Monday, 10 July 2017

गजेन्द्र मोक्ष के पाठ से होता है कर्ज दूर

गजेन्द्र मोक्ष के पाठ से होता है कर्ज दूर
gajendr  moksh ke path se dur hota hai karj


Image result for गजेन्द्र मोक्ष केक्षीरसागर में स्थित त्रिकूट पर्वत पर लोहे, चांदी और सोने की तीन विशाल चोटियां थीं. उनके बीच विशाल जंगल में गजेंद्र हाथी अपनी असंख्य पत्नियों के साथ रहता था.
एक बार गजेंद्र अपनी पत्नियों के साथ प्यास बुझाने के लिए एक तालाब पर पहुंचा. प्यास बुझाने के बाद गजेंद्र की जल-क्रीड़ा करने की इच्छा हुई. वह पत्नियों के साथ तालाब में क्रीडा करने लगा.
दुर्भाग्यवश उसी समय एक अत्यंत विशालकाय ग्राह(मगरमच्छ) वहां पहुंचा. उसने गजेंद्र के दाएं पैर को अपने दाढ़ों में जकड़कर तालाब के भीतर खींचना शुरू किया.
गजेंद्र पीड़ा से चिंघाड़ने लगा. उसकी पत्नियां तालाब के किनारे अपने पति के दुख पर आंसू बहाने लगीं. गजेंद्र अपने पूरे बल के साथ ग्राह से युद्ध कर रहा था.
परंतु वह ग्राह की पकड़ से मुक्त नहीं हो पा रहा था. गजेंद्र अपने दाँतों से मगरमच्छ पर वार करता तो ग्राह उसके शरीर को अपने नाखूनों से खरोंच लेता और खून की धारा निकल आतीं. ग्राह और हाथी के बीच बहुत समय तक युद्ध हुआ. पानी के अंदर ग्राह की शक्ति ज़्यादा होती है. ग्राह गजेंद्र का खून चूसकर बलवान होता गया जबकि गजेंद्र के शरीर पर मात्र कंकाल शेष था.
गजेंद्र दुखी होकर सोचने लगा- मैं अपनी प्यास बुझाने यहां आया था. प्यास बुझाकर मुझे चले जाना चाहिए था. मैं क्यों इस तालाब में उतर पड़ा? मुझे कौन बचायेगा?
उसे अपनी मृत्यु दिख रही थी. फिर भी मन के किसी कोने में यह विश्वास था कि उसने इतना लंबा संघर्ष किया है, उसकी जान बच सकती है. उसे ईश्वर का स्मरण हुआ तो नारायण की स्तुति कर उन्हें पुकारने लगा.
सारा संसार जिनमें समाया हुआ है, जिनके प्रभाव से संसार का अस्तित्व है, जो इसमें व्याप्त होकर इसके रूपों में प्रकट होते हैं, मैं उन्हीं नारायण की शरण लेता हूं. हे नारायण मुझ शरणागत की रक्षा करिए.
विविधि लीलाओं के कारण देवों, ऋषियों के लिए अगम्य अगोचर बने जिन श्रीहरि की महिमा वर्णन से परे है. मैं उस दयालु नारायण से प्राण रक्षा की गुहार लगाता हूं.
नारायण के स्मरण से गजेंद्र की पीड़ा कुछ कम हुई. प्रभु के शरणागत को कष्ट देने वाले ग्राह के जबड़ों में भयंकर दर्द शुरू हुआ फिर भी वह क्रोध में जोर से उसके पैर चबाने लगा. छटपटाते गजेंद्र ने स्मरण किया- मुझ जैसे घमण्डी जब तक संकट में नहीं फंसते, तब तक आपको याद नहीं करते. यदि दुख न हो तो हमें आपकी ज़रूरत का बोध नहीं होता.
आप जब तक प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, तब तक प्राणी आपका अस्तित्व तक नहीं मानता लेकिन कष्ट में आपकी शरण में पहुंच जाता है. जीवों की पीड़ा को हरने वाले देव आप सृष्टि के मूलभूत कारण हैं.
गजेंद्र ने श्रीहरि की स्तुति जारी रखी- मेरी प्राण शक्ति जवाब दे चुकी हैं. आंसू सूख गए हैं. मैं ऊंचे स्वर में पुकार भी नहीं सकता. आप चाहें तो मेरी रक्षा करें या मेरे हाल पर छोड़ दें.
सब आपकी दया पर निर्भर है. आपके ध्यान के सिवा दूसरा कोई मार्ग नहीं. मुझे बचाने वाला भी आपके सिवाय कोई नहीं है. यदि मृत्यु भी हुई तो आपका स्मरण करते मरूंगा.
पीड़ा से तड़पता गजेंद्र सूंड उठाकर आसमान की ओर देखने लगा. मगरमच्छ को लगा कि उसकी शक्ति जवाब देती जा रही है. उसका मुंह खुलता जा रहा है.
भक्त की करूणाभरी पुकार सुनकर नारायण आ पहुंचे. गजेंद्र ने उस अवस्था में भी तालाब का कमलपुष्प और जल प्रभु के चरणों में अर्पण किया. प्रभु भक्त की रक्षा को कूद पड़े.
उन्होंने ग्राह के जबड़े से गजेंद्र का पैर निकाला और चक्र से ग्राह का मुख चीर दिया. ग्राह तुरंत एक गंधर्व में बदल गया. दरअसल वह ग्राह हुहू नामक एक गंधर्व था.
एक बार देवल ऋषि पानी में खड़े होकर तपस्या कर रहे थे. गंधर्व को शरारत सूझी. उसने ग्राह रूप धरा और जल में कौतुक करते हुए ऋषि के पैर पकड़ लिए. क्रोधित ऋषि ने उसे शाप दिया कि तुम मगरमच्छ की तरह इस पानी में पड़े रहो किंतु नारायण के प्रभाव से वह शापमुक्त होकर अपने लोक को चला गया.
श्रीहरि के दर्शन से गजेंद्र भी अपनी खोई हुई ताक़त और पूर्व जन्म का ज्ञान भी प्राप्त कर सका. गजेंद्र पिछले जन्म में इंद्रद्युम्न नामक एक विष्णुभक्त राजा थे.
श्रीविष्णु के ध्यान में डूबे राजा ने एक बार ऋषि अगस्त्य के आगमन का ख़्याल न किया. राजा ने युवावस्था में ही गृहस्थ आश्रम को त्यागकर वानप्रस्थ ले लिया.
राजा ब्रह्मा द्वारा प्रतिपादित आश्रम व्यवस्था को भंग कर रहा था, ऋषि इससे भी क्षुब्ध थे. उन्होंने शाप दिया- तुम किसी व्यवस्था को नहीं मानते इसलिए अगले जन्म में मत्त हाथी बनोगे.
राजा ने शाप स्वीकार करते हुए ऋषि से अनुरोध किया कि मैं अगले जन्म में भी नारायण भक्त रहूं. अगस्त्य उसकी नारायण भक्ति से प्रसन्न हुए और तथास्तु कहा.
श्रीहरि की कृपा से गजेंद्र शापमुक्त हुआ. नारायण ने उसे अपना सेवक पार्षद बना लिया. गजेंद्र ने पीड़ा में छटपटाते हुए नारायण की स्तुति में जो श्लोक कहे थे उसे गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र कहा जाता है. (भागवत महापुराण)

No comments:

Post a Comment