Saturday, 15 November 2014

rashi phal 2015 mesh rashi

राशि फल 2015 मेष
rashi phal 2015 mesh rashi 
 इस वर्ष गुरु आपकी राशि से चतुर्थ भाव में रहने से मन में अशांति शत्रु से कष्ट धन कांति की हानी जन्म स्थान से दूर जा पड़े l
भूमि विवाद, राज्य भय होता है l 12 जुलाई से पंचक गुरु सुख समृधि कारक कार्यो में सफलता, मंगल कार्य, कुवारों का विवाह हो पुत्र जन्म,व्यापार,सट्टे,लौटरी से लाभ होता है l 
  वर्तमान में आपको ढैया चल रही है जो कार्यो के अवरोध धन हानी, मान हानी,संतान से कष्ट,लगे नौकरी कार्य आदि छुट,अशांति आदि कष्ट उत्पन्न होगे l छठा राहु रहने से रोग करी,नेत्र रोग,मामा को कष्ट शत्रुओ पर विजय मिलती है l केतु मान के अथाह अशांति उत्पन्न करता है,जोड़ो के दर्द से पीड़ा देता है l मंगल भी चोट, दुर्घटना, गुप्त रोगों के रोग बबासीर आदि से पीड़ा, स्त्री को भी कष्ट होता है l विद्यार्थियो को विद्या से असंतोष रहे परिश्रम करे l
                                
                      Presenting
Rashi phal 2015
( राशि फल 2015 )
Mo.+917697961597

                        Mukta jyotish  samadhan  
                                      Kendra
                      (मुक्ता ज्यतिष समाधान केन्द्र)              
 
 

Sunday, 2 November 2014

vyapar maasaik bhvish november 2014

व्यापार   मासिक भविष्य नवम्बर 20 14 


vyapar maasaik bhvish november 2014

1 ता. को शनि के राशि परिवर्तन से समस्त अनाजो , रुईव चाँदी में तेजी की संभावना |4 ता. को गुड ,सोना रुई आदि में तेजी चाँदी तिलहन आदि में मंदी |

ता. 11 को  अ न्नादिमें मंदी  चाँदी में तेजी |ता. 16 अन्न के भाव सम सोना रुई ऊनि वस्त्र सरसों में तेजी |

24ता. से समस्त अन्नादि तिल में मंदी सोना चाँदी के भाव सम |

27 ता. को तेल सोना चाँदी ताबा में तेजी  धन्यो में मंदी |


by --muktajyotishs   मो.  +917697961597

Wednesday, 29 October 2014

funny time

                        funny time      


                   लड़की की शादी     

लड़की की शादी में उसका पुराना बॉयफ्रेंड सज-धजकर आया था।

एक बच्चे ने उसे देखकर पूछा- क्या आप दूल्हे हो?

उसने जवाब दिया- नहीं, मैं तो सेमीफाइनल में बाहर हो गया था। फाइनल 


देखने आया हूं...

                                                                 शराब 

पत्नी (गुस्से में): आपने बोला था बिना कारण शराब नहीं 

पिएंगे?



पति: कारण है न

.दिवाली आ रही है



रॉकेट चलाने के लिए खाली बोतल चाहिए।

                               समोस  
  

3 सरदार पिकनिक पर गए। वहां जाकर याद आया कि पेप्सी तो घर पर ही

 भूल आए। तीनों ने फैसला किया कि सबसे छोटा सरदार जाकर पेप्सी लेकर

 आएगा। 

छोटा सरदार: मैं एक शर्त पर जाऊंगा। तुम दोनों मेरे आने तक समोसे नहीं 

खाओगे। 

दोनों ने शर्त मान ली और छोटा सरदार चला गया। 

2 घंटे गुजर गए... 

4 घंटे गुजर गए... 

8 घंटे गुजर गए... लेकिन छोटा सरदार नहीं आया। 

दोनों ने सोचा कि अब समोसे खा लेने चाहिए। छोटे सरदार को जाने कितनी

 देर हो जाए। 


जैसे ही दोनों ने एक-एक समोसा उठाया कि पेड़ के पीछे से छोटा सरदार

 निकलकर बोला, देखो, तुम लोग ऐसे करोगे तो मैं नहीं जाऊंगा। 

Wednesday, 22 October 2014

diwali pujan muhurt 23 octcbre 2014

diwali pujan muhurt 23 octcbre 2014

दिवाली पूजन के शुभ मुहूर्त  23 अक्टूबर 2014   
दिवाली पूजा में शुभ  मुहूर्त में पूजन करने से महालक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है स्थिर लग्न एवम शुभ चौघड़िया में पूजन करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और स्थिर लक्ष्मी प्राप्त होती जो वर्ष भर महालक्ष्मी की क्रपा से धन सुख एश्वर्या यश प्राप्त होता है यहाँ पर चौघड़िया द्वारा शुभ मुहूर्त एवम ज्योतिष के आधार पर अति शुभ मुहूर्त प्रस्तुत है |

चौघड़िया के शुभ मुहूर्त 
10.30 से दोपहर 01.30 (लाभ-अमृत) 

03.00 से 04.30 (शुभ), 
रात्रि- 07.30 से 09.00 (लाभ) 
रात्रि 10.00 से 12.00 तक। 
देर रात्रि पूजन करने वालों के लिए 
रात्रि 12.00 से 01.30 तक।

लग्न  के  अनुसार शुभ मुहूर्त 
सुबह 06.44 से 09.01 (वृश्चिक-लग्न),
09.01 से 11.06 (धनु-लग्न),
दोपहर 12.54 से 02.26 (कुंभ-लग्न),
03.57 से शाम 05.37 (मेष-लग्न),
05.37 से 08.36 (वृषभ-लग्न) 
सिंह लग्न में पूजन का समय है रात्रि 12.06 से 02.18 तक। 



Friday, 10 October 2014

दिवाली में करे व्यापार वृधि मन्त्र का जप



diwali me vyapar  mntr ka jap 
                            दिवाली में करे व्यापार वृधि मन्त्र का जप                                                                          विधि --दिवाली के दिन रात में आसन पर बैठ कर इस मन्त्र का 21 हजार   जप  कर हवन करे और प्रतिदिन 108 बार कमल गट्टा की माला से जाप करते रहे |                                                                                                      

diwali pujan syam kre







diwali pujan syam kre 
दिवाली पूजन स्वयं करे 

दिवाली पूजन की सम्पूर्ण अति सरल विधान इस पुस्तक में है इसमे धन तेरस से भाई दूज तक पाच दिन की पूजा का विधान उपलव्ध है आप प्राप्त कर सकते है |
   
मो+91 76 97 96 15 97




Wednesday, 8 October 2014

hath se bhojan krne ke phayade

हाथ से भोजन करने के फयादे

hath se bhojan krne ke phayade


चम्मच, छूरी या कांटे के बजाय खाते वक्त सीधे हाथ से खाना सेहत के लिए कई फायदों की वजह हो सकता है। आयुर्वेद में हाथ से भोजन करने के कई फायदे माने गए हैं। भोजन करने से पूर्व यह मन्त्र बोलना चाहिए|

भोजन मन्त्र ---
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् । 
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।



आयुर्वेद के अनुसार, शरीर पांच तत्वों से बना है - धरा, वायु, आकाश, जल और अग्नि। इन पांचों तत्वों में होने वाला असंतुलन शरीर में कई बीमारियों का कारण होता है। 

हाथ से कौर बनाते वक्त जो मुद्रा बनती है उससे शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बरकरार रहता है और ऊर्जा बनी रहती है।
स्पर्श दिमाग के लिए सबसे प्रगाढ़ संवेदना है। खाने को सीधे हाथ से उठाते वक्त इसके स्पर्श से दिमाग सक्रिय होता है और खाने से पहले ही पेट को पाचन के लिए सक्रिय होने के संकेत देता है जिससे पाचन में मदद मिलती है।
हाथ से भोजन करते वक्त आपको भोजन कितना गर्म है इसका एहसास स्पर्श से ही हो जाता है जिसकी वजह से मुंह नहीं जलता। वहीं चम्मच या कांटे के इस्तेमाल से दिमाग को यह संकेत नहीं पहुंच पाता की भोजन कितना गर्म है।

jyotish sastr me upari hvaao ke yog

ज्योतिष शास्त्र में उपरी हवाओं के योग
jyotish sastr me upari hvaao ke yog 
  • ज्योतिष शास्त्र में उपरी हवाओं के योग ----->ज्योतिष के ग्रंथो में कुछ योग बतालेये गये है यदि ये योग पत्रिक में पाए जाते है तो जातक को ग्रहों की दशा अंतर दशा में कष्ट की सम्भावना रहती है|
  • यदि लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव पर राहु, केतु, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र आदि का प्रभाव हो, तो जातक के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। यदि उक्त
     ग्रहों का परस्पर संबंध हो, तो जातक प्रेत आदि से पीड़ित हो सकता है।
  • यदि पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरु हो, तो इस स्थिति में भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार होता है।
  • यदि लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो, लग्न निर्बल हो, लग्नेश पाप स्थान में हो अथवा राहु या केतु से युत हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है।
  • लग्न में राहु के साथ चंद्र हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य क्रूर ग्रह हो, तो जातक भूत-प्रेत आदि से पीड़ित होता है।
  • यदि षष्ठेश लग्न में हो, लग्न निर्बल हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है। यदि लग्न पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो, तो जादू-टोने से पीड़ित होने की संभावना प्रबल होती है। षष्ठेश के सप्तम या दशम में स्थित होने पर भी जातक जादू-टोने से पीड़ित हो सकता है।
  • यदि लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो, तो जातक प्रेत शाप से पीड़ित होता है।

Monday, 29 September 2014

shani ki shanti ke sarl upay--


शनि की शांति के सरल उपाय -शनिवार को करे 
shani ki shanti ke sarl upay--shanivar ko kre



                  यदि आपको शनि की साढ़ेसाती हो या ढय्या, राहु-केतु का कालसर्प दोष हो या पितृ दोष कोईदोष हो पीपल पूजन से सभी शांत हो जाते है |शास्त्रों में बताया गया है की पीपल में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है इस लिए पीपल की सेवा करने से सभी कष्ट दूर होते है |



धन लाभ के लिए -----
किसी भी शनिवार की शाम को गुड एवम खड़ी उड़द के 11 दाने पर थोड़ा सा  सिंदूर लगाएं और उसे किसी भी पीपल के नीचे रख आएं। वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। यह उपाय शनिवार से ही शुरू करना चाहिए। हर शनिवार यह उपाय करते रहें। 

सु ख-शांति के लिए ----
घर में सुख-शांति नहीं रहती हो और हमेशा वाद-विवाद होते रहते हों तो ये उपाय करें। उपाय के अनुसार शनिवार को किसी पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं  यह उपाय हर शनिवार करें |

 शनिवार को ऐसे करें तेल का दान

शनिवार के शनि को मनाने का सबसे अच्छा उपाय है तेल का दान करना। इस उपाय के लिए एक कटोरी में तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखें, इसके बाद इस तेल का दान कर दें। यह  उपाय सर्वाधिक प्रचलित है। 
  काले कंबलएवम  छाते का  दान 
शनि और राहु-केतु के दोषों को दूर करने के लिए शनिवार के दिन किसी गरीब व्यक्ति को काले कंबल का दान करें। ये तीनों ग्रह गरीबों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस कारण जो गरीब की मदद करता है, उन लोगों पर इन ग्रहों की विशेष कृपा रहती है। साथ ही, आप छाते का दान भी कर सकते हैं।
हर शनिवार पीपल की ग्यारह परिक्रमा करें
शनि की साढ़ेसाती हो या ढय्या, राहु-केतु का कालसर्प दोष हो या पितृ दोष, यदि आप हर शनिवार किसी पीपल की ग्यारह परिक्रमा करेंगे तो इन दोषों की शांति हो सकती है। साथ ही, पीपल कोमीठा  जल भी अर्पित करें और पूजन करें।धन लाभ होता है |
तेल के दीपक---
हनुमानजी के भक्तों को शनिदेव से किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है। यदि आप शनि के बुरे प्रभावों से जल्द मुक्ति पाना चाहते हैं तो शनिवार के दिन से प्रतिदिन किसी भी हनुमान मंदिर में जाएं। हनुमानजी के सामने तेल का दीपक लगाएं  शनिवार से यह उपाय प्रारंभ करें। इसके बाद उपाय प्रतिदिन करना चाहिए।
यदि आप प्रतिदिन नहीं कर सकते हैं तो कम से कम हर शनिवार को अवश्य करें। इससे बहुत ही जल्द आपकी कई समस्याओं का समाधान हो जायेगा  | 


Saturday, 20 September 2014

chamatakri laxmi kvach --sabhi mnokamno ko siddh kre

चमत्कारी लक्ष्मी कवच --- सभी मनोकामनो को सिद्ध करे 

chamatakri laxmi kvach --sabhi mnokamno ko siddh kre 

                                                                                                                     वर्तमान युग में सभी चहेत है की में सबसे धन धन वन बनू सारे कार्यो सफलता मिले लेकिन सब कुछ हमारे सोचे अनुसार नहीं होता अत:यदि लक्ष्मी जी की कृपा के बिना जीवन निर्थक सा लगता है अत: लक्ष्मी जीक्रपा  प्राप्त करने का यह सरल उपाय है |

लक्ष्मी जी का यह कवच सभी मनोकामनो को सिद्ध करने वाला होता है |इसको धारण करने वाला संकट ,विपदा   को दूर करने वाला  राज दरवार में सम्मन सभी कार्यो में सफलता  धन वैभव युक्त  रोग निवरक  अग्नि  धन हानी से रक्षा करता है इस कवच को गले में धारण करने से लक्ष्मी जी  की  सदैव कृपा बनी रहती है


यह केवल दिवाली के दिन निर्मित किया जाता है |  यदि आप प्राप्त करना चहते है तो सम्पर्क करे |

मुक्ता ज्योतिष समाधान केंद्र                                            मो .--+9176 97 96 15 97

Tuesday, 16 September 2014

janm kundli ka phaladesh kaise hota hai-- jane


janm kundli ka phaladesh kaise hota hai-- jane

जन्म कुंडली का फलादेश कैसे होता है -----जाने 


सर्व प्रथम लग्न से स्वाभाव  रंग स्वास्थ्य आदि का वर्णन किया जाता है 

धन कुटुम्ब का विचार ,पराक्रम का विचार ,,माता कुटुम्ब वहान ,विद्या विचार सांख्य साहित्य कला इंजीनियरिंग,लॉ  डॉक्टरी आदि जान सकते है |

ऋण रोग शत्रु  , विवाह कितनी दूर ,दिशा , कहा पर ,लव  या अरन्ज  शादी  ,नौकरी  या व्यापार ,कष्ट का समय साढ़े साती का समय आदि और भी हिन्दी में लिखित फल आप प्राप्त कर सकते है |

हमारा एक परमर्स आपका भाग्य बदल सकता है |

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Friday, 12 September 2014

सफलता के शास्त्त्रोक्त सूत्र


सफलता के शास्त्त्रोक्त  सूत्र 



हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत में बताए गए सफलता व उन्नति के  सूत्रों को अपने जीवन में उतार कर सफलता को आसानी से प्राप्त कर सकते है । सफलता व तरक्की के ये  सूत्र जीवन में उतार कर  कोई भीव्यक्ति  मनोअनुकुल सफलता व  ऊंचाईयों को पा सकता है - 
महाभारत में लिखा गया है कि - 
उत्थानं संयमो दाक्ष्यमप्रमादो धृति: स्मृति:।
समीक्ष्य च समारम्भो विद्धि मूलं भवस्य तु।। 
इस श्लोक में जीवन में कर्म, विचार और व्यवहार से जुड़ी  बातें उन्नति का मूल मंत्र मानी गई है। ये बाते हैं - 
उद्यम - मेहनत, कर्म व परिश्रम की भावना। 
संयम - मन व विचार पर काबू या उतावलेपन से बचना। 
दक्षता - किसी भी कार्य या कला में कुशलता या महारत। 
सावधानी - विषय, कार्य और स्थिति के प्रति जागरुकता। 
धैर्य - मनचाहे परिणाम न मिलने या अपेक्षा पूरा न होने पर लक्ष्य से न भटकना। 
स्मृति - इसकी अलग-अलग अर्थों में अहमियत है। जैसे ज्ञान, स्मरण शक्ति के अलावा दूसरों के उपकारों, सहयोग या प्रेम को न भूलना आदि। 
सोच-विचार - विवेक का साथ न छोडऩा। सफलता व तरक्की के लिए कोई भी कदम बढ़ाने से पहले सही और गलत की विचार शक्ति अहम होती है, जिसके लिए अधिक से अधिक ज्ञान व अनुभव  को एकत्रित कर विशेषज्ञ बनाना चाहिए ||

Thursday, 11 September 2014

man ko yekagr kre tratak----



                                         man ko yekagr kre tratak----
   मन को एकाग्र करे त्राटक ----जो जीवन में सफलता दिलावे 

यह त्राटकचक्र है इसे आप 5 से 10 मिनिट देखे तो यह चक्र चलने लगता है
 


              त्राटक क्या है ------                                                    मन को एकाग्रता की ओर ले जाने के लिए त्राटक एक अच्छा प्रयोग है |त्राटक करने से मन शांत रहता है |मन का भटकाव दूर होता है | विचलन दूर होता है सका नियमित अभ्यास कर मानसिक शां‍ति और मानसिक प्रसन्नता देता है  इससे आँख के सभी रोग दूर हो  जाते है त्राटक के अभ्यास से अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है। त्राटक स्मृतिदोष को भी  दूर करता है और इससे दूरदृष्टि बढ़ती है।
त्राटक  विधि --------जितनी देर तक आप बिना पलक गिराए किसी एक बिंदु, क्रिस्टल बॉल, त्राटक चक्र , घी के दीपक की ज्योति पर देख सकें देखते रहिए। इसके बाद आँखें बंद कर लें। कुछ समय तक इसका अभ्यास करें। इससे आप की एकाग्रता बढ़ेगी।
सावधानी : त्राटक का अभ्यास 5 ,7 ,10 ,12 15 मिनिट तक ही करे |प्रारम्भ कम समय ही करे  अधिक देर तक एक-सा करने पर आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। अत: ऐसा जब हो, तब आँखें झपकाकर अभ्यास छोड़ दें। यह क्रिया केवल म न को  एकाग्रता की ओर ले जाने के लिए ही  करे |                 प्रतियोगियों के लिए --------------------------यदि आप विद्यार्थी है पढ़ने में मन नहीं लगता प्रतियोगी परीक्षाओं देते है जिस में अधिक एकाग्रता की अवश्यकता पडती है|लाभ करी है |



Sunday, 7 September 2014

chanakya niti-shrm na kre ye char kam krne me

chanakya niti-shrm na kre ye char kam krne me 

चाणक्य नीति: शर्म न करें ये चार काम करने में 



                                                                                    आचार्य चाणक्य कहते हैं कि...
 
धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्।।
 
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने पहला काम यह बताया है कि हमें धन संबंधी कार्यों में किसी भी प्रकार की शर्म नहीं करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को हमने पैसा उधार दिया है तो उसे पुन: मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए। व्यक्ति उधार मांगते समय तो मजबूरी दिखाता है, लेकिन पैसा वापस करने के लिए वह कई प्रकार के बहाने भी बना सकता है। इस परिस्थिति में हमारा पैसा अटक सकता है, अत: हमारे द्वारा दिया गया पैसा मांगने में शर्म को त्याग देना चाहिए। धन संबंधी कार्यों में जो बातें हैं, वे सभी पहले से तय कर लेनी चाहिए।
दूसरा काम
 
हमें कभी भी शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करने में शर्म नहीं करना चाहिए। कुछ सीखना हो तो शर्माना नहीं चाहिए। अन्यथा जीवनभर अज्ञानी की भांति रहना पड़ सकता है। अज्ञान दूर करने के लिए जो भी योग्य व्यक्ति संपर्क में आए, उससे आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए। आज के दौर में काफी लोग किसी से कुछ पूछने में संकोच करते हैं, यह संकोच भविष्य में कई परेशानियों का कारण बनता है।
 तीसरा काम
 
जो व्यक्ति खाने के संबंध में संकोच करता है, वह अक्सर भूखा ही रह जाता है। इसलिए भूख लगने पर खाना खा ले लेना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति से खाना मांगना भी पड़े तो मांग लेना चाहिए। अन्यथा भूखे रहना पड़ सकता है। जब हम किसी के घर मेहमान बनकर जाते हैं तो वहां संकोचवश भूख लगने पर भी खाना नहीं मांगते हैं, जबकि ऐसी परिस्थिति में शर्म को छोड़ देना चाहिए। भूख लगने पर खाना नहीं खाएंगे तो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है।
 चौथा काम
 
यदि कोई व्यवसायी है तो उसे अपने ग्राहकों या देनदारों से शर्म नहीं करना चाहिए। धन और व्यापार से जुड़ी समस्त बातें साफ-साफ स्पष्ट कर लेनी चाहिए। यदि हम प्रारंभ में ही सारी बातें स्पष्ट नहीं करेंगे तो बाद में धन हानि का सामना करना पड़ सकता है या किसी भी विपरीत स्थिति से हमारी ख्याति पर भी बुरा असर हो सकता है।

Saturday, 6 September 2014

pitr dosh karan aur nivran

पितृ दोष कारण और निवरण                                          pitr dosh karan aur nivran
नवम भाव पर  जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .
कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है  नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है।      सूर्य या  चन्द्र राहु के साथ हो पचममेश राहु के साथ हो तो पितृ दोष योग बनता है \ इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से परेशान  होता है।

               पितृ दोष के सरल उपाय 

1 --भागवत गीता का पाठ करे |
2 ---गया में श्राद्ध करवे\
    3     ---ग्यारस का व्रत करे 
      4------         पितृ सुक्ता का पाठ करे |

पितृदोष के निवारण के लिए श्राद्ध काल में पितृ सुक्त का पाठ संध्या समय में तेल का दीपक जलाकर करे तो पितृदोष की शांति होती है।
अर्चितानाम मूर्ताणां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्चक्षुषाम्।।
हिन्दी- जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यनत तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य दुष्टि सम्पन्न है, उन पितरो को मै सदा नमस्कार करता है।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
अर्थात जो इन्द्र आदि देवताओ, दक्ष, मारीच, सप्त ऋषियो तथा दुसरो के भी नेता है। कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता है।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रूसोस्तयथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान पितृनप्सुदधावपि।।
अर्थात जो मनु आदि राजार्षियों, मुनिश्वरो तथा सूर्य चंद्र के भी नायक है, उन समस्त पितरो को मैं जल और समुद्र मै भी नमस्कार करता है।
नक्षत्राणां ग्रहणां च वाच्व्यग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि5।।
अर्थात जो नक्षत्रों ,ग्रहो,वायु,अग्नि,आकाश और द्युलोक एवं पृथ्वीलोक के जो भी नेता है, उन पितरो को मै हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
देवर्षिणां जनितंृश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षच्चस्य सदादातृन नमस्येळहं कृतांजलिः।।
अर्थात जो देवर्षियो के जन्मदाता, समस्त लोको द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता है। उन पितरो को मै हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
अर्थात प्रजापति, कश्यप, सोम,वरूण तथा योगेश्वरो के रूप् में स्थित पितरो को सदा हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयंभूवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
अर्थात सातो लोको मे स्थित सात पितृगणो को नमस्कार है। मै योगदृश्टि संपन्न स्वयंभू ब्रह्मजी को प्रणाम करता है।
सोमाधारान् पितृगणानयोगमूर्ति धरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अर्थात चंद्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमूर्तिधारी पितृगणों को मै प्रणाम करता हूँ। साथ ही संपूर्ण जगत के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निरूपांस्तथैवान्याम् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
अर्थात अग्निस्वरूप् अन्य पितरो को भी प्रणाम करता हूँ क्याकि यह संपूर्ण जगत अग्नि और सोममय है।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैवतथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
अर्थात जो पितर तेज मे स्थित है जो ये चन्द्रमा, सूषर्् और अग्नि के रूप् मै दृष्टिगोचर होते है तथा जो जगतस्वरूप् और ब्रह्मस्वरूप् है।
तेभ्योळखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।
अर्थात उन संपूर्ण योगी पितरो को मै। एकाग्रचित होकर प्रणाम करता है। उन्हे बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हो।
विशेष- संस्कृत या  हिन्दी में पाठ करे  पितृ कृपा प्राप्त होगी |
  5-----       पितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा जलए मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है। 

Tuesday, 2 September 2014

vyapar bhvishy teji mandi september 2014

vyapar bhvishy teji mandi september 2014

व्यापार भविष्य तेजी मंदी सितम्बर 2014 

ता.5 को मंगल का वशिच्क राशि में आने से सोना चाँदी व् धातु में तेजी होगी |चाँदी का भाव पहले गिरकर बाद में तेज होगा |ता.13 से अन्नादि में तेजी सोना चाँदी लोहा तेल के भाव में दो सप्ताह में तेजी आवे |ता. 17 से कपड़ा मेवा तेल सोना चाँदी शेयर आदिमें मंदी होगी |ता. 21 से तुला का बुध होने से खांड सोना आदि में तेजी |चाँदी ,अलसी में मंदी |

by muktajyotishs   मो. +9176 97 96 15 97    

चाणक्य नीति- जानिये पानी पीने का रहस्य जिससे पाचन शक्तिकमजोर न हो


चाणक्य नीति- जानिये  पानी पीने का रहस्य जिससे पाचन शक्तिकमजोर न  हो 

आचार्य चाणक्य ने एक नीति में बताया है कि गलत समय पर पानी पीना स्वास्थ्य के लिए कैसे हानिकारक हो सकता है। इस नीति में कुछ परिस्थितियां बताई हैं जब पानी पीने से नुकसान हो सकता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि...

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।
भोजने चाऽमृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम्।।
चाणक्य नीति- जानिए किस समय पानी पीने से पाचन शक्ति हो सकती है कमजोर
इस श्लोक में आचार्य ने बताया है कि भोजन के एकदम बाद पानी नहीं पीना चाहिए। खाना खाने के बाद जब तक खाना पच ना जाए, तब तक पानी पीना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है। यदि कोई व्यक्ति भोजन के तुरंत बाद ज्यादा पानी पी लेता है तो उसके पाचन तंत्र को भोजन पचाने में परेशानियां होती हैं। यदि खाना ठीक से पचेगा नहीं तो शरीर को उचित ऊर्जा प्राप्त नहीं हो सकेगी। अपच की स्थिति में पेट संबंधी रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। भोजन के तुरंत बाद पानी पीने पर वह विष के समान कार्य करता है। यदि हम चाहे तो भोजन के बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पी सकते हैं, लेकिन अधिक पानी पीना नुकसानदायक हो सकता है।
 कब पीएं पानी

चाणक्य कहते हैं कि जब खाना पूरी तरह पच जाए तो उसके बाद पानी पीना चाहिए। खाना पचने के बाद पानी पीने पर वह अमृत के समान काम करता है। शरीर को भरपूर ऊर्जा प्रदान करता है और पाचन तंत्र भी स्वस्थ रहता है। पाचन तंत्र के स्वस्थ होने पर कब्ज, गैस, अपच आदि समस्याएं नहीं होती हैं।
ध्यान रखें, भोजन से कुछ देर पहले यानी एक घंटे या आधे घंटे पहले एक-दो गिलास पानी पी सकते हैं। खाना खाते समय बीच-बीच में एक-दो घूंट पानी पीना लाभदायक होता है। ऐसा करने पर खाना जल्दी पचता है। साथ ही, पाचन शक्ति भी बढ़ती है।

- हमें जब भी प्यास लगे, तब कम से कम एक गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए। ऐसा करने पर हमारा शरीर पानी की कमी को पूरा कर लेता है।

- शारीरिक परिश्रम करने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। ऐसे काम करने के बाद, कम से कम आधे घंटे रुककर पानी पीना चाहिए।

Saturday, 30 August 2014

ganesh ji ki puja se purn kre apni sabhi manokamna

गणेश जी की पूजा से पूर्ण करे अपनी सभी मनोकामना

ganesh ji ki puja se purn kre apni sabhi manokamna

वर्तमान  समय में हर व्यक्ति किसी ना किसी परेशानी से परेशान रहता है। इस परेशानी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है यदि रोज सुबह के समय{अपनी सुविधा अनुसार } गणेश जी की पंचोपचार या षोडशोउपचार पूजन कर  के 108 नाम से दूर्वा चढ़ावे तो जीवन की हरमुश्किल आशान हो   जाएँगी । गणेश जी कोरिधि  सिद्धि शुभ लाभ एवम विघ्नहर्त्ता कहा गया है। गणेश जी के 108 नाम व सरल पूजन विधि  इस प्रकार हैं:-


पूजन सामग्री 

जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |
विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े |
                                               
और आवाहन करें -
    गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
    उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
    आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |
    यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
   अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
   अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन-
   रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
   आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||
पाद्य (पैर धुलना)-
     उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
     पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||
आर्घ्य(हाथ धुलना )-
     अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|
     करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||
आचमन -
     सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
     आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||
स्नान -
     गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
     स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||
दूध् से स्नान -
     कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
     पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||
दही से स्नान-
    पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |

    दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||
घी से स्नान -
   नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
   घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शहद से स्नान-
   तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
 शर्करा (चीनी) से स्नान -
     इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
     मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
पंचामृत से स्नान -

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |

    पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान -
    मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |
    तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
वस्त्र -
   सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |
   मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||
उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )-
   सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |
    वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||
यज्ञोपवीत -
    नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
    उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||
मधुपर्क -
    कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
    मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||
गन्ध -
    श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
    विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

रक्त(लाल )चन्दन-
    रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
    मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||
रोली -
    कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
    कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||
सिन्दूर-
    सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
    शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||
अक्षत -
     अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
     माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||
पुष्प-
     पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
     पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||
पुष्प माला -
      माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
       मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||
बेल का पत्र -
     त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
      तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||
 दूर्वा -
      त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |

      सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||
 दूर्वाकर -
     दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
     आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||
शमीपत्र -
   शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
   धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||
अबीर गुलाल -
   अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
   अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||
आभूषण -
    अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |

    गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||
सुगंध तेल -
    चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
    वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||
धूप-
    वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
    आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||
दीप -
     आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
     दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||
नैवेद्य-
    शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
    उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||
मध्येपानीय -
   अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |

   त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

ऋतुफल-

   नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
   कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ||
आचमन -
   गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
   आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||
अखंड ऋतुफल -
    इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
    तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||
ताम्बूल पूंगीफलं -
    पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
    एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||
दक्षिणा(दान)-
    हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
    अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||
आरती -
   चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
    त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||
पुष्पांजलि -
    नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
    पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||
प्रार्थना-
    रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
    भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
         अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम ||
        

                    श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय ...................................................
अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय ...................................................
हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय ....................................................
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |
कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय

          108 नाम से दूर्वा चढ़ावे

1. बालगणपति: सबसे प्रिय बालक
2. भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3. बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान
4. धूम्रवर्ण: धुंए को उड़ाने वाला
5. एकाक्षर: एकल अक्षर
6. एकदन्त: एक दांत वाले
7. गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला
8. गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान
9. गजनान: हाथी के मुख वाले भगवान
10. गजवक्र: हाथी की सूंड वाला
11. गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है
12. गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक
13. गणपति: सभी गणों के मालिक
14. गौरीसुत: माता गौरी का बेटा
15. लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव
16. लम्बोदर: बड़े पेट वाले
17. महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु
18. महागणपति: देवातिदेव
19. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान
20. मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव
21. मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है
22. निदीश्वरम: धन और निधि के दाता
23. प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला
24. शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव
25. शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु
26. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
27. सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी
28. सुरेश्वरम: देवों के देव
29. वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड
30. अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है
31. अलम्पता: अनन्त देव
32. अमित: अतुलनीय प्रभु
33. अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना
34. अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु
35. अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले
36. भीम: विशाल
37. भूपति: धरती के मालिक
38. भुवनपति: देवों के देव
39. बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता
40. बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक
41. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले
42. देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी
43. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक
44. देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
45. देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
46. धार्मिक: दान देने वाला
47. दूर्जा: अपराजित देव
48. द्वैमातुर: दो माताओं वाले
49. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले
50. ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे
51. गदाधर: जिसका हथियार गदा है
52. गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता
53. गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी
54. हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला
55. हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र
56. कपिल: पीले भूरे रंग वाला
57. कवीश: कवियों के स्वामी
58. कीर्त्ति: यश के स्वामी
59. कृपाकर: कृपा करने वाले
60. कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले
61. क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला
62. क्षिप्रा: आराधना के योग्य
63. मनोमय: दिल जीतने वाले
64. मृत्युंजय: मौत को हरने वाले
65. मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है
66. मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता
67. नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो
68. नमस्थेतु:  सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69. नन्दन: भगवान शिव का बेटा
70. सिद्धांथ:  सफलता और उपलब्धियों की गुरु
71. पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला
72. प्रमोद: आनंद
73. पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व
74. रक्त: लाल रंग के शरीर वाला
75. रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते
76. सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता
77. सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता
78. सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला
79. ओमकार: ओम के आकार वाला
80. शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो
81. शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं
82. श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है
83. सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले
84. स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई
85. सुमुख: शुभ मुख वाले
86. स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी
87. तरुण: जिसकी कोई आयु न हो
88. उद्दण्ड: शरारती
89. उमापुत्र: पार्वती के बेटे
90. वरगणपति: अवसरों के स्वामी
91. वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
92. वरदविनायक: सफलता के स्वामी
93. वीरगणपति: वीर प्रभु
94. विद्यावारिधि: बुद्धि की देव
95. विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले
96. विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव
97. विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले
98. विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक
99. विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान
100. विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला
101. विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान
102. विकट: अत्यंत विशाल
103. विनायक: सब का भगवान
104. विश्वमुख:  ब्रह्मांड के गुरु
105. विश्वराजा: संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय:  सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106. यशस्कर:  प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप: ध्यान के प्रभु