Sunday, 17 March 2013

sabari ki nvdha bhakti ram chritmans mai

sabari  ki nvdha bhakti ram chritmans  mai 

शबरी  कि

 नवधा भक्ति 



रामचरितमानस  में




रामचरितमानस में मिले वर्णन के अनुसार जब रामजी उदार शबरीजी के आश्रम में पधारे। शबरीजी ने रामचंद्रजी को देखा, तब मुनि मतंगजी की बात शबरी को याद आई व उसका चेहरा खिल गया। वह प्रभु को देखकर प्रेम मग्र हो गई। फिर वे हाथ जोड़कर आगे खड़ी हो गई वह बोली मैं नीच जाति की मंदबुद्धि हूं मैं नहीं जानती कि आपकी स्तुति कैसे करूं। तब श्रीरामजी ने उस पर प्रसन्न होते हुए कहा मैं तुझे नवधा भक्ति कहता हूं। तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर ले। जो भी ये भक्ति करता है मैं उस पर प्रसन्न हो जाता हूं।

 पहली भक्ति- संतों का संग

 दूसरी भक्ति- कथा प्रसंग में प्रेम

 तीसरी भक्ति- अभिमान रहित होकर गुरु की सेवा।

चौथी भक्ति- गुणसमुहों का गान।

पांचवी भक्ति- मंत्र जप।

छटी भक्ति- अच्छा चरित्र।

सातवी भक्ति- संतो की भक्ति।

 आठवी भक्ति- जो कुछ मिल जाए उसी में संतोष करना।

नवी भक्ति- कपटरहित बर्ताव करना।

फिर तुझमें सब प्रकार की भक्ति दृढ़ है। इन नौ प्रकार की भक्ति के कारण ही जो गतियां योगियों को भी नहीं मिल पाती हैं। वही आज तेरे लिए सुलभ हो गई हैं। ऐसी भक्ति करने के कारण ही आज तुझे मेरे दर्शन सुलभ हो गए हैं।
 



No comments:

Post a Comment