कालसर्प योगके बाराह प्रकार क्या है
kall sarp yog ke12 prkaae
जब कुंडली मे प्रथम एवंम सप्तम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को अनंत कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के चिंता, न्युनगंड, जलसे भय आदी प्रकारसे नुकसान होता है। 
२) कुलिक कालसर्प योग
जब कुंडली मे दुसरे एवंम आठवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कुलिक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को आर्थिक हानी, अपघात, वाणी मे दोष, कुटुंब मे कलह, नर्व्हस ब्रेक डाउन आदी
आपतीयोंका सामना करना पडता है। 
३) वासुकि कालसर्प योग
जब कुंडली मे तीसरे एवंम नवम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को वासुकि कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को भाई बहनोंसे हानी, ब्लडप्रेशर, आकस्मित मृत्यु तथा रिश्तेदारोंसे नुकसान होता है। 
४) शंखपाल कालसर्प योग
जब कुंडली मे चौथे एवंम दसवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखपाल कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके माता को पिडा, पितृसुख नही, कष्टमय जिवन, नोकरी मे बडतर्फी, परदेश जाकर
बुरी तरह मृत्यु आदी। 
५) पद्दम कालसर्प योग
जब कुंडली मे पांचवे एवंम ग्यारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पद्दम कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके विध्याअध्ययन मे रुकावट, पत्नी को बिमारी, संतान प्राप्ती मे विलंब, मित्रोंसे हानी होती है। 
६) महापद्दम कालसर्प योग
जब कुंडली मे छ्ठे एवंम बारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को महापद्दम कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को कमर की पिडा, सरदर्द्, त्वचारोग्, धन की कमी, शत्रुपीडा यह सब हो सकता है 
७) तक्षक कालसर्प योग
जब कुंडली मे सातवे एवंम पहले स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को तक्षक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के दुराचारी, व्यापार मे हानी, वैवाहिक जीवन मे दु:ख, अपघात, नौकरीमे परेशानी
होती है। 
८) कर्कोटक कालसर्प योग
जब कुंडली मे आठवे एवंम दुसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कर्कोटक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को पितृक संपत्ती का नाश, गुप्तरोग, हार्ट अटैक, कुटुंब मे तंटे और जहरीले जनवरोंसे
डर रहता है। 
९) शंखचुड कालसर्प योग
जब कुंडली मे नवम एवंम तीसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखचुड कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती धर्म का विरोध, कठोर वर्तन, हाय ब्लड प्रेशर, सदैव चिंता, संदेहास्पद चरीत्रवाला
होता है। 
१०) पातक कालसर्प योग
जब कुंडली मे दशम एवंम चौथे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पातक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती दुष्ट, दुराचारी लो ब्लड प्रेशर जीवन मे कष्ट, घर मे पिशाच्च पीडा, चोरी की
संभावना होती है।

११) विषधर कालसर्प योग
जब कुंडली मे ग्यारहवे एवंम पांचवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को विषधर कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को अस्थिरता, संततीसंबंधी चिंता, जेल मे कैद होने की संभावना होती है। 
१२) शेषनाग कालसर्प योग
जब कुंडली मे बारहवे एवंम छ्ठे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शेषनाग कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती अपयश, ऑंख की बिमारी, गुप्त शत्रुअओंकी पिडा, तंटे बखेडे आदी मुकाबला करना पडता है।
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