Sunday, 31 January 2016

vyapar vrdhi ke liye upay


vyapar vrdhi ke liye upay
व्यापार व्रधि के लिए उपाय 





Wednesday, 13 January 2016

मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व


मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व makar sankranti manane ka vishesh mhtva


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                                                                                सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है
सूर्य की उपासना- मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन बढऩे लगता है और रात की अवधि कम होती जाती है। चूंकि सूर्य ही ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है इसलिए हिंदू धर्म में मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व है।जरुर करें गंगा स्नान- ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम, प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।   एवं किसी भी पवित्र नदी या घर पर भी तिलएवं गंगा जल स्नान करने से पुण्य की प्राप्ती होती है |                                                                                                   तिल का महत्व- संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। इसलिए शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए मकर संक्रांति पर तिल का दान किया जाता है।                                                                                                         दान का महत्व- मकर संक्रांति के दिन ब्राह्मणों को अनाज, वस्त्र, ऊनी कपड़े, फल आदि दान करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन दान करने वाला व्यक्ति संपूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है।

Sunday, 10 January 2016

Friday, 8 January 2016

janvari 2016 ke parv aur tyohar

janvari 2016 ke parv aur  tyohar 
जनवरी 2016व्रत और त्यौहार 

जनवरी 2016 - पौष कृष्ण पक्ष 

7 जनवरी - प्रदोष व्रत पौष कृष्ण पक्ष द्वादशी (12)
8 जनवरी - मास शिवरात्रि व्रत पौष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (13)
9 जनवरी - पौष शनिवारी अमावस्या, अमावस तिथि क्षय पौष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (14)
जनवरी 2016 - पौष शुक्ल पक्ष 
10 जनवरी - पौष शुक्ल पक्ष प्रांरभ पौष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (1)
11 जनवरी - आरोग्य व्रत पौष शुक्ल पक्ष द्वितीया (2)
12 जनवरी - पंचक प्रारंभ 19.18 से पौष शुक्ल पक्ष तृतीया (3)
13 जनवरी - लोहडी़ पर्व पौष शुक्ल पक्ष चतुर्थी (4)
14 जनवरी - सूर्य मकर में 25.25, मकर (माघ) संक्रांति पुण्यकाल अगले दिन मध्यान्ह तक पौष शुक्ल पक्ष पंचमी (5)
16 जनवरी - भद्रा 17.56 से 28.57 तक पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी (7)
17 जनवरी - श्री दुर्गाष्टमी पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी (8)
19 जनवरी - भद्रा 23.32 से आरंभ होगी पौष शुक्ल पक्ष दशमी (10)
20 जनवरी - पुत्रदा एकादशी पौष शुक्ल पक्ष एकादशी (11)
21 जनवरी - सुजन्म द्वादशी, प्रदोष व्रत पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी (12)
23 जनवरी - पौष पूर्णिमा, शाकंभरी जयंती, श्री सत्यनारायण व्रत पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा (15)
जनवरी 2016 - माघ कृष्ण पक्ष
24 जनवरी - माघ कृष्ण पक्ष प्रारंभ, रवि पुष्य योग माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा (1)
26 जनवरी - गणतन्त्र दिवस माघ कृष्ण पक्ष द्वितीया (2)
27 जनवरी - श्री गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत, सौभाग्य सुन्दरी व्रत माघ कृष्ण पक्ष तृतीया (3)
30 जनवरी - भद्रा 17.05 से 30.25 तक माघ कृष्ण पक्ष षष्ठी (6)

Tuesday, 5 January 2016

bagla mukhi ki sadhna -shtru bhy se mukti hetu

बगलामुखी की साधना --- शत्रु भय से मुक्ति हेतु 

bagla mukhi ki sadhna -shtru bhy se mukti hetu


इनकी उपासना में हरिद्रा माला, पीत पुष्प एवं पीत वस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका स्थान आठवां है

बगला-मुखी-ध्यान----

मध्येसुधाब्धिमणिमण्डरत्नवेदी
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम!
पीताम्बराभरणमाल्यभूषितांगीं
देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम!!
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं
वामें शत्रून परिपीडयन्तीम!
गदाभिवातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढ यां द्विभुजा नमामि !!
सुधा-सागर के मणिमय मण्डल में रत्ननिर्मित वेदी के ऊपर जो सिंहासन है , बगला मुखी देवी उस पर विराजमान हैं! वे पीतावर्णा हैं तथा पीतवस्त्र, पीतवर्ण के आभूषण तथा पीतवर्ण की ही माला को धारण किये हुए हैं! उनके एक हाथ में मुंगर तथा दूसरे हाथ में शत्रु की जिह्वा है! वे अपने बायें हाथ में शत्रु की हिह्वा के अग्रभाग को धारण करके दायें हाथ के गदाघात से शत्रु को पीड़ित कर रही हैं! वे बगलामुखी देवी पीत वस्त्रों से विभूषित तथा दो भुजा वाली है!
बगलामुखी-स्तव--------
बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी!
स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव तथोच्चाटनकारिणी !!
भैरवी भीमनयनान महेशगृहिणी शुभा!
दशनामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठ्येद्यदि !
स भवेत् मन्त्र सिद्धश्च देवी पुत्र इव क्षितौ !
१ बगला, २ सिद्ध विद्या, ३ दुष्ट निग्रह कारिणी, ४ स्तंभिनी, ५-आकर्षिणी, ६--उच्चाटन, ७--भैरवी, ८-भीमनयना, ९ महेश गृहिणी तथा १० -=शुभादशनामात्मक देवी-स्तोत्र का जो मनुष्य पाठ करता है अथवा दूसरे से पाठ करवाता है, वह मन्त्र सिद्ध होकर देवी-पुत्र की भाँती पृथ्वी पर विचारण करता है!
बगलामुखी कवच-----
ॐ ह्रीं मे हृदयं पादौ श्री बगलामुखी!
ललाटे सततं पातु दुष्टग्रहनिवारिणी!!
"ॐ ह्रीं " यह बीज मेरे हृदय की रक्षा करो, बगलामुखी दोनों पावों की रखा करेन तथा दुष्ट ग्रह निवारिणी मेरे लातात की सदैव रखा करें!
रसानां पातु कौमारी भैरवी चक्षुधोर्म्मम !
कटौ पृष्ठे महेशानी कर्णों शंकरभामिनी!!
कौमारी, मेरी जीभ की, भैरवी नेत्रों की, महेशानी कमर तथा पीठ की एवं शंका-भामिनी मेरे कानों की रक्षा करें!
वर्ज्जतानि तु स्थानानि यानि च कवचेन हि!
तानि सर्व्वाणि मे देवी सततं पातु स्तम्भिनी!!
जिन स्थानों का कवच में वर्णन नहीं किया गया है, स्तम्भिनी देवी उन सब स्थानों की रक्षा करें!
अज्ञातं कवचं देवी यो भजेदबगलामुखीम!
शास्त्राघातमवाप्नोति सत्यं सत्यं ण संशय!!
इस कवच को जाने बिना जो मनुष्य बगलामुखी की उपासना करता है, उसकी शस्त्राघात से मृतु हो जाती है, इसमें संदेह नहीं है! यह सत्य है, सत्य है!
मन्त्र----
ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्व्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय जिह्वां कीले कीले बुद्धि नाशय ह्लीं स्वाहा!
इस मन्त्र के द्वारा "बगालामुखि" की पूजा तथा जप आदि करना चाहिये! बगला मुखी माता को "कमला" भी कहते हैं!