Saturday, 30 September 2017

श्री सूक्तं का पाठ हिन्दी व संस्कृत मे अतुल लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु

श्री सूक्तं का पाठ हिन्दी व  संस्कृत मे अतुल लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु 

shree sukt hindi va sanskrit me  atul laxmi hatu 



श्री सूक्त में पंद्रह मन्त्र है  इसके पाठ से अतुल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और श्री यंत्र के साथ पूजा करने से धन वर्षा होती है 
                                                          श्री सूक्तं अर्थ सहित
Image result for लक्ष्मी           ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
           चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह। (१)
हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली चाँदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ। 
         ॐ तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्
            यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं परुषानहम।। (२)
हे जातवेदा अग्निदेव आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै सुवर्ण,गौअश्व और पुत्र पोत्रदि को प्राप्त करूँ। 
             ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनिम। 
                 श्रियं देविमुप हवये श्रीर्मा देवी जुस्ताम।। () 

जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं ,ऐसे रथ में बैठी हुई ,हथियो की निनाद स संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ। दीप्यमान तथा सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर मई सर्वदा निवास करे
       ॐ कां सोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। 
                    पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम्।। ()
जिसका स्वरूप वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्यायुक्ता हैजो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं। स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली। कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ।

        ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुस्टामुदराम्।
            तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां तवां वृणे।।(५)
चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृत कान्तिवाली अपनी कीर्ति से देदीप्यमान स्वर्ग लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित अत्यंत दानशीला ,कमल के मध्य रहने वाली ,सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदाती ,जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ। अतः मैं तुम्हारा आश्रय लेता हूँ 

        ॐ आदित्यवर्णे तप्सोअधि जातो वनस्पतिस्तव व्रक्षोथ बिल्वः।
          तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य अलक्ष्मीः।।(६)
हे सूर्य के समान कांति वाली देवी अप्पके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक वृक्ष विशेष उत्पन्न हुआ। तदन्तर अप्पके हाथ से बिल्व का वृक्ष उत्पन्न हुआ। उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें।।

                 उपैतु मां देवसखः किर्तिक्ष्च मणिना सह।
               प्रदुभुर्तॉस्मि रास्ट्रेअस्मिन् कीर्तिंमृद्विमं ददातु मे।(७)

हे लक्ष्मी ! देवसखा अर्थात श्री महादेव के सखा (मित्र ) इन्द्र ,कुबेरादि देवतओं की अग्नि मुझे प्राप्त हो अर्थात मैं अग्निदेव की उपासना करूँ। एवं मणि के साथ अर्थात चिंतामणि के साथ या कुबेर के मित्र मणिभद्र के साथ या रत्नों के साथ ,कीर्ति कुबेर की कोशशाला या यश मुझे प्राप्त हो अर्थात धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। मैं इस संसार में उत्पन्न हुआ हूँ अतः हे लक्ष्मी आप यश और एश्वर्या मुझे प्रदान करें।
                   क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
                  अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात्।।()
भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ। हे लक्ष्मी  आप मेरे घर में अनैश्वर्य तथा धन वृद्धि के प्रतिब धकविघ्नों को दूर करें।
                 गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यापुष्टां करीषिणीम्।
                 ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम्।।(९)
सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य,किसी से भी न दबने योग्य। धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर गोउ ,अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार मैं सादर बुलाता हूँ।।

                  मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
                 पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।(१०)

हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प। वाणी की सत्यता,गोउ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि एवं याव्ब्रिहादीएवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य ,भोज्य। चोष्य,चतुर्विध भोज्य पदार्थ ) इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ। सम्पति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ।।

                       कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
                      श्रियम वास्य मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।(११)

"कर्दम "नामक ऋषि -पुत्र से लक्ष्मी प्रक्रस्ट पुत्रवाली हुई है। हे कर्दम !तुम मुझमें अच्छी प्रकार से निवास करो अर्थात कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी को मेरे यहाँ रहना ही होगा। हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें ,केवल अतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की मत लक्ष्मी को मेरे घर में  निवास कराओ।।
               आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।
              नि च देवीं मातरं श्रियं वास्य मे कुले।।(12)

जिस प्रकार कर्दम ली संतति 'ख्याति 'से  लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार कल्पान्तर में भी समुन्द्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी अभिप्राय से कहा जा सकता है कि वरुण देवता स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें। (पदार्थो कि सुंदरता ही लक्ष्मी है। लक्ष्मी  के आनंदकर्दम,चिक्लीत और श्रित -ये चार पुत्र हैं। इनमे 'चिक्लीत से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक  लक्ष्मी  पुत्र ! तुम मेरे गृह में निवास करो। केवल तुम ही नहीं ,अपितु दिव्यगुण युक्त सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।
             आद्रॉ  पुष्करिणीं  पुष्टिं पिंडग्लां पदमालिनीम्।
            चन्द्रां  हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। (13)
हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडग्रा से अभिषिच्यमाना (आद्र शारीर वाली ) पुष्टि को देने वाली अथवा पुष्टिरूपा रक्त और पीतवर्णवाली ,कमल कि माला धारण करने वाली ,संसार को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप लक्ष्मी को बुलाओ।।
                 आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
               सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। (१४)
हे अग्निदेव !तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयद्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं,दुस्टों को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (सारांश  यह हें कि , 'जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता,उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना संसार का कोई भी कार्य नहीं चल सकता )सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा  (अर्थात जिस प्रकार सूर्य अपने प्रकाश और वृष्टि द्वारा जगत का पालन -पोषण करता है उसी प्रकार लक्ष्मी ,ज्ञान और धन के द्वारा संसार का पालन -पोषण करती है)अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।

               तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम् 
     यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योअश्र्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। (१५)
हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन जगद्विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र न जेन वाली हों ,उन्हें बुलाओ। जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं सुवर्ण उत्तम ऐश्वर्य ,गौ ,दासी ,घोड़े और पुत्र -पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ।

                यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
               सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्।। (१६)


जो मनुष्य लक्ष्मी कि कामना करता हो ,वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत  का हवन और साथ ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें।

Thursday, 28 September 2017

जानिए कैसे होते हैं अक्टूबर में -- जन्मे लोगो का स्वभाव करियर लकी डे


जानिए कैसे   होते हैं अक्टूबर में -- जन्मे लोगो का स्वभाव करियर लकी डे

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october me jnme log kaise hote hai 

यदि आपका जन्म किसी भी सन के अक्टूबर माह में हुआ है तो ज्योतिष  कहती है कि आप काफी बुद्धिमान और सौंदर्य प्रिय होते है. आप अत्यंत टेलेंटेड और मनी माइंडेड हैं। किस समस्या से कैसे छुटकारा पाना है ये कोई आपसे सीखे. आप काफी खुशमिजाज होते हैं और आपकी यही खासियत लोगों को आपका दीवाना बना देती है। आप घर में चाहे कितने भी अस्त-व्यस्त क्यों न हों लेकिन बाहर अपनी एक अलग छवि बनाकर चलते है और बाहर आपकी छवि सुव्यवस्थित भी मानी जाती है।अक्टूबर में जन्मे लोग सौंदर्य प्रिय और आकर्षक होते हैं। आमतौर पर ये कोमल स्वभाव के मालिक होते हैं, लेकिन खुल कर अपनी बात लोगों से कह नहीं पाते। ये किस्मत के तो धनी होते हैं लेकिन हर चीज संघर्ष से प्राप्त करते हैं। आमतौर पर अक्टूबर में जन्में लोग क्रियेटिव होते हैं। ये खूबसूरत निर्णय लेने वाले होते हैं। इन्हें गुस्सा कम ही आता है लेकिन जब भी आता है काफी तेज आता है। ये काफी खुशमिजाज होते हैं और उनकी यही अदा लोगों को उनका मुरीद बना देती है। ये रोमांटिक होते हैं लेकिन अपनी भावना को अपने पार्टनर से कहने में शर्माते हैं। दौलत-शौहरत हर चीज इनके कदम चूमती है लेकिन इन्हें घमंड नहीं होता। ये भावुक भी होते हैं लेकिन जीवन के बहुत सारे पहुलुओं में इनका प्रैक्टिकल रूप दिखता है। और परंपरावादी भी इसलिए हर दिल अजीज होते हैं।
आप अपने काम और करियर को लेकर कभी कोई समझौता नही करते.अक्टूबर माह में जन्मे अधिकतर युवा टेक्नोलॉजी, राजनीति, कला, बिजनेस या मेडिकल जैसे क्षेत्रो में सफल होते है. इसके साथ – साथ आप अपने क्षेत्र में शिखर तक पहुँच कर ही दम लेते हैं।आप निरंतर श्रेष्ठता के सपने देखते हैं और उन्हें पूरा भी करते हैं। आप किसी भी सबजेक्ट पर बहुत जल्दी अपनी राय नही देते जब तक उसके बारे में पूरी इन्फॉरमेशन प्राप्त ना कर ले। आप लॉ एंड ऑर्डर की रिस्पेक्ट करने वाले होते हैं।
अक्टूबर में जन्मे लोगो की लव लाइफ
प्यार के मामले में आप काफी शर्मीले होते है लेकिन रोमांस आपकी लाइफ में काफी मायने रखता है. आप अपने दिल की बात सबसे तो कह देंगे मगर जिससे कहना है उससे कभी खुलकर कह नहीं पाते हैं। आप काफी रोमांटिक होते हैं लेकिन अपनी भावना को अपने पार्टनर से कहने में शर्माते हैं।प्यार में अगर आपका दिल टूट जाता है तो आपको देखकर कोई भी ये नहीं कह सकता कि भीतर से आप एकदम टूटे हुए हैं। आपके चेहरे की मुस्कुराहट और आपके हाव भाव हर गम को छिपा जाती है। ब्रेक-अप के दौरान भी आप किसी पर आक्षेप नहीं लगाते, बल्कि चुपचाप अपनी राह पकड़ लेते हैं।आपका लकी नंबर – 2, 6, 7, 8। लकी कलर – चटक मेहरून, पिकॉक ग्रीन और रॉयल ब्लैक। लकी डे – मंगलवार गुरुबर शुकवार  लकी स्टोन – डायमंड  है।

Tuesday, 26 September 2017

देवी सूक्त देवी का सबसे प्रभाव करी पाठ

देवी सूक्त देवी का सबसे प्रभाव करी  पाठ devi sukt 




Durga Mata Imagesनमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता स्मरताम। ॥1॥

रौद्रायै नमो नित्ययै गौर्य धात्र्यै नमो नमः।
ज्योत्यस्त्रायै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥2॥

कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः।
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥3॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥4॥

अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै नमो नमः ॥5॥

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥6॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥7॥

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥8॥

या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥9॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥10॥

या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥11॥

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥12॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥13॥

या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥14॥

या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥15॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥16॥

या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥17॥

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥18॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥19॥

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥20॥

या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥21॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥22॥

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥23॥

या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥24॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥25॥

या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥26॥

इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदैव्यै नमो नमः ॥27॥
चित्तिरूपेण या कृत्स्त्रमेतद्व्याप्त स्थिता जगत्‌।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥28॥

स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रया -त्तथा सुरेन्द्रेणु दिनेषु सेविता॥
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्र्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥29॥

या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै -रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति नः सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभिः ॥30॥

॥ इति तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्‌ सम्पूर्णम्‌