दक्षिणावर्ती शंख--के प्रयोग से बंद व्यापार भी चल निकलता है
Dakshinavarti Shankh ke paryog se band vyapar bhi chal nikalta hai
शंख संहिता के अनुसार सभी प्रकार के शंखों की स्थापना घरों में की जा सकती है। शंख को तीन भागों में विभक्त किया गया है। जैसे वामावर्ती, दक्षिणावर्ती और मध्यावर्ती। वामावर्ती बजने वाले शंख होते हैं उनका मुंह बाईं ओर होता है तथा ये बाईं ओर से खुलते हैं। दक्षिणामुखी एक विशेष जाति का दुर्लभ अद्भुत् चमत्कारी शंख दाहिने तरफ खुलने की वजह से दक्षिणावर्ती शंख कहलाते हैं।दक्षिणावर्ती शंख मुख बंद होता है इसलिए यह शंख बजाया नहीं जाता केवल पूजा कार्य में ही इसका उपयोग होता है दक्षिणावर्ती शंख की उत्पत्ति समुद्र के गर्भ से होती है। यह शंख अपने चमत्कारी प्रभाव के कारण दुर्लभ व मूल्यवान भी होता है। शुद्ध व असली दक्षिणावर्ती शंख को प्राप्त कर, सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठित, जागृत कर अपने व्यवसाय स्थल, उद्योग, कार्यालय, दुकान, भवन के पूजा स्थल पर स्थापित करें। पूजा करने के बाद शंख में जल, दूध, गंगा जल, भरकर छिड़काव व शंखोदक जल से आचमन करने से दरिद्रता, कर्ज और दुर्भाग्य का नाश होता है और भाग्य प्रवाह में वृद्धि होती है। चिर स्थाई चंचल लक्ष्मी सुख समृद्धि का स्थाई वास होता है। शंख संहिता में दक्षिणावर्ती शंख कल्प के बारे में लिखा है कि जब व्यक्ति सभी तरफ से दरिद्रता के चक्कर में फंस जाता है, चारों ओर से निराशा, व्यापार में असफलता, जब आर्थिक उन्नति के उपाय विफल नजर आते हैं तब दुनिया में एक आर्थिक उन्नति का आध्यात्मिक उपाय है दक्षिणावर्ती शंख। इसकी विधिपूर्वक स्थापना कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है। समुद्र देव द्वारा निर्मित इस तेजस्वी शंख को जो भी मनुष्य अपने घर और व्यापार स्थल के पूजा स्थान अथवा गल्ले, तिजोरी में रखकर नित्य पूजन और दर्शन करता है वहां से दरिद्रता, अभाव, असफलता और रोगों का नाश होता है। ये शास्त्रोक्त सत्य है। दक्षिणावर्ती शंख लक्ष्मी का सहोदर है। भगवती महालक्ष्मी और दक्षिणावर्ती शंख दोनों की ही उत्पत्ति समुद्र से हुई है।
दक्षिणावर्ती शंख पूजन
>स्थापना पश्चात दक्षिणावर्ती शंख का नियमित पूजन एवं दर्शन करना चाहिए. शीघ्र फल प्राप्ति के लिए स्फटिक या कमलगट्टे की माला द्वारा
“ऊँ ह्रीं श्रीं नम: श्रीधरकरस्थाय पयोनिधिजातायं
लक्ष्मीसहोदराय फलप्रदाय फलप्रदाय
श्री दक्षिणावर्त्त शंखाय श्रीं ह्रीं नम:।”
लक्ष्मीसहोदराय फलप्रदाय फलप्रदाय
श्री दक्षिणावर्त्त शंखाय श्रीं ह्रीं नम:।”
मंत्र का जाप करना चाहिए. यह शंख दरिद्रता से मुक्ति, यश और कीर्ति वृद्धि, संतान प्राप्ति तथा शत्रु भय से मुक्ति प्रदान करता है.
तंत्र में दक्षिणावर्ती शंख
तांत्रिक प्रयोगों में भी दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग किया जाता है, तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख में विधि पूर्वक जल रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है. सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बनता है और नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है. इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान पर छिड़कने से तंत्र-मंत्र इत्यादि का प्रभाव समाप्त हो जाता है. भाग्य में वृद्धि होती है किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख उपयोग द्वारा निष्फल हो जाते हैं, दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है इसलिए यह जहां भी स्थापित होता है वहां धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त होती हैं.
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