Wednesday, 29 May 2013

jab kishi stri-purush ko prkhana ho to asey prkae


जब किसी स्त्री-पुरुष को परखना हो तो ऐसे परखें



jab kishi stri-purush ko prkhana ho to asey prkae 






किसी व्यक्ति को देखकर उसके मन की बात मालूम करना आसान काम नहीं है। जिन लोगों के पास अनुभव और दूसरों को समझने की शक्ति होती है वे ही किसी इंसान को देखकर उसके विषय में कुछ समझ सकते हैं।
यदि आप भी आपके आसपास के लोगों में कोई इंसान अच्छा है या नहीं यह जानना चाहते हैं तो आचार्य चाणक्य की यह नीति अपनाएं...किसी व्यक्ति को देखकर उसके मन की बात मालूम करना आसान काम नहीं है। जिन लोगों के पास अनुभव और दूसरों को समझने की शक्ति होती है वे ही किसी इंसान को देखकर उसके विषय में कुछ समझ सकते हैं।

यदि आप भी आपके आसपास के लोगों में कोई इंसान अच्छा है या नहीं यह जानना चाहते हैं तो आचार्य चाणक्य की यह नीति अपनाएं...आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सोना असली है या नकली, इसकी पहचान करने के लिए उसे कठीन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। सोने को घिसकर, काटकर, तपाकर और पीटकर ही उसकी परख होती है। ठीक इसी प्रकार किसी इंसान परखने के लिए उसके चार गुणों को मुख्य रूप से देखना चाहिए। ये गुण हैं व्यक्ति की त्याग क्षमता, शील, गुण और कर्म।व्यक्ति की अच्छाई का पता लगाने के लिए सबसे पहले उसकी त्याग क्षमता देखना चाहिए। यदि वह व्यक्ति किसी के लिए कुछ त्यागने में संकोच नहीं करता है, यदि उसके चरित्र अच्छा है, उसके गुण अच्छे हैं और अन्य लोगों के प्रति उसका आचरण अच्छा है तो नि:सदेह ऐसे लोग अच्छे इंसान होते हैं।

nrmda ji ke ye chamatakri shiv ling jo pane vale ka bhagya khukta hai







नदी से निकलते हैं ये चमत्कारी शिवलिंग, पाने वाले का खुलता है भाग्य




nrmda ji ke ye  chamatakri  shiv ling  jo pane vale ka bhagya khukta hai

हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे 

हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे हर नर्मदे 










कुदरत को शिव का ही रूप माना गया है। यही वजह है कि शास्त्रों में भी प्राकृतिक शिवलिंग पूजा का बहुत महत्व है। वहीं स्वयंभू शिवलिंग पूजा में गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है। ऐसे ही प्राकृतिक और स्वयंभू शिवलिंगों में प्रसिद्ध है - बाणलिंग। जानिए दर्शन भर से भाग्य संवारने वाले अद्भुत बाणलिंगों के बारे में वो खास बातें, जिनसे आप भी अनजान हैं- रअसल, पवित्र नर्मदा नदी के किनारे पाया जाने वाला एक विशेष गुणों वाला पाषाण ही बाणलिंग कहलाता है। बाणलिंग शिव का ही एक रूप माना जाता है। इसकी खास खूबी यही है कि यह प्राकृतिक रूप से ही बनता है। इसलिए यह स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना जाता है और इनके केवल दर्शन भर ही भाग्य संवारने वाला बताया गया है।  हालांकि बाणलिंग गंगा नदी में भी पाए जाते हैं, किंतु नर्मदा नदी में पाए जाने वाले बाणलिंगों के पीछे पौराणिक महत्व है। नर्मदा नदी व उसके नजदीक पाए जाने से बाणलिंग को नर्मदेश्वर लिंग भी पुकारा जाता है। इस बाणलिंग कहने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है।मान्यता है कि महादानी बलि के पुत्र बाणासुर ने इन लिंगों को पूजा के लिए बनाया था। उसने तप कर शिव को प्रसन्न किया और वरदान पाया कि शिव हमेशा लिंग रूप में इस पर्वत पर रहें। उसने ही नर्मदा नदी के तट पर स्थित पहाड़ों पर इन शिवलिंगों को विसर्जित किया था। बाद में यह बाणलिंग पहाड़ों से गिरकर नर्मदा नदी में बह गए। तब से ही इस नदी के किनारे यह बाणलिंग पाए जाते हैं। माना जाता है कि बाणलिंग की पूजा से हजारों शिवलिंग पूजा का पुण्य मिलता है। किंतु शास्त्रों में बताई गई कसौटी पर खरे उतरने वाले बाणलिंग ही शुभ फल देने वाले होते हैं। इस परीक्षा में वजन, रंग और आकृति के आधार पर गृहस्थ और संन्यासियों के लिए अलग-अलग बाणलिंग होते हैं।
बाणलिंग संगमरमर की तरह चमकदार, साफ, छेदरहित होते हैं। इसलिए वजन में भारी भी होते हैं। हालांकि नर्मदेश्वर या बाणलिंग को स्वयंभू शिवलिंग बताया गया है। इसलिए इसकी प्राण-प्रतिष्ठा के बगैर भी पूजा की जा सकती है। किंतु धर्म आस्था व परंपराओं में  बाणलिंग मिलने के बाद यथाशक्ति उसका संस्कार कर वेदी पर रखा जा सकता है। इसमें गणेश पूजा, स्नान, ध्यान, सोलह पूजा सामग्रियों से पूजा की जाती है। शिव मंत्रों के जप और स्तुति के पाठ किए जाते हैं। बाणलिंग पूजा ज्ञान, धन, सिद्धि और ऐश्वर्य देती है।
 
गृहस्थ लोगों के लिए नर्मदेश्वर या बाणलिंग की पूजा मंगलकारी मानी गई है। शास्त्रों में इसके ऊपर चढ़ाया गई चीजें या नैवेद्य शिव निर्माल्य के तौर पर त्याग न कर प्रसाद के रूप में ग्रहण की जा सकती हैं। 

harpurshe jane aese3kam jo dete hai bharpur shukh

harpurshe jane  aese3kam jo dete hai bharpur shukh 


हर पुरुष जानें ऐसे 3 काम, जो देते हैं भरपूर सुख





शास्त्रों में लिखा है कि - 
 
उत्तमै: सह साङ्गत्यं पण्डितै: सह सत्कथाम्। 
अलुब्धै: सह मित्रत्वं कुर्वाणो नावसीदति। 
 
जानते हैं इस बात का सरल और व्यावहारिक अर्थ - 
 
कहा गया है कि पुरुष 3 बातों के कारण कभी दु:खी नहीं होता। ये तीन बाते हैं - 
 
पहली अच्छे स्वभाव वाले सज्जनों की संगति। दूसरी ज्ञानी, विद्वानों से सत्कथा यानी अच्छी बातें सुनना और तीसरी ऐसे व्यक्ति से मित्रता जो लोभी न हो। 
 
सार यही है कि चूंकि संगति का प्रभाव ही अच्छा या बुरा बनाता है। इसलिए अगर कोई पुरुष अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति का संग करता है तो उसका स्वभाव, चरित्र और गुण भी उत्तम होते हैं। यही श्रेष्ठता जीवन में उसके लिये किसी भी वक्त और स्थान को अनुकूल बना देती है। इस तरह समय और स्थान के हिसाब से ढल जाना ही हमेशा सुख का कारण बनता है। 

Friday, 24 May 2013

aachar chanadyak ak aesi mahan vibhuti


aachar chanadyak  ak aesi mahan vibhuti




आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति





आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर 
भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए।

इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया।

वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं। चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ अंश - 

1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

7. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।

8. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।

9. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।

10. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।

11. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।

12. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।

13. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें अपने अधिकाधिक समय का वे‍दादि शास्त्रों के अध्ययन में तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।

14. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।

15. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

17. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

18. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

19. 
चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।

Monday, 20 May 2013

kal srp yog aor aap

काल सर्प योग  ओर आप 
kal srp yog aor aap




लग्न से लेकर सप्तम भाब के मध्य जब सभी ग्रहराहू केतु के बीचमें  आते है तो यह योग बनता है 

फल ->सघर्षमय जीवन विवाहित जीवन  कष्टमय कुटुम्ब को  छोड़ देना मुसीबते हा नी मानसिक परेशानी एवम अकारण भय  पीछानहीं छोड़ता  है 





दुसरे भाब से लेकर अष्टम भाब के मध्य जब सभी ग्रह राहु केतु के मध्य आते तब यह योग बनता है |


फल ---> धन को लेकर जीवन में उतार चढ़ाव  संघर्ष  रहता है  अपयंश अनेक परेशानी खर्च की अधिकता 

होती है आय की कमी पैसा  पास में नहीं टिकता धन धीरे धीरे जाने  लगे  अनहोनी धटनाये मानसिक अशांति 


धन प्रप्ति प्रयास असफल होते है |




जब तीसरे से नवम पर्यन्त ग्रह स्थित  हो राहुकेतु तीसरे एवम नवम में हो तब यह योग बनता है 


फल -->कुटुंब भाई बहनों की ओर से परेशानी मित्रो से धोका नोकरी धंधा में उलझन भाग्य का सुख नहीं मिलता धन  कामता है पर बदनामी लगी रहती है परिजनों के करणमुसीबत मानसिक तनाव ,यश पद के लिए पराक्रम  व् सघर्ष  करता है |






राहु -केतु चतुर्थ से दशम तक एवम इनके मध्य सभी ग्रह रहने से यह योग बनता है |



फल -->माता वाहन भूमि भवन नोकर -चा करआदि से परेशानी पिता या पति की ओर से कष्ट  विद्या में 

व्यापार में हानितनाव   विश्वासघातहमेशा अनुभव में  आते है सुख बाधा आती है |





राहु -केतु में पंचम से ग्यारहवे भाव पर्यन्त तथा अन्यसभी ग्रह इनकेमध्य में रहते है तब यह योग बनता है |


फल -->सन्तान विद्या में रुकावट  पुत्र की चिंता गुप्त शत्रु  जीवन साथी विश्वासपात्रनहीं मिलता लाभ में रुकावटमन में भय  चिंता  असफलता लगी रहती है |




इस योग में राहु -केतु छठवे भाव से व्यय स्थान तक एवम सभी ग्रह इनके मध्य में तो यह योग बनता है |



फल -->यह योग व्यकित को रोगी बनाता है लाख इलाज करने पर भी कोई न कोई रोग लगा रहता है गुप्त शत्रु से कष्ट यात्रा अधिक बाधा पग पग लगी रहती है |








सप्तम से लग्न तक राहु -केतु एवम इनके मध्य सभी ग्रह होने से यह योग बनता है |


फल विवाह में बाधा  दाम्पत्य जीवन तनाव पूर्ण  ,वियोग ,प्रेममें  असफल बदनामी  बनते कार्यो में रुकावटपद में हानि  भागीदारी में धोखा होता है |








आठवे भाव से दुसरे भाव तक राहु केतु एवम इनके मध्य सभी ग्रह होने से यह योग बनता है |


फल -->बहुतपरिश्रम  करने पर भी उसका फल नहीं मिलता आत्मीय जन से सम्मान नहीं  मिलता ,दुर्घटना 



का भय आयु की निशिच्नता पर प्रश्न चिन्ह लगे रहते है पैसा डूब जाता है दुश्मन कई ,वाणी पर नियन्त्र नहीं |




नवम भाब से तीसरे भाब तक राहु -केतु एवम उनके मध्य  सभी ग्रह होने से यह योग बनता है |

फल -->भाग्य उदय में परेशानी तरक्की में बाधा ,मित्रो ,बहनों मामा पक्षसे अनबन  अकारणअदालतके  चक्कर आत्मबल  की कमी कष्ट परेशानी  अवनति|



दशम भाव से  चतुर्थ भाव तक राहु केतु व् इनके मध्य में सभी  ग्रह होने से यह योग बनता है |

फल -->व्यापार में  घाटा भागीदारी  में धोखा  मनमुटाव ,सरकारी अधिकारीयोंसे  अनबन सुख के  लियेसघर्स  परिवार में भूमि ,माकन आदि कारणों से बिखराव विग्रह  कष्ट होता है |






ग्यारहवे भाव से पंचम पर्यन्त राहु -केतु के  मध्य में सभी  ग्रह होने से यह योग बनता है |



फल -->धन के मामले में बदनामी परिवार में कलह ,लाभ के सघर्ष  सन्तान की बीमारी ,दादा -दादी ,नानी नाना से लाभ  के स्थान पर हानि कुटुंब  से झगड़े उच्च  शिक्षा में बाधा भय देखनेमें आते  है |





बारहवे भाव से छठे भाव पर्यन्त राहु -केतु के   मध्य में सभी  ग्रह होने से यह योग बनता है |


फल -->धन की भरी चिंता कर्ज मानसिकउधिग्रता  निराशा मेहनत  के बाद भी कार्यो में सफलता नहीं जन्म स्थान देश से दूर नेत्र पीड़ा अनिद्रा  रहस्य पूर्ण जीवन  मृत्यु के  बाद ख्याति मिलती है |


 नोट -..काल सर्प योग  भंग भी होता है  इसके लिए कुंडली  का देखना आवश्यक है |शांति के कुछ गुप्त प्रयोग आप स्वमेव करे |


सम्पर्क ->skyep  --->muktadixit1975






JOKE TIME

JOKE  TIME


संता ने बेटे को रेलगाड़ी दी

संता अपने बेटे के लिए एक खिलौना रेलगाड़ी खरीद कर लाया। खिलौना देने के कुछ देर बाद जब वह बेटे के कमरे में गया तो देखा कि बच्चा रेलगाड़ी से खेल रहा है और कह रहा है - जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए। रेलगाड़ी दो मिनट से ज्यादा नहीं रुकेगी।

बच्चे के मुंह से यह भाषा सुनकर संता का पारा चढ़ गया। उसने बच्चे की कनपटी पर दो तमाचे लगाए और फिर कभी इस तरह से न बोलने की चेतावनी दी। फिर बोला - मैं दो घंटे के लिए बाजार जा रहा हूं। तब तक तुम सिर्फ पढ़ोगे, समझे!

दो घंटे बाद बाद जब संता लौटकर आया तो बच्चे को पढ़ते हुए पाया। यह देखकर उसका दिल पसीज गया और उसने बच्चे को फिर रेलगाड़ी से खेलने की इजाजत दे दी।


अबकी बार उसने बच्चे को कहते हुए सुना - जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए । गाड़ी पहले ही एक उल्लू के पट्ठे की वजह से दो घंटे लेट हो चुकी है।

तीन आदमी और भगवान

तीन आदमियों ने भगवान से वरदान मांगा।
पहला- मुझे सोने-चांदी से भरा एक कमरा दे दो।
दूसरा- मुझे हीरे पन्ने से भरा एक कमरा दे दो। 
तीसरा- मुझे इन दोनों के कमरों की चाबी दे दो।


संता के बाथरूम में भूत

एक बार संता सुबह-सुबह बैठ कर अखबार पढ़ रहा था।
तभी उसका दोस्‍त बंता वहां आया और बैठ के बतियाने लगा।
बातों-बातों में संता ने बताया कि 'यार बंता, कल रात मैं बाथरूम गया तो अंदर भूत था।'
बंता- फिर तूने क्या किया?
संता- करना क्या था, मैंने भूत से कहा कि तुम ही 'कर लो', मेरी तो वैसे भी निकल गई है।

संता को टीचर ने की मिस कॉल

संता क्लास में टीचर से- मिस, क्या आपने मुझे कल रात में कॉल किया था? 
टीचर- नहीं तो। मैं क्यों कॉल करूंगी?
संता- कमाल है। सुबह मेरे मोबाइल फोन पर लिखा था

Sunday, 19 May 2013

kre shiv ko prshnn --jane gupt pryog


करे शिव  को प्रशन्न---जाने गुप्त प्रयोग 


kre shiv ko prshnn --jane gupt pryog




करे शिव  को प्रशन्न---जाने गुप्त प्रयोग 


1 -वैशाख में किसी भी दिन पवित्र नदी  की मिट्टीलेकर आय |
२-सूर्य उदय के पूर्व ब्रम्ह मुहूर्तउठे एवम्मिटटी  में जल 

भिगोकर आपनी समय अनुसार  शिव  का ध्यान करते 

हुये  एक  शिव लिंग व् ११ ,२१ ,५१ ,१०८ रुद्री व् सर्प  


वनावे|  मनोकामना बोलते हुए  शिव मन्त्र  आवहन  

आदि  करते हुए  षोडश उपचार पूजन करे एवमनित्य 

विसर्जनकरे  ४१ दिन करे  गुप्त रूप से  जो भी 


मनोकामनाहो  पूरी होगी |


Wednesday, 15 May 2013

YE HAI VSHA ME KRNE KA MULMNTR ,STRIHO YA PURUSHHO JAYAGE AAPKE VSH ME


ये है वश में करने का मूलमंत्र, स्त्री हो या पुरुष हो जाएंगे आपके वश में















वशीकरण या किसी व्यक्ति को अपने नियंत्रण में करना बहुत मुश्किल कार्य है। सभी चाहते हैं कि सभी लोग उनकी बात सुने, उनके वश में रहे लेकिन ऐसा संभव नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति को कैसे वश में किया जाए... जानिए चाणक्य का बताया हुआ वशीकरण का मूलमंत्र..
 आचार्य चाणक्य कहते हैं कि...
लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् स्तब्धमंजलिकर्मणा।
मूर्खं छन्दानुवृत्त्या च यथार्थत्वेन पण्डितम्।।
इस श्लोक में आचार्य ने बताया है कि किस प्रकार हम कुछ खास लोगों को अपने वश में कर सकते हैं। हर व्यक्ति कुछ खास बातों की वजह से किसी से भी मोहित हो सकता है। चाणक्य ने वही खास बातें इस नीति में बताई हैं।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारे आसपास कई प्रकार के लोग हैं। कुछ धन के लोभी हैं तो कुछ घमंडी भी हैं। कुछ मूर्ख हैं तो कुछ लोग बुद्धिमान भी हैं। इन लोगों को वश में करने के कुछ सबसे सरल तरीके हैं। जैसे किसी लालची व्यक्ति को धन देकर वश में किया जा सकता है। वहीं जो लोग घमंड में चूर होते हैं उन्हें हाथ जोड़कर या उन्हें उचित मान-सम्मान देकर वश में किया जाना चाहिए।
बस इन बातों का सही समय पर उपयोग करना चाहिए। आगे दिए गए फोटो में जानिए कैसे वश में करें किसी को.यदि किसी मूर्ख व्यक्ति को वश में करना हो तो वह व्यक्ति जैसा-जैसा बोलता हैं हमें ठीक वैसा ही करना चाहिए। झूठी प्रशंसा से मूर्ख व्यक्ति वश में हो जाता है। इसके अलावा यदि किसी विद्वान और समझदार व्यक्ति को वश में करना है तो उसके सामने केवल सच ही बोलें। वह आपके वश में हो जाएगा।
इस प्रकार जो व्यक्ति धन का लालची है उसे पैसा देकर, घमंडी या अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी बात मान कर और विद्वान व्यक्ति को सच से वश में किया जा सकता है।
...
तैरना ही है तो आशा के समुद्र में तैरिए, निराशा के समुद्र में तैरने से क्या फायदा। आशा की समाप्ति ही जीवन की समाप्ति है। निराशा मृत्यु है।
परोपकार मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार में टंगी एक तस्वीर में भला क्या अंतर है।
जो व्यक्ति जीवन में सफल हैं, हम उन्हें देखें। उनके जीवन में सब कुछ व्यवस्थित ही नजर आएगा। वहां हर चीज आईने की तरह स्पष्ट होती है।
विपत्तियां आने पर भी सत्य और विवेक का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। क्योंकि यदि ये दोनों साथ हैं तो विपत्तियां खुद ही खत्म हो जाएंगी।
यदि आपको एक पल का भी अवकाश  मिले, तो उसे सद्कर्म में लगाओ क्योंकि कालचक्र आप से भी अधिक क्रूर और उपद्रवी है।
इस जीवन को खोए हुए अवसरों की कहानी मत बनने दो। जहां अच्छा मौका दिखे,वहां तुरंत छलांग लगाओ। पीछे मुड़कर मत देखो।
मीठे शब्दों में कही गई बात कई तरह से कल्याण करती है। लेकिन यदि वही बात कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है।
गुणों में दोष न देखना, सरलता, प्रिय वचन बोलना, संतोष, पवित्रता, इंद्रिय दमन, अचंचलता और सत्य भाषा का गुण पुण्य आत्मा वाले पुरुषों में ही होते हैं।
देवता लोग किसी की रक्षा के लिए डंडा लेकर पहरा नहीं देते हैं। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं।
मूर्ख मनुष्य विद्वानों को अपशब्द कहकर और उनकी निंदाकर दुख पहुंचाते हैं। अपशब्द कहने वाला पाप का भागी होता है व क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।
जैसे सूखी लकड़ी के साथ मिलकर गीली लकड़ी जाती है। वैसे ही दुष्टों का त्याग न कर उनके साथ मिलने से जिस तरह पानी को कोई जल, कोई नीर, कोई वॉटर कहता है। वैसे ही सच्चिदानंद को कोई परमेश्वर, कोई अल्लाह, कोई गॉड कहकर पुकारता है। 
मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं, अपने कर्मों से होता है। यश और कीर्ति भी कर्मों से ही मिलती है। इसलिए कर्म करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। 
यदि हमारे अंदर बुरे तत्व अधिक हैं तो हमें सामने वाले की बुराइयां ही अधिक दिखेंगी। यदि अच्छे तत्व अधिक हैं तो अच्छाइयां दिखाई देंगी। 
लोक प्रशंसा सभी को प्रिय होती है। यह वहां से शुरू होती है, जहां से परिचय खत्म होता है। प्रशंसा वह हथियार है जिससे शत्रु को भी मित्र बनाता है।निराशावाद भयंकर राक्षस है, जो हमारे नाश की ताक में बैठा रहता है। इससे जीवन के बहुमूल्य तत्व नष्ट हो जाते हैं। इससे विजय के कई मौके लुप्त हो जाते हैं।  
पाप अग्नि का कुंड है। यह ऐसा कुंड है जो आदर, मान, साहस, धैर्य और ऐश्वर्य सभी को एक ही क्षण में जलाकर भस्म कर देता है। 
दुर्बलता का दूसरा नाम परिस्थिति है। मनुष्य ही परिस्थितियों का निर्माण करता है और निर्माण कर (टैक्स) चुकाने में असफल होने पर भाग्य को दोष देता है। 
साधना प्रतिभा का विश्वास है। कोई भी साधना जल्दी परिणाम नहीं दिखाती। साधना की पहली सीढ़ी है साधना के लिए साधना करना। यह सब्र मांगती है। निरपराध लोगों को भी उन्हीं के समान दंड मिलता है।

Monday, 13 May 2013

teji mandi

dhatu sona chandi me teji 14-5-2013

vyapar me anmol chance

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Sunday, 12 May 2013

akshaya tritiya

akshaya  tritiya

 अक्षय तृतीया का माहात्म्य






शास्त्रों में अक्षय तृतीया एवं अक्षय तृतीया का माहात्म्य
 शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।
# इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
# श्री परशुरामजी का अवतरण भी इसी दिन हु‌आ था।
#  इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।*
#  नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था।
#  हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हु‌आ था।
#  वृंदावन के श्री बाँकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढँके रहते हैं।
# जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है।
#  इस दिन परशुरामजी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
#  श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।
अक्षयतृतीया में शादी  विवाह  सोलहसस्कार एवम           वस्तुऔ  का क्रय भूमि  वाहन दान पूजा  आदि करने  से अक्षयं पुण्य कि प्राप्ति होती है