Thursday, 18 January 2018

श्रीशालिग्राम की पूजा सुख-समृद्धि, शांति व लक्ष्मी देने वाली होती है

 श्रीशालिग्राम  की पूजा सुख-समृद्धि, शांति व लक्ष्मी देने वाली होती है 

Puja of Shaligram


Image result for शालिग्राम पूजा विधिजहां भगवान विष्णु कृपा होती है, वहां मां लक्ष्मी भी वास करने लगती है। भगवान विष्णु स्वरूप श्रीशालिग्राम पूजा सुख-समृद्धि, शांति व लक्ष्मी कृपा देने वाली होती है। इस धार्मिक दर्शन व उपाय में एक जीवन सूत्र यह भी मिलता है कि घर में शांति कायम रखने और कलह न करने से भरपूर सुख-वैभव मिलता है।गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है। बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है। पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं। जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है। जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं। जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है। शालिग्राम-स्थल से प्रकट हुए भगवान शालिग्राम और द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र- इन दोनों देवताओं का जहाँ समागम होता है, वहाँ मोक्ष मिलने में तनिक भी सन्देह नहीं है। द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं। ओंकार रूप तथा नित्यानन्द स्वरूप शालिग्रामको नमस्कार है। 
पूजन विधि--


 सर्वप्रथम पूर्व या उत्तर पूर्व की दिशा में मुख करके बैठ जाएं | अब शालिग्राम को गंगाजल से शंख की सहायता से धो लें, फिर इसे पञ्चगब्य से धो लें पुनः इसे गंगाजल से धो लें |

फिर कुछ कुश (कुशा घास ) जल में रख कर शालिग्राम पर छिड़के , एक प्लेट में साफ लाल कपड़ा रख कर उस में शालिग्राम को पीपल के पत्ते पर रखे | कपूर अगरबत्ती और दीपक जला लें | शालिग्राम के ऊपर चन्दन का लेप लगाये |कुछ धन भी चढ़ाये और सारा चढ़ावा किसी गरीब को दान कर दें |
 नित्य जलाभिषेक एवं तुलसी पत्र एवं चंदन से पूजा करें। 
विशेष शुभ प्राप्ति के लिए निम्न मंत्र की एक माला जप करें अथवा विष्ण् ाुसहस्र नाम का पाठ करें।
मंत्र: ऊं नमो भगवाते वसुदेवय:

No comments:

Post a Comment