this lesson of gita increase
ताकत व उम्र बढ़ाने जानिए गीता का रहस्य
ताकत व उम्र बढ़ाने जानिए गीता का रहस्य
दरअसल, मानवीय स्वभाव से जुड़ी बुराइयों में से एक ऐसी भी बुराई है, जिससे बुद्धिमान और नासमझ के बीच का फर्क खत्म हो जाता है? यह दोष है - इंद्रिय असंयम। जी हां, अज्ञानतावश इंद्रियों जैसे रस, रूप, गंध, स्पर्श, श्रवण करने वाले अंगो और कर्मेन्द्रियों यानी काम करने वाले अंगों पर संयम न रख पाना इतना अचंभित नहीं करता, किंतु ज्ञानी होने पर भी इन इंद्रियों को वश में न कर पाना बुद्धिदोष माना जाता है, जो किसी इंसान को अज्ञानी, अल्पायु व कमजोर लोगों की कतार में शामिल करने वाला होता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भवतगीता व अन्य धर्मशास्त्रों में भी इस बात की ओर इशारा कर सावधान रहने के लिए कुछ बातें उजागर हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि-
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरषस्य विपश्र्चित:।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:।।
जिसका सरल शब्दों में संदेश यही है कि अस्थिर या चंचल स्वभाव वाली इन्द्रियां परिश्रमी व बुद्धिमान इंसान का मन भी बलपूर्वक डांवाडोल कर देती है।
गीता का यह रहस्य शास्त्रों में लिखी इस बात को बल देता है कि -
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति।
इसमें सबक है कि इन्द्रियों पर बहुत ही काबू रखें। क्योंकि शक्तिशाली इंद्रियों के आगे ज्ञानी व्यक्ति भी पस्त हो सकता है।
गीता की इस बात का मतलब यह कतई नहीं है कि इंसानी जीवन में संयम या अनुशासन व्यर्थ है। बल्कि यही सचेत करना है कि हर इंसान में यह कमजोरी होती है। इसे दूर करने के लिए ही हमेशा अच्छे खान-पान, माहौल, विचारों, दृश्यों व बोलों को व्यावहारिक जीवन में अपनाएं। इनसे हर व्यक्ति खुद को हर स्थिति का सामना करने के लिए संयमी और ताकतवर बना सकता है।
No comments:
Post a Comment