ये है वश में करने का मूलमंत्र, स्त्री हो या पुरुष हो जाएंगे आपके वश में
वशीकरण या किसी व्यक्ति को अपने नियंत्रण में करना बहुत मुश्किल कार्य है। सभी चाहते हैं कि सभी लोग उनकी बात सुने, उनके वश में रहे लेकिन ऐसा संभव नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति को कैसे वश में किया जाए... जानिए चाणक्य का बताया हुआ वशीकरण का मूलमंत्र..
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि...
लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् स्तब्धमंजलिकर्मणा।
मूर्खं छन्दानुवृत्त्या च यथार्थत्वेन पण्डितम्।।
इस श्लोक में आचार्य ने बताया है कि किस प्रकार हम कुछ खास लोगों को अपने वश में कर सकते हैं। हर व्यक्ति कुछ खास बातों की वजह से किसी से भी मोहित हो सकता है। चाणक्य ने वही खास बातें इस नीति में बताई हैं।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारे आसपास कई प्रकार के लोग हैं। कुछ धन के लोभी हैं तो कुछ घमंडी भी हैं। कुछ मूर्ख हैं तो कुछ लोग बुद्धिमान भी हैं। इन लोगों को वश में करने के कुछ सबसे सरल तरीके हैं। जैसे किसी लालची व्यक्ति को धन देकर वश में किया जा सकता है। वहीं जो लोग घमंड में चूर होते हैं उन्हें हाथ जोड़कर या उन्हें उचित मान-सम्मान देकर वश में किया जाना चाहिए।
इस प्रकार जो व्यक्ति धन का लालची है उसे पैसा देकर, घमंडी या अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी बात मान कर और विद्वान व्यक्ति को सच से वश में किया जा सकता है।
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तैरना ही है तो आशा के समुद्र में तैरिए, निराशा के समुद्र में तैरने से क्या फायदा। आशा की समाप्ति ही जीवन की समाप्ति है। निराशा मृत्यु है।
परोपकार मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार में टंगी एक तस्वीर में भला क्या अंतर है।
जो व्यक्ति जीवन में सफल हैं, हम उन्हें देखें। उनके जीवन में सब कुछ व्यवस्थित ही नजर आएगा। वहां हर चीज आईने की तरह स्पष्ट होती है।
विपत्तियां आने पर भी सत्य और विवेक का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। क्योंकि यदि ये दोनों साथ हैं तो विपत्तियां खुद ही खत्म हो जाएंगी।
यदि आपको एक पल का भी अवकाश मिले, तो उसे सद्कर्म में लगाओ क्योंकि कालचक्र आप से भी अधिक क्रूर और उपद्रवी है।
इस जीवन को खोए हुए अवसरों की कहानी मत बनने दो। जहां अच्छा मौका दिखे,वहां तुरंत छलांग लगाओ। पीछे मुड़कर मत देखो।
मीठे शब्दों में कही गई बात कई तरह से कल्याण करती है। लेकिन यदि वही बात कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है।
गुणों में दोष न देखना, सरलता, प्रिय वचन बोलना, संतोष, पवित्रता, इंद्रिय दमन, अचंचलता और सत्य भाषा का गुण पुण्य आत्मा वाले पुरुषों में ही होते हैं।
देवता लोग किसी की रक्षा के लिए डंडा लेकर पहरा नहीं देते हैं। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं।
मूर्ख मनुष्य विद्वानों को अपशब्द कहकर और उनकी निंदाकर दुख पहुंचाते हैं। अपशब्द कहने वाला पाप का भागी होता है व क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।
जैसे सूखी लकड़ी के साथ मिलकर गीली लकड़ी जाती है। वैसे ही दुष्टों का त्याग न कर उनके साथ मिलने से जिस तरह पानी को कोई जल, कोई नीर, कोई वॉटर कहता है। वैसे ही सच्चिदानंद को कोई परमेश्वर, कोई अल्लाह, कोई गॉड कहकर पुकारता है।
मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं, अपने कर्मों से होता है। यश और कीर्ति भी कर्मों से ही मिलती है। इसलिए कर्म करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
यदि हमारे अंदर बुरे तत्व अधिक हैं तो हमें सामने वाले की बुराइयां ही अधिक दिखेंगी। यदि अच्छे तत्व अधिक हैं तो अच्छाइयां दिखाई देंगी।
लोक प्रशंसा सभी को प्रिय होती है। यह वहां से शुरू होती है, जहां से परिचय खत्म होता है। प्रशंसा वह हथियार है जिससे शत्रु को भी मित्र बनाता है।निराशावाद भयंकर राक्षस है, जो हमारे नाश की ताक में बैठा रहता है। इससे जीवन के बहुमूल्य तत्व नष्ट हो जाते हैं। इससे विजय के कई मौके लुप्त हो जाते हैं।
पाप अग्नि का कुंड है। यह ऐसा कुंड है जो आदर, मान, साहस, धैर्य और ऐश्वर्य सभी को एक ही क्षण में जलाकर भस्म कर देता है।
दुर्बलता का दूसरा नाम परिस्थिति है। मनुष्य ही परिस्थितियों का निर्माण करता है और निर्माण कर (टैक्स) चुकाने में असफल होने पर भाग्य को दोष देता है।
साधना प्रतिभा का विश्वास है। कोई भी साधना जल्दी परिणाम नहीं दिखाती। साधना की पहली सीढ़ी है साधना के लिए साधना करना। यह सब्र मांगती है। निरपराध लोगों को भी उन्हीं के समान दंड मिलता है।
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