Wednesday, 25 October 2017

कुंडली में विवाह के योग बाधक योग प्रेम विवाह के योग विवाह योग

कुंडली में विवाह के  योग  

बाधक योग प्रेम विवाह के योग विवाह योग 

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Image result for विवाह योगकुंडली में विवाह योग के कारक ग्रहों जब बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति होना भी विवाह का कारक है। यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुद्ध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।
आपके विवाह के योगकारी ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि। पंचम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों यानि कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती है तो यह विवाह में बाधक योग बना देती है।
जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं। वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है। इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं। जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।

विवाह काल का निर्णय

  1. शुक्र चंद्रमा की महादशा मे जब देवगुरू का अंतर आए तो विवाह होता है।
  2. दशम भाव के स्वामी की महादशा में जब अष्टम भाव के स्वामी का अंतर आए तो भी विवाह होता है।
  3. यदि कुंडली में शुक्र ग्रह से अन्य कोई ग्रह युति कर रहा हो तो ऎसे ग्रह की महादशा में गुरू, शुक्र व शनि के अंतर काल में विवाह प्रकरण तय होते हंै।
  4. लग्न भाव के स्वामी व सप्तम भाव के स्वामी के स्पष्ट राशि योग के समान राशि मे उसी अंश पर देवगुरू आते हैं तो विवाह होता है।
  5. यदि महादशा सप्तम भाव के स्वामी चल रही तो उस (सप्तम) भाव मे स्थित ग्रह, बृहस्पति व शनि के अंतर काल मे विवाह निश्चित होता है।
  6. सप्तम भाव के स्वामी व शुक्र के स्वामित्व वाले भाव में जब चंद्र व गुरू की गोचरीय युति हो तो विवाह होता है।
  7. अन्य योग

    1. लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।
    2. जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।
    3. लग्न, चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।
    4. शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेश की संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।
    5. लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए।
    6. दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में।
    7. सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।
    8. द्वितीयेश जिस राशि में हो, उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।
    9. विवाह में बाधक योग

      जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थानों को अशुभ माना जाता है। मंगल, शनि, राहु-केतु और सूर्य को क्रूर ग्रह माना है। इनके अशुभ स्थिति में होने पर दांपत्य सुख में कमी आती है। सप्तमाधिपति द्वादश भाव में हो और राहू लग्न में हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा होना संभव है। सप्तम भावस्थ राहू युक्त द्वादशाधिपति से वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है। द्वादशस्थ सप्तमाधिपति और सप्तमस्थ द्वादशाधिपति से यदि राहू की युति हो तो दांपत्य सुख में कमी के साथ ही अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है। लग्न में स्थित शनि-राहू भी दांपत्य सुख में कमी करते हैं। सप्तमेश छठे, अष्टम या द्वादश भाव में हो, तो वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है। षष्ठेश का संबंध यदि द्वितीय, सप्तम भाव, द्वितीयाधिपति, सप्तमाधिपति अथवा शुक्र से हो, तो दांपत्य जीवन का आनंद बाधित होता है। छठा भाव न्यायालय का भाव भी है। सप्तमेश षष्ठेश के साथ छठे भाव में हो या षष्ठेश, सप्तमेश या शुक्र की युति हो, तो पति-पत्नी में न्यायिक संघर्ष होना भी संभव है।यदि विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करके उपरोक्त दोषों का निवारण करने के बाद ही विवाह किया गया हो, तो दांपत्य सुख में कमी नहीं होती है। किसी की कुंडली में कौन सा ग्रह दांपत्य सुख में कमी ला रहा है। 
    10. विवाह नही होगा 

      सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है। सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है। सप्तमेश नीच राशि में है। सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है। चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों। शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों। शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों। शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो। शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों। पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों। सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
    11. विवाह में देरी…

      सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है। चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
      चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है। सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।

      विवाह का समय…

      सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है। गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है।गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है। सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध बनता है। सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।
    12. कुंडली में प्रेम विवाह के योग 
       
      1. लग्नेश एवं सप्तमेश का स्थान परिवर्तन या युति होना प्रेम विवाह का कारण  बनता है । 
      2.  पंचम भाव एवं सप्तम भाव प्रेम विवाह में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । पंचमेश एवं सप्तमेश की युति पंचम  या सप्तम भाव में होना या दोनों का राशि परिवर्तन करना या पंचमेश और  सप्तमेश में दृष्टि सम्बन्ध होना प्रेम - विवाह का  कारण बनता है । 
      3. गुरु और शुक्र दाम्पत्य जीवन में पति और पत्नी के कारक ग्रह हैं ।
      4. लड़कियों के जन्मपत्री में  गुरु  का पाप प्रभाव  में होना और पुरुष की कुंडली में शुक्र  ग्रह का पाप   प्रभाव   में होना  प्रेम - विवाह  की सम्भावना को बढ़ाता है । 
      5. लग्नेश एवं  पंचमेश की युति या दृष्ट सम्बन्ध या राशि परिवर्तन प्रेम विवाह योग को उत्पन्न करता है । 
      6. राहु का लग्न / सप्तम भाव में बैठना और सप्तम भाव पर गुरु का कोई प्रभाव न होना प्रेम विवाह का कारण बन सकता है । 
      7. नवम भाव में धनु/मीन राशि हो और शनि/राहू की दृष्टि सातवें भाव, नवम भाव और गुरु पर हो तो प्रेम विवाह होता    है ।
      8. सातवें भाव में राहु + मंगल हों ।
      9. राहु + मंगल + सप्तमेश तीनों   वृष /तुला राशि  में हो तो प्रेम -विवाह का   योग बनता है । 
      10. जन्मलग्न ,सूर्यलग्न और   चन्द्रलग्न में दूसरे भाव और उसके   स्वामी  का सम्बन्ध मंगल से हो तो भी प्रेम विवाह   होता है ।
      11. कुंडली  का दूसरा भाव पाप प्रभाव  में हो या उसका स्वामी शुक्र, राहु शनि के साथ  बैठा हो  और सप्तमेश का सम्बन्ध शुक्र ,चन्द्र एवं लग्न से हो  ।
      12. जन्म लग्न या चन्द्र लग्न में  शुक्र का पांचवे / नवें भाव में बैठना प्रेम  विवाह का  कारण बनता है ।
      13. लग्न  में लग्नेश +चन्द्रमा हो  तो प्रेम विवाह होता  है या सप्तम में सप्तमेश + चन्द्रमा  हो तो भी प्रेम -  विवाह हो सकता है  । 

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