Saturday, 6 September 2014

pitr dosh karan aur nivran

पितृ दोष कारण और निवरण                                          pitr dosh karan aur nivran
नवम भाव पर  जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .
कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है  नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है।      सूर्य या  चन्द्र राहु के साथ हो पचममेश राहु के साथ हो तो पितृ दोष योग बनता है \ इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से परेशान  होता है।

               पितृ दोष के सरल उपाय 

1 --भागवत गीता का पाठ करे |
2 ---गया में श्राद्ध करवे\
    3     ---ग्यारस का व्रत करे 
      4------         पितृ सुक्ता का पाठ करे |

पितृदोष के निवारण के लिए श्राद्ध काल में पितृ सुक्त का पाठ संध्या समय में तेल का दीपक जलाकर करे तो पितृदोष की शांति होती है।
अर्चितानाम मूर्ताणां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्चक्षुषाम्।।
हिन्दी- जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यनत तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य दुष्टि सम्पन्न है, उन पितरो को मै सदा नमस्कार करता है।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
अर्थात जो इन्द्र आदि देवताओ, दक्ष, मारीच, सप्त ऋषियो तथा दुसरो के भी नेता है। कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता है।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रूसोस्तयथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान पितृनप्सुदधावपि।।
अर्थात जो मनु आदि राजार्षियों, मुनिश्वरो तथा सूर्य चंद्र के भी नायक है, उन समस्त पितरो को मैं जल और समुद्र मै भी नमस्कार करता है।
नक्षत्राणां ग्रहणां च वाच्व्यग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि5।।
अर्थात जो नक्षत्रों ,ग्रहो,वायु,अग्नि,आकाश और द्युलोक एवं पृथ्वीलोक के जो भी नेता है, उन पितरो को मै हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
देवर्षिणां जनितंृश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षच्चस्य सदादातृन नमस्येळहं कृतांजलिः।।
अर्थात जो देवर्षियो के जन्मदाता, समस्त लोको द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता है। उन पितरो को मै हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
अर्थात प्रजापति, कश्यप, सोम,वरूण तथा योगेश्वरो के रूप् में स्थित पितरो को सदा हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयंभूवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
अर्थात सातो लोको मे स्थित सात पितृगणो को नमस्कार है। मै योगदृश्टि संपन्न स्वयंभू ब्रह्मजी को प्रणाम करता है।
सोमाधारान् पितृगणानयोगमूर्ति धरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अर्थात चंद्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमूर्तिधारी पितृगणों को मै प्रणाम करता हूँ। साथ ही संपूर्ण जगत के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निरूपांस्तथैवान्याम् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
अर्थात अग्निस्वरूप् अन्य पितरो को भी प्रणाम करता हूँ क्याकि यह संपूर्ण जगत अग्नि और सोममय है।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैवतथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
अर्थात जो पितर तेज मे स्थित है जो ये चन्द्रमा, सूषर्् और अग्नि के रूप् मै दृष्टिगोचर होते है तथा जो जगतस्वरूप् और ब्रह्मस्वरूप् है।
तेभ्योळखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।
अर्थात उन संपूर्ण योगी पितरो को मै। एकाग्रचित होकर प्रणाम करता है। उन्हे बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हो।
विशेष- संस्कृत या  हिन्दी में पाठ करे  पितृ कृपा प्राप्त होगी |
  5-----       पितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा जलए मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है। 

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