Thursday, 31 August 2017
चमत्कारी सुलेमानी हकीक को धारण करने की विधि
चमत्कारी सुलेमानी हकीक को धारण करने की विधि sulamani hakik ko dharan vidhi
सुलेमानी हकीक एक चमत्कारी पत्थर होता है. सुलेमानी हकीक एक ऐसा रत्न होता है जिसे पहनने से तीन ग्रहों शनि, राहु केतु के दोष दूर हो जाते है. इसके अलावा सुलेमानी हकीक को पहनने से बुरी नज़र से भी बचाव होता है. साथ ही आपके बिज़नेस में आ रही रुकावट भी दूर हो जाती है.
अगर आपके घर में धन की कमी है, बरकत नहीं हो रही हो तो भी आप सुलेमानी हकीक को धारण कर सकते है इसे पहनने से आपके घर से धन की कमी दूर हो जाएगी. बरकत होने लगेगी.
सुलेमानी हकीक को धारण करने का तरीका
अगर आप इसे धारण करना चाहते है तो शनिवार के दिन अपने सीधे हाथ की मध्यमा उंगली में धारण कर सकते है. इसे पहनने से पहले इसको गोमूत्र से धो लेना चाहिए. अगर आप चांदी की अंगूठी में धारण कर रहे है तो सीधे हाथ में धारण करें. वहीं इसे आप चांदी के लॉकेट में भी गले में धारण कर सकते है.
call---+917697961597
Wednesday, 30 August 2017
Monday, 28 August 2017
सुलेमानी अकीक दे सकारात्मक ऊर्जा
सुलेमानी अकीक दे सकारात्मक ऊर्जा
sulamani akik de sakaratmak urja
सुलेमानी अकीक को भाग्य जगाने वाला स्टोन माना जाता है। इसको पहनने से व्यक्ति पॉजिटिव एनर्जी से भर जाता है और हमेशा प्रसंन दिखाई देता है।
सुलेमानी अकीक को पहनना है तो शरीर के भार के दसवें हिस्से जितने कैरेट का सुलेमानी अकीक कम से कम पहनें। जैसे अगर आपका वजन 50 किलो है तो आप 5 कैरेट का स्टोन पहनें। इसे अंगूठी, पेंडेंट की तरह इस्तेमाल करना हो या घर में कहीं रखना हो तो भी इसे खरीदते समय ध्यान रखें की इसमें अलग से कोई दाग-धब्बा नहीं होना चाहिए और ये कहीं से टूटा भी नहीं होना चाहिए।ऐसा माना जाता है कि सुलेमानी अकीक को पहनने से या उसे आस-पास रखने मात्र से ही आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है। यह नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करता है जिससे उदासी, उलझन और चिड़चिड़ा पन दूर होता है।
सुलेमानी अकीक को सुरक्षा करने वाले रत्न की तरह भी प्रयोग जाता है। सुलेमानी अकीक साथ रखने से बुरी नजर आप पर नहीं पड़ती और बुरी आत्माओं से भी आपका बचाव होता है। इसलिए ही माताएं अपने नवजात बच्चों के आस-पास इस पत्थर को रखती हैं।
गुणों से भरा हुआ यह पत्थर शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और प्राकृतिक रूप से व्यक्ति को बैलेंस करता है। ऐसा देखा गया है कि बैड रूम में इस पत्थर को रखने से नींद अच्छी आती है और रात को चौंक कर जागने की आदत भी कम हो जाती है।
सुलेमानी अकीक पहनने से व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति ज्यादा समर्पित होता है। ऐसा माना जाता हैकाम में मन लगता है और बेकार की बातें मन में नहीं आती हैं। हृदय और मस्तिष्क के बीच संतुलन बनाता है जिससे निर्णय क्षमता में भी सुधार होता है।
सुलेमानी अकीक रिश्तों को अच्छा बनाए रखने के लिए भी बहुत उपयोगी माना गया है। एक लाभकारी रत्न है
संपर्क करे --+917697961597
Saturday, 26 August 2017
Wednesday, 23 August 2017
श्रीगणेश के 32 रूप कोन कोन से है
श्रीगणेश के 32 रूप कोन कोन से है
shree ganesh ji ke 32 rup kon -kon se hai
वेदों के अनुसार गणपति सबके गण है जिसमें विघ्न भी एक गण है और गणपति इसी विघ्न रूपी गण को जीवन से दूर करते हैं। गणपति वाक यानि वाणी के भी देवता हैं। उनके जन्म का रहस्य गणपति पुराण में विस्तार से मिलता है।
गणपति पुराण के अनुसार वैसे तो श्रीगणेश के 32 रूप हैं लेकिन उनमें से प्रमुख हैं- विद्या गणपति, लक्ष्मी गणपति, हारिद्र गणपति, हेरांब गणपति, चिंतामणि गणपति, ढुंढ़ि गणपति, विजय गणपति, उच्चिष्ट गणपति, अर्क गणपति, लंबोदर गणपति और रिद्धि-सिद्धि गणपति
गणपति के इन रूपों के अलावा उनकी और भी चमत्कारी प्रतिमायें हैं। इन प्रतिमाओं की उपासना करने से अलग अलग प्रकार की सिद्धियां और मनोकामनायें पूरी हो सकती हैं।
बाल गणपति- ये गणपति उदयकाल के सूर्य के रूप में है, संतान प्राप्ति के लिए इनकी पूजा करें।
भक्त गणपति- शरदकाल के चंद्रमा के रूप में हैं गणपति, मानसिक तनाव को दूर करने के लिए इनकी पूजा करें।
वीर गणपति- शत्रु संहार के स्वरूप में है, कोर्ट-कचहरी और मुकदमें में विजय के लिए गणपति के इस स्वरूप की पूजा करें।
शक्ति गणपति- माता के साथ विराजमान हैं शक्ति गणपति। विभिन्न प्रकार की शक्तियों के लिए इनकी पूजा करें।
विद्या गणपति- किताब के साथ विराजते हैं विद्या गणपति। परीक्षा में सफलता के लिए विद्या गणपति की पूजा करें।
लक्ष्मी गणपति- जिन गणेश के हाथ में कमल का फूल हो उस स्वरूप को लक्ष्मी गणपति कहते हैं। धन पाने के लिए इस स्वरूप की पूजा करें।
चिंतामणि गणेश-जीवन की सब चिंताओं को दूर करने के लिए चिंतामणि गणेश की आराधना करें।
काशी गणपति- गणपति का ये रूप काशी में स्थापित हैं। कार्य सिद्दि के लिए के लिए करें काशी गणपति की आराधना करें।
रत्न गणपति- हर प्रकार की सिद्धियों के लिए रत्न गणपति की आराधना करनी चाहिये।
ऋणमोचक गणपति- हर प्रकार के कर्ज़ और कारागार से मुक्ति के लिए ऋणमोचक गणपति की पूजा करनी चाहिये।
डूंडी विनायक- यात्रा में सफलता के लिए विनायक के इस रूप की पूजा करें।
हेरांब गणपति- शेर पर विराजते हैं हेरांब गणपति। इन्हें शुभंकर गणपति भी कहा जाता है। माता-पिता की गोद में गणेश का ये स्वरूप बेहद निराला और मनोहारी है। अगर माता-पिता से आपके संबंध अच्छे नहीं हैं तो अच्छे रिश्तों के लिए हेरांब गणपति की आराधना करें।
विजय गणपति- अभय मुद्रा वाले गणपति को विजय गणपति कहते हैं। सर्व साधन, सर्व सुख और यात्रा में सफलता के लिए विजय गणपति की आराधना करें।
उच्चिष्ट गणपति- गणपति का ये तांत्रिक स्वरूप है। सभी तरह की सिद्धियों के लिए उच्चिष्ट गणपति की आराधना करें।
द्विज गणपति- चार मुख वाले गणपति को द्विज गणपति कहते हैं। द्विज गणपति आपकी सारी मनोकामना जल्द पूरी करते हैं।
उद्र गणपति - उद्र गणपति के 8 हाथ हैं और स्वर्ण का शरीर है। ये अपनी माता पार्वती के साथ बैठे हैं। ग्रह दोष निवारण और युद्ध में सफलता के लिए उद्र गणपति की पूजा करें।
नृत्य गणपति- शिव ही नहीं गणपति भी आनंद तांडव करते है। भौतिक सुख-सुविधाएं और वाहन पाने के लिए नृत्य गणपति की पूजा करें।
गणपति पुराण के अनुसार वैसे तो श्रीगणेश के 32 रूप हैं लेकिन उनमें से प्रमुख हैं- विद्या गणपति, लक्ष्मी गणपति, हारिद्र गणपति, हेरांब गणपति, चिंतामणि गणपति, ढुंढ़ि गणपति, विजय गणपति, उच्चिष्ट गणपति, अर्क गणपति, लंबोदर गणपति और रिद्धि-सिद्धि गणपति
गणपति के इन रूपों के अलावा उनकी और भी चमत्कारी प्रतिमायें हैं। इन प्रतिमाओं की उपासना करने से अलग अलग प्रकार की सिद्धियां और मनोकामनायें पूरी हो सकती हैं।
बाल गणपति- ये गणपति उदयकाल के सूर्य के रूप में है, संतान प्राप्ति के लिए इनकी पूजा करें।
भक्त गणपति- शरदकाल के चंद्रमा के रूप में हैं गणपति, मानसिक तनाव को दूर करने के लिए इनकी पूजा करें।
वीर गणपति- शत्रु संहार के स्वरूप में है, कोर्ट-कचहरी और मुकदमें में विजय के लिए गणपति के इस स्वरूप की पूजा करें।
शक्ति गणपति- माता के साथ विराजमान हैं शक्ति गणपति। विभिन्न प्रकार की शक्तियों के लिए इनकी पूजा करें।
विद्या गणपति- किताब के साथ विराजते हैं विद्या गणपति। परीक्षा में सफलता के लिए विद्या गणपति की पूजा करें।
लक्ष्मी गणपति- जिन गणेश के हाथ में कमल का फूल हो उस स्वरूप को लक्ष्मी गणपति कहते हैं। धन पाने के लिए इस स्वरूप की पूजा करें।
चिंतामणि गणेश-जीवन की सब चिंताओं को दूर करने के लिए चिंतामणि गणेश की आराधना करें।
काशी गणपति- गणपति का ये रूप काशी में स्थापित हैं। कार्य सिद्दि के लिए के लिए करें काशी गणपति की आराधना करें।
रत्न गणपति- हर प्रकार की सिद्धियों के लिए रत्न गणपति की आराधना करनी चाहिये।
ऋणमोचक गणपति- हर प्रकार के कर्ज़ और कारागार से मुक्ति के लिए ऋणमोचक गणपति की पूजा करनी चाहिये।
डूंडी विनायक- यात्रा में सफलता के लिए विनायक के इस रूप की पूजा करें।
हेरांब गणपति- शेर पर विराजते हैं हेरांब गणपति। इन्हें शुभंकर गणपति भी कहा जाता है। माता-पिता की गोद में गणेश का ये स्वरूप बेहद निराला और मनोहारी है। अगर माता-पिता से आपके संबंध अच्छे नहीं हैं तो अच्छे रिश्तों के लिए हेरांब गणपति की आराधना करें।
विजय गणपति- अभय मुद्रा वाले गणपति को विजय गणपति कहते हैं। सर्व साधन, सर्व सुख और यात्रा में सफलता के लिए विजय गणपति की आराधना करें।
उच्चिष्ट गणपति- गणपति का ये तांत्रिक स्वरूप है। सभी तरह की सिद्धियों के लिए उच्चिष्ट गणपति की आराधना करें।
द्विज गणपति- चार मुख वाले गणपति को द्विज गणपति कहते हैं। द्विज गणपति आपकी सारी मनोकामना जल्द पूरी करते हैं।
उद्र गणपति - उद्र गणपति के 8 हाथ हैं और स्वर्ण का शरीर है। ये अपनी माता पार्वती के साथ बैठे हैं। ग्रह दोष निवारण और युद्ध में सफलता के लिए उद्र गणपति की पूजा करें।
नृत्य गणपति- शिव ही नहीं गणपति भी आनंद तांडव करते है। भौतिक सुख-सुविधाएं और वाहन पाने के लिए नृत्य गणपति की पूजा करें।
Tuesday, 22 August 2017
हरतालिका तीज व्रत 2017 शुभ मुहूर्त
हरतालिका तीज व्रत 2017 शुभ मुहूर्त
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज व्रत कुमारी औरसौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पति की कामना और पति की लंबी आयु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस बार तीज का पर्व शुभ व सुखद संयोग लेकर आया है। तृतीया तिथि 24 तारीख को सुबह 5:45 बजे से लग जाएगी इसलिए व्रत रखने वाली महिलाएं और लड़कियां इससे पहले ही सरगी कर लें। सरगी यानी व्रत लेने की प्रक्रिया। यह व्रत ककड़ी के सेवन से लिया जाता है और ककड़ी के सेवन से ही खोला जाता है।
पूजा करने का शुभ मुहूर्त
प्रात:काल हरतालिका तीज- सुबह 05:45 से सुबह 08:18 बजे तक
प्रदोषकाल हरतालिका तीज- शाम 6:30 बजे से रात 08:27 बजे तक
पूजा का वक्त- 1 घंटा 56 मिनट
हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
Monday, 21 August 2017
श्रीगणेश पूजनविधि गणेश-चतुर्थी के दिन करे स्थापना
श्रीगणेश पूजनविधि गणेश-चतुर्थी के दिन करे स्थापना
ganesh pujan vidhi
पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |
विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -
और आवाहन करें -
गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||
और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन-
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||
पाद्य (पैर धुलना)-
उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||
आर्घ्य(हाथ धुलना )-
अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||
आचमन -
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||
स्नान -
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||
दूध् से स्नान -
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||
दही से स्नान-
पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||
घी से स्नान -
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शहद से स्नान-
तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शर्करा (चीनी) से स्नान -
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||
मधुपर्क -
कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||
गन्ध -
श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||
रक्त(लाल )चन्दन-
रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||
रोली -
कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||
सिन्दूर-
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||
अक्षत -
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||
पुष्प-
पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||
पुष्प माला -
माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||
बेल का पत्र -
त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||
शमीपत्र -
शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||
अबीर गुलाल -
अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||
आभूषण -
अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||
सुगंध तेल -
चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||
धूप-
वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||
दीप -
आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||
नैवेद्य-
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||
मध्येपानीय -
अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||
ऋतुफल-
नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ||
आचमन -
गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||
अखंड ऋतुफल -
इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||
ताम्बूल पूंगीफलं -
पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||
दक्षिणा(दान)-
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||
आरती -
चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||
पुष्पांजलि -
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||
प्रार्थना-
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम ||
श्री गणेश जी की आरती
अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||
आचमन -
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||
स्नान -
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||
दूध् से स्नान -
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||
दही से स्नान-
पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||
घी से स्नान -
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शहद से स्नान-
तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शर्करा (चीनी) से स्नान -
इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
पंचामृत से स्नान -
पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान -
मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
वस्त्र -
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||
उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )-
सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||
यज्ञोपवीत -
नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||
मधुपर्क -
कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||
गन्ध -
श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||
रक्त(लाल )चन्दन-
रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||
रोली -
कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||
सिन्दूर-
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||
अक्षत -
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||
पुष्प-
पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||
पुष्प माला -
माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||
बेल का पत्र -
त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||
दूर्वा -
त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||
दूर्वाकर -
दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||शमीपत्र -
शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||
अबीर गुलाल -
अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||
आभूषण -
अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||
सुगंध तेल -
चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||
धूप-
वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||
दीप -
आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||
नैवेद्य-
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||
मध्येपानीय -
अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||
ऋतुफल-
नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ||
आचमन -
गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||
अखंड ऋतुफल -
इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||
ताम्बूल पूंगीफलं -
पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||
दक्षिणा(दान)-
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||
आरती -
चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||
पुष्पांजलि -
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||
प्रार्थना-
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम ||
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय ...................................................
अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय ...................................................
हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय ....................................................
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |
कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय ...................................................
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