स्वस्तिक मे छिपा सम्पूर्ण सृष्टि रहस्य
स्वस्तिक का अर्थ : स्वस्तिक शब्द को 'सु' एवं 'अस्ति' का मिश्रण योग माना जाता है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्ति' का अर्थ है- होना अर्थात 'शुभ हो', 'कल्याण हो'। स्वस्तिक अर्थात कुशल एवं कल्याण। क्या है स्वस्तिक : स्वस्तिक में एक-दूसरे को काटती हुई 2 सीधी रेखाएं होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएं अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो..प्रकार की हो सकती हैं। प्रथम स्वस्तिक जिसमें रेखाएं आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दाईं ओर मुड़ती हैं। इसे 'दक्षिणावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। दूसरी आकृति पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बाईं ओर मुड़ती है इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। स्वस्तिक का आरंभिक आकार पूर्व से पश्चिम एक खड़ी रेखा और उसके ऊपर दूसरी दक्षिण से उत्तर आड़ी रेखा के रूप में तथा इसकी चारों भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक-एक रेखा जोड़ी जाती है। इसके बाद चारों रेखाओं के मध्य में एक बिंदु लगाया जाता है। स्वस्तिक को 7 अंगुल, 9 अंगुल या 9 इंच के प्रमाण में बनाए जाने का विधान है। मंगल कार्यों के अवसर पर पूजा स्थान और दरवाजे की चौखट पर स्वस्तिक बनाने की परंपरा है। मांगलिक प्रतीक : हिन्दू धर्म में स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। स्वस्तिक के प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। गणेशजी का प्रतीक : स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है।इसमें जो 4 बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ बही-खाते की पूजा की परंपरा आदि में विशेष स्थान है। स्वस्तिक की खड़ी रेखा सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक है और आड़ी रेखा सृष्टि के विस्तार का प्रतीक है। स्वस्तिक का मध्य बिंदु विष्णु का नाभि कमल है तो 4 बिंदु चारों दिशाओं का। ऋग्वेद में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है। दिशाओं का प्रतीक : स्वस्तिक सभी दिशाओं के महत्व को इंगित करता है। इसका चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं- अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग..में प्रयोग किया जाता है। चार वेद, पुरुषार्थ और मार्ग का प्रतीक : हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण 4 सिद्धांत धर्म, अर्थ काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है। चार वेद का प्रतीक- ऋग्, यजु, साम और अथर्व। चार मार्ग ज्ञान, कर्म, योग और.भक्ति का भी यह प्रतीक है।जीवन चक्र और आश्रमों का प्रतीक : यह मानव जीवन चक्र और समय का प्रतीक भी है। जीवन चक्र में जन्म, जवानी, बुढ़ापा और मृत्य यथाक्रम में बालपन, किशोरावस्था, जवानी और बुढ़ापा शामिल है। यही 4 आश्रमों का क्रम.भी है- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। युग, समय और गति का प्रतीक : स्वस्तिक की 4 भुजाएं 4 गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं वहीं समय चक्र में मौसम और काल शामिल है। यही 4 युग का भी प्रतीक है-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग।योग, जोड़ का प्रतीक : इसका आरंभिक आकार गणित के धन चिह्न के समान है अत: इसे जोड़ या मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। धन के चिह्न पर एक-एक रेखा जोड़ने पर स्वस्तिक का निर्माण होता है।
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