एक कहानी --सच्चे प्रेम की
महाभारत में राजा नल और दयमंती की कहानी कुछ इस तरह है। नल निषध राज्य का राजा था। वहीं विदर्भ राज भीमक की बेटी थी दयमंती। जो लोग इन दोनों राज्यों की यात्रा करते वे नल के सामने दयमंती के रूप और गुणों की प्रशंसा करते और दयमंती के सामने राजा नल की वीरता और सुंदरता का वर्णन करते। दोनों ही एक-दूसरे को बिना देखे, बिना मिले ही प्रेम करने लगे। एक दिन राजा नल को दयमंती का पत्र मिला। दयमंती ने उन्हें अपने स्वयंवर में आने का निमंत्रण दिया। यह भी संदेश दिया कि वो नल को ही वरेंगी।
सारे देवता भी दयमंती के रूप सौंदर्य से प्रभावित थे। जब नल विदर्भ राज्य के लिए जा रहे थे तो सारे देवताओं ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। देवताओं ने नल को तरह-तरह के प्रलोभन दिए और स्वयंवर में ना जाने का अनुरोध किया ताकि वे दयमंती से विवाह कर सकें। नल नहीं माने। सारे देवताओं ने एक उपाय किया, सभी नल का रूप बनाकर विदर्भ पहुंच गए। स्वयंवर में नल जैसे कई चेहरे दिखने लगे। दयमंती ने भी हैरान थी। असली नल को कैसे पहचाने। वो वरमाला लेकर आगे बढ़ी, उसने सिर्फ स्वयंवर में आए सभी नलों की आंखों में झांकना शुरू किया।
असली नल की आंखों में अपने लिए प्रेम के भाव पहचान लिए। देवताओं ने नल का रूप तो बना लिया था लेकिन दयमंती के लिए जैसा प्रेम नल की आंखों में था वैसा भाव किसी के पास नहीं था। दयमंती ने असली नल को वरमाला पहना दी। सारे देवताओं ने भी उनके इस प्रेम की प्रशंसा की।
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