियों का एव मौसम्मी या संतरा, पपीता इत्यादि फलों के रस का उपयोग लाभकारी होता है। 

Thursday, 1 January 2015

janvary 2015 ke tij - tyohar va shubh muhurth

जनवरी  2015 के तीज-त्योहार व शुभ मुहूर्त 

janvary 2015 ke tij - tyohar va shubh muhurth 
 
8 जनवरी        गुरुवार          संकटा गणेश चतुर्थी

13 जनवरी       मंगलवार           लोहड़ी

14 जनवरी       बुधवार            मकर संक्रांति, पोंगल

15 जनवरी        गुरुवार         मकर संक्रांति स्नान

20 जनवरी       मंगलवार        मौनी अमावस्या

23 जनवरी        शुक्रवार          तिलकुंद चतुर्थी

24 जनवरी      शनिवार           बसंत पंचमी, सरस्वती जयंती

26 जनवरी        सोमवार        नर्मदा जयंती, अचला रथ सप्तमी गणतंत्र
                                           दिवस       


शुभ मुहूर्त

विवाह- 15, 16, 17, 18, 20, 24, 25, 26, 29, 30, 31

उपनयन- 23, 30

मुंडन एवं कर्णवेध- 23, 26, 30

गृह प्रवेश- 16, 22, 26, 30

गृहारंभ- 16, 22, 26, 30
 

swami vivekanand --ke saphalta ke sutr jo de nai disha

स्वामी विवेकानंद: के सफलता के सूत्र जो दे नई दिशा 

swami vivekanand --ke saphalta ke  sutr jo de nai disha

खुद पर विश्वास करो- स्वामी विवेकानंद के मुताबिक आज के दौर में नास्तिक वह है, जिसे खुद पर भरोसा नहीं, न कि केवल वो जो भगवान को न मानें। यानी आत्मविश्वास सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है। आत्मविश्वास का भी सही मतलब यह है कि खुद में मौजूद भगवान के अलावा मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से पैदा मैं पर भी भरोसा रखें तो बेहतर है। 
 
ताकतवर बनो- स्वामी विवेकानंद ने शरीर की ताकत को मन के साथ आध्यात्मिक तौर पर मजबूत बनाने व आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी माना। इसके लिए उन्होंने यहां तक कहा कि कृष्ण या गीता की ज्ञान की शक्ति को समझने के लिए पहले शरीर को मजबूत बनाएं। इसके लिए गीता पढ़ने से पहले फुटबॉल खेलकर ताकतवर बनने की नसीहत दी ताकि युवा फौलादी बनें और मजबूत संकल्प के साथ धर्म समझ सकें। साथ ही, अधर्म से मुकाबला कर सकें।

खुद को कमजोर या पापी न मानें- आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी है कि कभी भी ऐसी सोच खुद के लिए न बनाएं कि मैं परेशान, कमजोर, पापी, दु:खी, शक्तिहीन हूं। कुछ भी करने की ताकत नहीं रखता, क्योंकि वेदान्त भूल को मानता है, पाप को नहीं। इसलिए ऐसी बातें सोचना भी भूल ही है। इसलिए खुद को शेर मानकर जिएं न कि भेड़
संयम- इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है। इंसान बनने के लिए सबसे पहला कदम है- खुद पर काबू रखना यानी संयम। ऐसा करने वाले पर किसी भी बाहरी चीज या व्यक्तियों का असर नहीं होता। इससे ही धीरज, सेवा, शुद्धता, शांति, आज्ञा मानने, इंद्रिय संयम व मेहनत के भाव पनपते हैं।इन बातों से तनाव कम, प्रेम ज्यादा और काम बेहतर होगा। सूत्र यही है कि पहले खुद मनुष्य बनों फिर दूसरों को मनुष्य बनाने में मदद करो। शासन करने के बजाए पहले खुद अनुशासित रहने की सोच रखें। लड़कियां भी सीता-सावित्री की तरह पवित्र जीवन जिएं। 
उम्मीद न छोड़ें- निराश न हों। हमेशा खुश रहें। मुस्कराते रहना देव उपासना की तुलना में भगवान के ज्यादा करीब ले जाता है।
 
निडरता- स्वामी विवेकानंद के मुताबिक हर इंसान की एक बार ही मृत्यु होती है। इसलिए मेरा कोई बड़ा काम करने के लिए जन्म हुआ है। यह सोचकर बिना किसी से डरे, बिना किसी कायरता के चाहे वज्रपात भी हो तो अपने काम में साहस के साथ लगे रहें। अपने पैरों पर खड़े हों- किस्मत के भरोसे न बैठे, बल्कि पुरुषार्थ यानी मेहनत के दम पर खुद की किस्मत बनाएं। खड़े हो जाओ, साहसी बनो और शक्तिमान बनो।

इस सूत्र वाक्य के जरिए यही रास्ता बताया कि खुद जिम्मेदारी उठाओ। सारी शक्ति खुद के पास है, इसलिए खुद ही अपने सबसे बड़े मददगार हो। दरअसल, जो आज है वह पिछले जन्म में किए कामों को नतीजा है। इसलिए बेहतर कल के लिए आज के काम नियत करें। इस तरह अपना भविष्य बनाना आपके हाथ में हैं। 

स्वार्थी नहीं सेवक बनें- प्रेम जिंदगी व स्वार्थ मृत्यु है। इसलिए जिनको सेवा करने की चाहत हैं वे सारे स्वार्थ, खुशी, गम, नाम व यश की चाहतों की पोटली बनाकर समुद्र में फेंक दें। इस तरह सेवा के लिए त्याग व त्याग के लिए स्वार्थ छोड़ना जरूरी है। मतलब निस्वार्थ होने से ही धर्म की परख होती है। 
 आत्मशक्ति को पहचाने और जगाएं- नाकामियों से बेचैन होने या थोड़ी सी कामयाबी से संतुष्ट होकर बैठने के बजाए लगातार आगे बढें। स्वामीजी का सूत्र वाक्य उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक नहीं रुको, यही सबक देता है, जो आत्मशक्ति को जगाने से मुमकिन है। आत्मशक्ति को जगाने के लिए बाहरी और भीतरी चेतना को कर्म, उपासना, संयम व ज्ञान में कोई भी एक या सभी को जरिया बना वश में करें। इसे ही जिंदगी का अहम लक्ष्य मानकर आत्मानो मोक्षार्यं जगद्धिताय च" की भावना के साथ खुद के साथ दूसरों को भी जीवन की सार्थकता और मुक्ति की राह बताएं। 

chanakya niti --in kamo se sanket me phsa sakate hai aap bhi

chanakya niti --in kamo se sanket me phsa  sakate hai aap bhi 

   चाणक्य नीति: इन कामों से संकट में फंस सकते हैं आप भी


     शास्त्रों के अनुसार मृत्यु का समय उसी दिन निर्धारित हो जाता है, जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है। कुछ लोगों की मृत्यु अचानक ही हो जाती है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने कुछ काम ऐसे बताए हैं, जिनसे किसी व्यक्ति की मृत्यु जल्दी हो सकती है या अचानक हो सकती है।                                                                                                                            आत्पद्वेषाद् भवेन्मृत्यु: परद्वेषाद् धनक्षय:।
    राजद्वेषाद् भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषाद कुलक्षय:।।
     
    इस श्लोक में आचार्य ने बताया है कि व्यक्ति को हमेशा ऐसे कामों से बचना चाहिए, जिनसे मृत्यु का संकट खड़ा हो सकता है।
     
    चाणक्य के अनुसार हमें कभी भी किसी राजा या शासन-प्रशासन से बैर नहीं करना चाहिए। जो लोग शासन से विरोध करते हैं, उनके प्राण संकट में आ सकते हैं। जिस पल किसी राजा का विरोध किया जाता है, उसी पल व्यक्ति के जीवन पर संकट आ जाता है। आज के समय में किसी बड़े अधिकारी या बड़े व्यक्ति से दुश्मनी होना निश्चित ही परेशानियों का कारण बन सकता है। जब तक हम मजबूत स्थिति में न हो, इन लोगों से बैर नहीं लेना चाहिए। सही समय की प्रतीक्षा करना चाहिए।
    यदि कोई व्यक्ति खुद की आत्मा से द्वेष करता है, उसका अनादर करता है, स्वयं के शरीर का ध्यान नहीं रखता, खान-पान में असावधानी रखता है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु कभी भी हो सकती है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य स्वयं ही अपना सबसे बड़ा मित्र है और स्वयं ही अपना सबसे बड़ा शत्रु भी हो सकता है। अत: व्यक्ति यदि स्वयं से शत्रुता करेगा तो उसका नाश होना निश्चित है।
    आचार्य कहते हैं कि किसी बलवान व्यक्ति से शत्रुता करने पर हमारे धन का नाश होता है और साथ ही जान का जोखिम बना रहता है। बलवान व्यक्ति अपने से कमजोर व्यक्ति को बहुत आसानी से और समय मिलते ही समाप्त कर सकता है।
     
    यहां दी गई चाणक्य नीति के अनुसार स्वयं की आत्मा से द्वेष करने पर व्यक्ति की मृत्यु जल्दी हो सकती है। बलवान व्यक्ति से शत्रुता और द्वेष करने पर धन का नाश होता है और जान का जोखिम उठाना पड़ सकता है। किसी राजा से द्वेष करने पर व्यक्ति का सर्वनाश हो जाता है। किसी ब्राह्मण या विद्वान व्यक्ति से द्वेष करने पर कुल का ही क्षय हो जाता है।
    - परोपकार मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार में टंगी एक तस्वीर में भला क्या अंतर है।
     
    - जो व्यक्ति जीवन में सफल हैं, हम उन्हें देखें। उनके जीवन में सब कुछ व्यवस्थित ही नजर आएगा। वहां हर चीज आईने की तरह स्पष्ट होती है।
     
    - विपत्तियां आने पर भी सत्य और विवेक का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। क्योंकि यदि ये दोनों साथ हैं तो विपत्तियां खुद ही खत्म हो जाएंगी।
     
    - यदि आपको एक पल का भी अवकाश  मिले, तो उसे सद्कर्म में लगाओ क्योंकि कालचक्र आप से भी अधिक क्रूर और उपद्रवी है।
     
    - इस जीवन को खोए हुए अवसरों की कहानी मत बनने दो। जहां अच्छा मौका दिखे,वहां तुरंत छलांग लगाओ। पीछे मुड़कर मत देखो।